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Monday, 17 October 2022

व्रज – कार्तिक कृष्ण अष्टमी

व्रज – कार्तिक कृष्ण अष्टमी 
Tuesday, 18 October 2022

दीपोत्सव का प्रतिनिधि का शृंगार

बड़े उत्सवों के पूर्व अथवा उपरांत उनके परचारगी श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि के श्रृंगार कहे जाते हैं.

इसी श्रृंखला में इसी श्रृंखला में आज श्रीजी को दीपावली के दिन धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है जिसमें प्रभु को लाल सलीदार ज़री की सूथन, श्वेत फूलकसाही ज़री की चोली, चाकदार वागा एवं सुनहरी ज़री का पटका धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फूलकसाही ज़री की कुल्हे व पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

भोग विशेष - मनोरथ के साज की भावना से श्रीजी को राजभोग व शयनभोग में कट-पुआ, केशरयुक्त सुवाली, पकागुंजा, खुरमा, खस्ता मठडी आदि अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी ll 1 ll
घर घर गोमय प्रतिमा धारी, बाजत रुचिर पखावज थारी ll 2 ll
गोद लीयें मंगल गुन गावत, कमल नयन कों पाय लगावत ll 3 ll
हरद दधि रोचनके टीके, यह व्रज सुरपुर लागत फीके ll 4 ll
राती पीरी गाय श्रृंगारी, बोलत ग्वाल दे दे करतारी ll 5 ll
‘हरिदास’ प्रभु कुंजबिहारी मानत सुख त्यौहार दीवारी ll 6 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की धरती (Base) के ऊपर सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रकोसी के काम (Work) वाली, जिसमें चन्द्र, सूर्य, गाय, तथा पुष्पों का ज़रकोसी का काम (Work) किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी तथा चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री की सूथन, श्वेत फूलक साई ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता सहित हीरे, मोती, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर फूलक साई श्वेत ज़री की कुल्हे के ऊपर तीन टीका व तीन ही त्रवल, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति हीरा के कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. 
त्रवल व टोडर दोनों धराये जाते हैं. 
आज हालरा धराया जाता हैं.
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. 

राजभोग में पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर तुर्रा-किलंगी नहीं आते हैं व हीरा की किलंगी धरायी जाती है.  
पिछवाई बड़ी (हटा) कर कांच का बंगला आवे. 
मणिकोठा में पांच कांच की हांडियों में रौशनी की जाती है वहीँ निज मन्दिर की देहरी के भीतर दो कांच की मृदंग में रौशनी की जाती है.
शयन दर्शन उपरांत अनोसर में कुल्हे बड़ी कर छज्जेदार पाग धरायी जाती है.

इस वर्ष आगामी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के क्षय के कारण दशमी को आरम्भ होने वाले दीपावली के विशिष्ट श्रृंगार कल कार्तिक कृष्ण नवमी से ही प्रारंभ हो जाएंगे. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘घर के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये श्रृंगार दीपावली के अलावा जन्माष्टमी एवं डोलोत्सव के पूर्व भी धराये जाते हैं.

इन श्रृंगार का विशेषाधिकार पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री का होता है.

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