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Friday, 8 July 2022

व्रज - आषाढ़ शुक्ल दशमी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल दशमी 
Saturday, 09 July 2022

पीले मलमल का मेघश्याम हाशिया वाला पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के श्रृंगार

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली का शृंगार

विशेष – आज बैंगन दशमी है. 
श्रीनाथजी के अलावा अन्य सभी पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में कल से चार माह अर्थात देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक बैंगन का प्रयोग वर्जित है. 
इसीलिए आज इन सभी पुष्टि स्वरूपों को अनसखड़ी भोग में बैंगन के गुंजा (समोसे), बैंगन के पकौड़े, बैंगन की सब्जी आदि विशेष रूप से आरोगाये जाते हैं वहीँ सखड़ी भोग में प्रभु को बैंगन भात, बैंगन की कढ़ी, बैंगन के पकौड़े, बैंगन के तले हुए चकते, आखा (भरवां) बैंगन की सब्जी आदि आरोगाये जाते हैं.

गोवर्धनधरण में बैंगन की कोई वर्जना नहीं है अतः श्रीजी को
पूरे वर्ष बैंगन से निर्मित सामग्रियां अरोगायी जाती हैं. 
कई पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिवारों में चतुर्मास में बाजार से खरीद कर बैंगन नहीं खाए जाते परन्तु श्रीजी के अरोगे हुए महाप्रसाद के बैंगन की वर्जना नहीं होती.

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पीले मलमल का मेघश्याम हाशिया वाला पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : मल्हार)

हों इन मोरनकी बलिहारी l
जिनकी सुभग चंद्रिका माथे धरत गोवर्धनधारी ll 1 ll
बलिहारी या वंश कुल सजनी बंसी सी सुकुमारी l
सुन्दर कर सोहे मोहन के नेक हू होत न न्यारी ll 2 ll
बलिहारी गुंजाकी जात पर महाभाग्य की सारी l
सदा हृदय रहत श्याम के छिन हू टरत न टारी ll 3 ll
बलिहारी ब्रजभूमि मनोहर कुंजन की अनुहारी l
‘सूरदास’ प्रभु नंगे पायन अनुदिन गैया चारी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा में निकुंजलीला के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं श्री गोपीजन श्रीप्रभु की सेवा में रत है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को पीले मलमल का मेघश्याम हाशिया वाला पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पीले रंग के ग्वाल पगा पर मोती की लड़, पगा चंद्रिका (मोरशिखा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट ऊष्णकाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

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