By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 30 July 2022

व्रज - श्रावण शुक्ल तृतीया (ठकुरानी तीज)

व्रज - श्रावण शुक्ल तृतीया (ठकुरानी तीज)
Sunday, 31 July 2022

सभी वैष्णवों को ठकुरानी तीज की बधाई

ठकुरानी तीज

विशेष – आज ठकुरानी तीज है. राजस्थान के राजपुताना राज-घरानों में इस दिन का विशेष महत्व है. इसे राजस्थान में छोटी तीज भी कहा जाता है.

पुष्टिमार्ग की यह विशेषता है कि लौकिक त्यौहारों में प्रभु को विनियोग करने से उनमें अलौकिकता प्रकट होती है. हमारे पुष्टि पुरुषोत्तम प्रभु श्रीनंदकुमार भी व्रज के ठाकुर हैं, राजकुमार हैं अतः व्रज में ठकुरानी तीज मनायी जाती है. 
इस सन्दर्भ में कई व्रजभक्तों ने गाया भी है ‘ठाकुर नंदकिशोर हमारे, ठकुराईन वृषभानलली’ पुष्टिमार्ग में ये उत्सव सर्वत्र भावात्मक और रसात्मक रूप में मनाया जाता है.

श्रीजी ने श्री महाप्रभुजी को विक्रम संवत 1549 की फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन झारखंड में आज्ञा के उपरांत आप श्रावण शुक्ल तृतीया  के दिन गोकुल के गोविन्द घाट पधारे जहाँ श्री यमुनाजी ने आपको दर्शन दिए. श्री महाप्रभुजी ने यमुनाष्टक कीं रचना कर श्री यमुनाजी की स्तुति की.

यह तीज श्री यमुनाजी और श्री राधारानी की है. व्रज और राजस्थान का यह लोकोत्सव है. युवा कन्याएं सज-संवर कर वन विहार करती हैं. झूला झूलती हैं, आनंद-प्रमोद करती हैं और व्रत करती हैं. नाथद्वारा में भी महिलाऐं लाल चूंदड़ी के वस्त्र पहन कर प्रभु के दर्शन करने जाती हैं.

पुष्टि सेवा प्रकार में व्रजांगनाएं श्री यमुनाजी और श्री राधिकाजी को अपनी स्वामिनी अथवा ठकुरानी मान कर आपके नैतृत्व में श्री ठाकुरजी के साथ व्रज-विहार का आनंद लेती हैं. फलफूल के हिंडोलना में श्री युगल स्वरुप को झूलाती हैं.

आज की सेवा चन्द्रावलीजी और शोभाजी की ओर की होती है. 

सेवाक्रम - पर्वात्मक उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवला आदि सोने के आते हैं.

मंगला दर्शन में लाल रंग का चौफूली चूंदड़ी का उपरना धराया जाता है.

मंगला दर्शन के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) आदि से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज से श्रीजी को चूंदड़ी के वस्त्र धराने आरम्भ होते हैं.

वस्त्रों में आज नियम का लाल रंग का चौफूली चूंदड़ी का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर पाग व मोर-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को चारोली (चिरोंजी) के लड्डू और दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

सारी मेरी भींजत है जु नई अब ही पीहर से पहने जु आयी पिता वृषभानु दई ।
सुन्दर श्याम जायेगो ये रंग बहु विध चित्र दई ।।१।।
अपनो पीताम्बर मोहे ओढ़ावो बरखा उदित भई ।
कुम्भनदास लाल गिरधरनवर मुदित उछंग लई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग का चौफूली चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है. 
मिलवा – हीरा, मोती, माणिक पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल चौफूली चूंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सादी मोरपंख की चन्द्रिका और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
नीचे सात पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.
श्वेत एवं पीले पुष्पों की सुन्दर थाग वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी जड़ाऊ की आती है.
आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

No comments:

Post a Comment

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...