By Vaishnav, For Vaishnav

Friday, 31 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण नवमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण नवमी
Saturday, 01 June 2024

यमुना दशमी

विशेष - आज यमुना दशमी है. यमुनाजी के भाव का उत्सव होने के कारण आज आरती दो समय की थाली में की जाती है.

वस्त्रों में प्रभु को नियम से श्वेत मलमल का आड़बंद और श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल का श्याम झाईं वाला फेंटा धराये जाते हैं. आज प्रभु को जाली वाला तानिया धराया जाता है व पिछवाई दूधिया घांस-फूस की आती है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
राजभोग की सखड़ी में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं.

खंडरा प्रकार प्रसिद्द गुजराती व्यंजन खांडवी का ही रूप है. इसे सिद्ध करने की प्रक्रिया व बहुत हद तक उससे प्रेरित है, केवल खंडरा सिद्ध कर उन्हें घी में तला जाता है फिर अलग से घी में हींग-जीरा का छौंक लगाकर खांड का रस पधराया जाता है और तले खंडरा उसमें पधराकर थोडा नमक डाला जाता है. प्रभु सेवा में इस सामग्री को खंडरा की कढ़ी कहा जाता है और यह सामग्री वर्ष में कई बार बड़े उत्सवों पर व विशेषकर अन्नकूट पर अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

पनिया न जेहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकिके पटकी l
ठीक दुपहरीमें अटकी कुंजनमें कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll
कहारी करो कछु बस नहि मेरो नागर नटसों अटकी l
‘नंददास’ प्रभुकी छबि निरखत सुधि न रही पनघटकी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में दूधिया रंग की घास फूस की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को जालीदार तनिया एवं श्वेत मलमल का आड़बंद धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. पौंची आदि लड़ की धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल की श्याम झाईं के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख के दोहरा कतरा (खंडेला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ श्वेत पुष्पों की दो मालाएँ हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा-जमुनी (सोने-चांदी) के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

Thursday, 30 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी  
Friday, 31 May 2024

चंदन की चोली एवं कली के आभरन
का मनोरथ

विशेष- आज राजभोग में आभरन बड़े करके चंदन की चोली एवं कली के आभरन धराए जायेंगे.

ऊष्णकाल में सूर्य जब रोहिणी नक्षत्र में होवे तब शीतोपचारार्थ चंदन की गोली, चंदन की चोली, लपट-झपट, ख़स-खाना, जल-विहार, शीतल जल से स्नान (संध्या में) आदि प्रशस्त (उत्तम) माने गए हैं.

आज श्रीजी को चंदन की चोली धरायी जाएगी. इसके साथ चंदनिया रंग का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर चिनमा (तह वाला) पगा धरायी जाएगी. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

चंदन को वागो पहिरे चंदन की खोर कीये, चंदन के रुखतरे ठाड़े पिय प्यारी l
चंदन की पाग शिर चंदन को फेंटा, बन्यो चंदन की चोली तन चंदन की सारी ll 1 ll
चंदन की आरसी ले निरखत दोऊ जन हंस हंस गिर जात भरत अंकवारी l
‘सूरदास’ मदन मोहन चंदभवनमें बैठे, गावत सारंग राग रंग रह्यो भारी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसर एवं चंदन मिश्रित चंदनी रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसर मिश्रित चंदनिया रंग की मलमल की चोली एवं पिछोड़ा धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चंदनिया रंग की चिनमा पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट एवं गोटी ऊष्णकाल के आते है.

राजभोग में आभरन बड़े करके चंदन की चोली एवं कली के आभरन धराए जाते हैं.

Wednesday, 29 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी
Thursday, 30 May 2024

शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर तुर्रा के शृंगार, ऊष्णकाल का प्रथम अभ्यंग

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

भलेई मेरे आये हो पिय 
भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l
शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll
भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll

 साज - श्रीजी में आज शीतल भाव की कमल की चितराम की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती रंग की मलमल की गोल छोर वाली रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.

शृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में मोती का चोलड़ा धराया जाता हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Tuesday, 28 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण शष्ठी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण शष्ठी
Wednesday, 29 May 2024

श्वेत मलमल के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज धरी गिरधर पिय धोती
अति झीनी अरगजा भीनी पीतांबर घन दामिनी जोती ll 1 ll
टेढ़ी पाग भृकुटी छबि राजत श्याम अंग अद्भुत छबि छाई l
मुक्तामाल फूली वनराई, 'परमानंद' प्रभु सब सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल के धोती एवं पटका धराये जाते है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Monday, 27 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी
Tuesday, 28 May 2024

चंदन की चोली एवं कली के आभरन
का मनोरथ

विशेष- आज राजभोग में आभरन बड़े करके चंदन की चोली एवं कली के आभरन धराए जायेंगे.

ऊष्णकाल में सूर्य जब रोहिणी नक्षत्र में होवे तब शीतोपचारार्थ चंदन की गोली, चंदन की चोली, लपट-झपट, ख़स-खाना, जल-विहार, शीतल जल से स्नान (संध्या में) आदि प्रशस्त (उत्तम) माने गए हैं.

आज श्रीजी को चंदन की चोली धरायी जाएगी. इसके साथ चंदनिया रंग का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर गोल पाग धरायी जाएगी. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

चंदन को वागो पहिरे चंदन की खोर कीये, चंदन के रुखतरे ठाड़े पिय प्यारी l
चंदन की पाग शिर चंदन को फेंटा, बन्यो चंदन की चोली तन चंदन की सारी ll 1 ll
चंदन की आरसी ले निरखत दोऊ जन हंस हंस गिर जात भरत अंकवारी l
‘सूरदास’ मदन मोहन चंदभवनमें बैठे, गावत सारंग राग रंग रह्यो भारी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसर एवं चंदन मिश्रित चंदनी रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसर मिश्रित चंदनिया रंग की मलमल की चोली एवं पिछोड़ा धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चंदनिया रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट एवं गोटी ऊष्णकाल के आते है.

राजभोग में आभरन बड़े करके चंदन की चोली एवं कली के आभरन धराए जाते हैं.

Sunday, 26 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी 
Monday, 27 May 2024

गुलाबी मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर चंद्रिका के शृंगार, उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार
संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान 

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : सारंग)

शीतल उसीर गृह छिरक्यों गुलाबनीर
परिमल पाटीर घनसार बरसत हैं ।
सेज सजी पत्रणकी अतरसो तर कीनी
अगरजा अनूप अंग मोद दरसत हैं ॥१॥
बीजना बियाँर सीरी छूटत फुहारें नीके 
मानो घन नहैनि नहैनि फ़ूही बरसत हैं ।
चतुर बिहारी प्यारी रस सों विलास करे 
जेठमास हेमंत ऋतु सरस दरसत हैं ॥२॥

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल रूपहली ज़री की किनारी वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का रूपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट व गोटी ऊष्णकाल के आते है.

ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान 

आज श्रीजी में संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

Saturday, 25 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया 
Sunday, 26 May 2024

शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर तुर्रा के शृंगार,
उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली का शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

भलेई मेरे आये हो पिय 
भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l
शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll
भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll

 साज - श्रीजी में आज शरबती मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती रंग की मलमल की गोल छोर वाली रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.

शृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में मोती का चोलड़ा धराया जाता हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

श्रीजी को कल ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक प्रभु को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जाते हैं. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. 
इनमें कुछ श्रृंगार नियत (Fixed) हैं यद्यपि कुछ मनोरथी के द्वारा आयोजित होते हैं. इसके अतिरिक्त उसी दिन से खस के बंगला और मोगरे की कली और पुष्पों के बंगला के मनोरथ भी प्रारंभ हो जाते हैं. 
उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री  संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं. 
कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं. 
इसमें प्रभु श्रमित होवें इस भाव से अधिक ग्रीष्म हों तब कली के श्रृंगार के अगले दिन प्रभु को अभ्यंग कराया जाता है. 
ऊष्णकाल में नियम के चार अभ्यंग होते हैं.

आज  संध्या-आरती में श्रीजी को कली का श्रृंगार धराया जायेगा.

Friday, 24 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया
Saturday, 25 May 2024

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज कृत चार स्वरूपोत्सव

विशेष – विक्रमाब्द 1878 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज ने चार स्वरुप - श्रीमथुरेशजी (कोटा), श्रीविट्ठलनाथजी (नाथद्वारा), श्रीगोकुलनाथजी (गोकुल) एवं श्री नवनीतप्रियाजी को पधराकर दोहरा मनोरथ किया था अतः आज का दिन श्रीजी में चार स्वरुप के उत्सव के दिन के रूप में मनाया जाता है.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दो समय आरती थाली में की जाती है. सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.

श्रीजी को नियम के केसरी साज व केसरी रंग का पिछोड़ा धराया जाता है. 

आज के श्रृंगार में विशेष यह है कि प्रभु को श्रीमस्तक पर केसरी श्याम झाईं वाले फेंटा के साथ श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
सामान्यतया फेंटा के संग कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची युक्त जलेबी) के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरण चारू पंकज मकरंद लुब्ध गोकुलमें सकल संत करत है नित केली l
पावन चरणोदक जहा संतन हित सलिल बहत त्रिविध ताप दूर करत बदन इंदु मेली ll 1 ll
भूतल कृष्णावतार प्रगट ब्रह्म निराकार सिंचत हरि भक्ति सुधा धरणी धर्म वेली l
‘छीतस्वामी’ गिरिवरधर लीला सब फेर करत धेनु दुहत ग्वालन संग हाथ पाट सेली ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. 
हीरा-मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. मोती की बद्दी के नीचे चंदन की मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर केसरी श्याम झाईं वाले फेंटा का साज – फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका, मोरपंख का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली आदि सब माला धरायी जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक मोती व एक सुवा वाला) धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरी का व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Thursday, 23 May 2024

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा
Friday, 24 May 2024

ऋतु का प्रथम आड़बंद का श्रृंगार

विशेष – आज प्रभु को नियम से बिना किनारी के श्वेत वस्त्र और साज धराये जाते हैं. आज ऊष्णकाल में प्रथम बार श्रृंगार में आड़बंद धराया जाता है. 

आने वाले दिनों में प्रभु को आड़बंद, परधनी, धोती-पटका और पिछोड़ा आदि वस्त्र ही धराये जायेंगे. 

कल नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज कृत चार स्वरुप के उत्सव का दिवस है और आज राजभोग दर्शन उपरांत कल के उत्सव के प्रभु के वस्त्र रंगे जायेंगे और वस्त्र रंगे जाने के पश्चात उन गिले वस्त्रों से प्रभु के झड़प (गिले वस्त्रों से प्रभु के सम्मुख पंखा करना) होता हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

चंदन की खोर किये चंदन घस अंग लगावे सोंधे की लपट झपट पवन फहरनमें l
प्यारी के पियाको नेम पिय के प्यारी सो प्रेम अरसपरस रीझ रीझावे जेठ की दुपहरीमें ll 1 ll
चंहु ओर खस संवार जलगुलाब डारडार शीतल भवन कीयो कुंज महलमें l
शोभा कछु कही न जाय निरख नैन सचुपाय पवन ढुरावे ‘परमानंददास’ टहलमें ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 
मिटटी के कुंजों में शीतल, सुगन्धित जल भरकर उनको श्वेत मलमल के वस्त्र से लपेटकर प्रभु के सम्मुख रखा जाता है. 
गुलाबजल से भरी दो गुलाबदानियाँ और चांदी के त्रस्टीजी भी प्रभु के सम्मुख रखी जाती है.     

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. लड़ के श्रृंगार व दो लड़ की बद्दी धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग के श्याम झाईं वाले फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख के दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं. पीठिका के ऊपर गुलाबी पुष्पों की मोटी माला धरायी जाती है. 

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा-जमनी (सोने-चांदी) के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

Wednesday, 22 May 2024

व्रज - वैशाख शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - वैशाख शुक्ल पूर्णिमा
Thursday, 23 May 2024

ऋतु का पहला परधनी का श्रृंगार

विशेष – आज से प्रभु को वस्त्र में परधनी धरायी जानी प्रारंभ हो जाती है और आज ऊष्णकाल का सबसे छोटा (हल्का) श्रृंगार धराया जाता है.
आज प्रथम दिन और परधनी धरने के अंतिम दिन अर्थात आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को यही वस्त्र श्रृंगार धराये जाते हैं.

आज और उस दिन अंतर केवल यही होगा कि अतिरिक्त में उस दिन प्रभु को तत्कालीन नवीन (वर्षा) ऋतु के आगमन पर व्रज के सभी द्वादश (बारह) वनों एवं चौबीस उपवनों में नवपल्लवित विभिन्न पुष्पों, पत्रों और वनौषधियों से निर्मित वनमाला अपने श्री अंग पर एवं इन्हीं पुष्पों-वनौषधियों से निर्मित गोवर्धन माला पीठिका के ऊपर धारण करते हैं.

श्रीजी को ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से कली के श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जायेंगे जो कि आगामी आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक धराये जाते हैं. इसमें सामान्यतया प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. इनमें कुछ श्रृंगार नियत (Fixed) हैं यद्यपि कुछ मनोरथी के द्वारा आयोजित होते हैं.

इसके अतिरिक्त इसी दिन से खस के बंगला और मोगरे की कली और पुष्पों के बंगला के मनोरथ भी प्रारंभ हो जाते हैं.

द्वितीया क्षय से कल नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज कृत चार स्वरुप के उत्सव का दिवस है और आज राजभोग दर्शन उपरांत कल के उत्सव के प्रभु के वस्त्र रंगे जायेंगे और वस्त्र रंगे जाने के पश्चात उन गिले वस्त्रों से प्रभु के झड़प (गिले वस्त्रों से प्रभु के सम्मुख पंखा करना) होता हैं.

राजभोग दर्शन –

सोहत लाल परधनी अति झीनी l
तापर एक अधिक छबि उपजत ll 1 ll
जलसुत पांति बनी कटि छीनी l
उज्जवल पाग श्याम शिर शोभित अलकावली मधुप मधुपीनी l
‘चतुर्भुजदास’ गिरिधर पिय चपल नयन युवती बसकीनी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल गोल छोर वाली बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की छोर वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, श्वेत खंडेला (श्वेत मोरपंख के दोहरे कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Tuesday, 21 May 2024

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी
Wednesday, 22 May 2024

अपनो जन प्रह्लाद उबार्यो ।
कमला हरिजू के निकट न आवत ऐसो रूप हरि कबहूँ न धार्यो ।।१।।
प्रह्लादै चुंबत अरु चाटत भक्त जानि कै क्रोध निवार्यो ।
सूरदास' बलि जाय दरस की भक्त विरोधी दैत्य निस्तार्यो ।।२।।

नृसिंह जयंती

नियम का केसर से रंगे मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर केसर से रंगी मलमल की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है. 
आज प्रभु को आभरण में विशेष रूप से बघनखा धराया जाता है. इसके अतिरिक्त प्रभु के श्रीहस्त में सिंहमुखी कड़े और एक छड़ीजी (वेत्रजी) भी सिंहमुखी धराये जाते हैं (चित्र में दृश्य नहीं परन्तु धराये जाते हैं).

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगाये जाते हैं. आज भोग के फीका के स्थान पर बीज चालनी का घी में तला सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
संध्याआरती के ठोड़ के स्थान पर सतुवा के बड़े गोद के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत
नारद शुकव्यास रटत पावत नही पारही l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत 
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत 
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को केसर से रंगे मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती की प्रधानता के हीरा मोती के मिलवा आभरण धराये जाते हैं. आभरण में नीचे पदक व ऊपर हीरा, मोती के माला एवं हार आते हैं.
आज हांस, पायल व चोटीजी नहीं धराये जाते.
श्रीमस्तक पर केसर से रंगी मलमल की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो  वेत्रजी (एक मोती व एक नृसिंहजी के) धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी सोने की कूदते बाघ-बकरी की व आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

 श्री नृसिंह भगवान का जन्म सूर्यास्त पश्चात एवं रात्रि से पूर्व हुआ था अतः इस भाव से संध्या-आरती दर्शन पश्चात नृसिंह भगवान के जन्म के दर्शन होते हैं और जन्म के दर्शन में प्रभु के सम्मुख शालिग्रामजी को झांझ, घंटा, झालर और शंख की मधुर ध्वनियों के मध्य पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और बूरा) स्नान कराया जाता है. स्नान के पश्चात शालिग्रामजी को तिलक कर तुलसी समर्पित की जाती है व पुष्प-माला धरायी जाती है. 

प्रभु को जन्म के उपरांत जयंती फलाहार के रूप में दूधघर में सिद्ध खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) का भोग अरोगाया जाता है.

आज के दिन श्रीजी मथुरा सतघरा से गोपालपुर (जतीपुरा) श्री गिरिराजजी के ऊपर पधारे थे. 
वहां पधारकर शयन समय राजभोग भी संग अरोगें इस भाव से आज प्रभु को शयनभोग में आधे राजभोग जितनी सखड़ी की सामग्रियां अरोगायी जाती है. 

श्री नृसिंह भगवान उग्र अवतार हैं और उनके क्रोध का शमन करने के भाव से शयन की सखड़ी में आज विशेष रूप से शीतल सामग्रियां - खरबूजा का पना, आम का बिलसारू, घोला हुआ सतुवा, शीतल, दही-भात, श्रीखण्ड-भात आदि अरोगाये जाते हैं.

सभी वैष्णवजन को नृसिंह जयंती की बधाई 

Monday, 20 May 2024

व्रज - वैशाख शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - वैशाख शुक्ल त्रयोदशी 
Tuesda, 21 May 2024

आगम का शृंगार

विशेष – कल चतुर्दशी भगवान नृसिंहजी की जयंती है अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 
सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 
यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है. 
इस श्रृंगार के लाल वस्त्र विविध ऋतुओं के उत्सवों के अनुरूप होते हैं.
इसी श्रृंखला में आज प्रभु को गुलाबी रंग की धोती व राजशाही पटका धराया जायेंगा.

अभी ऊष्णकाल है और अभी लाल रंग निषिद्ध है अतः आज लाल के स्थान पर गुलाबी वस्त्र धराये जायेंगे. सामान्यतया इस श्रृंगार में वस्त्र और पिछवाई लाल और ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं परन्तु ऊष्णकाल में ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते अतः आज प्रभु को गुलाबी वस्त्र धराये जायेंगे.

कल नृसिंह चतुर्दशी है. पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी दशावतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीनृसिंह एवं श्रीवामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है एवं इन चारों जयंतियों को उपवास किया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग/बिलावल)

कमलमुख देखत कौन अघाय l
सुनरी सखी लोचन अलि मेरे मुदित रहे अरुझाय ll 1 ll
मुक्तामाल लाल ऊर ऊपर मानों फूली वनराय l
गोवर्धनधरके अंग अंग पर ‘कृष्णदास’ बलजाय ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी रंग की मलमल धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोर चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...