व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्थी
Sunday, 28 April 2024
पहर री माल गुलाब सुगंधकी ले राधे मोहन तोहे दीनी ।
अबही उर ते उतार लइ है अपने अंगराग रस भीनी ।।१।।
मान निहोरी निहारी नयन भर हंस गही हाथ सखीपे लीनी ।
सूर कहे जिन गहरु कर भामिनि गिरिधर छेल तोपे बस कीनी ।।२।।
गुलाबी मलमल के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा के शृंगार
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : नट)
नातर लीला होती जूनी।
जो पै श्रीवल्लभ प्रकट न होते वसुधा रहती सूनी।।१।।
दिनप्रति नईनई छबि लागत ज्यों कंचन बिच चूनी।
सगुनदास यह घरको सेवक जस गावत जाको मुनी।।२।।
साज – श्रीजी में आज गुलाबी मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
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