व्रज - श्रावण शुक्ल चतुर्दशी
Wednesday, 30 August 2023
प्रथम तिलकायत नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री विट्ठलेशरायजी महाराज (१६५७) का उत्सव
आज श्रीजी को नियम का पिले रंग का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर सुनहरी घेरा का श्रृंगार धराया जाता है.
श्रावण शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन श्रृंगार समय मिश्री की गोल-डली का भोग अरोगाया जाता है.
गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.
कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा श्री गुसांईजी के ज्येष्ठ पुत्र गिरधरजी के द्वितीय पुत्र और आज के उत्सव नायक के पितृचरण गौस्वामी दामोदरजी का भी कल प्राकट्योत्सव है.
विश्व में अधिकांश भागों पर रक्षाबंधन आज माना गयी है परंतु बुधवार, 30 अगस्त 2023 को
सूर्योदय के समय चतुर्दशी तिथि है.
पूर्णिमा तिथि के आरम्भ से
अर्थात प्रातः 10 बजकर 58 मिनिट से
रात्रि 9 बजकर 1 मिनिट तक भद्राकाल है.
पुष्टिमार्ग में सूर्योदय के समय की तिथि से त्यौहार मनाया जाता है व भद्रा रहित पूर्णिमा में श्रीनाथजी को रक्षा (राखी) धरायी जाती है
अतः श्रीनाथजी में
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (गुरुवार, 31 अगस्त 2023) को श्रृंगार समय (प्रातः 7 बजकर 4 मिनिट पूर्व) श्रीजी को रक्षा (राखी) धरायी जाएगी
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
आंगन नंद के दधि कादौ ।
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रकटे जगमें जादौ ।१।।
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन माट संयुत ।
घर घरते सब गावत आवत भयो महरि के पुत्र ।।२।।
बाजत तूर करत कोलाहल वारि वारि दै दान ।
जीयो जशोदा पूत तिहारो यह घर सदा कल्यान ।।३।।
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पीत सुवास ।
मेहा आनंद पुंज सुमंगल यह व्रज सदा हुलास ।।४।।
साज – श्रीजी में आज पिले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.
पीठिका व पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.
वस्त्र - श्रीजी को आज पिले रंग रंग का रूपहरी पठानी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार - श्रीजी को आज मध्य (घुटने तक) का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पिले रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली की मालाजी धराई जाती हैं. हास,त्रवल नहीं धराए जाते हैं.बग्घी धरायी जाती हैं.पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
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