By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 30 December 2023

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्थी

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्थी
Sunday, 31 December 2023

चमक आयो चंदसो मुख कुंजते जब निकसी ।
सुंदर सांवरो किशोर गोहन लाग रहे चकोर ललितादिक कुमुदावलि निरख नयन विकसी ।।
पहिरे तन श्वेत सारी मानों शरद उजियारी  
मानों सुधासिंधु मध्य दामिनी घसी ।
कहत भगवान हित रामराय प्रभु प्यारी वश कीने कुंजविहारी छबि निरख मंद हसी ।।

पंचम (रुपहरी) घटा 

विशेष – आज श्रीजी में पाँचवीं (रुपहरी) घटा के दर्शन होंगे.
श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.
जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. 
इसी श्रृंखला में पूर्णेन्दु कुंज के भाव से आज श्रीजी में रुपहरी घटा होगी. 

साज, वस्त्र आदि सभी रुपहरी ज़री के व मालाजी श्वेत पुष्पों की होती हैं. सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है. चन्द्रमा के भाव के व बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज रुपहरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद मलमल की बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहरी ज़री का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी रुपहरी ज़री के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 एक दुलड़ा व एक सतलड़ा हार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी ज़री की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, रुपहली ज़री का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज पूरे दिन श्वेत पुष्पों की मालाजी ही धरायी जाती है. 
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. मोती की एक अन्य माला हमेल की भांति भी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर चांदी का चौखटा धराया जाता है. श्रीहस्त में चांदी के रत्नजड़ित वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट रूपहरी ज़री का व गोटी चाँदी की आती है.

Friday, 29 December 2023

व्रज – पौष कृष्ण तृतीया

व्रज – पौष कृष्ण तृतीया
Saturday, 30 December 2023

जुगल वर आवत है गठजोरें ।
संग शोभित वृषभान नंदिनी ललितादिक तृण तोरे ।।१।।
शीश सेहरो बन्यो लालकें, निरख हरख चितचोरे ।
निरख निरख बलजाय गदाधर छबि न बढी कछु थोरे ।।२।।

शीतकाल के सेहरा का द्वितीय शृंगार

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को खांड़ के रस की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को लाल रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

मोरको सिर मुकुट बन्यो मोर ही की माला l
दुलहनसि राधाजु दुल्हे हो नंदलाला ll 1 ll
बचन रचन चार हसि गावत व्रजबाला l
घोंघी के प्रभु राजत हें मंडप गोपाला ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी विवाह के सेहरा के शृंगार में एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विराजमान हैं और गोपियाँ विवाह के मंगल गीत का गान साज सहित  कर रही हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं पतंगी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. लाल ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं. 
पट लाल एवं गोटी राग रंग की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.

Thursday, 28 December 2023

व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया (द्वितीय)

व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया (द्वितीय)
Friday, 29 December 2023                               

गुलाबी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) पन्न के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
सफ़ेद पुष्पों की चार सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 27 December 2023

व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया (प्रथम)

व्रज – पौष कृष्ण द्वितीया (प्रथम)
Thursday, 28 December 2023

केसरी साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव का क़तरा एवं रूपहरी तुर्री के शृंगार

श्रीजी में सखड़ी का तृतीय (प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर का पहला) सखड़ी मंगलभोग

आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गिरधरलालजी का उत्सव है अतः प्राचीन परंपरानुसार श्रीजी प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृह से सिद्ध हो कर आते हैं.
वस्त्रों के साथ वहाँ से विशेष रूप से अनसखड़ी में सिद्ध बूंदी के लड्डुओं की छाब श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.

वर्षभर में लगभग सौलह बार द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु के घर से वस्त्र सिद्ध होकर श्रीजी में पधारते हैं.

आज श्रीजी में नियम के केसरी चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर केसरी छज्जेदार पाग के ऊपर नागफणी का कतरा व रूपहरी तुर्री धराये जाते है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

प्रीत बंधी श्रीवल्लभ पदसों और न मन में आवे हो ।
पढ़ पुरान षट दरशन नीके जो कछु कोउ बतावे हो ।।१।।
जबते अंगीकार कियोहे तबते न अन्य सुहावे हो ।
पाय महारस कोन मूढ़मति जित तित चित भटकावे हो ।।२।।
जाके भाग्य फल या कलिमे शरण सोई जन आवेहो ।
नन्द नंदन को निज सेवक व्हे द्रढ़कर बांह गहावे हो ।।३।।
जिन कोउ करो भूलमन शंका निश्चय करी श्रुति गावे हो ।
"रसिक" सदा फलरूप जानके ले उछंग हुलरावे हो ।।४।।

साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा व लूम तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते 

Tuesday, 26 December 2023

व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा
Wednesday, 27 December 2023

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीवजी (श्री दाऊबावा) का प्राकट्योत्सव

श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर किरीट मुकुट धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

पौष निर्दोष सुख कोस सुंदरमास कृष्णनौमी सुभग नव धरी दिन आज l
श्रीवल्लभ सदन प्रकट गिरिवरधरन चारू बिधु बदन छबि श्रीविट्ठलराज ll 1 ll
भीर मागध भई पढ़त मुनिजन वेद ग्वाल गावत नवल बसन भूषणसाज l
हरद केसर दहीं कीचको पार नहीं मानो सरिता वही निर्झर बाज ll 2 ll
घोष आनंद त्रियवृंद मंगल गावें बजत निर्दोष रसपुंज कल मृदुगाज l
‘विष्णुदास’ श्रीहरि प्रकट द्विजरूप धर निगम पथ दृढथाप भक्त पोषण काज ll 3 ll

श्रृंगार दर्शन – 

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की साटन की सुनहरी ज़री के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में एक ओर आरती करते श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री एवं दूसरी ओर हाथ जोड़ कर प्रभु के दर्शन करते श्री दाऊबावा का कलाबत्तू का चित्रांकन किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की साटन का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा व लाल मलमल का पटका धराये जाते हैं. टंकमा हीरा के मोजाजी व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं जिसके चारों ओर पुष्प-लताओं का चित्रांकन किया हुआ है. इस प्रकार के ठाड़े वस्त्र वर्षभर में केवल आज के दिन ही धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. सब हार के श्रृंगार धराये जाते हैं. तीन हार पाटन वाले धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर छिलमां हीरा का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है. 
कली, कस्तूरी व नीलकमल की माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
पट गोटी उत्सव की आती हैं.
आरसी शृंगार में लाल मख़मल की और राजभोग में सोना की डांडी की दीखाई जाती हैं.
 
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशर-युक्त चंद्रकला, दूधघर में सिद्ध केसर-युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं.

Monday, 25 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा
Tuesday, 26 December 2023

आज गोपाल पाहुने आये निरखे नयन न अघाय री ।
सुंदर बदनकमल की शोभा मो मन रह्यो है लुभाय री ।।१।।
के निरखूं के टहेल करूं ऐको नहि बनत
 ऊपाय री ।
जैसे लता पवनवश द्रुमसों छूटत फिर
लपटाय री ।।२।।
मधु मेवा पकवान मिठाई व्यंजन बहुत बनाय री ।
राग रंग में चतुर सुर प्रभु कैसे सुख उपजाय री ।।

नियम (घर) का छप्पन भोग, बलदेवजी (दाऊजी) का उत्सव

आज श्रीजी में नियम (घर) का छप्पनभोग है. छप्पनभोग के विषय में कई भावनाएं प्रचलित हैं.

श्रीमदभागवत के अनुसार, व्रज की गोप-कन्याओं ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने की मनोकामना लिये एक मास तक व्रत कर, प्रातः भोर में यमुना स्नान कर श्री कात्यायनी देवी का पूजा-अर्चना की. श्रीकृष्ण ने कृपा कर उन गोप-कन्याओं की मनोकामना पूर्ति हेतु सहमति प्रदान की. 
ऐसा कहा जाता है कि किसी भी व्रत के समापन के पश्चात यदि व्रत का उद्यापन नहीं किया जाये तो व्रत की फलसिद्धि नहीं होती अतः इन गोपिकाओं ने विधिपूर्वक व्रतचर्या की समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में उद्यापन स्वरूप प्रभु को छप्पनभोग अरोगाया.

गौलोक में प्रभु श्रीकृष्ण व श्री राधिकाजी एक दिव्य कमल पर विराजित हैं. 
उस कमल की तीन परतें होती हैं जिनमें प्रथम परत में आठ, दूसरी में सौलह और तीसरी परत में बत्तीस पंखुडियां होती हैं. प्रत्येक पंखुड़ी पर प्रभु भक्त एक सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं. 
इस प्रकार कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है और इन पंखुड़ियों पर विराजित प्रभु भक्त सखियाँ भक्तिपूर्वक प्रभु को एक-एक व्यंजन का भोग अर्पित करती हैं जिससे छप्पनभोग बनता है.

छप्पनभोग की मुख्य पुष्टिमार्गीय भावना यह है कि वृषभानजी के निमंत्रण पर प्रभु नन्दकुमार श्रीकृष्ण अपने ससुराल भोजन हेतु सकुटुम्ब पधारे हैं. 
वृषभानजी सबका स्वागत करते हैं एवं विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग अरोगाया जाता है. वहीँ व्रजललनाएं मधुर स्वरों में गीत गाती हैं. इसी स्वामिनी भाव से आज कई गौस्वामी बालकों के यहाँ आज प्रभु पधार कर छप्पनभोग अरोगते हैं. 
छप्पनभोग के भोग रखे जाएँ तब गदाधरदासजी का पद आसावरी राग में गाया जाता है.

श्रीवृषभान सदन भोजनको नंदादिक सब आये हो l
जिनके चरणकमल धरिवेको पट पावड़े बिछाये हो ll....

इस उपरांत भोजन के एवं बधाई के पद भी गाये जाते हैं.

एक अन्य मान्यता अनुसार श्री वल्लभाचार्य जी और श्री विट्ठलनाथजी,के वक्त सातो स्वरूप गोकुल में ही विराजते थे. अन्नकूट जति पूरा(गिरिराजजी)में होता था सातो स्वरूप पाधारते और साथ में आरोगते थे. एक बार श्रीनाथजी ने श्री गुसाईंजी सु कीनी के बावा में तो भुको रह जात हु ये सातो आरोग जात है तब आप श्री ने गुप्त रूप सु बिना अन्य स्वरूपण कु जताऐ सातो स्वरूप के भाव की विविध सामग्री(या छप्पन भोग में अनेकानेक प्रकार की सामगी,सखड़ी और अनसखड़ी में आरोगे)सिद्ध कराय आरोगायी यादिन श्रीजी में नगाड़े गोवर्धन पूजा चोक में नीचे बजे याको तात्पर्य है कि नगार खाने में ऊपर बजे तो सब स्वरूपण को खबर पड़ जाय जासु नीचे बजे ये प्रमाण है और प्रभु आप अकेले पुरो छप्पन भोग आरोगे और श्री गुसाईंजी पर ऐसे कृपा किये

पुष्टिमार्ग में प्रचलित एक अन्य प्रमुख मान्यता के अनुसार विक्रम संवत 1632 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने व्रज में गोकुल के समीप दाऊजी नामक गाँव में श्री बलदेवजी के मंदिर के जीर्णोद्धार पश्चात श्री बलदेव जी के स्वरुप को वेदविधि पूर्वक पुनःस्थापना की. 
श्री बलदेवजी को हांडा अरोगाया था. तब गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने विचार किया कि बड़े भाई (श्री बलदेवजी) के यहाँ ठाठ-बाट से मनोरथ हों और छोटे भाई (श्रीजी) के यहाँ कुछ ना हों यह तो युक्तिसंगत नहीं है अतः आपने श्रीजी को मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को छप्पनभोग अरोगाया एवं छप्पनभोग प्रतिवर्ष होवे प्रणालिका में ऐसा नियम बनाया. 

तब से श्रीजी प्रभु को प्रतिवर्ष नियम का छप्पनभोग अंगीकृत किया जाता है वहीँ श्री बलदेवजी में भी आज के दिन भव्य मनोरथ होते हैं, स्वर्ण जड़ाव के हल-मूसल धराये जाते हैं एवं गाँव में मेले का आयोजन किया जाता है.

श्रीजी में विभिन्न ऋतुओं में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथियों द्वारा भी छप्पनभोग के मनोरथ भी कराये जाते हैं. घर के छप्पनभोग और मनोरथी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं – 

नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से सात दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है.

नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक बड़ा मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है. 

नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 1 बजे खुलते हैं.

नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी व अन्य सप्तनिधि स्वरुप पधराये जा सकते हैं एवं ऐसा पूर्व में कई बार हो भी चुका है.  

नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती हैं.

श्रीजी का सेवाक्रम - श्रीजी में आज के दिन प्रातः 4.30 बजे शंखनाद होते हैं. 
उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 
सभी समय यमुनाजल की झारीजी भरी जाती है. चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
गादी तकिया आदि पर सफेदी नहीं आती. तकिया पर मेघश्याम मखमल के व गदल रजाई पीले खीनखाब के आते हैं. गेंद, चौगान और दिवाला सोने के आते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज श्रीजी को नियम के तमामी (सुनहरी) ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा के ऊपर रुपहली ज़री के गौकर्ण एवं सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा धराया जाता है. 

श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ भोग में ही छप्पनभोग के सखड़ी भोग निजमंदिर व आधे मणिकोठा में धरे जाते हैं. अनसखड़ी भोग मणिकोठा, डोल-तिबारी व रतनचौक में साजे जाते हैं.

धुप, दीप, शंखोदक होते हैं व तुलसी समर्पित की जाती है. भोग सरे उपरांत राजभोग धरे जाते हैं, नित्य का सेवाक्रम होता है और छप्पनभोग के दर्शन लगभग 12 बजे खुल जाते हैं.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख 25 बीड़ा की सिकोरी अदकी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.

आज नियम का छप्पनभोग प्रभु अकेले ही अरोगते हैं अर्थात श्री नवनीतप्रियाजी अथवा कोई अन्य स्वरुप आज श्रीजी में आमंत्रित नहीं होते. यहाँ तक कि अन्य स्वरूपों को पता ना चले इस भाव से आज नक्कार खाने में नगाड़े भी नीचे गौवर्धन पूजा के चौक में बजाये जाते हैं. 

श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु डला (विविध प्रकार के 56 सामग्रियों का एक छाब) भेजा जाता है. 

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग सरे –

कीर्तन – (राग : आशावरी)

श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll
सीतल जल कुंमकुम के जलसो सबके चरन पखारे हो ।
कर विनंती कर ज़ोर सबन सो कनकपटा बैठारे हो ।।५।।
राजत राज गोप भुवपति संग विमल वेश अहीरा हो ।
मनहु समाज राजहंसनको ज़ुरे सरोवर तीरा हो ।।६।।.....(अपूर्ण)

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की मखमल के ऊपर रुपहली ज़री से गायों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को सुनहरी (तमामी) ज़री का सूथन, चोली, चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका व मोजाजी रुपहली ज़री के व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर हीरा का किलंगी वाला सिरपैंच, रुपहली ज़री के गौकर्ण, सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है. 
हीरा का प्राचीन जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का व गोटी सोने की कूदती हुए बाघ बकरी की आती है. आरसी ग्वाल में चार झाड़ की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Sunday, 24 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी
Monday, 25 December 2023

श्रीजी में चतुर्थ (अमरसी) घटा

विशेष – आज श्रीजी में चतुर्थ (अमरसी) घटा होगी. आज की घटा नियम से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को होने वाले घर के छप्पनभोग से एक दिन पहले होती है.

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं. ये विशेष रूप से सिद्ध हो रही सामग्रियां प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं. इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज उड़द (અડદિયા) के मगद के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

यह सामग्री कल होने वाले छप्पनभोग के दिन भी अरोगायी जाएगी. 
सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : खट)

सुनोरी आज नवल वधायो है l
श्रीवल्लभगृह प्रकट भये पुरुषोत्तम जायो है ll 1 ll
नयननको फल लेउ सखी भयो मन को भायो है l
गिरिधरलाल फेर प्रगटे है भाग्य ते पायो है ll 2 ll
मणिमाला वंदन माला द्वारद्वार बंधायो है l
श्रीगोकुल में घरघरन प्रति आनंद छायो है ll 3 ll
द्विजकुल उदित चंद सब विश्वको तिमिर नसायो है l
भक्त चकोर मगन आनंदित हियो सिरायो है ll 4 ll
महाराज श्रीवल्लभजी दान देत मन भायो है l
जो जाके मन हुती कामना सो तिन पायो है ll 5 ll
जाके भाग्य फले या कलिमें तिन दरशन पायो है l
करि करुणा श्रीगोकुल प्रगटे सुखदान दिवायो है ll 6 ll
मर्यादा पुष्टिपथ थापनको आपते आयो है l
अब आनंद वधायो हैरी दुःख दूर बहायो है ll 7 ll
रानी धन्य धन्य भाग सुहागभरी जिन गोद खिलायो है l
‘रसिक’ भाग्यते प्रकट भये आनंद दरसायो है ll 8 ll   

साज – श्रीजी में आज अमरसी दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर अमरसी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को अमरसी दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी अमरसी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर अमरसी गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, अमरसी रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
तिलक बेसर हीरा के धराये जाते हैं.

रंग-बिरंगे पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट अमरसी, गोटी सोने की व आरसी शृंगार में सोने की एवं राजभोग में बटदार आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त प्रभु के श्रीमस्तक और श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं और शयन दर्शन का क्रम भीतर ही होता है.

Saturday, 23 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी
Sunday, 24 December 2023

शीतकाल की द्वितीय चौकी

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं जिन्हें प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगाया जाता है. 
इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज तवापूड़ी (इलायची, मावे व तुअर की दाल के मीठे मसाले से भरी पूरनपोली जैसी सामग्री जिसमें आंशिक रूप में कस्तूरी भी मिलायी जाती है) का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी.

उत्थापन में फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीके के स्थान पर आज छप्पनभोग के लिए सिद्ध की जा रही उड़द की दाल की कचौरी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – कीर्तन – (राग : खट)

सुनोरी आज नवल वधायो है l
श्रीवल्लभगृह प्रकट भये पुरुषोत्तम जायो है ll 1 ll
नयननको फल लेउ सखी भयो मन को भायो है l
गिरिधरलाल फेर प्रगटे है भाग्य ते पायो है ll 2 ll
मणिमाला वंदन माला द्वारद्वार बंधायो है l
श्रीगोकुल में घरघरन प्रति आनंद छायो है ll 3 ll
द्विजकुल उदित चंद सब विश्वको तिमिर नसायो है l
भक्त चकोर मगन आनंदित हियो सिरायो है ll 4 ll
महाराज श्रीवल्लभजी दान देत मन भायो है l
जो जाके मन हुती कामना सो तिन पायो है ll 5 ll
जाके भाग्य फले या कलिमें तिन दरशन पायो है l
करि करुणा श्रीगोकुल प्रगटे सुखदान दिवायो है ll 6 ll
मर्यादा पुष्टिपथ थापनको आपते आयो है l
अब आनंद वधायो हैरी दुःख दूर बहायो है ll 7 ll
रानी धन्य धन्य भाग सुहागभरी जिन गोद खिलायो है l
‘रसिक’ भाग्यते प्रकट भये आनंद दरसायो है ll 8 ll   

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की साटन (Satin) की लाल रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. हांशिया के दोनों ओर रुपहली ज़री की किनारी लगी होती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग की साटन (Satin) का लाल गॉट वाला सूथन, चोली, घेरदार वागा तथा मोजाजी धराये जाते हैं. घेरदार वागा, लाल किनारी से सुसज्जित होते हैं. मोजाजी भी लाल फून्दों से सुसज्जित होते हैं. लाल दरियाई वस्त्र के बन्ध धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, दोहरा मोर कतरा सुनहरी दोहरी फोदना को एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज त्रवल की जगह कंठी धराई जाती हैं.श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में सुआ के वेणुजी एवं वेत्रजी धरायी जाती हैं.   
पट हरा एवं गोटी सोना की आती है.

Friday, 22 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल (एकादशी तिथि क्षय) द्वादशी (मोक्षदा एकादशी व्रत)

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल (एकादशी तिथि क्षय) द्वादशी (मोक्षदा एकादशी व्रत)
Saturday, 23 December 2023

स्वेत साटन के चागदार वागा लाल रूमाल एवं श्रीमस्तक पर लसनिया का जड़ाऊ कूल्हे पर पगा का पान व टीपारा का साज के शृंगार

मोक्षदा एकादशी (गीता जयंती)

ब्रह्म पुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है. द्वापर युग में प्रभु श्रीकृष्ण ने आज के ही दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था, इसीलिए आज का दिन गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है.

आज की  एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है, इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है, इसीलिए प्रभु श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं "मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूं" इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था.

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं जिन्हें प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगाया जाता है. 
इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज माखनबड़ा का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी.

आज का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु किरीट, खोंप, सेहरा अथवा टिपारा धराया जाता है. रुमाल एवं गाती का पटका भी धराया जाता है. श्रृंगार जड़ाऊ का धराया जाता है. 

आज श्रीजी को श्वेत साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लसनिया का जड़ाऊ कूल्हे पगा का साज धराया जाएगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

देखो अद्भुत अविगतकी गति कैसो रूप धर्यो है हो ।
तीन लोक जाके उदर बसत है सो सुप के कोने पर्यो है ।।१।।
नारदादिक ब्रह्मादिक जाको सकल विश्व सर साधें हो ।
ताको नार छेदत व्रजयुवती वांटि तगासो बाँधे ।।२।।
जा मुख को सनकादिक लोचत सकल चातुरी ठाने ।
सोई मुख निरखत महरि यशोदा दूध लार लपटाने ।।३।।
जिन श्रवनन सुनी गजकी आपदा गरुडासन विसराये ।
तिन श्रवननके निकट जसोदा गाये और हुलरावे ।।४।।
जिन भूजान प्रहलाद उबार्यो हरनाकुस ऊर फारे ।
तेई भुज पकरि कहत व्रजगोपी नाचो नैक पियारे ।।५।।
अखिल लोक जाकी आस करत है सो  माखनदेखि अरे है ।
सोई अद्भुत गिरिवरहु ते भारे पलना मांझ परे है ।।६।।
सुर नर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधि न टारी ।
सोई प्रभु सूरदास को ठाकुर गोकुल गोप बिहारी ।।७।।

साज – श्रीजी में आज गोपीजन की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्वेत रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चागदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं एवं लाल रंग का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लसनिया का जड़ाऊ कूल्हे पर पगा का पान के ऊपर टीपारा का साज़ (मध्य में चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं आती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजीधराये जाते हैं.
पट श्वेत व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.

सभी समां के कीर्तन
मंगला - महा महोच्छव श्री गोकुल गाम 
राजभोग - देखो अद्भुत अवगत की गत
आरती - विट्ठलनाथ बसत हिय जाके
शयन - भक्ति सुधा बरखत ही प्रकटे
मान - हों तो सों अब कहा कहु आली 
पोढवे - रूच रूच सेज बनाई

Thursday, 21 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी
Friday, 22 December 2023

गुलाबी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

प्रीत बंधी श्रीवल्लभ पदसों और न मन में आवे हो ।
पढ़ पुरान षट दरशन नीके जो कछु कोउ बतावे हो ।।१।।
जबते अंगीकार कियोहे तबते न अन्य सुहावे हो ।
पाय महारस कोन मूढ़मति जित तित चित भटकावे हो ।।२।।
जाके भाग्य फल या कलिमे शरण सोई जन आवेहो ।
नन्द नंदन को निज सेवक व्हे द्रढ़कर बांह गहावे हो ।।३।।
जिन कोउ करो भूलमन शंका निश्चय करी श्रुति गावे हो ।
"रसिक" सदा फलरूप जानके ले उछंग हुलरावे हो ।।४।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) नवरत्न के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
सफ़ेद पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
नवरत्न के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 20 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी 
Thursday, 21 December 2023
          
 तृतीय घटा (लाल), प्रभुचरण श्री गुसांईजी के उत्सव की झांझ की बधाई बैठे

श्रीमद वल्लभ रूप सुरंगे l
अंग अंग प्रति भावन भूषण वृन्दावन संपति अंगे अंगे ll 1 ll
दरस परस गिरिधर जू की नाई एन मेन व्रज राज ऊछंगे l
पद्मनाभ देखे बनि आवे सुधि रही रास रसाल भ्रू भंगे ll 2 ll

प्रभुचरण श्री गुसांईजी के उत्सव की झांझ की बधाई बैठवे की बधाई 

विशेष – आज प्रभुचरण श्री गुसांईजी के उत्सव की झांझ की बधाई पंद्रह दिवस की बैठती है.

आज से आगामी पंद्रह दिवस तक प्रतिदिन सभी दर्शनों में झांझ बजायी जाती है. श्री महाप्रभुजी की, जन्माष्टमी की एवं श्री गुसांईजी की बधाईयाँ गायी जातीं हैं.
आज से पौष कृष्ण नवमी तक श्री ठाकुरजी को श्याम, नीले, बादली आदि अमंगल रंगों के वस्त्र नहीं धराये जाते हैं एवं अशुभ में गये सेवक की दंडवत (सेवा में पुनः प्रवेश) भी वर्जित है. 

बधाई बैठवे के भाव से आज श्रीजी में लाल घटा के दर्शन होंगे. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

धन्य जशोदा भाग्य तिहारो जिन ऐसो सुत जायो l
जाके दरस परस सुख उपजत कुलको तिमिर नसायो ll 1 ll
विप्र सुजान चारन बंदीजन सबै नंदगृह आये l
नौतन सुभग हरद दूब दधि हरखित सीस बंधाये ll 2 ll
गर्ग निरुप किये सुभ लच्छन अविगत हैं अविनासी l
‘सूरदास’ प्रभुको जस सुनिकें आनंदे व्रजवासी ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी लाल रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लाल रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में माणक के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी रंग के पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल व गोटी चांदी की आती है.

सभी समां के कीर्तन
मंगला से श्रृंगार तक - ब्रज भयो महर के पूत राजभोग- धन्य यशोदा भाग्य तिहारो 
आरती - धर्म ही ते पायो यह धन 
शयन - श्रीमद् वल्लभ रूप सुरंगे 
मान - लाल तोहे नेनन ही में राखो

Tuesday, 19 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी
Wednesday, 20 December 2023

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप का उत्सव

सभी वैष्णवों को नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप के उत्सव की बधाई

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप के उत्सव का दिवस है. श्री गोवर्धनेशजी महाराज श्री ने मेवाड़ में सर्वप्रथम वि.सं.1796 में आज के दिन सप्तस्वरूपोत्सव किया था.
 
श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. गेंद, चौगान, दिवाला आदि सोने के आते हैं.

सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है. 

श्रीजी को नियम के लाल खीनखाब के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे धरायी जाती है. 

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं. 
ये विशेष रूप से सिद्ध हो रही सामग्रियां प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं. 
इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज दहीथड़ा (दही के मोयन युक्त खस्ता ठोड़) का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी. 

इसके अतिरिक्त उत्सव भाव से श्रीजी को आज विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

साज – आज श्रीजी में गहरे लाल रंग के मखमल के वस्त्र के ऊपर कांच के टुकड़ों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल खीनख़ाब की बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग का सुनहरी ज़री के बूटों वाला खीनख़ाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. पटका केसरी धराया जाता है.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं जड़ाव सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सबकी माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी जड़ाऊ व आरसी चार झाड की आती है.

Monday, 18 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी
Tuesday, 19 December 2023

श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का उत्सव है.
पुष्टिसम्प्रदाय के हितों के रक्षणकर्ता, श्री वल्लभ के सिद्धांतों को वार्ता आदि के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने वाले श्री गोकुलनाथजी का यह पुष्टिमार्ग सदा ऋणी रहेगा.

ऐसे पुष्टि के यश स्वरुप वैष्णव प्रिय श्री गोकुलनाथजी के प्राकट्योत्सव की बधाई

श्री गोकुलनाथजी ने श्रीजी को मुकुट, कुल्हे, मोजाजी एवं तोड़ा आदि जड़ाव स्वर्ण के भेंट किये थे उसमें से आज जड़ाव की कुल्हे एवं मोजाजी प्रभु को धराये जाते हैं.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

अनसखड़ी में राजभोग में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं. 
राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.

राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरणकमल पावन त्रैलोक करण दरस परस सुंदर वर वार वार वंदे ।
समरथ गिरिराज धरण लीला निज प्रकट करण संतन हित मानुषतनु वृंदावन चंदे ।।१।।
चरणोदक लेत प्रेत ततक्षण ते मुक्त भये करूणामय नाथ सदा आनंद निधि कंदे ।
वारते भगवानदास विहरत सदा रसिकरास जय जय यश बोल बोल गावते श्रुति छंदे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल मखमल के आधारवस्त्र के ऊपर सुरमा सितारा की, कशीदे की पुष्प-लताओं के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन के छापा के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं जड़ाऊ मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. जड़ाऊ मोजाजी के ऊपर लाल रंग के फूंदे शोभित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. त्रवल नहीं धराये जाते परन्तु टोडर धराया जाता है. आज श्रीकंठ में बघनखा भी धराया जाता है.
श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में माणक के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (माणक व हीरा) धराये जाते हैं.
आरसी चार झाड की, पट उत्सव का व गोटी सोने की जाली की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार, जड़ाऊ मोजाजी व कुल्हे बड़े किये जाते हैं. आभरण छेड़ान के धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे व मोजाजी भी लाल छापा के ही धराये जाते हैं.

Sunday, 17 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी
Monday, 18 December 2023

पीले साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर दुरंगी गोल पाग पर क़तरा या चंद्रिका के शृंगार 

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पीले साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर दुरंगी गोल पाग पर क़तरा या चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

चलरी सखी नंदगाम जाय बसिये ।खिरक खेलत व्रजचन्दसो हसिये ।।१।।
बसे पैठन सबे सुखमाई ।
ऐक कठिन दुःख दूर कन्हाई ।।२।।
माखनचोरे दूरदूर देखु ।
जीवन जन्म सुफल करी लेखु ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा ।
कठिन प्रीति परमानंद दासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज पीले रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर दुरंगी (गुलाबी व फ़िरोज़ी) गोल पाग के ऊपर सिरपैंच,क़तरा या चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Saturday, 16 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी
Sunday, 17 December 2023

श्रीजी में श्रीनवनीतप्रियाजी का द्वितीय मंगलभोग, श्री मदनमोहनजी (कामवन) का पाटोत्सव

आज श्रीजी को पतंगी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की किनारी के फूलों से सुसज्जित सूथन, चोली घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

सुन मेरो वचन छबीली राधा, तै पायो रससिन्धु अगाधा ।।१।।
जे रस निगम नेति नेति भाख्यो ताकौ ते अधरामृत चाख्यो ।।२।।
शिव विरंचि के ध्यान न आवे,ताकौ कुंजनि कुसुम बिनावे ।।३।।
तू वृषभानु गोपकी बेटी मोहनलाल को भावते भेटी ।।४।।
तेरो भाग्य नहि कहत आवे कछुक रस परमानंद पावे ।।५।।

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का सुनहरी ज़री के पुष्पकाम के वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते है.

श्रीमस्तक पर हीरा की जड़ाऊ गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चमकनी गोल-चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में झुमका के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 लाल रंग एवं श्वेत रंग के पुष्पों की दो अत्यंत सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी ( भाभीजी वाले) धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा की पाग बड़ी कर के गुलाबी गोल पाग धरा कर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Friday, 15 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी
Saturday, 16 December 2023
                                
 शीतकाल के सेहरा को प्रथम शृंगार

मंगल भीनी प्यारी रात। 
नवल रंग देखो, देखो कुंज सुहात ।।ध्रु।। 
दुल्हनि प्यारी राधिका दुल्हे नंद सुजान । 
ब्याह रच्यो संकेत सदन ललिता रचित बितान ।। 
चहल पहल आनंद महेलमें जों न रूप दरसात । 
दुलहनिको मुख निरखके पिय ईकटक रही जात।। 
अंस भुजा कर दोऊ चलत हंसगती चाल । 
गावत मंगल रीत सों चलेहें भावते भवन ।। 
कुसुम सेज विहरत दोऊ जहां न कोऊ पांस । 
यह जोरी छबी देख कें बल बल "नागरीदास"।। 
मंगल भीनी प्यारी रात ।।

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को साठा के रस की लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विवाह के सेहरा के शृंगार में विराजमान हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. केसरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट केसरी एवं गोटी उत्सव की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं पर दुमाला बड़ा नहीं किया जाता हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर  दुमाला पर टिका एवं सिरपेच धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.
अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Thursday, 14 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया
Friday, 15 December 2023

बैंगनी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल बाँकी चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को बैंगनी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल बाँकी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

चलरी सखी नंदगाम जाय बसिये ।खिरक खेलत व्रजचन्दसो हसिये ।।१।।
बसे पैठन सबे सुखमाई ।
ऐक कठिन दुःख दूर कन्हाई ।।२।।
माखनचोरे दूरदूर देखु ।
जीवन जन्म सुफल करी लेखु ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा ।
कठिन प्रीति परमानंद दासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज बैंगनी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बैंगनी रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर बैंगनी छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच,गोल बाँकी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी व गोटी चाँदी की और आरसी नित्य की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 13 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया
Thursday, 14 December 2023

    दूज को चंदा (चंदा उगे को श्रृंगार) 
                                                  
बनठन कहां चले अैसी को मन भायी सांवरेसे कुंवर कन्हाई ।
मुख तो सोहे जैसे दूजको चंदा छिप छिप देत दिखाई ।।१।।
चले ही जाओ नेक ठाड़े रहो किन अैसी शिख शिखाई ।
नंददास प्रभु अबन बनेगी निकस जाय ठकुराई ।।२।।

( आज शयन समय प्रभु के सनमुख गाये जाने वाला अद्भुत कीर्तन )

विशेष – नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी की भावना के आधार पर चन्द्रमा के पदों पर आधारित यह ‘पांच चन्द्र (पिछवाई पर, कतरा में, शीशफूल में, वक्षस्थल पर और स्वयं श्रीप्रभु का मुखचंद्र)’ (दूज को चंदा) चंदा उगे को शृंगार विक्रम संवत १९७४ में आज के दिन किया था. 
तब से प्रतिवर्ष यह श्रृंगार आज के दिन धराया जाता है. 

इस श्रृंगार के पीछे यह भावना है कि बालक श्रीकृष्ण ने मैया यशोदाजी से चन्द्रमा को लेने की जिद की तब यशोदाजी ने उन्हें ये पांच चंद्रमा बताये.

इसकी अन्य भावना यह है कि स्वामिनीजी नंदालय में आधा नीलाम्बर ओढ़कर अपने चन्द्र स्वरुप प्राण प्रिय प्रभु के दर्शन कर रहीं हैं. 
प्रभु के चन्द्र समान मुखारविंद के भाव से यह श्रृंगार धराया जाता है (इस भाव का कीर्तन नीचे देखें). 

सभी घटाओं की भांति आज भी श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

आधो मुख नीलाम्बरसो ढांक्यो बिथुरी अलके सोहे l
एक दिसा मानो मकर चांदनी घन विजुरी मन मोहे ll 1 ll
कबहु करपल्लवसो केश निवारत निकसत ज्यों शशि जोहे l
‘सूरदास’ मदनमोहन ठाड़े निहारत त्रिभुवन में उपमा को है ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज धरायी जाने वाली श्याम मखमल की पिछवाई में चन्द्रमा एवं तारों का सलमा-सितारा का रुपहली ज़रदोज़ी का काम किया हुआ है. श्री स्वामिनीजी एवं श्री चन्द्रावलीजी दोनों प्रभु के दोनों ओर फ़िरोज़ी रंग का नीलाम्बर ओढ़ कर खड़े हैं ऐसा सुन्दर चित्रांकन पिछवाई में किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज बिना किनारी का रुपहली ज़री का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का परन्तु कलात्मक श्रृंगार धराया जाता है. मोती के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर आज विशिष्ट श्रृंगार किया जाता है. रुपहली ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, चन्द्र घाट का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल के ऊपर भी चन्द्रमा धराया जाता है. 
श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. 
दूज के चंद्रमा के आकार का जड़ाव स्वर्ण का हांस (जुगावाली) धराया जाता है एवं वक्षस्थल पर चन्द्रहार धराया जाता है.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 

सभी समय सफेद मनका की माला आती है. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट रुपहली ज़री का व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

आज दिनभर सभी समय में चन्द्रमा के भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.
शयन समय एक अद्भुत कीर्तन प्रभु सम्मुख गाया जाता है -
बन ठन कहाजु चले लाल ऐसी को मन भायी
सांवरे हो कुंवर कनहाई...

आज के दिन भी संध्या-आरती व शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में हीरे के आभरण व प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है.

Tuesday, 12 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा
Wednesday, 13 December 2023
                  
हरे साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर पचरंगी पाग और जमाव का क़तरा एवं  रूपहरी तुर्री के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरे साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर पचरंगी पाग और जमाव का क़तरा एवं  रूपहरी तुर्री का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

अबही डार देरे ईडुरिया मेरी पचरंगी पाटकी ।
हाहाखात तेरे पैया परत हो इतनो लालच मोहि मथुरा नगरके हाटकी ।।१।।
जो न पत्याऊ जाय किन देखो मनमोहन हैज़ु नाटकी ।
मदन मोहन पिय झगरो कौन वध्यो सो देखेंगी लुगाई वाटकी ।।२।।

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका पीले मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र केसरी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पचरंगी पाग के ऊपर सिरपैंच और जमाव का क़तरा व रूपहरी तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल की धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. रेशम की लूम धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Monday, 11 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या
Tuesday, 12 December 2023

अरि हों श्याम रंग रंगी ।
रिझवे काई रही सुरत पर सुरत मांझ पगी ।।१।।
देख सखी अेक मेरे नयनमें बैठ रह्यो करी भौन ।
घेनु चरावन जात वृंदावन सौंधो कनैया कोन ।।२।।
कौन सुने कासौ कहे सखी कौन करे बकवाद ।
तापे गदाधर कहा कही आवे गूंगो गुड़को स्वाद ।।३।।

द्वितीय (स्याम) घटा

विशेष – श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं.

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं.

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में श्याम कुंज के भाव से आज श्रीजी में श्याम घटा होगी. 

आज सभी साज, वस्त्र, श्रृंगार आदि श्याम रंग के होते हैं. कीर्तन भी श्याम घटा की भावना के ऐसे गाये जाते हैं जिनमें ‘श्याम’ शब्द आवे अथवा ‘श्याम’ का नाम आवे. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll 

स्यामा स्याम आवत कुंज महल ते रंगमगे-रंगमगे ।
मरगजी वनमाल सिथिल कटि किंकिन, अरुन नैन मानौं चारौ जाम जगे ।।१।।
सब सखी सुघराई गावत बीन बजावत, सब सुख मिली संगीत पगे ।
श्रीहरिदास के स्वामी स्याम कुंजबिहारी  की कटाक्ष सों कोटि काम दगे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग की साटन (दरियाई) की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर श्याम बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम रंग की साटन (दरियाई) का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी श्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, रुपहली दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. एक हार एवं पंचलड़ा धराया जाता है.
श्वेत रंग के पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. सभी समाँ में तुलसी की माला धरायी जाती है. हीरा की हमेल भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के हीरा के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

आज के दिन विशेष रूप से संध्या-आरती व शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में हीरे के आभरण व प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है.

Sunday, 10 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी (त्रयोदशी क्षय)

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी (त्रयोदशी क्षय)
Monday, 11 December 2023

श्री गुसांईजी के सप्तम लालजी श्री घनश्यामजी का प्राकट्योत्सव (त्रयोदशी क्षय से आज चतुर्दशी को)

विशेष – आज श्री गुसांईजी के सप्तम लालजी श्री घनश्यामजी का प्राकट्योत्सव है. श्री गुसांईजी ने आपको श्री मदनमोहनजी का स्वरुप सेवा हेतु प्रदान किया था. 

आज श्री घनश्यामजी की ओर से श्रीजी को कुल्हे जोड़ का श्रृंगार धराया जाता है. 
श्री घनश्यामजी षडऐश्वर्य में वैराग्य के स्वरुप थे अतः प्रभु को मयूरपंख की जोड़, प्रभु में आपका अनुराग था अतः अनुराग के भाव के लाल वस्त्र एवं उभय स्वामिनी जी के भाव से पीले ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 

आज गोपमास के भाव से श्री नवनीतप्रियाजी और कई अन्य कई पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में विशेष रूप से उड़द दाल की कचौरी अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पन्ना की जडाऊ कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
इसके अतिरिक्त आज गोपीवल्लभ भोग में ही श्री नवनीतप्रियाजी में से उड़द दाल की कचौरी व छुकमां दही श्रीजी के भोग हेतु आते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

श्री गुसांईजी के सभी पुत्रों के उत्सव सातों गृहों में मनाये जाते हैं अतः आज द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी एवं तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु सामग्री आती है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल साटन की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं इसी प्रकार के टंकमां हीरा के काम वाले मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (सोने व पन्ना के) धराये जाते हैं. 
पट लाल एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे धरायी जाती है परन्तु लूम तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Saturday, 9 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी (द्वितीय)

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी (द्वितीय)
Sunday, 10 December 2023

प्रथम द्वादशी (चोकी) के शृंगार

आज प्रभु को बैंगनी घेरदार वस्त्र पर सुनहरी ज़री की फतवी (आधुनिक जैकेट जैसी पौशाक) धरायी जाती है. प्रभु की कटि (कमर) पर एक विशेष हीरे का चपड़ास (गुंडी-नाका) श्रीमस्तक पर सुनहरी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर लूम की सुनहरी किलंगी धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l
नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll
जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l
मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll
दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l
कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में बेंगनी रंग की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बैंगनी रंग का बिना  किनारी का सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं सुनहरी ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. सुनहरी एवं बैंगनी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी रंग के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.आज फ़तवी धराए जाने से कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में हीरा की मुठ के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी एवं गोटी सोना की छोटी आती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. अनोसर में श्रीमस्तक पर चीरा रहता हैं एवं आड़ी एवं ठाड़ी लड़ धरायी जाती हैं.लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Friday, 8 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी (प्रथम)

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी (प्रथम)
Saturday, 09 December 2023

उत्पति एकादशी व्रत

बात हिलगही कासों कहिये।
सुनरी सखी बिवस्था या तनकी समझ समझ मन चुप करी रहिये ॥१॥ 
मरमी बिना मरम को जाने यह उपहास जग जग सहिये।
चतुर्भुजप्रभु गिरिधरन मिले जबही, तबही सब सुख पहिये ॥२॥

आज का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु किरीट, खोंप, सेहरा अथवा टिपारा धराया जाता है. रुमाल एवं गाती का पटका भी धराया जाता है. श्रृंगार जड़ाव का धराया जाता है. 

आज की सेवा श्री ललिता जी की सखी कुंजरी जी की ओर से होती है.

आज श्रीजी को कत्थई रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा, फ़िरोज़ी छापा का गाती का रुमाल (पटका) एवं श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ा के टीपारा का साज धराया जाएगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ।
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुण निधान जानबुझ एक तान चूक के बजाई ।। १ ।।
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन अति नवीन रूप सहित वही तान सूनाई ।
वल्लभ गिरिधरनलाल रीझ दई अंकमाल
कहत भले भले लाल सुंदर सुखदाई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज कत्थाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कत्थाई रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं एवं फ़िरोज़ी छापा का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हारे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा के टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोर-चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धरायी जाती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी और दो (एक सोना का) वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट कत्थई व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का टीपारा एवं रूमाल बड़ा करके छज्जेदार पाग धराई जाती हैं. लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Thursday, 7 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी
Friday, 08 December 2023

( उत्पति एकादशी व्रत कल 9 दिसंबर द्वादशी को)

केसरी साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर तिरंगी पाग और जमाव का क़तरा एवं रूपहरी तुर्री के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

प्रीत बंधी श्रीवल्लभ पदसों और न मन में आवे हो ।
पढ़ पुरान षट दरशन नीके जो कछु कोउ बतावे हो ।।१।।
जबते अंगीकार कियोहे तबते न अन्य सुहावे हो ।
पाय महारस कोन मूढ़मति जित तित चित भटकावे हो ।।२।।
जाके भाग्य फल या कलिमे शरण सोई जन आवेहो ।
नन्द नंदन को निज सेवक व्हे द्रढ़कर बांह गहावे हो ।।३।।
जिन कोउ करो भूलमन शंका निश्चय करी श्रुति गावे हो ।
"रसिक" सदा फलरूप जानके ले उछंग हुलरावे हो ।।४।।

साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर तिरंगी पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा व रेशम की लूम रूपहरी तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 6 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी
Thursday, 07 December 2023

प्रथम घटा (हरी)

विशेष – श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 
इनमें कुछ घटाएँ नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ ऐच्छिक है जो खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –
अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में हरित कुंज के भाव से आज श्रीजी में हरी घटा होगी. 

इसका एक भाव और है कि प्रभु श्री श्यामसुंदर नीलवर्ण हैं और श्री स्वामिनी पीत वर्ण. दोनों वर्णों के मिलने से हरा रंग बनता हैं अतः आज सर्वप्रथम हरी घटा होती है. 

साज, वस्त्र, श्रृंगार, मालाजी आदि सभी हरे रंग के होते हैं. 
कीर्तन भी हरी घटा की भावना के गाये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

मेरो माई हरि नागर सो नेह l
एक बैर कैसे छूटत है पूरब बढ्यो सनेह ll 1 ll
अंग अंग निपुन बन्यो जदुनंदन श्याम बरन सब देह l
जबते दृष्टि परे नंद नंदन विसर्यो गेह ll 2 ll
कोऊ निंदो कोऊ वंदौ मो मन गयो संदेह l
सरिता सिंधु मिलि ‘परमानंद’ भयो एक रस नेह ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज हरे रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर हरी बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग के दरियाई वस्त्र का रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार, एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी हरे रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, हरा रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 

श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
हरे रंग के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी हरे मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

आज के दिन विशेष रूप से शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है. इसी प्रकार आगामी अमावस्या को भी श्याम घटा के दिन भी विशेष रूप से शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. उसके बाद की सभी घटाओं में शयन के दर्शन बाहर होते ही नहीं अतः यह आनंद केवल दो घटाओं में ही प्राप्त हो सकता है.

Tuesday, 5 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी
Wednesday, 06 December 2023

शीतकाल का प्रथम सखड़ी मंगलभोग

आज की सेवा श्री कृष्णावतीजी की ओर से होती है. आज विशेष रूप से मोती के काम वाले वस्त्र, गोल-पाग एवं श्रृंगार आदि नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराजश्री की आज्ञा से धराये जाते हैं. 
कीर्तन भी मोती की भावना वाले गाये जाते हैं.

कल मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को श्रीजी में प्रथम (हरी) घटा होगी.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

मोती तेहू ठोर सबरारे l
जबहि तेरे गई चितवत उत जब नंदलाल पधारे ll 1 ll
अर्ध प्रोवत म श्याम मनोहर निकसे आय सवारे l
आधी लट कर लेव चली है जित व्रजनाथ सिधारे ll 2 ll
‘दास चतुर्भुज’ प्रभु चित्त चोर्यो गेह के काज बिसारे l
गिरिधरलाल भेंट बनमें तृन तौर सबै व्रत डारे ll 3 ll

साज – श्रीजी को आज श्याम रंग की साटन की, रुपहले मोतियों की बूटियों वाली तथा रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को श्याम रंग की साटन के ऊपर ‘बसरा’ के मोतियों के सुन्दर काम वाला सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की मोती के काम वाली गोल-पाग, सिरपैंच, दोहरा मोतियों का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में मोती के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Monday, 4 December 2023

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी
Tuesday, 05 December 2023

श्रीविठ्ठलनाथजुके आज बधाई ।
मार्गशिर कृष्ण अष्टमीको शशी उदयो पूरण माई ।।१।।
पूरे चोक धाम मोतिनके बंदनवार बंधाई ।
ध्वजा पताका दीप कलश सज धूप सुगंध महाई ।।२।।
बाजत ढोल निशान नगारे झांझ झमक सहनाई ।
गगन विमानन छाय रह्यो है देव कुसुम बरखाई ।।३।।
श्रुति मुख बोलत जय जय बोलत डोलत चहुर्दिश धाई ।
रसिकदास मतिहीन दीन अति गोविंद नाम कहाई ।।४।।

श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव है. (विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

श्री गुसांईजी के सभी सात लालजी के प्राकट्योत्सव सभी सात गृहों में उत्सववत मनाये जाते हैं.

नियम के वस्त्र पीले साटन के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर पीले कुल्हे पर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है.

आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. 

वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.
साथ ही आज प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु जलेबी के टूक की सामग्री आती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोवल्लभ गोवर्धन वल्लभ श्रीवल्लभ गुन गिने न जाई l
भुवकी रेनु तरैया नभकी घनकी बूँदें परति लखाई ll 1 ll
जिनके चरन कमल रज वन्दित संतन होत सदा चितचाई l
‘छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल’ नंदनंदन की सब परछाई ll 2 ll  

साज – श्रीजी में आज पीली साटन के वस्त्र पर कत्थइ(मैरून) हांशिया वाली एवं रुपहली ज़री की चौकड़ी की सज्जा वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को पिले साटन का सुनहरी तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं जडाऊ मोजाजी (गोकुलनाथजी के) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे (गोकुलनाथजी की) के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पीला, गोटी श्याम मीना की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.  

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीजी के श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े किये जाते हैं और श्रीकंठ में छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं वहीँ श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे के स्थान पर केसरी कुल्हे व जड़ाव मोजाजी के स्थान पर केसरी मोजाजी धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं. 

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी  Friday, 07 March 2025 होलकाष्टकारंभ विशेष –आज से होलकाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होली के आठ दिन पूर्व शुरू होने व...