व्रज - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी
Wednesday, 23 February 2022
निकुंजनायक श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव
आज की पोस्ट बहुत लम्बी पर उत्सव के आनंद के रंग से सराबोर है अतः समय देकर पूरी पढ़ें
सभी वैष्णवों को निकुंजनायक श्रीजी व श्री लाड़लेलाल प्रभु के पाटोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
निकुंजनायक श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव
होली खेल के 40 दिनों में पाटोत्सव का अपना अलग ही महत्व है, जो प्रभु कृपा और सर्व-समर्पण की भावना से उत्पन्न हुआ है.
श्रीजी प्रभु आज ही के दिन, श्री गुसाईंजी के घर सतघरा पधारे थे। श्री गिरिधरजी ने श्रीजी की आज्ञा से आपश्री को अपने कंधों पर विराजित कर उन्हें अपने घर पधरा ले गए.
वहाँ श्रीजी ने श्रीगुसाँईजी के परिवार के सभी बालक, बेटीजी और बहूजी के साथ होली खेली.
तब श्री गिरिधरजी के परिवार की सभी महिलाओं ने अपने सभी आभरणों (आभूषणों) का प्रभु चरणों में समर्पण किया (आज भी सर्व-समर्पण का प्राचीन जडाव का चौखटा प्रभु जन्माष्टमी आदि कई विशिष्ट दिनों पर अंगीकार करते हैं).
इस समय जब श्री गिरिधरजी के बहूजी की नथ रह गयी, तब श्रीजी ने अपनी वेणुजी से संकेत किया और वह भी माँग ली.
इसे ही प्रभु कृपा कहते हैं.
विशेष – आज निकुंजनायक श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव है.
आज के दिन श्रीजी प्रभु व्रज से पधारने के उपरांत वर्तमान श्रीजी मंदिर के बाहर के चौक में स्थित खर्च-भण्डार में बिराजे थे.यहाँ पर प्रभु तीन बार (संवत 1623, 1728 व 1864) में बिराजे एवं कुछ वर्ष उपरांत वर्तमान मंदिर निर्माण के पूर्ण होने पर डोलोत्सव के अगले दिन द्वितीया पाट के दिन अपने वर्तमान पाट पर विराजे.
खर्च-भण्डार में जिस स्थान पर प्रभु विराजे उस स्थान पर श्रीजी की छवि स्थित है और उसकी सेवा प्रतिदिन श्रीजी के घी-घरिया करते हैं.
आज खर्च-भंडार में विराजित श्रीजी की छवि को सैंकड़ों लीटर केसर व मेवे युक्त दूध का भोग अरोगाया जाता है और शयन पश्चात सभी वैष्णवों एवं नगरवासियों को वितरित किया जाता है.
आज से सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे.
पुष्टिमार्ग में प्रत्येक ऋतु का आगमन व पूर्व ऋतु की विदाई प्रभु सुखार्थ धीरे-धीरे क्रमानुसार होती है.
प्रभुसेवा में आज से शीतकाल की विदाई आरंभ हो गयी है अतः जल रंगों (Water Colors) के चित्रांकन की पिछवाईयां धरायी जानी प्रारंभ हो जाती है.
आज से डोलोत्सव तक इस प्रकार की पिछवाईयां केवल श्रृंगार के दर्शनों में ही धरायी जाती हैं एवं ग्वाल में बड़ी (हटा) कर सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती हैं क्योंकि राजभोग में प्रभु को गुलाल खेलायी जाती है.
आज से चरणारविंद के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज से प्रभु को मोजाजी भी नहीं धराये जाते परन्तु यदि अधिक शीत हो तो आज का दिन छोड़कर प्रभु सुखार्थ शीत रहने तक राजभोग तक मोजाजी पुनः धराये जा सकते हैं.
आज से डोलोत्सव तक श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी में ख्याल (स्वांग) प्रारंभ होंगे. ख्याल बनने वाले बालक, बालिकाएं विविध देवों, गन्धर्वों एवं सखाओं के रूप धरकर ख्याल बनकर शयन के दर्शन में प्रभु के समक्ष नाचते हैं जिससे बालभाव में प्रभु आनंदित होते हैं.
कई वर्षों पूर्व जब प्रभु व्रज में थे तब वहां इस प्रकार के ख्याल (स्वांग) निकलते थे. श्रीजी का मन ऐसे ख्याल (स्वांग) देखने बाहर जाने का हुआ तब श्री गिरधरजी ने प्रभु के सुखार्थ सतघरा में ही ख्याल (स्वांग) बनाने की प्रथा प्रारंभ की जो कि आज भी जारी है.
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श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज निज मंदिर का चंदुआ बदला जाता हैं.
मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
सभी समय यमुनाजल की झारीजी भरी जाती है. चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
राजभोग में 6 बीड़ा की शिकोरी(स्वर्ण का जालीदार पात्र) आवे.
प्रभु को नियम के केसरी (अमरसी) डोरिया के रुपहली ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित घेरदार वागा, चोली एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली श्याम रंग की चोवा की चोली धरायी जाती है.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में खरमंडा, केसर-युक्त गेहूं के रवा (संजाब) की खीर, श्रीखंडवड़ी का डबरा, मंगोड़ा (मूंग की दाल के गोल दहीवड़ा) की छाछ व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है.
श्रृंगार दर्शन –
कीर्तन – (राग : देवगंधार)
आज माई मोहन खेलन होरी l
नवतन वेष काछी ठाड़े भये संग राधिकागोरी ll 1 ll
अपने भामते आये देखनको जुरि जुरि नवलकिशोरी l
चोवा चन्दन और कुंकुमा मुख मांडत ले रोरी ll 2 ll
छूटी लाज तब तन संभारत अति विचित्र बनी जोरी l
मच्यो खेल रंग भयो भारे या उपमाको कोरी ll 3 ll
देत असीस सकल व्रजवनिता अंग अंग सब भोरी l
‘परमानंद’ प्रभु प्यारीकी छबी पर गिरधर देत अकोरी ll 4 ll
साज – आज प्रभु को होली के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है जिसमें व्रजभक्त प्रभु को होली खिला रहे हैं और ढप वादन के संग होली के पदों का गान कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.राजभोग में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है.
वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी डोरिया के दोहरा रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली श्याम रंग की चोवा की चोली धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत चिकने लट्ठा के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की कीलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में फ़िरोज़ा के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है.
पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली एक मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती
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