व्रज - श्रावण शुक्ल पूर्णिमा
Thursday, 31 August 2023
बहेन सुभद्रा राखी बांधत बल अरु श्री गोपाल के ।
कनकथार अक्षतभर कुंकुंम तिलक करत नंदलाल के।।१।।
आरती करत देत न्योछावर वारत मुक्ता मालके ।
आसकरण प्रभु मोहन नागर प्रेम पुंज व्रजलालके ।।२।।
सभी वैष्णवों को रक्षाबंधन एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी के प्राकट्योत्सव की बधाई
रक्षाबंधन, नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी का प्राकट्योत्सव
श्रीजी प्रभु को नियम से लाल मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सादी मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.
गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
शृंगार दर्शन में सुबह 6.45 बजे के आसपास झालर,घण्टा बजाते हुए व शंखध्वनि के साथ श्रीजी को तिलक, अक्षत कर दोनों श्रीहस्त में एवं दोनों बाजूबंद के स्थान पर रक्षा (राखी) बांधी जाएगी. तदुपरांत भेंट की जाएगी और दर्शन उपरांत उत्सव भोग धरे जाएंगे.
श्रीजी को रक्षा (राखी) धराए जाने के पश्चात सभी स्वरूपों को रक्षा (राखी) धराई जाती हैं.
उत्सव भोग में विशेष रूप से गुलपापड़ी (गेहूं के आटे की मोहनथाल जैसी सामग्री), दूधघर में सिद्ध केशर-युक्त बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना और फल आदि अरोगाये जाते हैं.
अनोसर में श्रीजी के सनमुख अत्तरदान,
मिठाई का थाल, चोपड़ा,चार बीड़ा आरसी इत्यादि धरे जाते हैं.
आज के अलावा श्रीजी को गुलपापड़ी केवल घर के छप्पनभोग (माघशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा) के दिन ही आरोगायी जाती है.
आज नियम से श्रीजी में प्रभु श्री मदनमोहनजी कांच के हिंडोलने में झूलते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll
साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी के ऊपर सफेद और तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. पीठिका और पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.
वस्त्र - श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का रूपहरी पठानी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता से मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.नीचे पाँच पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.श्वेत पुष्पों की मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
No comments:
Post a Comment