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Monday, 31 October 2022

व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी
Tuesday, 01 November 2022

गोपाष्टमी (दीपावली का सेवाक्रम)

आज गोपाष्टमी है और आज के दिन ही बालक नन्दकुमार पहली बार गौ-चारण हेतु वन में पधारे थे. आज से ही प्रभु श्रीकृष्ण को गोप (ग्वाल) का दर्ज़ा मिला था. इस भाव से आज का उत्सव गोपाष्टमी कहलाता है. 
यद्यपि इस वर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या को सूर्यग्रहण था इसलिए दीपावली व अन्नकूट का सम्पूर्ण सेवाक्रम आज व कल होगा.

श्रीजी का सेवाक्रम - महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

शंखनाद प्रातः 4.15 बजे व मंगला दर्शन प्रातः लगभग 5.00 बजे खोले जाते हैं.
मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रीजी को नियम के लाल सलीदार ज़री की सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री की चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ज़री की कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं. 

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.
आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूँ के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

आज राजभोग आरती के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत अन्नकूट महोत्सव के लिए चांवल पधराने जाते हैं. 
उनके साथ चिरंजीवी श्री विशालबावा, श्रीजी के मुखियाजी व अन्य सेवक श्रीजी के ख़ासा भण्डार में जा कर टोकरियों में भर कर चांवल भीतर की परिक्रमा में स्थित अन्नकूट की रसोई में जाकर पधराते हैं. 
तदुपरांत नगरवासी व अन्य वैष्णव भी अपने चांवल अन्नकूट की रसोई में अर्पित करते हैं. आज सायं से अन्नकूट की चांवल की सेवा प्रारंभ होती है.

आज श्रीजी में राजभोग दर्शन पश्चात कोई दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी ll 1 ll
घर घर गोमय प्रतिमा धारी, बाजत रुचिर पखावज थारी ll 2 ll
गोद लीयें मंगल गुन गावत, कमल नयन कों पाय लगावत ll 3 ll
हरद दधि रोचनके टीके, यह व्रज सुरपुर लागत फीके ll 4 ll
राती पीरी गाय श्रृंगारी, बोलत ग्वाल दे दे करतारी ll 5 ll
‘हरिदास’ प्रभु कुंजबिहारी मानत सुख त्यौहार दीवारी ll 6 ll

साज – आज श्रीजी में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज (द्वितीय) कृत जड़ाव की, श्याम आधारवस्त्र पर कूंडों में वृक्षावली एवं पुष्प लताओं के मोती के सुन्दर ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया जडाऊ एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी (माणक, हीरा-माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर फूलकशाही श्वेत ज़री की जडाव की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तथा पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. 
श्रीकंठ में बघनखा धराया जाता है. गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी जड़ाऊ की आती हैं.

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