Tuesday, 31 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया
Monday, 30 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा
Sunday, 29 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या
Saturday, 28 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी
Friday, 27 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी
Thursday, 26 May 2022
व्रज व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी
Wednesday, 25 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी
Tuesday, 24 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण दशमी
Monday, 23 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण नवमी
Sunday, 22 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी
Saturday, 21 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी
Friday, 20 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी
Thursday, 19 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी
Wednesday, 18 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी
Tuesday, 17 May 2022
व्रज व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया (द्वितीया क्षय)
Monday, 16 May 2022
व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा
Sunday, 15 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल पूर्णिमा
Saturday, 14 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी
Friday, 13 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल त्रयोदशी
Thursday, 12 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल द्वादशी
Wednesday, 11 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी
Tuesday, 10 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल दशमी
Monday, 9 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल नवमी
Sunday, 8 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल अष्टमी
Saturday, 7 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल सप्तमी
Sunday, 08 May 2022
नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गिरिधरलालजी महाराज का उत्सव
डोलोत्सव से धीरे-धीरे ऊष्णकाल में उत्तरोत्तर वृद्धि होने के साथ ही प्रभु सुखार्थ सेवाक्रम में भी क्रमानुसार परिवर्तन होता है जिससे श्री ठाकुरजी को ऊष्ण का अनुभव न हो.
प्रभु सुखार्थ इतनी सूक्ष्मता से सेवाक्रम का निर्धारण निस्संदेह अद्भुत है.
इसी क्रम में आज से ऊष्णकाल का एक और सौपान बढ़ जाता है जिसमें प्रभु सुखार्थ सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे
नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री लालगिरधरजी महाराज का उत्सव, श्रीजी सेवा में फव्वारे आरम्भ
विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री लालगिरधरजी महाराज का उत्सव है. आप तिलकायत होने के साथ उत्कृष्ट कवि थे. आपने ‘श्री लालगिरिधर’ के नाम से कई कीर्तन रचित किये हैं जो कि श्रीजी सेवा में गाये जाते हैं.
सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. दो समय थाली में आरती की जाती है.
डोलोत्सव से धीरे धीरे ऊष्णकाल क्रमानुसार आरम्भ हो जाता है और इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि होने के साथ ही प्रभु के सुख में भी उसी क्रम में वृद्धि होती रहती है जिससे श्री ठाकुरजी को ऊष्णता का अनुभव न हो.
प्रभु सुखार्थ इतनी सूक्ष्मता से सेवाक्रम का निर्धारण निस्संदेह अद्भुत है.
इसी क्रम में आज से ऊष्णकाल का एक और सौपान बढ़ जाता है जिसमें प्रभु सुखार्थ सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे.
आज से मंगला में श्रीजी को उपरना के स्थान पर आड़बंद धराया जाता है.
आज से श्रीजी को ठाड़े (कन्दराजी के) वस्त्र नहीं धराये जायेंगे और प्रभु की पीठिका के दर्शन होंगे.
आज से प्रभु के श्रीहस्त में पुष्पछड़ी के स्थान पर कमलछड़ी धरायी जाती है.
इत्र – प्रभु सुखार्थ आज विशेष रूप से चैत्री गुलाब, रूह गुलाब, सोंधा, मोगरा, जूही अथवा रूह खस का इत्र समर्पित किया जाता है.
प्रभु को नियम का केसरी रंग के डोरिया का पिछोड़ा धराया जाता है, उत्सव के हीरा मोती के आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर लूम की रूपहरी किलंगी धरायी जाती है.
उत्सव होने के कारण श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में श्रीखण्ड-भात अरोगाये जाते हैं.
राजभोग दर्शन-
कीर्तन – (राग : सारंग)
श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखद एक रसना कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम और रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी डोरिया का स्याम झाई का पिछोड़ा धराया जाता है. आज से ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते अतः पीठिका के दर्शन होते हैं.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के हीरा व मोती के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्याम झांई की केसरी छज्जेदार पाग के ऊपर संक्रान्ति वाले सिरपैंच, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में हीरा के झुमका वाले कर्णफूल एक जोड़ी धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में त्रवल नहीं आवे यद्यपि कंठी धरायी जाती है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
आज पीठिका के ऊपर श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की एक मोटी सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, ऊष्णकाल सुवा वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती ह
आज से भोग दर्शन में प्रभु सुखार्थ श्रीजी के सम्मुख शीतल जल के चांदी के फव्वारे चलाये जायेंगे एवं राजभोग उपरान्त हर घन्टे भीतर व संध्या आरती दर्शन उपरान्त डोल-तिबारी में भी शीतल जल का छिड़काव प्रारंभ हो जायेगा.
भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवा अरोगाये जाते हैं.
Friday, 6 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल षष्ठी
Thursday, 5 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल पंचमी
Wednesday, 4 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्थी
Tuesday, 3 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया( द्वितीय)
Monday, 2 May 2022
व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (प्रथम)
व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया (प्रथम)
Tuesday, 03 May 2022
श्याम अंग सखी हेम चंदनको नीको सोहे वागो ।
चंदन ईजार चंदन को पटुका बन्यो सीस चंदन को पागो ।।१।।
अति छबि देत चंदन ऊपरना बीच बन्यो चंदन को तागो ।
सब अंग छींट बनी चंदन की निरखत सूर सुभागो ।।२।।
आज की पोस्ट काफी लंबी परंतु अक्षय तृतीया से प्रभु के सुखार्थ होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनो की जानकारी से ओतप्रोत है.
अक्षय तृतीया (आखातीज)
विशेष – आज का दिन अति विशिष्ट है. आज अक्षय तृतीया है और श्रीमद्भागवत के अनुसार आज से त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था.
अक्षय-तृतीया ऐसी तिथी है जिसका क्षय नहीं होता इसीलिए इसे अक्षय-तृतीया कहा जाता है.
इसी कारण ऐसी मान्यता है कि आज के दिन किये पुण्य का क्षय नहीं होता अतः आज के दिन शीतल वस्तुओं (हाथ का पंखा, खरबूजा, सतुवा का लड्डू) सहित जल-कुम्भ (जल की छोटी मटकी) का दान अत्यंत फलदायी है.
उड़ीसा के पुरी में भगवान् श्री जगन्नाथजी में आज से चन्दन यात्रा प्रारंभ होती है. आज से कई दिन प्रभु को प्रतिदिन चन्दन का लेप किया जाता है जिससे प्रभु को शीतलता मिले.
पुष्टिमार्ग विशेष – आज के दिन बालक श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार भी हुआ था
आज के दिन ही विक्रमाब्द 1556 में गिरिराज पर्वत पर पूरणमल क्षत्रिय के द्वारा श्रीजी हेतु नए मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ.
विक्रमाब्द 1576 में उक्त मंदिर का निर्माण पूर्ण होने पर भी आज के दिन ही श्री महाप्रभुजी ने श्रीजी को पाट पर विराजित किया था.
इसके अतिरिक्त आज के ही दिन प्रभुचरण श्रीगुसाईंजी का दूसरा विवाह हुआ था
सेवाक्रम - प्रातः शंखनाद कर श्वेत केसर की किनारी के चंदवा आदि बांधे जाते हैं. सिंहासन, चरणचौकी, पडघा आदि सर्व-साज स्वर्ण के बड़े कर चांदी के साजे जाते हैं. गेंद, चौगान, दिवला आदि चांदी के आते हैं.
आज विशिष्ट उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. आज से प्रतिदिन आरती चार बत्ती की आती है जिसमें आज सभी समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
मंगला पश्चात प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. आज से झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वेत्रजी आदि सभी चांदी के धरे जाते हैं.
श्रृंगार समां का कीर्तन –
आज मेरे आएंगे हरि मेहमान l
चंदन भवन लिपाय स्वच्छ करि धर्यो है अरगजा सान ll 1 ll
पलकन के पावड़े बिछाऊँ अंचल पवन दुराऊँ l
सुधे बसन सगमंगे किने मुक्ता ले पहराऊँ ll 2 ll
करके मनोरथ अपने मन को रही न कछु अभिलाष l
पहले बोल सुनत तू आली ‘कृष्णदास’ हित साख ll 3 ll
प्रभु को नियम का श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा व चंदनिया रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से कूर (घी में सेके गये कसार) के चाशनी चढ़े गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
अक्षय तृतीया अक्षयलीला नवरंग गिरिधर पहेरत चंदन l
वामभाग वृषभान नंदिनी बिचबिच चित्र नव वंदन ll 1 ll
तनसुख छींट ईजार बनी है पीत उपरना विरह-निकंदन l
उर उदार बनमाल मल्लिका सुखद पाग युवतीन मनफंदन ll 2 ll
नखसिख रत्न अलंकृत भूषन श्रीवल्लभ मारग मनरंजन l
‘कृष्णदास’ प्रभु रसिक सिरोमनि लोचन चपल लजावत खंजन ll 3 ll
साज – आज प्रभु में श्वेत चिकन बूटी की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केसर की किनार की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र चंदनिया (चंदन के) डोरिया के धराये जाते हैं.
#पोस्ट में प्रस्तुत चित्र में सभी वस्त्र एवं पिछवाई आदि पर चंदन के छापा द्रश्य हैं परन्तु वास्तव में ऐसा नही होता. वस्त्रादि साज पर केसर की किनार ही की जाती है.
श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) उष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. विशेष मोती, हीरा एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
नीचे उष्ण काल के मोती के पदक ऊपर मोती की माला धरायी जाती हैं.
कली एवं सात बालकन की माला धरायीं जाती हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के कुंडल धराये जाते हैं.
पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी मोती की व आरसी शृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
आज ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते और दो राजभोग दर्शन खुलते हैं.
पहले राजभोग में नित्य-नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, दहीभात आदि अरोगाये जाते हैं.
भोग सरे उपरान्त हस्तनिर्मित खस के पंखा, श्वेत माटी के करवा, कुंजा व चन्दन बरनी का अधिवासन होता है और दर्शन खोले जाते हैं.
आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है. चन्दन को घिस के मलमल के वस्त्र में लेकर जल निचो लिया जाता है एवं इसमें केशर, बरास, इत्र (खस अथवा गुलाब), गुलाबजल आदि मिलाकर इसकी गोलियां बनायी जाती है.
खुले दर्शन के मध्य प्रभु को चंदन समर्पित किया जाता है. पहली गोली प्रभु के वक्षस्थल पर, दूसरी गोली, दायें श्रीहस्त में, तीसरी बायें श्रीहस्त पर, चौथी दायें श्रीचरण पर और पांचवी गोली बायें श्रीचरण पर धरी जाती है.
इसके पश्चात दो नये हस्तनिर्मित ख़स के हाथ-पंखा को जल छिड़ककर प्रभु को कुछ देर पंखा झलकर गादी के पीछे तकिया की दोनों ओर रखे जाते हैं.
पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं परन्तु इस दर्शन में आरती नहीं की जाती.
दर्शन उपरांत दूसरे राजभोग में उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को खरबूजा (शक्कर टेंटी) के छिले हुए बीज के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फल, उत्तमोत्तम रत्नागिरी आम की डबरिया, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
सखड़ी में बड़े टूक, पाटिया, दहीभात, घोला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाती हैं.
दुसरे राजभोग दर्शन में आरती होती है. राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) में पान के बीड़ा धरे जाते हैं.
आज प्रभु के मुंडन का दिन भी है और इस कारण आज के उत्सव में ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य भी आमंत्रित किये जाते हैं और इसीलिए आज श्री यशोदाजी के पीहर की लकड़ी की विशिष्ट चौकी का प्रयोग भोग धरने में किया जाता है.
आज से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को क्रमशः जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. यद्यपि यह सामग्री रथयात्रा के पश्चात भी जन्माष्टमी तक अरोगायी जाती है परन्तु इसके स्वरुप में कुछ परिवर्तन होता है जिसका वर्णन मैं तभी दूंगा.
आज से जन्माष्टमी तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को शीतल (जल में बूरा, गुलाबजल, इलायची, बरास आदि मिलाकर सिद्ध किया गया पेय) अरोगाया जाता है.
चंदन की गोलियां संध्या-आरती पश्चात श्रृंगार बड़ा हो तब बड़ी की (हटाई) जाती है.
शयन समय शैयाजी के ऊपर छींट की गादी एवं उसके ऊपर श्वेत मलमल की चादर रखी जाती है. शैयाजी का यह क्रम आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक रहता है.
आप सभी को अक्षय-तृतीया के उत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी
व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी Friday, 07 March 2025 होलकाष्टकारंभ विशेष –आज से होलकाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होली के आठ दिन पूर्व शुरू होने व...
-
By the Grace of God Prabhu layak Heavy Quality Cotton Sartin manufactured by us. 💝Pushti Sartin💝 👉Pushti Heavy Quality Sartin fabric @ ...
-
Saanjhi Utsav starts on Bhadrapad Shukl Poornima and lasts till Ashwin Krsna Amavasya. Vaishnavs make different kind of Saanjhi and Saan...
-
🔸Beautiful Creation🔸 🏵️ Handmade Pichwai with Original Chandan-Kesar on cotton fabric🏵️ ⚜️ Material used⚜️ ✨Chandan/Sandelwood ✨Kesa...