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Sunday, 27 March 2022

व्रज - चैत्र कृष्ण एकादशी

व्रज - चैत्र कृष्ण एकादशी 
Monday, 28 March 2022

सेहरा के शृंगार

विशेष – आज पापमोचनी एकादशी है. 
श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.
श्रीजी के अलावा नाथद्वारा में अन्य सभी पुष्टि स्वरूपों जैसे श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी, श्री वनमालीजी आदि को नित्य की सामग्री के अलावा राजभोग समय फलाहार का भोग लगाया जाता है.
एकादशी फलाहार में पुष्टि स्वरूपों को विशेष रूप से सिंघाड़े के आटे का सीरा (हलवा), सिंगाड़े के आटे की मीठी सेव, विविध प्रकार के शाक, सिंघाड़े के आटे की मोयन की पूड़ी, तले हुए कंद (रतालू, सूरण, अरबी), सिंघाड़े के आटे की राब, रायता आदि आरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतरत मैया ll 1 ll
नित प्रति मौतिन चौक पुरावत नित प्रति विप्रन वेद पढ़ैया l
नित ही राई लोन उतारत नित ही 'गदाधर' लेत बलैया ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में विवाह खेल लीला की, विवाह मंडप के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. श्रीजी लग्न-मंडप में विराजित हैं, श्री स्वामिनी जी एवं श्री यमुना जी सेहरा के श्रृंगार में दोनों ओर खड़े हैं. गोपियाँ विवाह के मंगल गीत गाती हुई इस अद्भुत शोभा को निरख रहीं हैं. 
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी ज़री की छज्जेदार पाग के ऊपर हीरा का सेहरा दो तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में फ़िरोज़ा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी राग रंग की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के आभरण पटका सेहरा बड़े कर के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं.
पाग पर सिरपेच, टीका धराये जाते हैं, लूम तुर्रा नहीं आवे.

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