व्रज - आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी
Sunday, 03 July 2022
छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है।।
नियम का ताज़बीबी के अन्नय भाव के सूथन, फेंटा और पटका के शृंगार
उत्थापन दर्शन पश्चात नियम का मोगरे की कली का पहला शृंगार (कली के शृंगार पर विशिष्ट पोस्ट आज दोपहर तीन बजे)
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में कुछ नियम के श्रृंगार धराये जाते हैं जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में भी धराये जाते हैं.
इसमें विशेष यह है कि ये वस्त्र श्रृंगार वैशाख मास में जिस क्रम से आवें उसके ठीक उलट क्रम से आषाढ़ मास में धराये जाते हैं.
श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म संप्रदाय से हो.
इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था.
ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में कम से कम छह बार धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के दिन निश्चित नहीं हैं.
ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.
आज श्रीजी को सूथन, फेंटा और पटका का श्रृंगार धराया जाता है. यद्यपि आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के मध्य में धराया अवश्य जाता है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : मल्हार)
ओढे लाल उपरैनी झिनी ।
तन सुख सेत सुदेश अशं पर बहुत अगरज भीनी ।।१।।
अति सुगंध सीतल ऊर चंदन आदि ये रचना कीनी ।
हरी धरी भु पर पाग दुपेचीं कोटि मदन छबी छीनी ।।२।।
सूथन बनी हिरमिचीं शोभित गति गयंदकी
लीनी ।
परमानंद प्रभु चतुर शिरोमनि व्रजवनिता प्रेम रति दीनी ।।३।।
साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी धोरा के रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी धोरा के रंग की मलमल का धोरे (थोड़े-थोड़े अंतर से किनारी के धोरे) वाला सूथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है.
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी धोरा के रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, चंद्रिका, कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में लोलकबिन्दी (लड़ वाले कर्णफूल) धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
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