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Sunday, 11 December 2022

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्थी

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्थी
Monday, 12 December 2022

चमक आयो चंदसो मुख कुंजते जब निकसी ।
सुंदर सांवरो किशोर गोहन लाग रहे चकोर ललितादिक कुमुदावलि निरख नयन विकसी ।।
पहिरे तन श्वेत सारी मानों शरद उजियारी  
मानों सुधासिंधु मध्य दामिनी घसी ।
कहत भगवान हित रामराय प्रभु प्यारी वश कीने कुंजविहारी छबि निरख मंद हसी ।।

पंचम (रुपहरी) घटा 

विशेष – आज श्रीजी में पाँचवीं (रुपहरी) घटा के दर्शन होंगे.
श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.
जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. 
इसी श्रृंखला में पूर्णेन्दु कुंज के भाव से आज श्रीजी में रुपहरी घटा होगी. 

साज, वस्त्र आदि सभी रुपहरी ज़री के व मालाजी श्वेत पुष्पों की होती हैं. सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है. चन्द्रमा के भाव के व बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज रुपहरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद मलमल की बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहरी ज़री का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी रुपहरी ज़री के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 एक दुलड़ा व एक सतलड़ा हार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी ज़री की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, रुपहली ज़री का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज पूरे दिन श्वेत पुष्पों की मालाजी ही धरायी जाती है. 
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. मोती की एक अन्य माला हमेल की भांति भी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर चांदी का चौखटा धराया जाता है. श्रीहस्त में चांदी के रत्नजड़ित वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट रूपहरी ज़री का व गोटी चाँदी की आती है.

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