By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 31 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल दशमी

व्रज – पौष शुक्ल दशमी
Sunday, 01 January 2023

श्वेत साटन के घेरदार वागा पर स्याम रंग की ख़िनख़ाब की फतवी एवं श्रीमस्तक पर स्वर्ण की  गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा पर स्याम रंग की ख़िनख़ाब की फतवी (आधुनिक जैकेट जैसी पौशाक) का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l
नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll
जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l
मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll
दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l
कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत साटन का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं स्याम ख़िनख़ाब की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. सुनहरी एवं रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर स्वर्ण की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज फ़तवी धराए जाने से त्रवल, कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में स्वर्ण के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत एवं गोटी सोना की आती हैं.

Friday, 30 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल नवमी

व्रज – पौष शुक्ल नवमी
Saturday, 31 December 2022

फूल गुलाबी साज अति शोभित तापर राजत बालकृष्ण बिहारी ।
फ़ेंटा गुलाबी पिछोरा रह्यो फबि फूल गुलाबी रंग अति भारी ।।१।।
वाम भाग वृषभाननंदनी पहेरे गुलाबी कंचुकी सारी ।
फूल गुलाबी हस्तकमलमें छबि पर कुंभनदास बलिहारी ।।२।।

अष्टम (गुलाबी) घटा

आज श्रीजी में गुलाबी घटा के दर्शन होंगे.

यह घटा निश्चित है पर इसका दिन व क्रम ऐच्छिक है और इस वर्ष आठवें क्रम पर ली गयी है.

श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –
अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.
जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज कमल कुंज की भावना से श्रीजी में गुलाबी घटा होगी. साज, वस्त्र आदि सभी गुलाबी रंग के होते हैं. सर्व आभरण गुलाबी मीना एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन 

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर गुलाबी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी गुलाबी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गुलाबी रेशम के दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में गुलाबी मीना का  कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज दो दुलड़ा धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती उपरान्त प्रभु के श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े कर शयन समय छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रुपहरी धराये जाते हैं. इन दिनों शयन दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 

Thursday, 29 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल अष्टमी

व्रज – पौष शुक्ल अष्टमी
Friday, 30 December 2022

मेघस्याम साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को मेघस्याम साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

सोने की मटुकिया, जराव की इंडुरिया, श्याम प्रेम भरी भूल गयी गोरस।। 
प्रीतम को नाम ले ले, कहेत लेओरी कोऊ, ब्रजमें डोलत बोलत है चहुँओ रस || १|| 
चलो श्याम सुन्दर एकांत दधि खाइए, न जात तजे वाको रस।। 
“तानसेन" के प्रभु हौंजू कहतहों, साँझ भई रटत निकसी हुती भोरस।। २ ।।

साज – आज श्रीजी में मेघश्याम रंग की शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज मेघश्याम साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेंटा का साज धराया जाता है. मेघश्याम रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मेघस्याम रंग की रेशम की बीच की चंद्रिका, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती की लोलकबंदी-लड़वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरावे.
गुलाबी गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट मेघस्याम एवं गोटी चाँदी की बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.

Wednesday, 28 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी

व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी
Thursday, 29 December 2022

विशेष-आज श्रीजी में अम्बानी परिवार द्वारा चंवरी का भव्य मनोरथ होगा.
इस मनोरथ में लगभग बड़ा मनोरथ (छप्पनभोग) जितनी सामग्रियाँ अरोगायी जाएगी.
मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में मनोरथ के भोग साजे जाएंगे अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग के दर्शन ही खुलेंगे.

जुगल वर आवत है गठजोरें ।
संग शोभित वृषभान नंदिनी ललितादिक तृण तोरे ।।१।।
शीश सेहरो बन्यो लालकें, निरख हरख चितचोरे ।
निरख निरख बलजाय गदाधर छबि न बढी कछु थोरे ।।२।।

शीतकाल के सेहरा का द्वितीय शृंगार

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को खांड़ के रस की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को लाल रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

मोरको सिर मुकुट बन्यो मोर ही की माला l
दुलहनसि राधाजु दुल्हे हो नंदलाला ll 1 ll
बचन रचन चार हसि गावत व्रजबाला l
घोंघी के प्रभु राजत हें मंडप गोपाला ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी विवाह के सेहरा के शृंगार में एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विराजमान हैं और गोपियाँ विवाह के मंगल गीत का गान साज सहित  कर रही हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं पतंगी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. लाल ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा व माणक का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं. 
पट लाल एवं गोटी राग रंग की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Tuesday, 27 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल षष्ठी

व्रज – पौष शुक्ल षष्ठी
Wednesday, 28 December 2022

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराज का उत्सव

श्रीजी को नियम के पीले रंग के साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर हीरे की टिपारा की टोपी के ऊपर टिपारा का साज धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनमनोहर (केशर बूंदी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी और चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व छह-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात व नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख छह बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं. मुखियाजी प्रभु को एक कलदार रुपया न्यौछावर कर कीर्तनिया को देते हैं. 

आज श्री नवनीतप्रियाजी में पलना के मनोरथी स्वयं श्रीजी के तिलकायत होते हैं. सामान्य दिनों में श्री नवनीतप्रियाजी को पलना की सामग्री के रूप में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं परन्तु आज श्री लाड़लेलाल प्रभु को पलना में तवापूड़ी अरोगायी जाती 

राजभोग दर्शन – 

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की साटन (Satin) की पिछवाई धरायी जाती है जिसके सलमा-सितारा के चित्रांकन में पलने में झूलते श्री गोवर्धननाथजी को एक ओर नन्दराय-यशोदा जी खिलौनों से खिला रहें हैं एवं दायीं ओर श्री गोवर्धनलालजी महाराज एवं श्री दामोदरलालजी प्रभु को पलना झुला रहे हैं. पलने के ऊपर मोती का तोरण शोभित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीला रंग की साटन का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हीरे के जड़ाव की टोपी के ऊपर तीन तुर्री, बाबरी, अलख (घुंघराले केश की लटें) मध्य में हीरे के जड़ाव की मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. हीरा की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर हीरे के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. हास, त्रवल सब धराये जाते हैं. एक माला कली की व एक कमल माला धरायी जाती है. 

गुलाबी एवं पीले रंग की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं हीरा-जड़ित दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट पीला, गोटी श्याम मीना की व आरसी लाल मखमल की आती 

Monday, 26 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल पंचमी

व्रज – पौष शुक्ल पंचमी
Tuesday, 27 December 2022

आज द्वितीय पीठाधीश्वर श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपेश्वरलालजी का उत्सव है अतः प्राचीन परंपरानुसार आज श्रीजी प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. 

वस्त्रों के संग बूंदी के लड्डुओं की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.

वर्षभर में लगभग सौलह बार द्वितीय गृह से वस्त्र सिद्ध होकर श्रीजी में पधारते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : तोडी)

हों बलि बलि जाऊं तिहारी हौ ललना आज कैसे हो पाँव धारे l
कौन मिस आवन बन्यो पिय जागे भाग्य हमारे ll 1 ll
अब हों कहा न्योछावर करूँ पिय मेरे सुंदर नंददुलारे l
'नंददास' प्रभु तन-मन-धन प्राण यह लेई तुम पर वारे ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की सुनहरी सुरमा-सितारा के कशीदे के भरतकाम एवं श्याम रंग के पुष्प-लताओं के भरतकाम के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन (Satin) के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. केसरी रंग के मोजाजी एवं केसरी रंग के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित कटि-पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण माणक के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा, सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरावे.
पीले रंग के पुष्पों की कमलाकार कलात्मक मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी गोटी मीना की आती हैं.

व्रज – पौष शुक्ल पंचमी

व्रज – पौष शुक्ल पंचमी
Tuesday, 27 December 2022

आज द्वितीय पीठाधीश्वर श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपेश्वरलालजी का उत्सव है अतः प्राचीन परंपरानुसार आज श्रीजी प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. 

वस्त्रों के संग बूंदी के लड्डुओं की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.

वर्षभर में लगभग सौलह बार द्वितीय गृह से वस्त्र सिद्ध होकर श्रीजी में पधारते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : तोडी)

हों बलि बलि जाऊं तिहारी हौ ललना आज कैसे हो पाँव धारे l
कौन मिस आवन बन्यो पिय जागे भाग्य हमारे ll 1 ll
अब हों कहा न्योछावर करूँ पिय मेरे सुंदर नंददुलारे l
'नंददास' प्रभु तन-मन-धन प्राण यह लेई तुम पर वारे ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की सुनहरी सुरमा-सितारा के कशीदे के भरतकाम एवं श्याम रंग के पुष्प-लताओं के भरतकाम के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन (Satin) के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. केसरी रंग के मोजाजी एवं केसरी रंग के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित कटि-पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण माणक के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा, सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरावे.
पीले रंग के पुष्पों की कमलाकार कलात्मक मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी गोटी मीना की आती हैं.

Sunday, 25 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल चतुर्थी (तृतीया क्षय)

व्रज – पौष शुक्ल चतुर्थी (तृतीया क्षय)
Monday, 26 December 2022

गुलाबी साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरा के जड़ाऊ पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी बाघ बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Saturday, 24 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल द्वितीया

व्रज – पौष शुक्ल  द्वितीया
Sunday, 25 December 2022

कहो तुम सांचि कहांते आये भोर भये नंदलाल ।
पीक कपोलन लाग रही है घूमत नयन विशाल ।।१।।
लटपटी पाग अटपटी बंदसो ऊर सोहे मरगजी माल ।
कृष्णदास प्रभु रसबस कर लीने धन्य धन्य व्रजकी लाल ।।२।।

सप्तम (पतंगी) घटा

आज श्रीजी में पतंगी (गहरे गुलाबी) घटा के दर्शन होंगे. इसका क्रम नियत नहीं है और खाली दिन होने के कारण आज ली जा रही है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आजु नीको जम्यो राग आसावरी l
मदन गोपाल बेनु नीको बाजे नाद सुनत भई बावरी ll 1 ll
कमल नयन सुंदर व्रजनायक सब गुन-निपुन कियौ है रावरी l
सरिता थकित ठगे मृग पंछी खेवट चकित चलति नहीं नावरी ll 2 ll
बछरा खीर पिबत थन छांड्यो दंतनि तृन खंडति नहीं गाव री l
‘परमानंद’ प्रभु परम विनोदी ईहै मुरली-रसको प्रभाव री ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज पतंगी रंग की दरियाई की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर पतंगी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का दरियाई  का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी पतंगी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चमकना रूपहरी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
सभी समाँ में गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. आज पचलड़ा एवं हीरा का हार धराया जाता है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पतंगी व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Friday, 23 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – पौष शुक्ल  प्रतिपदा
Saturday, 24 December 2022

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
 
बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की धरती (आधार वस्त्र) पर श्वेत ज़री से  गायों, बछड़ों के चित्रांकन वाली एवं श्वेत ज़री की लैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी खिनख़ाब का रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर हीरा के टिपारा के ऊपर पीले खीनखाब के गौकर्ण, सुनहरी ज़री का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
चोटीजी मीना की बायीं ओर धरायी जाती है.
कमल माला धरायी जाती हैं. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं. पट पतंगी व गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Thursday, 22 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण अमावस्या

व्रज – पौष कृष्ण अमावस्या
Friday, 23 December 2022

नाथद्वारा के युवराज परचारक महाराज श्री १०५ चिरंजीवी गौस्वामी श्री भूपेशकुमारजी (श्री विशालबावा) का जन्मदिवस

विशेष – आज नाथद्वारा के युवराज, युवा वैष्णवों के हृदय सम्राट चिरंजीवी गौस्वामी श्री भूपेशकुमारजी (श्री विशालबावा) का 42 वां जन्मदिवस है.

Shreenathji nity darshan की तरफ़ से आपश्री को जन्मदिवस की ख़ूबख़ूब बधाई

श्रीजी का सेवाक्रम – उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है. 
राजभोग में सोने का बंगला आता हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध दो प्रकार के फलों के मीठा का अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव, केशरयुक्त पेठा, व छहभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं. 
शामको भोग समय मगद के बड़े नग आरोगाये जाते हैं.
संध्या-आरती में मनोरथ के भाव से श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी में विविध सामग्रियां, दूधघर सामग्री आदि लवाज़मा सहित अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ मुख जाके l
सुन्दर नवनीत के प्रिय आवत हरि ताहि के हिय जन्म जन्म जप तप करि कहा भयो श्रमथाके ll 1 ll
मनवच अघ तूल रास दाहनको प्रकट अनल पटतर को सुरनर मुनि नाहिन उपमा के l
‘छीतस्वामी’ गोवर्धनधारी कुंवर आये सदन प्रकट भये श्रीविट्ठलेश भजनको फल ताके ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग के आधारवस्त्र के ऊपर झाड़ फ़ानुश एवं सेवा करती सखियों की सुनहरी कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली तथा पुष्पों के सज्जा के कशीदे के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग का खीनखाब का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं मैरुन ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. मैरुन रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी खीनखाब के चीरा  (ज़री की पाग) के ऊपर जड़ाऊ लूम तुर्रा सुनहरी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी गेड़ी के कर्णफूल धराये जाते हैं.
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती है. 
 पीले पुष्पों की सुन्दर कलात्मक थागवाली मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में नवरत्न के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी एवं गोटी जड़ाऊ की धरायी जाती हैं.
आरसी लाल मख़मल की दिखाई जाती हैं.

Wednesday, 21 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्दशी
Thursday, 22 December 2022

पीताम्बर को चोलना पहरावत मैया ।
कनक छाप तापर धरी झीनी एक तनैया ।।१।।
लाल इजार चुनायकी और जरकसी चीरा ।
पहोंची रत्न जरायकी ऊर राजत हीरा ।।२।।
ठाडी निरख यशोमति फूली अंग न समैया ।
काजर ले बिंदुका दियो बृजजन मुसकैया ।।३।।
नंदबाबा मुरली दई कह्यो ऐसै बजैया ।
जोई सुने जाको मन हरे परमानन्द बलजैया ।।४।।

आज उपरोक्त पद ‘पीताम्बर को चोलना’ के आधार पर होने वाले विशिष्ट श्रूँगार के  दर्शन का आनंद ले

विशेष – जिस प्रकार जन्माष्टमी के पश्चात भाद्रपद कृष्ण एकादशी से अमावस्या तक बाल-लीला के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं उसी प्रकार श्री गुसांईजी के उत्सव के पश्चात चार श्रृंगार बाल-लीला के धराये जाते हैं. 

गत एकादशी के दिन कुल्हे का प्रथम श्रृंगार धराया गया उसी श्रृंखला में आज ‘पीताम्बर को चोलना’ का दूसरा बाल-लीला का श्रृंगार धराया जाएगा जो कि उपरोक्त कीर्तन के आधार पर धराया जाता है.
‘पीताम्बर को चोलना पहरावत मैया, जोई सुने ताको मन हरे परमानंद बलि जैया.’

दिनभर बाल लीला के कीर्तन गाये जाते हैं. बाल-लीला का आगामी श्रृंगार तिलकायत श्री दामोदरलालजी के उत्सव के दिन (पौष शुक्ल षष्ठी) व चौथा श्रृंगार माघ कृष्ण अमावस्या के दिन धराया जाता है.

आज के श्रृंगार में विशेष यह है कि आज लाल छापा की सूथन एवं पीला छापा का सुनहरी किनारी का घेरदार वागा धराया जाता है. सामान्यतया सूथन एवं घेरदार वागा एक ही रंग के धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मीठे हरिजु के बोलना ।
पांय पैंजनी रुनझुन बाजे आंगन आंगन डोलना ।।१।।
काजर तिलक कंठ कठुला पीतांबर कौ चोलना ।
परमानंददास को ठाकुर गोपी झुलावे झोलना ।।२।।

साज – आज श्रीजी में मेघश्याम रंग की, सुनहरी सुरमा-सितारा के कशीदे से चित्रित मोर-मोरनियों के भरतकाम (Work) वाली अत्यंत आकर्षक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का सूथन, पीले रंग की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. मोजाजी सुनहरी ज़र्री के एवं ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच, लूम तुर्री तथा जमाव (नागफणी) का कतरा एवं बायीं शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल,एक हालरा, बघनखा सभी धराये जाते हैं. कली की माला धरायी जाती है.
रंग-बिरंगे पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी सोना की चिड़िया की धरायी जाती हैं.

Tuesday, 20 December 2022

व्रज – पौष शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – पौष शुक्ल त्रयोदशी
Wednesday, 21 December 2022

छठी (बैंगनी) घटा

विशेष – आज श्रीजी में बैंगनी घटा के दर्शन होंगे. यह घटा नियत है और सामान्यतया आज के दिन ही होती है यद्यपि इसका क्रम निश्चित नहीं और इस वर्ष छठे क्रम पर ली गयी है.

श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. 
आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं.

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज श्रीजी में बैंगनी घटा होगी. साज, वस्त्र आदि सभी बैंगनी रंग के होते हैं. सर्व आभरण हीरे के धराये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

ए कहूं उमडे घुमडे गाजतहो पिय कहुं बरखत कहुं उघरजात ।
कहुं दमकत चमकत चपला ज्यों एकठोरन ठहरात ।।१।।
स्याम घनके लछन तुमहीपें स्यामघन मेहनेह आडंबर वृथा वहे जात ।
मुरारीदास प्रभु तिहारे वाम चरन पुजीयेजु को किनकी कही न बात को पत्यात ।।२।।

साज – श्रीजी में आज बैंगनी रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर बैंगनी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बैंगनी रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी बैंगनी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बैंगनी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोती की लूम तथा चमकनी गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. हीरे की एक माला हमेल की भांति धरायी जाती है.एक हार एवं पचलड़ा धराया जाता हैं.
आज श्रीकंठ में पुरे दिन सफ़ेद मनका की माला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी एवं गोटी चाँदी आती हैं.

Monday, 19 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण द्वादशी

व्रज – पौष कृष्ण द्वादशी
Tuesday, 20 December 2022

शीतकाल की तृतीय चौकी

आज के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं. आज प्रभु को हरे खीनखाब के चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की पाग पर साज सहित टिपारा धराया जाता है.

आज से विशेष रूप से ललित राग के कीर्तन भी प्रारंभ हो जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंद बधाई दीजे ग्वालन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गौदान l
गोकुल मंगल महा महोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंदगोपके लाल ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में हरे रंग की किनखाब की पिछवाई धरायी जाती है जो कि सुनहरी ज़री के केरी भांत के भरतकाम एवं रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग की खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं (मोजाजी जड़ाऊ) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. हीरा की बघ्घी धरायी जाती है और हांस, त्रवल नहीं धराये जाते. 
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (हीरा पन्ना, माणक के टिपारा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोनों ओर मोरपंख के दोहरा कतरा सुनहरे फोन्दना के) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में विट्ठलेशरायजी वाले वेणुजी एवं वेत्रजी व एक सोने के धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी सोना की बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की दांडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक टीपारा बड़ा करके लाल छज्जेदार पाग धरा कर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Sunday, 18 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण एकादशी

व्रज – पौष कृष्ण एकादशी 
Monday, 19 December 2022

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविंदजी का उत्सव, सफला एकादशी

विशेष – आज सफला एकादशी है. आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दजी महाराज का उत्सव है. आपका जन्म विक्रम संवत 1769 में गौस्वामी श्री विट्ठलेशजी के द्वितीय पुत्र के रूप में हुआ. 

आपके बड़े भ्राता श्री गोवर्धनेशजी के यहाँ कोई पुत्र ना होने के कारण उनके पश्चात आप तिलकायत पद पर आसीन हुए. वर्तमान की भांति तब भी एक पीढ़ी में दो तिलकायत हुए. 

पुष्टिमार्ग में आप बाल-भाव भावित तिलकायत हुए हैं. एक बार बाल्यकाल में आप श्रीजी के शैया मंदिर में रह गये तब श्रीजी ने आपको अपने हाथों से महाप्रसाद खिलाया था. 

आपने प्रभु सुखार्थ कई मनोरथ किये. आपके पुत्र श्री गिरधारीजी ने श्रीजी को घसियार से नाथद्वारा पधराकर नवीन नाथद्वारा का निर्माण किया.

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. आज दो समय की आरती थाली में करी जाती हैं.

गद्दल, रजाई सफ़ेद खीनखाब के आते हैं.
निजमंदिर के सभी साज (गादी, तकिया आदि) पर आज पुनः सफेदी चढ़ जाती है. 
श्री गोविंदजी महाराज के यशस्वरुप आज श्वेत खीनखाब के वस्त्र एवं अनुराग के भाव से लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 
 
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में खरमंडा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बर्षन अधिकाई l
सुखद रसना एक कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्वेत साटन के वस्त्र के ऊपर फूल-पत्तियों के लाल, हरे, पीले रंग के कलाबत्तू के काम (Work) वाली पिछवाई धरायी जाती है जो कि फिरोजी रंग के वस्त्र के ऊपर पुष्प-लता के भरतकाम (Work) से सुसज्जित होती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहली ज़री का बड़े बूटा का किनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं धराये जाते हैं. पटका लाल रंग का धराया जाता हैं. मोजाजी हरे केरीभात के धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
ठाडी लड़ मोती धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.
 श्रीकंठ में माणक का दुलड़ा हार (जो आपश्री ने श्रीजी को भेंट किया था), कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में जड़ाव स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (पन्ना व सोने के) धराये जाते हैं. पट उत्सव का व गोटी श्याम मीना की आती है. आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती हैं.

Saturday, 17 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण दशमी

व्रज – पौष कृष्ण दशमी
Sunday, 18 December 2022

श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है. आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं.

श्रीजी में लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.

आज राजभोग में सखड़ी में विशेष रूप से सूरण प्रकार अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंद बधाई दीजे ग्वालन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गौदान l
गोकुल मंगल महा महोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंदगोपके लाल ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. यही पिछवाई जन्माष्टमी के दिन भी आती है. आज भी सभी साज जडाऊ आते हैं, गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट नहीं आती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
आज दो समय की आरती थाली में करी जाती हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र - बिना किनारी का अडतू का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. पटका केसरी किनारी के फूल का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
 श्रीकंठ में त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है. कस्तूरी, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं. श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का गोटी जडाऊ आती है. आरती चार झाड़ की व सोने की डांडी की आती है.

Friday, 16 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण नवमी

व्रज – पौष कृष्ण नवमी
Saturday, 17 December 2022

श्रीवल्लभ नंदन वह फिरि आये।
वेद स्वरुप फेर वह लीला करत आप मन भाये।।१।।
वे फिर राज करत गोकुल में वोही रीत प्रकटाये।
वही श्रृंगार भोग छिन छिन में वह लीला पुनि गाये।।२।।
जे जसुमति को आनंद दीनो सो फिर व्रज में आये।
श्रीविट्ठल गिरधर पद पंकज गोविंद उर में लाये।।३।।

श्रीमद प्रभुचरण श्री विट्ठलनाथजी (श्री गुसांईजी) का प्राकट्योत्सव

आज पुष्टिमार्ग में बहुत विशिष्ट दिन है. पुष्टिमार्ग के आधार राग, भोग व श्रृंगार को अद्भुत भाव-भावना के अनुरूप नियमबद्ध करने वाले प्रभुचरण श्री विट्ठलनाथजी (श्री गुसांईजी) का आज प्राकट्योत्सव है.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

सभी वैष्णवों को प्रभुचरण श्री गुसांईजी के प्राकट्योत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

श्री गुसांईजी का प्राकट्य स्वयं प्रभु का प्राकट्य है. श्रीजी ने स्वयं आनंद से यह उत्सव मनाया है एवं कुंभनदासजी व रामदासजी को आज्ञा कर जलेबी टूक की सामग्री मांग कर अरोगी है. 
इसी कारण आज श्रीजी को मंगला भोग से शयन भोग तक प्रत्येक भोग में विशेष रूप से जलेबी टूक की सामग्री अरोगायी जाती है और आज के उत्सव को जलेबी उत्सव भी कहा जाता है. 

श्रीजी को नियम से केवल जलेबी टूक ही अरोगाये जाते हैं अर्थात गोल जलेबी के घेरा की सामग्री कभी नहीं अरोगायी जाती. विविध मनोरथों पर बाहरी मनोरथियों द्वारा घेरा की सामग्री अरोगायी जाती है.

सभी वैष्णवों को भी आज अपने सेव्य स्वरूपों को यथाशक्ति जलेबी की सामग्री सिद्धकर अंगीकार करानी चाहिए.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, उबटन एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज निज मन्दिर में विराजित श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी का भी अभ्यंग व श्रृंगार किया जाता है.  

श्रीजी को आज नियम के केसरी साटन के बिना किनारी का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरे व पन्ने की केसरी कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका का भारी में भारी श्रृंगार धराया जाता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया है.

श्रीजी को कुछ इसी प्रकार के भारी आभरण जन्माष्टमी के दिन भी धराये जाते हैं. भारी श्रृंगार व बहुत अधिक मात्रा में जलेबी के भोग के कारण ही आज सेवाक्रम जल्दी प्रारंभ किया जाता है.

श्रृंगार दर्शन में श्रीजी के मुख्य पंड्याजी प्रभु के सम्मुख वर्षफल पढ़ते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. 
प्रभु सम्मुख 25 पान के बीड़ा सिकोरी में अरोगाये जाते हैं.

राजभोग समय उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को केशरयुक्त जलेबी टूक, दूधघर में सिद्ध मावे के मेवायुक्त पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी का डबरा, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.

इसी प्रकार श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी की गादी को भी एक थाल में यही सब सामग्रियां भोग रखी जाती हैं. 

राजभोग समय प्रभु को बड़ी आरसी (उस्ताजी वाली) दिखायी जाती है, तिलक किया जाता है, थाली में चून (आटे) का बड़ा दीपक बनाकर आरती की जाती है एवं राई-लोन-न्यौछावर किये जाते हैं. 

कल की post में भी मैंने बताया था कि विगत रात्रि से प्रतिदिन श्रीजी को शयन के पश्चात अनोसर भोग में एवं आज से प्रतिदिन राजभोग के अनोसर में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ अरोगायी जाती है.

केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, स्वर्ण वर्क, विविध सूखे मेवों, घी व मावे सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि अत्यन्त सौभाग्यशाली व्यक्ति ही इसे खा सकता है.

आयुर्वेद में भी शीत एवं वात जन्य रोगों में इसके औषधीय गुणों का वर्णन किया गया है अतः विभिन्न शीत एवं वात जन्य रोगों, दमा, जोड़ों के दर्द में भी इसका प्रयोग किया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

तिलक होवे तब का कीर्तन – (राग : सारंग)

आज वधाई को दिन नीको l
नंदघरनी जसुमति जायौ है लाल भामतो जीकौ ll 1 ll
पांच शब्द बाजे बाजत घरघरतें आयो टीको l
मंगल कलश लीये व्रज सुंदरी ग्वाल बनावत छीको ll 2 ll
देत असीस सकल गोपीजन चिरजीयो कोटि वरीसो l
‘परमानंददास’को ठाकुर गोप भेष जगदीशो ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है. लाल मखमल के गादी, खंड आदि व जड़ाव के तकिया धरे जाते हैं (गादी एवं तकिया पर सफेद खोल नहीं चढ़ायी जाती). चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र - बिना किनारी का सूथन, चोली, अडतू किये चाकदार वागा एवं टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
सर्व साज, वस्त्र, श्रृंगार आदि जन्माष्टमी की भांति ही होते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. दो हालरा व बघनखा भी धराये जाते हैं. 
बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती हैं.
आरसी जड़ाऊ एवं सोना की डाँडी की दिखाई जाती हैं.

Thursday, 15 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण अष्टमी

व्रज – पौष कृष्ण अष्टमी
Friday, 16 December 2022 

श्री गुसांईजी के उत्सव के आगम का श्रृंगार

विशेष – कल प्रभुचरण श्री गुसांईजी का प्राकट्योत्सव है अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है और इसे उत्सव के आगम का श्रृंगार कहा जाता है. 
आज दिनभर उत्सव की बधाई एवं ढाढ़ी के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज से प्रतिदिन श्रीजी को शयन उपरांत अनोसर भोग में एवं कल अर्थात नवमी से राजभोग उपरांत अनोसर भोग में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ अरोगायी जानी आरंभ हो जाएगी.

केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, स्वर्ण वर्क, विविध सूखे मेवों, घी व मावे सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि इसे खाने वाला व्यक्ति अत्यन्त सौभाग्यशाली होता है.

आयुर्वेद में भी शीत एवं वात जन्य रोगों में इसके औषधीय गुणों का वर्णन किया गया है अतः विभिन्न शीत एवं वात जन्य रोगों, दमा, जोड़ों के दर्द में भी इसका प्रयोग किया जाता है. 

नाथद्वारा के श्रीजी मंदिर में निर्मित इस सामग्री को प्रभु अरोगे पश्चात देश-विदेश के वैष्णव मंगाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 
कीर्तन – (राग : धनाश्री)

रानी तेरो चिरजीयो गोपाल ।
बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥१॥
उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल।
सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥२॥
सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्याम तमाल।
रज आरज लागो मेरी अंखियन, रोग दोष जंजाल॥३।

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मखमल की, सुनहरी लप्पा की  ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की साटन (Satin) का बिना किनारी का अड़तू का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. उर्ध्व भुजा की ओर सुनहरी किनारी से सुसज्जित कटि-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. ठाडी लड़ मोती की धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी सोना की आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.

Wednesday, 14 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण षष्ठी

व्रज – पौष कृष्ण षष्ठी 
Wednesday, 14 December 2022

बैंगनी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को बैंगनी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरण कमल पावन त्रैलोक करण दरस परस सुंदर वर वारवार वंदे ।
समरथ गिरिराज धरण लीला प्रकट करण संतन हित मानुषतनु वृंदावनचंदे ।।१।।
चरणोदक लेत प्रेत ततक्षण ते मुक्त भये करुणामय नाथ सदा आनंद निधिकंदे । 
वारनें भगवानदास विहरत सदा रसिकराय जयजय यश बोलबोल गावत श्रुति छंदे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज बैंगनी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बैंगनी रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर बैंगनी गोल पाग के ऊपर सिरपैंच,गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी व गोटी चाँदी की और आरसी नित्य की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

व्रज – पौष कृष्ण सप्तमी

व्रज – पौष कृष्ण सप्तमी
Thursday, 15 December 2022

विशेष – आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र गोविन्दरायजी के प्रथम पुत्र कल्याणरायजी का जन्मोत्सव है. 
आप श्री गुसांईजी के सबसे ज्येष्ठ पौत्र थे एवं उनके जीवित रहते ही आपका जन्म विक्रम संवत १६२५ में गोकुल में हुआ था.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु घेरा (जलेबी) की सामग्री सिद्ध हो कर आती है.

आज से पौष कृष्ण द्वादशी तक प्रतिदिन श्रीजी को मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. इसका विशिष्ट कारण यह है कि मयूर भी निष्काम वियोगी भक्त का स्वरुप है. 
श्री गुसांईजी को छः माह तक श्रीजी के विप्र-योग का अनुभव हुआ था अतः आपके उत्सव को बीच में रख कर छः दिवस तक प्रतिदिन मोरपंख की चन्द्रिका श्रीजी को धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 
कीर्तन – (राग : सारंग)
जशोदा फूली ना मात मन में l
नाचत गावत देत बधाई, जोवत युवती जनमें ll 1 ll
गोकुल के कुल को रखवारो प्रकट्यो गोपी गगन में l
काल्हि फिरे बालक बलिके संग जैहे वृन्दावनमें ll 2 ll
सूंकत घाननको ज्यों पान्यो यो पायो या पनमें l
गिरिधरलाल ‘कल्यान’ कहत व्रजमहरि मगन सुसदन में ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल साटन की, तोते, चिड़िया, मयूर आदि विभिन्न पक्षियों के भरतकाम (Work) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी का हांशिया बना है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री के पक्षियों के भरतकाम एवं तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. पटका लाल मलमल का धराया जाता हैं.किनखाब के ठाड़े वस्त्र मेघश्याम छापा  के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मीना के पक्षी की मीनाकारी वाली कुल्हे के ऊपर पान, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
कली कस्तूरी आदी सब माला धराई जाती हैं.
 श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में मीना के पक्षी के वेणुजी (एक सोना का) एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल गोटी मीना की पक्षी की धरायी जाते हैं.
आरसी शृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे बड़ीं कर लाल कुल्हे धराये जाते हैं.व्रज – पौष कृष्ण सप्तमी
Thursday, 15 December 2022

विशेष – आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र गोविन्दरायजी के प्रथम पुत्र कल्याणरायजी का जन्मोत्सव है. 
आप श्री गुसांईजी के सबसे ज्येष्ठ पौत्र थे एवं उनके जीवित रहते ही आपका जन्म विक्रम संवत १६२५ में गोकुल में हुआ था.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु घेरा (जलेबी) की सामग्री सिद्ध हो कर आती है.

आज से पौष कृष्ण द्वादशी तक प्रतिदिन श्रीजी को मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. इसका विशिष्ट कारण यह है कि मयूर भी निष्काम वियोगी भक्त का स्वरुप है. 
श्री गुसांईजी को छः माह तक श्रीजी के विप्र-योग का अनुभव हुआ था अतः आपके उत्सव को बीच में रख कर छः दिवस तक प्रतिदिन मोरपंख की चन्द्रिका श्रीजी को धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 
कीर्तन – (राग : सारंग)
जशोदा फूली ना मात मन में l
नाचत गावत देत बधाई, जोवत युवती जनमें ll 1 ll
गोकुल के कुल को रखवारो प्रकट्यो गोपी गगन में l
काल्हि फिरे बालक बलिके संग जैहे वृन्दावनमें ll 2 ll
सूंकत घाननको ज्यों पान्यो यो पायो या पनमें l
गिरिधरलाल ‘कल्यान’ कहत व्रजमहरि मगन सुसदन में ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल साटन की, तोते, चिड़िया, मयूर आदि विभिन्न पक्षियों के भरतकाम (Work) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी का हांशिया बना है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री के पक्षियों के भरतकाम एवं तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. पटका लाल मलमल का धराया जाता हैं.किनखाब के ठाड़े वस्त्र मेघश्याम छापा  के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मीना के पक्षी की मीनाकारी वाली कुल्हे के ऊपर पान, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
कली कस्तूरी आदी सब माला धराई जाती हैं.
 श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में मीना के पक्षी के वेणुजी (एक सोना का) एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल गोटी मीना की पक्षी की धरायी जाते हैं.
आरसी शृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे बड़ीं कर लाल कुल्हे धराये जाते हैं.

Tuesday, 13 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण षष्ठी

व्रज – पौष कृष्ण षष्ठी 
Wednesday, 14 December 2022

बैंगनी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को बैंगनी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरण कमल पावन त्रैलोक करण दरस परस सुंदर वर वारवार वंदे ।
समरथ गिरिराज धरण लीला प्रकट करण संतन हित मानुषतनु वृंदावनचंदे ।।१।।
चरणोदक लेत प्रेत ततक्षण ते मुक्त भये करुणामय नाथ सदा आनंद निधिकंदे । 
वारनें भगवानदास विहरत सदा रसिकराय जयजय यश बोलबोल गावत श्रुति छंदे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज बैंगनी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बैंगनी रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर बैंगनी गोल पाग के ऊपर सिरपैंच,गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी व गोटी चाँदी की और आरसी नित्य की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Monday, 12 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण पंचमी

व्रज – पौष कृष्ण पंचमी 
Tuesday, 13 December 2022

सेवा रीति प्रीति व्रजजनकी श्रीमुख तें विस्तरते,
श्रीविट्ठलनाथ अमृत जिन लीनो रसना सरस सुफलते.

श्री गुसांईजी के उत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार

विशेष – आज श्री गुसांईजी के उत्सव की नौबत की बधाई बैठती है. उत्सव का प्रतिनिधि का पहला श्रृंगार धराया जाता है. सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

आज श्रीजी को बिना किनारी के केसरी चाकदार वागा अड़तु के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

लगभग इसी क्रम के वस्त्र, आभरण पौष कृष्ण नवमी के दिन भी धराये जायेंगे.

जन्माष्टमी के उत्सव के चार श्रृंगार धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी एवं श्री गुसांईजी के उत्सव के तीन श्रृंगार (एक आगम का, दूसरा उत्सव के दिन एवं तीसरा उत्सव के अगले दिन का परचारगी श्रृंगार) ही धराये जाते हैं. 

कुछ वैष्णवों ने पूर्व में यह प्रश्न पूछा था कि इन दोनों उत्सवों के तीन श्रृंगार ही क्यों होते हैं ?

इसका कारण यह है कि जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपतियों (स्वामिनीजी) के भाव से धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी स्वयं स्वामिनीजी के एवं श्रीगुसांईजी श्रीचन्द्रावलीजी के स्वरुप हैं अतः आप स्वयं श्रृंगारकर्ता हों और स्वयं की ओर का श्रृंगार कैसे करें इस भाव से इन दोनों उत्सवों का एक-एक श्रृंगार कम हो जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

पौष निर्दोष सुख कोस सुंदरमास कृष्णनौमी सुभग नव धरी दिन आज l
श्रीवल्लभ सदन प्रकट गिरिवरधरन चारू बिधु बदन छबि श्रीविट्ठलराज ll 1 ll
भीर मागध भई पढ़त मुनिजन वेद ग्वाल गावत नवल बसन भूषणसाज l
हरद केसर दहीं कीचको पार नहीं मानो सरिता वही निर्झर बाज ll 2 ll
घोष आनंद त्रियवृंद मंगल गावें बजत निर्दोष रसपुंज कल मृदुगाज l
‘विष्णुदास’ श्रीहरि प्रकट द्विजरूप धर निगम पथ दृढथाप भक्त पोषण काज ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की जन्माष्टमी वाली, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुन्दर केसरी ज़री का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं टकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र बिना किनारी के होते हैं. पटका केसरी फूल वाला धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी के भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में त्रवल, टोडर दोनों, कस्तूरी, कली आदि सब, एक हालरा व बघनखा धराये जाते हैं.  
गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर जड़ाव स्वर्ण का उस्ताजी वाला चौखटा धराया जाता है. 
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
पट काशी का, गोटी जड़ाऊ, आरसी राजभोग में सोने की एवं शृंगार में पिले खंड की आती है.

Sunday, 11 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्थी

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्थी
Monday, 12 December 2022

चमक आयो चंदसो मुख कुंजते जब निकसी ।
सुंदर सांवरो किशोर गोहन लाग रहे चकोर ललितादिक कुमुदावलि निरख नयन विकसी ।।
पहिरे तन श्वेत सारी मानों शरद उजियारी  
मानों सुधासिंधु मध्य दामिनी घसी ।
कहत भगवान हित रामराय प्रभु प्यारी वश कीने कुंजविहारी छबि निरख मंद हसी ।।

पंचम (रुपहरी) घटा 

विशेष – आज श्रीजी में पाँचवीं (रुपहरी) घटा के दर्शन होंगे.
श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.
जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. 
इसी श्रृंखला में पूर्णेन्दु कुंज के भाव से आज श्रीजी में रुपहरी घटा होगी. 

साज, वस्त्र आदि सभी रुपहरी ज़री के व मालाजी श्वेत पुष्पों की होती हैं. सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है. चन्द्रमा के भाव के व बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज रुपहरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद मलमल की बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहरी ज़री का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी रुपहरी ज़री के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 एक दुलड़ा व एक सतलड़ा हार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी ज़री की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, रुपहली ज़री का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज पूरे दिन श्वेत पुष्पों की मालाजी ही धरायी जाती है. 
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. मोती की एक अन्य माला हमेल की भांति भी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर चांदी का चौखटा धराया जाता है. श्रीहस्त में चांदी के रत्नजड़ित वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट रूपहरी ज़री का व गोटी चाँदी की आती है.

Saturday, 10 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण तृतीया

व्रज – पौष कृष्ण तृतीया
Sunday, 11 December 2022

गुलाबी साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी बाघ बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.


सभी समां के कीर्तन
मंगला - श्री विट्ठल नेनभर देखे
राजभोग - पूत भयो री नंदमहर के
आरती - आज तो बधाई बाजे
शयन - विट्ठलनाथ लाड़ले हो तिहारे चरणकमल मान - चढ़ बढ़ बिडर गई री आली
पोढवे - रंग महल सुखदाई

Friday, 9 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया

व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया
Saturday, 10 December 2022

कत्थाई साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर चंद्रिका या क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को कत्थाई साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर चंद्रिका या क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गायनसो रति गोकुलसो रति गोवर्धनसों प्रीति निवाही ।
श्रीगोपाल चरण सेवारति गोप सखासब अमित अथाई ।।१।।
गोवाणी जो वेदकी कहियत श्रीभागवत भले अवगाही ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल नंदनंदनकी सब परछांई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज कत्थाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कत्थाई साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के दरियाई के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर कत्थाई रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच और जमाव का क़तरा या चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में चार माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट कत्थाई व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

सभी समां के कीर्तन
मंगला - श्री विट्ठल को लाड़ लड़ावे
राजभोग - पूत भयो री नंद मेहर के
आरती - आज तो बधाई बाजे
शयन - रावल के कहे गोप आज ब्रज धुनी
मान - चढ़ बढ़ बिडर गई
पोढवे - लागत है अत सीत की लिकि 

Thursday, 8 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा
Friday, 09 December 2022

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीवजी (श्री दाऊबावा) का प्राकट्योत्सव

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीवजी (श्री दाऊबावा) का प्राकट्योत्सव है.

श्रीजी का सेवाक्रम – उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 
आज दिनभर सभी समय श्री गुसांईजी की बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.  

श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर किरीट मुकुट धराया जाता है.  

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

पौष निर्दोष सुख कोस सुंदरमास कृष्णनौमी सुभग नव धरी दिन आज l
श्रीवल्लभ सदन प्रकट गिरिवरधरन चारू बिधु बदन छबि श्रीविट्ठलराज ll 1 ll
भीर मागध भई पढ़त मुनिजन वेद ग्वाल गावत नवल बसन भूषणसाज l
हरद केसर दहीं कीचको पार नहीं मानो सरिता वही निर्झर बाज ll 2 ll
घोष आनंद त्रियवृंद मंगल गावें बजत निर्दोष रसपुंज कल मृदुगाज l
‘विष्णुदास’ श्रीहरि प्रकट द्विजरूप धर निगम पथ दृढथाप भक्त पोषण काज ll 3 ll

श्रृंगार दर्शन – 

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की साटन की सुनहरी ज़री के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में एक ओर आरती करते श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री एवं दूसरी ओर हाथ जोड़ कर प्रभु के दर्शन करते श्री दाऊबावा का कलाबत्तू का चित्रांकन किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की साटन का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा व लाल मलमल का पटका धराये जाते हैं. टंकमा हीरा के मोजाजी व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं जिसके चारों ओर पुष्प-लताओं का चित्रांकन किया हुआ है. इस प्रकार के ठाड़े वस्त्र वर्षभर में केवल आज के दिन ही धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. सब हार के श्रृंगार धराये जाते हैं. तीन हार पाटन वाले धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर छिलमां हीरा का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है. 
कली, कस्तूरी व नीलकमल की माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
पट गोटी उत्सव की आती हैं.
आरसी शृंगार में लाल मख़मल की और राजभोग में सोना की डांडी की दीखाई जाती हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशर-युक्त चंद्रकला, दूधघर में सिद्ध केसर-युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं.

Wednesday, 7 December 2022

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा
Thursday, 08 December 2022

आज गोपाल पाहुने आये निरखे नयन न अघाय री ।
सुंदर बदनकमल की शोभा मो मन रह्यो है लुभाय री ।।१।।
के निरखूं के टहेल करूं ऐको नहि बनत
 ऊपाय री ।
जैसे लता पवनवश द्रुमसों छूटत फिर
लपटाय री ।।२।।
मधु मेवा पकवान मिठाई व्यंजन बहुत बनाय री ।
राग रंग में चतुर सुर प्रभु कैसे सुख उपजाय री ।।

नियम (घर) का छप्पन भोग, बलदेवजी (दाऊजी) का उत्सव

आज श्रीजी में नियम (घर) का छप्पनभोग है. छप्पनभोग के विषय में कई भावनाएं प्रचलित हैं.

श्रीमदभागवत के अनुसार, व्रज की गोप-कन्याओं ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने की मनोकामना लिये एक मास तक व्रत कर, प्रातः भोर में यमुना स्नान कर श्री कात्यायनी देवी का पूजा-अर्चना की. श्रीकृष्ण ने कृपा कर उन गोप-कन्याओं की मनोकामना पूर्ति हेतु सहमति प्रदान की. 
ऐसा कहा जाता है कि किसी भी व्रत के समापन के पश्चात यदि व्रत का उद्यापन नहीं किया जाये तो व्रत की फलसिद्धि नहीं होती अतः इन गोपिकाओं ने विधिपूर्वक व्रतचर्या की समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में उद्यापन स्वरूप प्रभु को छप्पनभोग अरोगाया.

गौलोक में प्रभु श्रीकृष्ण व श्री राधिकाजी एक दिव्य कमल पर विराजित हैं. 
उस कमल की तीन परतें होती हैं जिनमें प्रथम परत में आठ, दूसरी में सौलह और तीसरी परत में बत्तीस पंखुडियां होती हैं. प्रत्येक पंखुड़ी पर प्रभु भक्त एक सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं. 
इस प्रकार कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है और इन पंखुड़ियों पर विराजित प्रभु भक्त सखियाँ भक्तिपूर्वक प्रभु को एक-एक व्यंजन का भोग अर्पित करती हैं जिससे छप्पनभोग बनता है.

छप्पनभोग की मुख्य पुष्टिमार्गीय भावना यह है कि वृषभानजी के निमंत्रण पर प्रभु नन्दकुमार श्रीकृष्ण अपने ससुराल भोजन हेतु सकुटुम्ब पधारे हैं. 
वृषभानजी सबका स्वागत करते हैं एवं विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग अरोगाया जाता है. वहीँ व्रजललनाएं मधुर स्वरों में गीत गाती हैं. इसी स्वामिनी भाव से आज कई गौस्वामी बालकों के यहाँ आज प्रभु पधार कर छप्पनभोग अरोगते हैं. 
छप्पनभोग के भोग रखे जाएँ तब गदाधरदासजी का पद आसावरी राग में गाया जाता है.

श्रीवृषभान सदन भोजनको नंदादिक सब आये हो l
जिनके चरणकमल धरिवेको पट पावड़े बिछाये हो ll....

इस उपरांत भोजन के एवं बधाई के पद भी गाये जाते हैं.

एक अन्य मान्यता अनुसार श्री वल्लभाचार्य जी और श्री विट्ठलनाथजी,के वक्त सातो स्वरूप गोकुल में ही विराजते थे. अन्नकूट जति पूरा(गिरिराजजी)में होता था सातो स्वरूप पाधारते और साथ में आरोगते थे. एक बार श्रीनाथजी ने श्री गुसाईंजी सु कीनी के बावा में तो भुको रह जात हु ये सातो आरोग जात है तब आप श्री ने गुप्त रूप सु बिना अन्य स्वरूपण कु जताऐ सातो स्वरूप के भाव की विविध सामग्री(या छप्पन भोग में अनेकानेक प्रकार की सामगी,सखड़ी और अनसखड़ी में आरोगे)सिद्ध कराय आरोगायी यादिन श्रीजी में नगाड़े गोवर्धन पूजा चोक में नीचे बजे याको तात्पर्य है कि नगार खाने में ऊपर बजे तो सब स्वरूपण को खबर पड़ जाय जासु नीचे बजे ये प्रमाण है और प्रभु आप अकेले पुरो छप्पन भोग आरोगे और श्री गुसाईंजी पर ऐसे कृपा किये

पुष्टिमार्ग में प्रचलित एक अन्य प्रमुख मान्यता के अनुसार विक्रम संवत 1632 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने व्रज में गोकुल के समीप दाऊजी नामक गाँव में श्री बलदेवजी के मंदिर के जीर्णोद्धार पश्चात श्री बलदेव जी के स्वरुप को वेदविधि पूर्वक पुनःस्थापना की. 
श्री बलदेवजी को हांडा अरोगाया था. तब गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने विचार किया कि बड़े भाई (श्री बलदेवजी) के यहाँ ठाठ-बाट से मनोरथ हों और छोटे भाई (श्रीजी) के यहाँ कुछ ना हों यह तो युक्तिसंगत नहीं है अतः आपने श्रीजी को मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को छप्पनभोग अरोगाया एवं छप्पनभोग प्रतिवर्ष होवे प्रणालिका में ऐसा नियम बनाया. 

तब से श्रीजी प्रभु को प्रतिवर्ष नियम का छप्पनभोग अंगीकृत किया जाता है वहीँ श्री बलदेवजी में भी आज के दिन भव्य मनोरथ होते हैं, स्वर्ण जड़ाव के हल-मूसल धराये जाते हैं एवं गाँव में मेले का आयोजन किया जाता है.

श्रीजी में विभिन्न ऋतुओं में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथियों द्वारा भी छप्पनभोग के मनोरथ भी कराये जाते हैं. घर के छप्पनभोग और मनोरथी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं – 

नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से सात दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है.

नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक बड़ा मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है. 

नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 1 बजे खुलते हैं.

नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी व अन्य सप्तनिधि स्वरुप पधराये जा सकते हैं एवं ऐसा पूर्व में कई बार हो भी चुका है.  

नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती हैं.

श्रीजी का सेवाक्रम - श्रीजी में आज के दिन प्रातः 4.30 बजे शंखनाद होते हैं. 
उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 
सभी समय यमुनाजल की झारीजी भरी जाती है. चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
गादी तकिया आदि पर सफेदी नहीं आती. तकिया पर मेघश्याम मखमल के व गदल रजाई पीले खीनखाब के आते हैं. गेंद, चौगान और दिवाला सोने के आते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज श्रीजी को नियम के तमामी (सुनहरी) ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा के ऊपर रुपहली ज़री के गौकर्ण एवं सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा धराया जाता है. 

श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ भोग में ही छप्पनभोग के सखड़ी भोग निजमंदिर व आधे मणिकोठा में धरे जाते हैं. अनसखड़ी भोग मणिकोठा, डोल-तिबारी व रतनचौक में साजे जाते हैं.

धुप, दीप, शंखोदक होते हैं व तुलसी समर्पित की जाती है. भोग सरे उपरांत राजभोग धरे जाते हैं, नित्य का सेवाक्रम होता है और छप्पनभोग के दर्शन लगभग 12 बजे खुल जाते हैं.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख 25 बीड़ा की सिकोरी अदकी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.

आज नियम का छप्पनभोग प्रभु अकेले ही अरोगते हैं अर्थात श्री नवनीतप्रियाजी अथवा कोई अन्य स्वरुप आज श्रीजी में आमंत्रित नहीं होते. यहाँ तक कि अन्य स्वरूपों को पता ना चले इस भाव से आज नक्कार खाने में नगाड़े भी नीचे गौवर्धन पूजा के चौक में बजाये जाते हैं. 

श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु डला (विविध प्रकार के 56 सामग्रियों का एक छाब) भेजा जाता है. 

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग सरे –

कीर्तन – (राग : आशावरी)

श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll
सीतल जल कुंमकुम के जलसो सबके चरन पखारे हो ।
कर विनंती कर ज़ोर सबन सो कनकपटा बैठारे हो ।।५।।
राजत राज गोप भुवपति संग विमल वेश अहीरा हो ।
मनहु समाज राजहंसनको ज़ुरे सरोवर तीरा हो ।।६।।.....(अपूर्ण)

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की मखमल के ऊपर रुपहली ज़री से गायों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को सुनहरी (तमामी) ज़री का सूथन, चोली, चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका व मोजाजी रुपहली ज़री के व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर हीरा का किलंगी वाला सिरपैंच, रुपहली ज़री के गौकर्ण, सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है. 
हीरा का प्राचीन जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का व गोटी सोने की कूदती हुए बाघ बकरी की आती है. आरसी ग्वाल में चार झाड़ की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

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