व्रज - आषाढ़ शुक्ल नवमी
Tuesday, 27 June 2023
प्राचीन सेला के केसरी धोती-पटका और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर सीधी चंद्रिका के श्रृंगार
जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को प्राचीन सेला के केसरी धोती-पटका और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर सीधी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : मल्हार)
जो सुख होत गोपाले गाये l
सो न होत जप तप व्रत संयम कोटिक तीरथ न्हाये ।।१।।
गदगद गिरा लोचन जलधारा प्रेम पुलक तनु छाये ।
तीनलोक सुख तृणवत लेखत नंदनंदन उर आये ।।२।।
दिये नहि लेत चार पदारथ श्रीहरि चरण अरुझाये ।
‘सूरदास’ गोविंद भजन बिन चित्त नहीं चलत चलाये ।।३।।
साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र - श्रीजी को आज प्राचीन सेला के केसरी धोती एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
श्रृंगार - प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
सर्वआभरण मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
तुलसी एवं श्वेत पुष्पों वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. कली आदि माला धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
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