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Saturday, 15 October 2022

व्रज – कार्तिक कृष्ण षष्ठी (द्वितीय)

व्रज – कार्तिक कृष्ण षष्ठी (द्वितीय)
Sunday, 16 October  2022

रूपचौदस का प्रतिनिधि का श्रृंगार

प्रतिनिधि का श्रृंगार – बड़े उत्सवों के पहले उनके श्रृंगार के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि के श्रृंगार कहे जाते हैं.

इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली चतुर्दशी अर्थात रूप-चौदस या नरक चतुर्दशी को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है जिसमें हल्के चंपाई आधारवस्त्र पर सुरमा-सितारा के भरतकाम (भीम पक्षी के पंख की) से सुसज्जित पिछवाई, सुनहरी ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया है. 

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की चतुर्दशी (रूप-चौदस) को भी धराये जायेंगे. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

हमारो देव गोवर्धन पर्वत गोधन जहाँ सुखारो l
मघवाको बलि भाग न दीजे सुनिये मतो हमारो ll 1 ll
बडरे बैठ बिचार मतो कर पर्वतको बलि दीजे l
नंदरायको कुंवर लाडिलो कान्ह कहे सोई कीजे ll 2 ll
पावक पवन चंद जल सूरज वर्तत आज्ञा लीने l
या ईश्वर को कियो होत है कहा इंद्र के दीने ll 3 ll
जाके आसपास सब व्रजकुल सुखी रहे पशुपारे l
जोरो शकट अछूते लेले भलो मतो को टारे ll 4 ll
माखन दूध दह्यो घृत घृतपक लेजु चले व्रजवासी l
अद्भुत रूप धरे बलि भुगतत पर्वत सदा निवासी ll 5 ll
मिट्यो भाग सुरपति जब जान्यो मेघ दीये मुकराई l
‘मेहा’ प्रभु गिरि कर धर राख्यो नंदसुवन सुखदाई ll 6 ll

साज – श्रीजी में आज हल्के चंपाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी (फुलकसाई) ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका रुपहली ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे की प्रधानता के, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलकसाई ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा-पन्ना का सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. लूम व झोरा हीरा के आते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल आदि सर्व श्रृंगार, कस्तूरी व कली की माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व सोने के) धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का व गोटी जडाऊ चौपड़ की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर शयन समय छोटे छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर नवरत्न की किलंगी और मोती की लूम धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते.

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