व्रज – फाल्गुन कृष्ण नवमी
Wednesday, 15 February 2023
जय-गोपाल (कुंडवारा का मनोरथ)
केसरी लट्ठा के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग और क़तरा के शृंगार
जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल लट्ठा का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.
आज श्रीजी में जय गोपाल (कुण्डवारा) मनोरथ होगा.
कुंडवारा मनोरथ में ठाकुरजी को अनसखड़ी में गेहूं की सेव (पाटिया) के लड्डू, कठोर मठड़ी (ठोड़), चून का सीरा (गेहूं के आटे का हलवा), गेहूं के आटे की सेवई की खीर और सखड़ी में दहीभात आदि सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.
श्रीजी में कुंडवारा मनोरथ तिलकायत की आज्ञा के बिना नहीं हो सकता एवं मनोरथी चाहे कोई भी हो समाधान विभाग के चौपड़ा में व मनोरथ की रसीद पर पूज्य श्री तिलकायत का ही नाम लिखा जाता है.
श्रीजी व पुष्टिमार्ग के अन्य मंदिरों में परम्परानुसार कुंडवाय मनोरथ कभी भी किसी भी माह की षष्ठी, द्वादशी, मंगलवार व रविवार को नहीं होता.
निकुंजनायक प्रभु श्रीजी के मंदिर में गौलोक की भावना से कुंडवारा का भोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग के साथ अरोगाया जाता है जबकि अन्य घरों (मंदिरों) में नंदालय के भाव से यह ग्वाल के पश्चात राजभोग के साथ अरोगाया जाता है. इसी कारण से सेवा प्रकार में कुछ अंतर है, जिस दिन कुंडवारा मनोरथ हो श्रीजी में ग्वाल के दर्शन अवश्य खोले जाते हैं.
श्रीजी के निज-मंदिर अथवा जहाँ भी कुंडवाय का भोग रखा जाय वहां हल्दी में भीगी सूती डोरी से आड़ी व खड़ी लकीरें छांटी जाती है. इन लकीरों से वर्ग बनाये जाते हैं जिनके मध्य कुंडवारा के भोग साजे जाते हैं. यह वर्ग 4 के गुणक में होते हैं अर्थात 4, 8, 16 अथवा 32 इस प्रकार के वर्गों को गुणा कहा जाता है.
इस मनोरथ में सीरा, दहीभात एवं खीर सोने-चांदी के बर्तनों के बजाय मिट्टी के बड़े-बड़े मलड़ों में प्रभु को अरोगाये जाते हैं. हल्दी शुद्धता एवं शुभत्व का प्रतीक है अतः भोग के मिट्टी के बर्तनों को भी हल्दी से लीपा जाता है.
कुंडवारा मनोरथ की एक और मुख्य विशेषता है कि यदि कोई गोस्वामी बालक उपस्थित न हों तो कुंडवारा का मनोरथ नहीं किया जा सकता क्योंकि कुंडवारा का भोग रखने के लिए किसी गोस्वामी बालक का उपस्थित होना आवश्यक है.
कुंडवारा मनोरथ में ठाकुरजी को मुख्यतः पांच सामग्रियां अरोगायी जाती है -
1 - पाटिया (गेहूँ के आटे की सेव) के लड्डू
2 - मठड़ी (कड़क ठोड़)
3 - चून (गेहूँ के आटे) का सीरा
4 - पाटिया (गेहूँ के आटे की सेव) की खीर
5 - दहीभात
केवल दहीभात के अलावा सभी सामग्रियां अनसखड़ी में ठाकुरजी को आरोगायी जाती है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)
खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll
साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. पटका केसरी रंग का धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मीना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती है.
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