व्रज - आषाढ़ शुक्ल एकादशी
Thursday, 29 June 2023
देवशयनी एकादशी (चातुर्मास नियमारम्भ)
मुकुट-काछनी का श्रृंगार
विशेष – आज देवशयनी एकादशी है.
सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है. प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं.
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है. कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं.
सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है. इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है. इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें जगाया जाता है.
उस दिन को देव प्रबोधिनी एकादशी (देवोत्थापन) कहा जाता है. इस बीच के अंतराल को चातुर्मास कहा जाता है.
आज से चार माह अर्थात देव प्रबोधिनी एकादशी तक विवाहादि कुछ शुभ कार्य वर्जित होते हैं.
आज श्रीजी को लगभग तीन माह पश्चात इस ऋतु का प्रथम मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.
जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.
जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.
ज्येष्ठ और आषाढ़ मास की चारों एकादशियों में श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में लिचोई (मिश्री के बूरे और इलायची पाउडर से सज्जित पतली पूड़ी) अरोगायी जाती है.
इसके अतिरिक्त आज विशेष रूप से द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से अनसखड़ी में श्रीजी के अरोगने हेतु मांडा (मीठी रोटी) और आमरस की सामग्री पधारती हैं जो कि प्रभु को संध्या-आरती में अरोगायी जाती है.
राजभोग दर्शन -
कीर्तन – (राग : मल्हार)
माईरी श्यामघन तन दामिनी दमकत पीताम्बर फरहरे l
मुक्ता माल बगजाल कही न परत छबी विशाल मानिनीकी अरहरे ll 1 ll
मोर मुकुट इन्द्रधनुष्यसो सुभग सोहत मोहत मानिनी धुत थरहरे l
‘कृष्णजीवन’ प्रभु पुरंदर की शोभा निधान मुरलिका की घोर घरहरे ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में हरे मलमल की लाल हाशिये की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.
वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग का सूथन, काछनी (लाल हांशिया की) तथा हरे रंग का लाल हांशिया का रास-पटका धराया जाता है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर मोती का अद्वितीय मुकुट तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
स्वरुप की बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है.
कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा-जमनी (सोने-चांदी) के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.
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