व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी
Sunday, 12 February 2023
श्री गोकुल राजकुमार लाल रंग भीने हें ।
खेलत डोलत फाग सखा संग लीने हें ।।१।।
चित्र विचित्र सुदेश सबे अनुकुले हें ।
राजत रंग विरंग सरोजसे फुले हें ।।२।।
अेकनके कर कंठण जोरी जराय की ।
अेकनके पिचकाई सु हेम भराय की ।।३।।
अेसोई ध्यान सदा हरीको जीय जो रहे ।
तापे गदाधर याके भाग्यकी को रहे ।।४।।
चढ़ीहस्ती (चढ़ी आस्तीन) के वस्त्र का श्रृंगार
कल श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव है और इसके एक दिन पूर्व, आज श्रीजी प्रभु को नियम के वस्त्र, श्रृंगार धराये जाते हैं.
इसे ‘चढ़ीहस्ती के वस्त्र का श्रृंगार’ कहा जाता है. आज के वस्त्रों की विशेषता यह है कि प्रभु की चोली की बाहें चोवा में भीगी होती है.
यह इस भाव से होता है कि प्रभु चोवा, गुलाल एवं अबीर से खेलते हुए अपनी बांह भर बैठे हैं.
इसके अतिरिक्त आज की एक और विशेषता है कि आज शीतकाल में श्रीजी को नियम से अंतिम बार मोजाजी धराये जाते हैं अर्थात कल मोजाजी नहीं धराये जायेंगे.
यद्यपि आने वाले दिनों में यदि अधिक शीत शेष हो तो कल का दिन (श्रीजी का पाटोत्सव) छोड़कर प्रभु सुखार्थ शीत रहने तक मोजाजी धराये जा सकते हैं.
आज राजभोग के खेल में प्रभु की कटि पर गुलाल व अबीर की पोटली बांधी जाती है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : बिलावल)
वंदो मुनसाई नंदके जुवती झंडा केसें लेहोजु l ये सब सुंदरि घोखकि क्यों परिरंभन देहो ll 1 ll
फाल्गुन मास देत फगुआ अति क्रीड़ा रस खेलो l तनकी गति ओर भई बोली ढोली मेलो ll 2 ll
काहेको अकुलात हो मन को भायो करि हैं l हो भैया बलदेवको पृथक पृथक करि धरि है ll 3 ll
पांच सखी मिलि एक व्है बीच झंडा ले रोप्यो l फरहर रतिपति ऊपरे बहोत नगन जट ओप्यो ll 4 ll....अपूर्ण
साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग का सूथन, चढ़ी आस्तीन की चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. मोज़ाजी एवं पटका गुलाबी रंग के धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.
श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर जड़ाव टिपारा का साज – गुलाबी रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
बायीं और मीना की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में अक्काजी की दो मालाजी धरायी जाती है. लाल एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.
राजभोग खेल में एक गुलाल व एक अबीर की पोटली प्रभु की कटि पर बांधी जाती है. प्रभु के कपोल भी मांडे जाते हैं.
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