व्रज - फाल्गुन शुक्ल तृतीया (द्वितीया क्षय)
Wednesday, 22 February 2023
नेंक मोहोंड़ो मांड़न देहो होरी के खिलैया ।
जो तुम चतुर खिलार कहावत अंगुरीन को रस लेहौ ।।1।।
उमड़े घुमड़े फिरत रावरे सकुचत काहे हो ।
सूरदास प्रभु होरी खेलों फगुवा हमारो देहो ।।2।।
गौस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराजश्री के जन्मदिवस की बधाई बैठवे का श्रृंगार , बड़ा मनोरथ (अधकि छप्पनभोग)
विशेष – आज से पांच दिन उपरांत पूज्य गोस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराजश्री का जन्मदिवस होगा अतः आज आपश्री के जन्मदिवस की नौबत की बधाई बैठती है.
छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)
आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत महाराज की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं.
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.
मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
आज प्रभु को छप्पनभोग मनोरथ के भाव से लाल लट्ठा के चाकदार वस्त्र व श्रीमस्तक पर टिपारा का श्रृंगार धराया जाएगा.
कीर्तनों में बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.
श्रृंगार दर्शन भीतर होंगे परंतु यह साज व श्रृंगार धराये जाएंगे.
श्रृंगार दर्शन :
साज - आज श्रीजी में आज केसरी किनारी के खानों वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को लाल लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव टिपारा का साज – लाल रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
बायीं और मीना की चोटी धरायी जाती है.
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