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Monday, 25 September 2023

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वादशी(एकादशी तिथि क्षय) ,दान (परिवर्तिनी) वामन द्वादशी, एकादशी व्रत

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वादशी(एकादशी तिथि क्षय) ,दान (परिवर्तिनी) वामन द्वादशी, एकादशी व्रत
Tuesday, 26 September 2023

दान मांगत ही में आनि कछु  कीयो।
धाय लई मटुकिया आय कर सीसतें रसिकवर नंदसुत रंच दधि पीयो॥१॥

छूटि गयो झगरो हँसे मंद मुसिक्यानि में तबही कर कमलसों परसि मेरो हियो।
चतुर्भुजदास नयननसो नयना मिले तबही गिरिराजधर चोरि चित्त लियो॥२॥

दान (परिवर्तिनी) एकादशी, दान आरंभ, वामन द्वादशी

श्रृंगार समय दान के पद गाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. 

दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

ऐसे अद्भुत भाव-भावना के नियमों से ओतप्रोत पुष्टिमार्ग को कोटि-कोटि प्रणाम

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त दोनों उत्सवों के भाव से दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त दो बासोंदी की हांडियां प्रभु को अरोगायी जाएगी. 

आज से 20 दिन तक प्रतिदिन ग्वाल भोग में श्री ठाकुरजी को दान की सामग्रियां अरोगायी जाती है. इन सामग्रियों में प्रभु को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ की हांडियां एवं खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं.

वामन जयंती के कारण आज श्रीजी में दो राजभोग दर्शन होते हैं. 
प्रथम राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में जयंती के भाव के पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. 

प्रथम राजभोग दर्शन में लगभग बारह बजे के आसपास अभिजित नक्षत्र में श्रीजी के साथ विराजित श्री सालिग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है एवं दर्शन के उपरांत उनको अभ्यंग, तिलक-अक्षत किया जाता है और श्रीजी के समक्ष उत्सव भोग रखे जाते हैं. 

दूसरे राजभोग में उत्सव भोग में कूर (कसार) के चाशनी वाले बड़े गुंजा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना (आचार) और फल आदि अरोगाये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन में प्रभु के श्रीहस्त में हीरा का वैत्र ठाड़ा धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहि धो मोल या दधिको री ग्वालिन श्यामसुंदर हसिहसि बूझत है l
बैचेगी तो ठाडी रहि देखो धो कैसो जमायो, काहेको भागी जाति नयन विशालन ll 1 ll
वृषभान नंदिनी कौ निर्मोलक दह्यौ ताको मौल श्याम हीरा तुमपै न दीयो जाय,
सुनि व्रजराज लाडिले ललन हसि हसि कहत चलत गज चालन l
‘गोविंद’प्रभु पिय प्यारी नेह जान्यो तब मुसिकाय ठाडी भई ऐना बेनी कर सबै आलिन ll 2 ll  

साज – आज प्रातः श्रीजी में दानघाटी में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
राजभोग में पिछवाई बदल के जन्माष्टमी के दिन धराई जाने वाली लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रुपहली किनारी से सुसज्जित सूथन धराये जाते हैं. छोटी काछनी केसरी रुपहली किनारी की एवं बड़ी काछनी लाल सुनहरी किनारी की होती है. 
केसरी रुपहली ज़री की तुईलैस वाला रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी का धराया जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं. आज प्रभु को बघनखा धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर माणक के टोपी व मुकुट( गोकुलनाथजी वाले) एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चित्र में द्रश्य है परन्तु चोटी नहीं धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, वेणु, वेत्र माणक के व एक वेत्र हीरा के धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी दान की आती हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

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