By Vaishnav, For Vaishnav

Thursday, 30 November 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी
Friday, 01 December 2023

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी कृत छह स्वरुप का उत्सव, छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज के दिन छः स्वरुप पधारे थे अतः श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चन्द्रावलीजी के भाव से यशस्वरुप चन्द्रमा की भांति स्वच्छ सफेद चाशनी वाली चन्द्रकला और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.  

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ मुख जाके l
सुन्दर नवनीत के प्रिय आवत हरि ताही के हिय 
जन्म जन्म जप तप करि कहा भयो श्रम थाके ll 1 ll
मन वच अध तूल रास दाहन को प्रकट अनल पटतरको 
सुरनर मुनि नाहिन उपमा के l
‘छीतस्वामी’ गोवर्धनधारी कुंवर आये सदन प्रकट भये 
श्रीविट्ठलेश भजन को फल ताके ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल आधारवस्त्र (Base) पर सुनहरी ज़री के बूटों के ज़रदोज़ी के काम (Work) वाली तथा श्याम आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी ज़री की पुष्प-लता की सुन्दर सज्जा वाले हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज सुनहरी ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं ऊर्ध्वभुजा की ओर रुपहली ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है. श्वेत एवं सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उत्सववत हीरा की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री के बीच के दुमाला के ऊपर पन्ना का सिरपैंच (रूप-चौदस को आवे वह), सुनहरी जमाव की बीच की चन्द्रिका (काशी की), एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
कली, कस्तूरी आदि सब माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
हीरा के वेणुजी एवं हीरा व पन्ना के वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट काशी का एवं गोटी कूदती हुई गायों की आती हैं.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में आरसी सोना के डांडी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. दुमाला बड़ा नहीं किया जाता और लूम-तुर्रा भी नहीं धराये जाते. 

Wednesday, 29 November 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया
Thursday, 30 November 2023

लाल साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पार चंद्रिका या क़तरा के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर चंद्रिका या क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

सुनि मेरो वचन छबीली राधा, ते पायो रससिन्धु अगाधा।।१।।
जे रस निगम नेति नेति भाख्यो, ताकौ तै अधरामृत चाख्यो।।२।।
सिवविरंचि के ध्यान न आवै, ताको कुंजनि कुसुम बिनावे।।३।।
तु वृषभान गोपकी बेटी, मोहन लालको भावते भेटी।।४।।
तेरो भाग्य मोहि क़हत न आवे, कछुक रस परमानंद गावै ॥॥५॥॥

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन पर  रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लल रंग की  छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच क़तरा या चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. 
 श्रीकंठ में श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 28 November 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया
Wednesday, 29 November 2023

हरे साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का जड़ाऊ ग्वालपगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरे साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का जड़ाऊ ग्वालपगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :आसावरी)

चल री सखी नंदगाव जई बसिये,खिरक खेलत व्रजचंद सो हसिये ।।१।।
बसत बठेन सब सुखमाई,कठिन ईहै दुःख दूरि कन्हाई ।।२।।
माखन चोरत दूरि दूरि देख्यों,सजनी जनम सूफल करि लेखों ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा, कठिन प्रीति परमानंददासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली (शीतकाल की) एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका हरे रंग का मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा के जड़ाऊ ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच तथा पगा चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी एवं कमल माला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की बाघ बकरी के आते है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण एवं फ़ीरोज़ा के जड़ाऊ ग्वालपगा  को बड़ा कर के छज्जेदार पाग धराई जाती हैं एवं शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Monday, 27 November 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा
Tuesday, 28 November 2023

व्रतचर्या/गोपमास आरम्भ

मार्गशीर्ष अर्थात ‘गोपमास’ एवं पौष अर्थात ‘धनुर्मास’ अत्यधिक सर्दी वाले मास हैं, अतः देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से बसंत पंचमी तक पुष्टि स्वरुप निज मंदिर से बाहर नहीं पधारते. 
श्री नवनीतप्रियाजी आदि जो स्वरुप पलना झूलते हैं उनके पलना के दर्शन भी निज मंदिर में ही होते हैं.

आज श्रीजी को नियम के पतंगी (गहरे लाल) रंग के साटन के वस्त्र एवं मोरचन्द्रिका धरायी जाती है. 
लाल रंग अनुराग का रंग है. श्री ललिताजी का स्वरुप अनुराग के रंग का है. 

आज से श्रीजी सम्मुख व्रतचर्या के पद गाये जाते हैं.

गोपिकाओं के अनुराग का प्रारंभ भी आज से होने से आज लाल रंग के वस्त्र धराये जाते हैं. 
गोप-कन्याएँ व्रजराज की निष्काम भक्त हैं एवं उनके प्रतीक के रूप में आज के वस्त्रों में सुनहरी पुष्प हैं. 
ये व्रजभक्त बालाएं श्री स्वामिनीजी की कृपा से प्रभुसेवा में अंगीकृत हुई अतः उनके यशस्वरुप ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं. 
आज सारे दिन की सेवा श्री ललिताजी की है जिससे आपके स्वरुप एवं श्रृंगारवत प्रभु के श्रृंगार होते हैं.

गोपमास के आरंभ पर श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग की सखड़ी में मूंग की द्वादसी व खाडवे को अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : टोडी)

आये अलसाने लाल जोयें हम सरसाने अनत जगे हो भोर रंग राग के l
रीझे काहू त्रियासो रीझको सवाद जान्यो रसके रखैया भवर काहू बाग़ के ll 1 ll
तिहारो हु दोस नाहि दोष वा त्रिया को जाके रससो रस पागे जाग के l
‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक आते जिन बनाय सांवरो पेच पाग के ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज लाल साटन की सुनहरी ज़री के ज़रदोज़ी के जायफल की बेल वाली एवं हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है. चरणचौकी, पडघा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी (गहरे लाल) रंग की साटन का सुनहरी ज़री की बूटी के काम (Work) वाले व रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. लाल एवं सफेद रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी (गहरे लाल) साटन की सुनहरी ज़री की बूटी वाले चीरा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. एक रंग-बिरंगे पुष्पों की एवं दूसरी पीले पुष्पों की कलात्मक मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल, गोटी छोटी सोना की व आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.
चोरसा स्याम सुरु का आता हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. त्रवल बड़े नहीं किये जाते और श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Sunday, 26 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा
Monday, 27 November 2023
    
कार्तिक पूर्णिमा, गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव

विशेष – आज कार्तिक पूर्णिमा है. आज कार्तिक मास (व्रज अनुसार) का अंतिम दिन है. 
कल से गोपमास प्रारंभ हो जायेगा. ललित, पंचम आदि शीतकाल के राग व खंडिता, हिलग आदि कीर्तन गाये जाते हैं. 
कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष, ये तीनों मास ललिताजी की सेवा के मास हैं. इनमें से एक मास आज पूर्ण होता है. 

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव का दिन है.
आज के दिन नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविंदलालजी कृत चार स्वरुप के उत्सव में श्री विठ्ठलेशरायजी, श्रीद्वारकाधीशजी एवं श्री बालकृष्णलालजी (सूरत) से पधारे और श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के संग छप्पनभोग का भव्य मनोरथ हुआ था।

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज नियम से श्रीजी को किरीट धराया जाता है. किरीट को ‘खूप’ या ‘पान’ भी कहा जाता है. 
मैं पूर्व में भी कई बार बता चुका हूँ कि अधिक गर्मी व अधिक शीत के दिनों में श्रीजी को मुकुट नहीं धराया जाता अतः उसके स्थान पर इन दिनों किरीट धराया जा सकता है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :

चार स्वरुप के उत्सव के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

गोवर्धन गिरी पर ठाड़े लसत l
चंहु दिस धेनु धरनी धावत तब नवमुरली मुख लसत ll 1 ll
मौर मुकुट मरगजी कछुक फूल सिर खसत l
नव उपहार लिये वल्लभप्रिय निरख दंगचल हसत ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ वस कियो चाहत है संग सखा गुन ग्रसत l
झूठे मिस कर इत उत चाहत श्रीविट्ठल मन वसत ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी को मेघश्याम मखमल के आधारवस्त्र पर सलमा-सितारा के सूर्य, चन्द्र व तारों के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहली ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका श्वेत मलमल का धराया जाता है. मोजाजी गुलाबी रंग के एवं ठाड़े वस्त्र पतंगी या मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. मोजाजी के ऊपर हीरे के तोड़ा-पायल धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरे की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली आदि व कमल माला धरायी जाती है. सफेद एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ज़री का व गोटी मोर की आती है.

Saturday, 25 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी
Sunday, 26 November 2023

नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी (१८७६) का उत्सव है.

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

श्रीजी को नियम के पीले खीनखाब के चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर लाल माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है. 

माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा वर्षभर में केवल आज के दिन धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में बूंदी प्रकार अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बर्षन अधिकाई l
सुखद रसना एक कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में पीले रंग की खीनख़ाब की लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर आज से पुनः सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले खीनखाब के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. मोजाजी लाल खीनखाब के धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की माणक की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, माणक का दुलड़ा, सुनहरी चमक का घेरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लाल मीना व स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी श्याम मीना की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी गोलपाग सिरपेच टीका एवं एक पंख की (सादी) मोर चन्द्रिका व मानक का झोरा धराये जाते हैं. आज लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.

Thursday, 23 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी 
Friday, 24 November 2023

मोर के चंदन मोर बन्यौ है
        दिन दूल्हे हैं अलि नंद को नंदन।
श्री वृषभानु सुता दुलही
         दिन जोड़ी बनी विधना सुखकंदन।।
आवै कह्यौ न कछु रसखानि हो
         दोऊ बंधे छवि प्रेम के फंदन ।
जाहि विलोकें सबै सुख पावत
           ये ब्रजजीवन हैं दुखदंदन ।।

गुसांई जी के प्रथम पुत्र श्री गिरधरजी एवं पंचम पुत्र श्री रघुनाथजी (कामवन) के प्राकट्योत्सव के शृंगार, लालाजी का अन्नकूट,
घेरदार वागा एवं चीरा के साथ सेहरा का श्रृंगार 

आज सायंकाल श्री नवनीतप्रियाजी के प्रसादी भंडार के समीप विराजित प्रभु श्री लालाजी का अन्नकूट मनोरथ होता है.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी की मेढ़ से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
गादीजी, खंड आदि मखमल के आते हैं. गेंद, दिवाला चौगान सभी सोने के आते हैं.

चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है. 
प्रभु की झारीजी सारे दिन यमुना जल से भरी जाती हैं.

सेवाक्रम - अक्षय नवमी की भांति आज भी श्रीजी की दिन भर की सेवा द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर की होती है अर्थात यदि द्वितीय पीठ के गौस्वामी परिवार के सदस्य नाथद्वारा में हों तो आज मंगला से शयन तक श्रीजी की सेवा के अधिकारी होते हैं अतः मंगला से शयन तक सभी समां में सेवा हेतु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में खबर भेजी जाती है एवं द्वितीय गृहाधीश श्री कल्याणरायजी व उनके परिवारजन सभी समां में श्रृंगार धरने प्रभु को भोग धरने व आरती करने पधारते हैं.

आज प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.

आज श्रीजी में विवाह के भाव से मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की पिछवाई एवं संकेत वन में विवाह के भाव से विवाह का श्रृंगार एवं सेहरा धराये जाते हैं. 

श्रृंगार समय विवाह के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज के श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज ही श्रीजी को घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है. इसका कारण यह है कि कल के उत्सवनायक श्री गिरधरजी जिस दिन अपने सेव्य स्वरुप श्री मथुराधीश जी के मुखारविंद में सदेह प्रवेश कर नित्यलीला में पधारे उस दिन श्री मथुराधीशजी ने घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया था. 

आज उन्हीं श्री गिरधरजी का उत्सव का श्रृंगार होने से वही श्रृंगार श्रीजी को धराया जाता है.

कल के उत्सव के भोगक्रम के रूप में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक पाटिया और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाएगी. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव स्यामखटाई अरोगाये जायेंगे

विवाह के पश्चात श्री ठाकुरजी सपरिवार वृषभानजी के घर भोजन को पधारते हैं इस भाव से राजभोग आवे तब आसावरी राग में यह कीर्तन गाया जाता है.

श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll....अपूर्ण

इसके अतिरिक्त शयन तक विवाह के ही कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर हरे रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी लाल ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – प्रधानतया हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी लाल ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा को सेहरा, दो तुर्री, मोती की लूम एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर हीरा की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक और मोती के हार, दुलड़ा आदि उत्सववत धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं. 
पट काशी का गोटी राग रंग के आते हैं.
आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर टिका एवं सिरपेच एवं लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 22 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल एकादशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल एकादशी
Thursday, 23 November 2023

  देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत (देव-दीवाली)

जागे जगजीवन जगनायक।
कियो प्रबोध देवगन जब ही
उठे जगत सुखदायक॥

आज एकादशी देवदिवारी
तजो निद्रा उठो गिरिधारी।
सकल विश्व को प्रबोध कीजै
जागो परम चतुर बनवारी॥

नंद को लाल उठ्यो जब सोय।
देखि मुखारविंद की शोभा
कहो काके मन धीरज होय॥

              (शृंगार दर्शन समय 6.45)

देव-प्रबोधिनी मंडप 

श्रीजी में देव प्रबोधन शुभ भद्रारहित काल के अनुसार प्रातः मंगला उपरान्त अथवा उत्थापन उपरान्त संध्या समय किया जाता है.

इस वर्ष गुरुवार, 23 नवम्बर 2023 की प्रातः 10 बजकर 02 मिनिट से रात्रि 9 बजकर 1 मिनिट तक भद्राकाल होने से देव प्रबोधन आज प्रातः श्रृंगार समय होगा.

इस वर्ष देवोत्थापन प्रातः समय होगा अतः आज श्रीजी के मंगला के दर्शन वैष्णवों के लिए बाहर नहीं खोले जायेंगे क्योंकि डोलतिबारी में देवोत्थापन का मंडप बनाया जा रहा होगा. 
यदि देवोत्थापन सायंकाल का हो तो उत्थापन के दर्शन भीतर होते हैं.

डोलतिबारी के प्रथम भाग में सफेद खड़ी से मंडप बनाया जाता है एवं इसमें अनेक सुन्दर रंग भरे जाते हैं. मंडप मांडने की सेवा श्री तिलकायत परिवार के बहूजी, बेटीजी (यदि उपस्थित हों) एवं भीतर के सेवकों के परिवार की महिलाऐं करती हैं. पहले सफेद खड़ी से सीमांकन किया जाता है एवं उनमें विविध सुन्दर रंग भरे जाते हैं. 

मंडप की चारों दिशाओं में चार आयुध (शंख, चक्र, गदा एवं पद्म) एवं चारों ओर पुष्प लताएँ, तोरण आदि बनाए जाते हैं. मंडप के मध्य एक चौक एवं इसके चारों ओर आठ चौक बनाये जाते हैं. यह नौ चौक का मंडप चार रेखाओं से चित्रित किया जाता है. इसके पश्चात सभी नौ चौकों में स्वास्तिक बनाये जाते हैं. इस सुन्दर सुसज्जित मंडप के ऊपर सोलह हरे पत्ते वाले बड़े गन्नों के 4 स्तंभों से मंडप बनाया जाता है अर्थात इस मंडप को बनाने में कुल चौंसठ बड़े गन्नों का उपयोग किया जाता है. 
चार-चार बड़े गन्नों को इकठ्ठा कर तीन जगहों से लाल डोरी बाँध ऐसे चार गट्ठरों से एक स्तम्भ बनता है. इन चारों स्तंभों को डोलतिबारी में इस प्रकार आपस में बाँधा जाता है कि उनके मध्य से प्रभु के दर्शन हों. 

मंडप की चारों ओर आठ दीप (प्रत्येक कौने में एक-एक व चार दीपक पीछे) प्रज्जवलित किये जाते हैं. इस उपरांत कई दीपकों दीपमाला बनाई जाती है. 
मंडप के चारों ओर बांस की चार टोकरियों में गन्ने के टुकड़े, शकरकंद, बेर, सिंघाड़ा, बैंगन, भाजी आदि भरकर रखे जाते हैं. तत्पश्चात झालर, घंटा व शंखनाद के साथ श्री बालकृष्णलालजी (श्रीजी के संग विराजित स्वरुप) चरणचौकी की गादी पर विराजित किये जाते हैं. 
तीन बार निम्नलिखित श्लोक का उच्चारण कर देवोत्थापन की विधि की जाती है. 
ऊतिष्ठोष्ठ गोविन्द त्याज निन्द्राम जगत्पते l
त्वय्युत्थिते जगन्नाथ ह्युत्थितं भुवन त्रयम् ll 1 ll
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम l
ऊत्थिते चेष्टते सर्वमुतिष्ठोतिष्ठ माधव ll 2 ll

इसके पश्चात श्री बालकृष्णलालजी को तिलक कर, संकल्प कर और तुलसी समर्पित कर दूध, दही, मिश्री के बूरे, शहद, एवं घी से पहले पंचामृत स्नान कराया जाता है एवं तब शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है. तत्पश्चात चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है एवं दग्गल धरायी जाती है.

उपस्थित सेवक मंडप की चार परिक्रमा करते हैं और श्री बालकृष्णलालजी को भीतर पधराकर मंडप बड़ा कर लिया जाता है.
ठाकुरजी को भीतर पधराकर थाली में आरती की जाती है और श्रीजी के दर्शन होते हैं. 

दर्शन उपरांत उत्सव भोग धरे जाते हैं जिसमें प्रभु को मीठी बूंदी, खस्ता शक्करपारा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, तले हुए नमकीन बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं.

श्रीजी के अलावा अन्य सभी निधि स्वरूपों एवं हवेलियों में आज शयन पश्चात अनोसर नहीं होते, रात्रि जागरण होता है एवं द्वादशी का राजभोग तक का सेवाक्रम लगभग पांच बजे तक पूर्ण कर लिया जाता है. 
कई मंदिरों में चार जागरण भोग भी रखे जाते हैं परन्तु श्रीजी मंदिर में गौलोक लीला होने से जागरण भी नहीं होता व चार भोग नहीं रखे जाते.

आषाढ़ शुक्ल एकादशी को तुलसी के बीज बोये जाते हैं एवं उनकी अभिवृद्धि और रक्षा हेतु प्रयत्न किये जाते हैं. कन्यावत उनका पालन कर आज कार्तिक शुक्ल एकादशी को उनका विवाह प्रभु के साथ किया जाता है. तुलसी पूजन एवं तुलसी विवाह का महत्व पुराणों में कई स्थानों पर बताया गया है.
आज देवोत्थापन मंडप की भांति ही तुलसी विवाह का मंडप भी मांडा जाता है. तुलसी महारानी का भी गन्ने का मंडप बनाया जाता है एवं पूजन किया जाता है. प्रभु को तुलसी अत्यंत प्रिय होने के कारण विष्णु समान उनका पूजन किया जाता है. ‘धन धन माता तुलसी’ कीर्तन गाया जाता है. 
यह पूजन श्रीजी की अन्नकूट की रसोई में होता है.
अन्नकूट की रसोई में तुलसी विवाह होता है. 
कमलचोक में रखे गए तुलसीजी को उस्ताजी अन्नकूट की रसोई में पधराते है. 
तुलसीजी के चारों तरफ़ दीपक सज़ाये जाते हैं.
श्रीनाथजी के मुखिया भितरिया अन्नकूट की रसोई में जाकर तुलसीजी की परिक्रमा करते हैं.
तिलकायत अगर उपस्थित हो तो वे अन्यथा श्रीनाथजी के मुखियाजी तुलसीजी को चुदंड़ी ओड़ा कर तुलसी विवाह संपन कराते हैं.

राग--कान्हरो
धनधन माता तुलसी बडी । नारायण के चरण परी ।।१।।
जो तुलसीकी सेवा कर है । कोटि पाप खनमे में परि हर है ।।२।।
जो तुलसी के फेरा देत । सहज हि जन्म  सुफल कर लेत ।।३।।
दान पुण्य मे तुलसी होय कोटि पुन्य फल पावे सोय ।।४।।
जा घर तुलसी करे निवास । ता घर सदा विष्णुको वास ।।५।।
कृष्णदास वदत वारंवार । तुलसी महिमा अपरंपार ।।६।।

Tuesday, 21 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल दशमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल दशमी 
Wednesday, 22 November 2023

आगम के शृंगार

कल उत्सव है अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला आगम के लाल-पीले वस्त्र व मोर चंद्रिका का हल्का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :सारंग)

अनत न जैये पिय रहिये मेरे ही महल l
जोई जोई कहोगे पिय सोई सोई करूँगी टहल ll१ll
शैय्या सामग्री बसन आभूषण सब विध कर राखूँगी पहल l
चतुरबिहारी गिरिधारी पिया की रावरी यही सहल ll२ll

साज – आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में रूपहरी कूदती गायों के कशीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल ज़री चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, उसके ऊपर-नीचे मोती की लड़, नवरत्न की किलंगी, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. 
पन्ना की चार मालाजी धरायी जाती है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हारे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी सोना की छोटी आती है.
आरसी शृंगार में छोटी सोना की एवं राजभोग में बटदार दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
अनोसर में चीरा बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Monday, 20 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल नवमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल नवमी 
Tuesday, 21 November 2023

अक्षय नवमी

आज के दिन त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था.
इस तिथी का कभी क्षय नहीं होता और आज के दिन किये गये पुण्य व कर्म का क्षय नहीं होता अतः आज की तिथी अक्षय नवमी कहलाती है. 

आज के दिन से जुड़ा हुआ एक प्रसंग आपसे साझा करना चाहूँगा जो की 
नित्यलीलास्थ श्री कृष्णरायजी से जुड़ा हुआ हैं.
प्रभु श्री विट्ठलनाथजी की कृपा से द्वितीय गृह अत्यन्त वैभवपूर्ण स्वरुप में था और तत्समय श्रीजी में अत्यधिक ऋण हो गया. 
जब आपको यह ज्ञात हुआ तब आपने अपना अहोभाग्य मान कर प्रभु सुखार्थ अपना द्रव्य समर्पित किया और प्रधान पीठ को ऋणमुक्त कराया.

आप द्वारा की गयी इस अद्भुत सेवा के बदले में श्रीजी कृपा से आपको कार्तिक शुक्ल नवमी (अक्षय नवमी) की श्रीजी की की पूरे दिन की सेवा और श्रृंगार का अधिकार प्राप्त हुआ था. 
आज भी प्रभु श्री गोवर्धनधरण द्वितीय गृह के बालकों के हस्त से अक्षय नवमी के दिन की सेवा अंगीकार करते हैं.

आज श्रीजी प्रभु को अन्नकूट के दिन धराये वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं एवं गायों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. हम ऐसा कह सकते हैं कि आज अन्नकूट का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

आज के पश्चात इस ऋतु में जल रंग से चित्रांकित पिछवाई नहीं आएगी.
आज प्रभु को पूरे दिन तुलसी की माला धरायी जाती है.

अक्षयनवमी का पर्व होने के कारण श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की सेव (पाटिया) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

प्रभु को केशर, कस्तूरी व बूरे से युक्त पेठे के टूक अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की सखड़ी में केसरयुक्त पेठा अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सोहत लाल लकुटी कर राती l
सूथन कटि चोलना अरुन रंग पीताम्बरकी गाती ll 1 ll
ऐसे गोप सब बन आये जो सब श्याम संगाती l
प्रथम गुपाल चले जु वच्छ ले असीस पढ़ात द्विज जाती ll 2 ll
निकट निहारत रोहिनी जसोदा आनंद उपज्यो छाती l
‘परमानंद’ नंद आनंदित दान देत बहु भांति ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में बड़ी गायों के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल रंग की एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, रुपहली फुलकशाही ज़री की चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी (चंपाई) रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी (माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के अन्नकूट की भांति आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर रुपहली फुलकशाही ज़री की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, लाल ज़री का गौ-कर्ण, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में टोडर व त्रवल दोनों धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
पट नित्य का, गोटी जडाऊ व आरसी (दर्पण) सोने की व अन्य दर्शनों में पीले खंड की होती है.

संध्या-आरती दर्शन में तुलसी की गोवर्धन-माला (कन्दरा पर) धरायी जाती है.
प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे होती है अतः लूम, तुर्रा नहीं धराये जाते हैं. 
प्रातः की पिछवाई बड़ी कर फुलकशाही ज़री की पिछवाई आती है. 

शयनभोग की सखड़ी में पेठा-वड़ी का शाक एवं केसर युक्त पेठा अरोगाया जाता है.

Sunday, 19 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी (सप्तमी क्षय)

व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी (सप्तमी क्षय)
Monday, 20 November 2023

गोपाष्टमी

मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

पिछवाई श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में कशीदे की श्वेत गायों की आती है.  
गौचारण के भाव से आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

मुकुट के इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

आज इस ऋतु में मुकुट-काछनी का श्रृंगार अंतिम बार धराया जायेगा. 
शीतकाल में मान आदि की लीलाएँ होती है परन्तु रासलीला नहीं होती अतः मुकुट नहीं धराया जाता. 

आज से तीन दिन तक आठों समय में गौ-चारण लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
वस्त्र में काछनी लाल व हरी छापा की धरायी जाती है.

गोपाष्टमी के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है. सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व दहीभात अरोगाये जाते हैं व संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोपाल माई कानन चले सवारे l
छीके कांध बाँध दधि ओदन गोधन के रखवारे ll 1 ll
प्रातसमय गोरंभन सुन के गोपन पूरे श्रृंग l
बजावत पत्र कमलदल लोचन मानो उड़ चले भृंग ll 2 ll
करतल वेणु लकुटिया लीने मोरपंख शिर सोहे l
नटवर भेष बन्यो नंदनंदन देखत सुरनर मोहे ll 3 ll
खगमृग तरुपंछी सचुपायो गोपवधू विलखानी l
विछुरत कृष्ण प्रेम की वेदन कछु ‘परमानंद’ जानी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में गायों के कशीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का रेशमी सूथन, मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली एवं हरे छापा की बड़ी काछनी  व लाल छापा की छोटी काछनी धरायी जाती है. लाल दरियाई वस्त्र का रास-पटका (पीताम्बर) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकने लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित पन्ना, माणक एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरा की टोपी पर सोने का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज (चोटी) नहीं धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में माला, दुलड़ा हार आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी की माला धरायी जाती है.
पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट काशी का व गोटी सोना की कूदते हुए बाघ बकरी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.

आज गोपाष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तक संध्या-आरती में प्रतिदिन श्रीजी को शाकघर में विशेष रूप से सिद्ध गन्ने के रस की एक डबरिया (छोटा बर्तन) अरोगायी जाती है. इस अवधि में कुछ बड़े उत्सवों पर इस रस में कस्तूरी भी मिश्रित होती है.

आज संध्या-आरती दर्शन में छोटा वैत्र श्रीहस्त में धराया जाता है.

दशहरा के दिन से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गौमाता आती है जो आज संध्या-आरती दर्शन उपरांत विदा होती है.  

प्रातः धराये मुकुट, टोपी और दोनों काछनी संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे व तनी धराये जाते हैं. आभरण छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.

Saturday, 18 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल षष्ठी

व्रज - कार्तिक शुक्ल षष्ठी
Sunday, 19 November 2023

हरे खिनख़ाब के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग (चीरा) पर क़तरा के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

ये इन्द्रमान भंग के दिन है अतः कार्तिक शुक्ल तृतीया से अक्षय नवमी तक इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

कान्हकुंवर के कर पल्लव पर मानो गोवर्धन नृत्य करे ।
ज्यों ज्यों तान उठत मुरली में त्यों त्यों लालन अधर धरे ।।१।।
मेघ मृदंगी मृदंग बजावत दामिनी दमक मानो दीप जरे ।
ग्वाल ताल दे नीके गावे गायन के संग स्वरजु भरे ।।२।।
देत असीस सकल गोपीजन बरषाको जल अमीत झरे ।
यह अद्भुत अवसर गिरिधरको नंददास के दुःख हरे ।।३।।

साज – आज श्रीजी में हरे खिनख़ाब की रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. तकिया के ऊपर श्वेत रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर हरे मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे खिनख़ाब पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे ज़री के चीरा (ज़री की गोल पाग) के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चाँदी की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 17 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल पंचमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल पंचमी 
Saturday, 18 November 2023

लाभ पंचमी के शृंगार

विशेष – लाभपंचमी को लौकिक पर्व माना गया है अतः आज के दिन श्रीजी में इस निमित कुछ विशेष नहीं होता.

ये दिन गोवर्धन धारण व इन्द्रमान भंग के हैं अतः प्रातः से ही गोवर्धनलीला व इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं. 
पिछवाई भी गोवर्धनधारण की होती है.
श्रीजी को लाल सलीदार ज़री के चाकदार वागा, चोली, सूथन, टिपारा व लाल मलमल का पटका धराया जाता है. 
आभरण वनमाला के परन्तु चरणारविन्द से चार अंगुल ऊपर धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोर-चन्द्रिका व दोहरे कतरा धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

महाबल कीनो हो व्रजनाथ l
ईत मुरली ऊत गोपिन सो रति ईत गोवर्धन हाथ ll 1 ll
उत बालक पय पान करावत ईत सुरभि तृणखात l
ऊतहि चरत वछरा अपने रस ग्वाल बजावत पाट ll 2 ll
कोप्यो इंद्र महाप्रलय को झर लायो दिन सात l
‘परमानन्द’ प्रभु राख लियो व्रज मेट इंद्र की घात ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में गोवर्धनधारण लीला के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार में कृष्ण-बलराम, नन्द-यशोदा, गोपीजन तथा श्री गिरिराजजी के ऊपर बरसते मेघों का अत्यंत सुन्दर चित्रांकन किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द से चार अंगुल ऊपर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोर-चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा बड़ा नहीं होता है अतः लूम, तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Thursday, 16 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्थी

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्थी 
Friday, 17 November 2023

फ़िरोज़ी खिनख़ाब के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को फ़िरोज़ी खिनख़ाब का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ब्रजजन लोचन ही को तारो ।
सुन यशोमति तेरो पूत सपुतो कुल दीपक उजियारो ।।१।।
धेनु चरावत जात दूर तब होत भवन अति भारो ।
घोष सजीवन मुर हमारो छिन इत ऊत जिन टारो ।।२।।
सात द्योस गिरिराज धर्यो कर सात बरसको बारो ।
गोविंद प्रभु चिरजियो रानी तेरो सुत गोप वंश रखवारो ।।३।।

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी खिनख़ाब की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी खिनख़ाब का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी एवं गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Wednesday, 15 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया

व्रज - कार्तिक शुक्ल तृतीया
Thursday, 16 November 2023

स्याम सलीदार ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर चीरा(गोल पाग)पर जमाव का क़तरा के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को स्याम सलीदार ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर चीरा(गोल पाग) पर जमाव के क़तरा का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

माधोजु राखो अपनी ओट ।
वे देखो गोवर्धन ऊपर उठे है मेघ के कोट  ।।१।।
तुम जो शक्रकी पूजा मेटी वेर कियो उन मोट  l
नाहिन नाथ महातम जान्यो भयो है खरे टे खोट ।।२।।
सात घौस जल वर्ष सिरानो अचयो एक ही घोट  l
लियो उठाय गरुवो गिरी करपर कीनो निपट निघोट  ।।३।।
गिरिधार्यो तृणावर्त मार्यो जियो नंदको ढोट  l
‘परमानन्द’ प्रभु इंद्र खिस्यानो मुकुट चरणतर लोट ।।४।।

साज – आज श्रीजी में स्याम रंग की पिछवाई धरायी जाती है गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है

वस्त्र – श्रीजी को आज स्याम सलीदार ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर स्याम रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम एवं गोटी चाँदी की धरायी जाती हैं.

Tuesday, 14 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वितीया

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वितीया
Wednesday, 15 November 2023

आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l
करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll १ ll
आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l
‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll २ ll

भाईदूज, यम द्वितीया

श्रीजी को आज नियम के लाल खीनखाब के चोली, सूथन, घेरदार वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फुलक शाही ज़री का चीरा (ज़री की पाग) व पटका रुपहली ज़री का धराया जाता है.  

उत्सव भोग के रूप में गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से प्रभु को चाशनी वाले कसार के गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में आगे के भोग धरकर श्रीजी को राजभोग की माला धरायी जाती है. झालर, घंटा, नौबत व शंख की ध्वनि के मध्य दण्डवत कर प्रभु को तिलक किया जाता है. 
प्रभु को बीड़ा व तुलसी समर्पित की जाती है. तदुपरांत विराजित सभी स्वरूपों को तिलक किया जाता है.
आटे की चार मुठियाँ वार के चून (आटे) की आरती की जाती है और न्यौछावर की जाती है. 
तदुपरांत पहले श्रीजी के मुखियाजी श्री तिलकायतजी को तिलक करते हैं और फिर श्री तिलकायतजी सभी उपस्थित सेवकों को तिलक करते हैं. 

बहन सुभद्रा के घर भोजन अरोगें इस भाव से प्रभु आज राजभोग अरोगते हैं.
भीतर तिलक व आरती होवें तब आशकरणदासजी द्वारा रचित निम्न कीर्तन गाया जाता है -

आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l
करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll 1 ll
आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l
‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll 2 ll

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकीन सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

अब न छांडो चरन कमल महिमा मैं जानी ।
सुरपति मेरो नाम धर्यो लोक अभिमानी ।।१।।
अबलों में नहि जानत ठाकर है कोई ।
गोपी ग्वाल राख लिये मेरी पत खोई ।।२।।
ऐरावत कामधेनुं गंगाजल आनी ।
हरि को अभिषेक कियो जयजय सुर बानी ।।३।।

राजभोग दर्शन –

साज – श्रीजी में आज लाल मखमल की सुरमा-सितारा की ज़री मोती के काम की, वृक्षावली के ज़रदोज़ी के काम वाली नित्य लीलास्थ श्री गोवर्धनलाल जी महाराज वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की खीनख़ाब का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. बायीं ओर कटि (कमर) पर रुपहली ज़री की किनारी वाला लाल कटि-पटका (जिसका एक छोर आगे और एक बग़ल में) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद रंग के चिकने लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती, विशेषकर पन्ना व सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. आज के दिन सदैव ऐसा छोटा श्रृंगार ही धराया जाता है. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलक शाही ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना, जिसके ऊपर नीचे मोती की लड़, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगे पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. पट, गोटी जडाऊ व आरसी चार झाड की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Monday, 13 November 2023

व्रज - कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा
Tuesday, 14 November 2023

हरी ज़री के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरी ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ब्रजजन लोचन ही को तारो ।
सुन यशोमति तेरो पूत सपुतो कुल दीपक उजियारो ।।१।।
धेनु चरावत जात दूर तब होत भवन अति भारो ।
घोष सजीवन मुर हमारो छिन इत ऊत जिन टारो ।।२।।
सात द्योस गिरिराज धर्यो कर सात बरसको बारो ।
गोविंद प्रभु चिरजियो रानी तेरो सुत गोप वंश रखवारो ।।३।।

साज – आज श्रीजी में हरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग की ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. गुलाबी रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Sunday, 12 November 2023

व्रज - कार्तिक कृष्ण अमावस्या

व्रज - कार्तिक कृष्ण  अमावस्या
Monday, 13 November 2023

गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव

अन्नकूट कोटिन भांतनसो भोजन करत गोपाल ।
आपही कहत तात अपनेसों गिरि मूरति देखो तत्काल ।।१।।
सुरपति से सेवक इनही के शिव विरंची गुण गावे ।
इनहीते अष्ट महा सिध्धि नवनिधि परम पदारथ पावे ।।२।।
हम गृह बसत गोधन बन चारत गोधन ही कुलदेव ।
इने छांड जो करत यज्ञ विधि मानो भींतको लेव ।।३।।
यह सुन आनंदे ब्रजवासी आनंद दुंदुभी बाजे ।।
घरघर गोपी मंगल गावे गोकुल आन बिराजे ।।४।।

मंगला दर्शन उपरांत डोल-तिबारी में अन्नकूट भोग सजाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं अतः अन्य सभी समां के दर्शन भीतर होते हैं. दिन भर का पूरा सेवाक्रम भीतर होता रहता है.

महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

साज - श्रीजी में सर्व साज दीपावली के दिवस धरा हुआ ही आज भी धराया जाता है.

वस्त्र – श्रीजी को आज दीपावली के दिवस धरे गये श्वेत ज़री के वस्त्र ही धराये जाते हैं. 

श्रृंगार वृद्धि में राजभोग के पश्चात ऊर्ध्व भुजा की ओर लाल रंग का ज़री का बिना तुईलैस किनारी बिना का पीताम्बर धराया जाता है जिनके दो अन्य छोर चौखटे के ऊपर रहते हैं. 
ऐसा पीताम्बर वर्ष में दो बार (आज के दिन व जन्माष्टमी, नन्दोत्सव के दिन) धराया जाता है. 
जन्माष्टमी, नन्दोत्सव के दिन यह केवल चौखटे पर धराया जाता है परन्तु आज यह श्रीहस्त में भी धराया जाता है. 
प्रभु यह पीताम्बर गायों, ग्वालों और निजजनों पर फिरातें हैं जिससे उनको नज़र ना लगे.
चतुर्भुजदास जी ने इस भाव का एक पद भी गाया है.

खेली बहु खेली गाय, बुलाई घुमर घोरी ।
बछरा ऊपर 'ऊपरना फेरत’ दाढ़ मेल के डोरी ।।
आप गोपाल फ़ूक मारत है गौ सुत भरत अंकोरी ।
घों घों करत लकुट कर लीने ‘मुख फेरत पिछोरी’ ।।

श्रृंगार – आज अभ्यंग नहीं होता. सर्व श्रृंगार दीपावली के दिवस के ही रहते हैं. 
आज दो जोड़ी के एक माणक और एक पन्ना की प्रधानता वाले शृंगार धरे जाते हैं. दोनो हालरा नहीं धराये जाते हैं.
केवल श्रीमस्तक के ऊपर लाल रंग की ज़री की तुई की किनारी वाला गौकर्ण धराया जाता है. 
इसी प्रकार कुल्हे के ऊपर सिरपैंच बड़ा कर दिया जाता है और इसके बदले जड़ाव पान धराया जाता है. 
कमलछड़ी एवं पुष्प मालाजी दीपावली के दिवस के होते हैं अतः बदले जाते हैं. 
श्रीहस्त में जड़ाव सोने के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

Friday, 10 November 2023

व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (रूप चौदस के आपके शृंगार)

व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (रूप चौदस के आपके शृंगार)   
Saturday, 11 November 2023

न्हात बलकुंवर कुंवर गिरिधारी ।
जसुमति तिलक करत मुख चुंबत, आरती  नवल उतारी ॥ १ ॥
आनंद राय सहित गोप सब, नंदरानी  व्रजनारी ।
जलसों घोर केसर कस्तुरी, सुभग  सीसतें   ढारी ॥ २ ॥
बहोर करत शृंगार सबे मिल, सब मिल रहत निहारी ।
चंद्रावलि  व्रजमंगल रस भर, श्रीवृषभान दुलारी ॥ ३ ॥
मनभाये पकवान जिमावत, जात सबें  बलहारी ।
श्रीविठ्ठलगिरिधरन सकल व्रज, सुख मानत छोटी दिवारी ॥ ४ ॥

नरक चतुर्दशी, रूप चौदस

आज रूप चौदस के राग, भोग व श्रृंगार का सेवाक्रम लिया जा रहा है*
जिसमें मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को फुलेल समर्पित कर तिलक किया जाता है. तत्पश्चात बीड़ा पधराकर चन्दन, आवंला एवं उपटना से दोहरा अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

अधिकांश पुष्टिमार्गीय मंदिरों में दशहरा के दिन तैयार कर सुखाकर रखे 10 गोबर के कंडों को जलाकर उन पर प्रभु स्वरूपों के आज के अभ्यंग स्नान के लिए जल गर्म किया जाता है.

विशेषकर सूर्योदय से पूर्व हल्दी से चौक लीप कर उसके ऊपर लकड़ी की चौकी बिछाकर, चारों ओर दीप जलाकर, श्री ठाकुरजी को चौकी के ऊपर पधराकर, तिलक, अक्षत एवं आरती कर अभ्यंग स्नान कराया जाता है. 
स्नान पश्चात प्रभु को सुन्दर वस्त्राभूषण धराये जाते हैं जिससे श्री ठाकुरजी का स्वरुप खिल उठता है इस भाव से आज के उत्सव को रूप चतुर्दशी कहा जाता है. 

अपने बालकों को भी इसी शास्त्रोक्त विधि से स्नान कराने से बालकों का स्वास्थ्य उत्तम होता है और रोगादि से मुक्ति मिलती है.
ऐसी भी मान्यता है कि इस प्रकार शास्त्रोक्त विधि के अनुसार स्नान करने से नर्क-यातना एवं रोगादि से मुक्ति मिलती है. इसी कारण आज के दिवस को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है.

आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र पर भीम पक्षी के पंख के भरतकाम से सुसज्जित पिछवाई आती है. आज श्रीजी को सुनहरी फुलकशाही ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है.

कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. 
ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. 
इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कटपूवा अरोगाये जाते हैं. 
उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव, आधे नेग की श्याम-खटाई आदि अरोगाये जाते हैं. 
अदकी में संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.
प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है. 

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं. आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूं के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बड़ड़ेन को आगें दे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत l
मानसी गंगा जल न्हवायके पाछें दूध धोरी को नावत ll 1 ll
बहोरि पखार अरगजा चरचित धुप दीप बहु भोग धरावत l
दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिन मिल मंगल गावत ll 2 ll
टेर ग्वाल भाजन भर दे के पीठ थापे शिरपेच बंधावत l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर अब यह व्रज युग युग राज करो मनभावत ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र (Base fabric) पर भीम पक्षी के पंख के काम (work) वाली एवं लाल रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल एवं सुनहरी फुलक शाही ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना के थेगडा वाला सिरपैंच, केरी घाट की लटकन वाला लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, मोती के हार, दुलड़ा माला, कस्तूरी, कली आदि की माला धरायी जाती हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी जडाऊ, आरसी शृंगार में चार झाड की एवं राजभोग में सोन की डांडी की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर हीरा की किलंगी व मोती की लूम धरायी जाती है. आज श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.

शयन समय निज मन्दिर के बाहर दीपमाला सजायी जाती है. मणिकोठा में रंगोली का पाट व दीपक सजाये जाते हैं.

Thursday, 9 November 2023

व्रज - कार्तिक कृष्ण द्वादशी(धनतेरस के आपके शृंगार)

व्रज - कार्तिक कृष्ण द्वादशी(धनतेरस के आपके शृंगार) 
Friday, 10 November 2023

आज वत्स द्वादशी है लेकिन दीपावली चतुर्दशी को होने के कारण धनतेरस का शृंगार आज लिया गया हैं.

आज माई धन धोवत नंदरानी ।
कार्तिक वदि तेरस दिन उत्तम गावत मधुरी बानी ।।१।।
नवसत साज श्रृंगार अनुपम करत आप मन मानी । 
कुम्भनदास लालगिरिधर को देखत हियो सिरानी ।।२।।

 धनतेरस, धन्वन्तरी जयंती

आज मनमोहन रूपी धन को अपने ह्रदय  में आत्मसात करते हुए धनतेरस के श्रृंगार के दर्शन का आनंद ले 

विशेष – आज धनवन्तरी जयन्ती है. श्री धनवन्तरी, भगवान विष्णु के 17वें अवतार, देवों के वैध व प्राचीन उपचार पद्दति आयुर्वेद के जनक हैं.

आज के दिन को धनतेरस भी कहा जाता है. व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिवस दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.

आज नन्दरानी यशोदाजी भौतिक लक्ष्मीजी की प्रतिमा को स्नान करा, श्रृंगार कर प्रभु के सम्मुख रखती हैं एवं बालक के पहनने के आभूषण को धोती हैं जिससे श्रीजी में मंगला दर्शन उपरांत ‘धन धोवत व्रजरानी’ जैसे पद गाये जाते हैं.

श्रीस्वामिनीजी ने श्रीठाकुरजी को अपना सर्वस्व मान कर धन के रूप में प्राप्त किया है ऐसा भाव भी है जिसे प्रदर्शित करते पद भी प्रभु के सम्मुख गाये जाते हैं – ‘राधा मन अति मोद बढ्यो है, मनमोहन धन पाई.’

आज की सेवा ललिताजी के भाव की है.

विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.
चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दिवाला सभी सोने के आते हैं. आज दिनभर प्रभु को भोग स्वर्ण पात्रों में धरे जाते हैं.

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

श्रीजी को आज नियम के हरी सलीदार ज़री के चाकदार वागा एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. कत्थई आधारवस्त्र पर कला बत्तू के सुन्दर काम से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर मखमल की खोल आती है.

आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त चन्द्रकला अरोगायी जाती है. 
उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. 
सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं. अदकी में गेहूं के रवा की खीर अरोगायी जाती है.
भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोधन पूजा करके गोविंद सब ग्वालन पहेरावत l
आवो सुबाहु सुबल श्रीदामा ऊंचे लेले नाम बुलावत ll 1 ll
अपने हाथ तिलक दे माथे चंदन और बंदन लपटावत l
वसन विचित्र सबन के माथें विधिसों पाग बंधावत ll 2 ll
भाजन भर भर ले कुनवारो ताको ताहि गहावत l
‘चत्रभुज’प्रभु गिरिधर ता पाछे धोरी धेनु खिलावत ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग सलीदार ज़री की सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा - हीरा, मोती, प्रमुखतया माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर हरे रंग की सलीदार ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर अनारदाना को पट्टीदार सिरपैंच (दोनों ओर मोती की माला से सुसज्जित), पन्ना की लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में टोडर धराया जाता है. हांस, कड़ा, हस्त सांखला आदि सर्व श्रृंगार धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर स्वर्ण का हीरा जड़ित चौखटा धराया जाता है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (माणक व पन्ना के) धराये जाते हैं.
पट हरा, गोटी शतरंज की सोने की व आरसी लाल मखमल की आती है.

शयन समय मणिकोठा में हांडी में रौशनी की जाती है, दीपक का पाट साजा जाता है और रंगोली मांडी जाती है. निज मन्दिर में रौशनी का झाड़ आता है. 
डोलतिबारी में आज से रौशनी नहीं की जाती.

आज से श्रीजी को प्रतिदिन उत्थापन के फल भोग में गन्ना के टूक (छीले हुए गन्ना के टुकड़े) अरोगाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. ये सामग्री प्रतिदिन आगामी डोलोत्सव तक अरोगायी जाती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़ेकर छोटे (छेडान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम, तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं. 

शयन समय प्रभु बंगले (हटड़ी) में बिराजते हैं. मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.

आज शयन उपरांत नाथद्वारा के आसपास के विभिन्न गावों से ग्रामीण लोग अपने खेतों से और श्रीजी के बगीचों से ठाकुरजी को अन्नकूट पर अरोगाने के लिए आज बैलगाड़ियों में भरकर पालक की भाजी लाते हैं. चतुर्दशी के पूरे दिन भाजी की सेवा चलती है.

दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.

इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Wednesday, 8 November 2023

व्रज - कार्तिक कृष्ण एकादशी (वत्स द्वादशी के आपके शृंगार)

व्रज - कार्तिक कृष्ण एकादशी (वत्स द्वादशी के आपके शृंगार)
Thursday, 09 November 2023

आज रमा एकादशी है लेकिन दीपावली चतुर्दशी को होने के कारण द्वादशी का शृंगार आज लिया गया हैं.

विशेष – आज की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है. कहा जाता है कि आज के दिन रमा नाम की व्रजगोपी ने श्री यशोदाजी को नंदालय में दीपावली की बधाई दी थी जिससे नंदालय में नगाड़े बजाये जाते हैं.
दीपावली तक प्रतिदिन रौशनी की जाती है. मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं.

सेवाक्रम - विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.
आज निज मंदिर में फूल-पत्ती की बाड़ी आती हैं.

आज का श्रृंगार तुंगविद्याजी की ओर है और आज का श्रृंगार निश्चित है जिसमें पीली सलीदार ज़री के घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पीला चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना की सीधी चन्द्रिका धरायी जाती है. 
तकिया पर मखमल की खोल आती है.

व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिन दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – लाल रंग के आधारवस्त्र पर सुनहरी सीलमाँ-सितारा के विद्रुम के जाल के ज़रदोज़ी के काम की एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल मखमल की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र- श्रीजी को आज पीली सलीदार ज़री की सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.

कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल सभी धराये जाते हैं. कली की माला धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी आती है.
आरसी चाँदी की काँच के कलात्मक काम  की आती है. 

विगत दशमी से ही प्रतिदिन प्रभु के सम्मुख उत्थापन उपरांत पुष्प-पत्तियों की बाड़ी धरी जाती है जो शयन उपरांत बड़ी कर दी जाती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

शयन दर्शन में मणिकोठा व डोलतिबारी में हांडी में रौशनी की जाती है वहीं निज मन्दिर में कांच मृदंग में रौशनी की जाती है.

दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.

इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Tuesday, 7 November 2023

व्रज - कार्तिक कृष्ण दशमी (द्वितीय)

व्रज - कार्तिक कृष्ण दशमी (द्वितीय)
Wednesday, 08 November 2023

एकादशी के आपश्री के श्रृंगार

तिथि वृद्धि के कारण इस वर्ष दो दशमी है व चतुर्दशी के दिन दीपावली होने के कारण श्रृंगार का क्रम परिवर्तित हुआ है जिसमें आज कार्तिक कृष्ण दशमी (द्वितीय) के दिन नियम का एकादशी का श्रृंगार धराया जा रहा है, यद्यपि पुष्टि वैष्णवों में रमा एकादशी व्रत कार्तिक कृष्ण एकादशी (गुरुवार, 09 नवम्बर 2023) के दिन ही है.*

पुष्टि प्रणालिका के आधार पर जहाँ निधि स्वरुप विराजित हों उन सभी मंदिरों में मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं एवं रात्रि को रौशनी की जाती है.

विगत कल से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.
आज निज मंदिर में फूल-पत्ती की बाड़ी आती हैं.
आज की सेवा चम्पकलताजी के भाव की है आज का श्रृंगार निश्चित है जिसमें श्याम ज़री के चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं श्रीमस्तक पर श्याम चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर नागफणी का कतरा धराया जाता है. तकिया पर लाल मखमल कि खोल आती है.

से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक के सात दिन श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. 
ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. 
इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी (सूखे मेवों से भरा लड्डू के आकार का खस्ता ठोड़) अरोगायी जाती है.

कल से पुष्टिमार्ग में गोवर्धन-लीला प्रारंभ हो गयी है. प्रभु श्रीकृष्ण ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत धारण किया था इस भाव से विगत कल से सात दिन तक विशेषतया गोवर्धन-पूजन के पद गायन होता है.
कीर्तनों में राजभोग समय गोवर्धन-पूजा के पद गाये जाते हैं. भोग-आरती में गौ-क्रीड़ा के पद एवं शयन में रौशनी, दीपदान एवं हटड़ी के पद गाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोवर्धन पूजन चलेरी गोपाल l
मत्त गयंद देख जिय लज्जित निरख मंदगति चाल ll 1 ll
व्रज नारिन पकवान बहुत कर भर भर लीने थाल l
अंग सुगंध पहर पट भूषण गावत गीत रसाल ll 2 ll
बाजे अनेक वेणु रवसो मिलि चलत विविध सुर ताल l
ध्वजा पताका छत्र चमर धर करत कुलाहल ग्वाल ll 3 ll
बालक वृंद चंहुदिश सोहत मानो कमल अलिमाल l
‘कुंभनदास’ प्रभु त्रिभुवन मोहन गोवर्धनधर लाल ll 4 ll

साज – श्रीजी में आज गेरू (कत्थई) रंग की धरती पर वृक्ष, पुष्प, पत्तियों और ऊंची सूंड के हाथियों आदि के ज़रदोज़ी के अद्भुत काम वाली एवं ज़रदोज़ी के ही काम वाले हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी-तकिया के ऊपर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम सलीदार ज़री की सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर श्याम सलीदार ज़री का चीरा (श्याम ज़री की पाग) के ऊपर किलंगी वाला सिरपैंच, डाख (ज़री के काम) का जमाव का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.
नीचे चार हीरा की जुगावली, ऊपर सात मोती की माला व हार धराये जाते हैं. हीरा की बग्घी व कंठी धरायी जाती है. पीले एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (श्री विट्ठलेशरायजी के) धराये जाते हैं.
पट प्रतिनिधि का व गोटी श्याम मीना की आती है. 

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृंगार संध्या-आरती उपरांत बड़े कर शयन समय हल्के श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं. 

शयन समय मणिकोठा व डोल तिबारी में हांडी में रौशनी की जाती है वहीँ निज मन्दिर में कांच मृदंग में रौशनी की जाती है.

कल से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.
इसके अतिरिक्त कल से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Monday, 6 November 2023

व्रज - कार्तिक कृष्ण दशमी (प्रथम)

व्रज - कार्तिक कृष्ण दशमी (प्रथम) 
Tuesday, 07 November 2023

आपश्री (तिलकायत) के श्रृंगार आरम्भ

पुष्टिमार्ग में कोई भी उत्सव ऐसे ही नहीं मना लिया जाता वरन पुष्टि के नियम कुछ इस प्रकार बनाये गए हैं कि प्रभु सेवा के हर क्रम में उस उत्सव के आगमन का आभास होता है.

दीपावली का आभास भी प्रभु के सेवाक्रम में दशहरा से ही आरम्भ हो जाता है.

इसी क्रम में आज से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रतिदिन प्रभु की झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.

उत्सव का आभास जागृत करने के भाव से प्रभु सम्मुख के गादी, चरणचौकी खंडपाट आदि की खोल पर से सफेदी उतार कर मखमल के खोल चढ़ाये जाते हैं. तकिया पर लाल मखमल की खोल आती है.

आज से पुष्टिमार्ग में गोवर्धन-लीला प्रारंभ हो जाएगी. प्रभु श्रीकृष्ण ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत धारण किया था इस भाव से आज से सात दिन तक गोवर्धन-पूजन के पद गाये जाते हैं.

इस वर्ष दीपावली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन है अतः दशमी को आरम्भ होने वाले दीपावली के विशिष्ट श्रृंगार आज कार्तिक कृष्ण नवमी से ही प्रारंभ हो जाएंगे. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘घर के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये श्रृंगार दीपावली के अलावा जन्माष्टमी एवं डोलोत्सव के पूर्व भी धराये जाते हैं.

इन्हें आपके श्रृंगार इसलिए कहा जाता है क्योंकि पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री को इन श्रृंगार का विशेषाधिकार प्राप्त है.

श्रीजी को आज का श्रृंगार श्री विशाखाजी की भावना से धराया जाता है. श्री विशाखाजी अत्यंत गौर श्रीअंग वाले थे अतः आपके भाव से आज श्वेत कारचोव के वस्त्र, सुनहरी टिपकी वाले एवं दोहरी सुनहरी किनारी वाले धराये जाते हैं.

आज श्री विशाखाजी के भाव से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

आज द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी से श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु बूंदी के लड्डू की छाब पधारती है.

आज से किर्तनिया राजभोग के दर्शन उपरांत भीतर से कमलचौक तक ‘कीर्तन करते’ हुए निकलते हैं और शयन समय कीर्तन समाज किर्तनिया गली में बैठते हैं.
आज से दीपावली की रौशनी की जाती है. मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बड़ड़ेन को आगें दे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत l
मानसी गंगा जल न्हवायके पाछें दूध धोरी को नावत ll 1 ll
बहोरि पखार अरगजा चरचित धुप दीप बहु भोग धरावत l
दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिन मिल मंगल गावत ll 2 ll
टेर ग्वाल भाजन भर दे के पीठ थापे शिरपेच बंधावत l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर अब यह व्रज युग युग राज करो मनभावत ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज सफेद रंग की कारचोव के वस्त्र की पिछवाई के ऊपर सुनहरी ज़री की तुईलैस का हांशिया एवं ज़रदोज़ी का काम किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम, गादी के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद रंग की मखमल की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज श्वेत ज़री (कारचोव) के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. उर्ध्वभुजा की ओर मलमल का कटि-पटका (जिसका एक छोर आगे और एक बग़ल की तरफ़) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण पन्ना तथा सोने के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सफेद रंग की कारचोव के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. पन्ना की चार माला धराई जाती हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत एवं गोटी स्वर्ण की आती हैं.
आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में चाँदी की बटदार दिखाई जाती हैं.

प्रातः धराये श्रीमस्तक के श्रृंगार संध्या-आरती उपरांत बड़े कर शयन समय श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं. 
उत्थापन के पश्चात फूल पत्तो की बाड़ी आती हैं.
शयन समय मणिकोठा व डोल तिबारी में नित्य हांडी में रौशनी की जाती है.
आज से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि के थाल आरोगाया जाता है.
इसके अतिरिक्त आज से अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Sunday, 5 November 2023

व्रज – कार्तिक कृष्ण नवमी

व्रज – कार्तिक कृष्ण नवमी 
Monday, 06 November 2023

दीपोत्सव का प्रतिनिधि का शृंगार

बड़े उत्सवों के पूर्व अथवा उपरांत उनके परचारगी श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि के श्रृंगार कहे जाते हैं.

इसी श्रृंखला में इसी श्रृंखला में आज श्रीजी को दीपावली के दिन धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है जिसमें प्रभु को लाल सलीदार ज़री की सूथन, श्वेत फूलकसाही ज़री की चोली, चाकदार वागा एवं सुनहरी ज़री का पटका धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फूलकसाही ज़री की कुल्हे व पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

भोग विशेष - मनोरथ के साज की भावना से श्रीजी को राजभोग व शयनभोग में कट-पुआ, केशरयुक्त सुवाली, पकागुंजा, खुरमा, खस्ता मठडी आदि अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी ll 1 ll
घर घर गोमय प्रतिमा धारी, बाजत रुचिर पखावज थारी ll 2 ll
गोद लीयें मंगल गुन गावत, कमल नयन कों पाय लगावत ll 3 ll
हरद दधि रोचनके टीके, यह व्रज सुरपुर लागत फीके ll 4 ll
राती पीरी गाय श्रृंगारी, बोलत ग्वाल दे दे करतारी ll 5 ll
‘हरिदास’ प्रभु कुंजबिहारी मानत सुख त्यौहार दीवारी ll 6 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की धरती (Base) के ऊपर सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रकोसी के काम (Work) वाली, जिसमें चन्द्र, सूर्य, गाय, तथा पुष्पों का ज़रकोसी का काम (Work) किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी तथा चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री की सूथन, श्वेत फूलक साई ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता सहित हीरे, मोती, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर फूलक साई श्वेत ज़री की कुल्हे के ऊपर तीन टीका व तीन ही त्रवल, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति हीरा के कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. 
त्रवल व टोडर दोनों धराये जाते हैं. 
आज हालरा धराया जाता हैं.
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. 

राजभोग में पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर तुर्रा-किलंगी नहीं आते हैं व हीरा की किलंगी धरायी जाती है.  
पिछवाई बड़ी (हटा) कर कांच का बंगला आवे. 
मणिकोठा में पांच कांच की हांडियों में रौशनी की जाती है वहीँ निज मन्दिर की देहरी के भीतर दो कांच की मृदंग में रौशनी की जाती है.
शयन दर्शन उपरांत अनोसर में कुल्हे बड़ी कर छज्जेदार पाग धरायी जाती है.

इस वर्ष आगामी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के क्षय के कारण दशमी को आरम्भ होने वाले दीपावली के विशिष्ट श्रृंगार कल कार्तिक कृष्ण नवमी से ही प्रारंभ हो जाएंगे. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘घर के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये श्रृंगार दीपावली के अलावा जन्माष्टमी एवं डोलोत्सव के पूर्व भी धराये जाते हैं.

इन श्रृंगार का विशेषाधिकार पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री का होता है.

Saturday, 4 November 2023

व्रज – कार्तिक कृष्ण अष्टमी

व्रज – कार्तिक कृष्ण अष्टमी
Sunday, 05 November 2023

रूपचौदस का प्रतिनिधि का श्रृंगार

प्रतिनिधि का श्रृंगार – बड़े उत्सवों के पहले उनके श्रृंगार के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि के श्रृंगार कहे जाते हैं.

इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली चतुर्दशी अर्थात रूप-चौदस या नरक चतुर्दशी को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है जिसमें हल्के चंपाई आधारवस्त्र पर सुरमा-सितारा के भरतकाम (भीम पक्षी के पंख की) से सुसज्जित पिछवाई, सुनहरी ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया है. 

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की चतुर्दशी (रूप-चौदस) को भी धराये जायेंगे. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

हमारो देव गोवर्धन पर्वत गोधन जहाँ सुखारो l
मघवाको बलि भाग न दीजे सुनिये मतो हमारो ll 1 ll
बडरे बैठ बिचार मतो कर पर्वतको बलि दीजे l
नंदरायको कुंवर लाडिलो कान्ह कहे सोई कीजे ll 2 ll
पावक पवन चंद जल सूरज वर्तत आज्ञा लीने l
या ईश्वर को कियो होत है कहा इंद्र के दीने ll 3 ll
जाके आसपास सब व्रजकुल सुखी रहे पशुपारे l
जोरो शकट अछूते लेले भलो मतो को टारे ll 4 ll
माखन दूध दह्यो घृत घृतपक लेजु चले व्रजवासी l
अद्भुत रूप धरे बलि भुगतत पर्वत सदा निवासी ll 5 ll
मिट्यो भाग सुरपति जब जान्यो मेघ दीये मुकराई l
‘मेहा’ प्रभु गिरि कर धर राख्यो नंदसुवन सुखदाई ll 6 ll

साज – श्रीजी में आज हल्के चंपाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी (फुलकसाई) ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका रुपहली ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे की प्रधानता के, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलकसाई ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा-पन्ना का सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. लूम व झोरा हीरा के आते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल आदि सर्व श्रृंगार, कस्तूरी व कली की माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व सोने के) धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का व गोटी जडाऊ चौपड़ की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर शयन समय छोटे छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर नवरत्न की किलंगी और मोती की लूम धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...