By Vaishnav, For Vaishnav

Monday, 30 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी 
Tuesday, 01 October 2024

ऋतु का छेला (अंतिम) पिछोड़ा का शृंगार

चौफ़ुली चूंदड़ी का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के  श्रृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकन दान देरी महादान वृखभान दुल्हारी । 
तृषित लोचन चकोर मेरे तू व बदन इन्दु किरण पान देरी ॥१॥
सबविध सुघर सुजान सुन्दर सुनहि बिनती कानदेरी ।
गोविन्द प्रभु पिय चरण परस कहे जाचक को तू मानदेरी ॥२॥

साज - श्रीजी में आज चौफ़ुली चूंदड़ी की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल चौफ़ुली चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र फ़िरोज़ी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चुंदड़ी की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, फिरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की धराई जाती हैं.

Sunday, 29 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी 
Monday, 30 September 2024

नित्यलीलास्थ गौस्वामी बालकृष्णजी का उत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के तृतीय पुत्र बालकृष्णजी का उत्सव है. 

श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.

श्री गुसांईजी के सभी सात पुत्रों के जन्मोत्सव सभी गृहों में मनाये जाते हैं परन्तु आपश्री तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के आचार्य थे अतः आज का उत्सव श्री द्वारकाधीश मंदिर (कांकरोली) में भव्य रूप से मनाया जाता है और इस अवसर पर वहां से जलेबी के टूक की सामग्री श्रीजी के भोग हेतु आती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखद एक रसना कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल पर लाल रंग की गायों, हरे रंग की लता के भरतकाम वाली एवं लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल का रूपहरी किनारी से सुशोभित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्वेत पुष्पों और कमल की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी,माणक के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का)धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं. आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Saturday, 28 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी 
Sunday, 29 September 2024

“श्रीवल्लभप्रतिनिधिं तेजेराशिं दयार्णवम् l
गुणातीतं गुणनिधिं श्रीगोपीनाथमाश्रये ll”

भावार्थ - श्रीवल्लभ के प्रतिनिधि स्वरुप, तेज के भंडाररूप, दया के सागर, सत्वादि गुणों के बल पर सत्ता भोगने वाले, सद्गुणों के भंडाररूप ऐसे श्री गोपीनाथजी का मैं आश्रय करता हूँ.  

(दशदिंगत विजयी पुरुषोत्तमजी महाराज द्वारा अपने ग्रन्थ ‘अणुभाष्य प्रकाश’ में की गई आपकी स्तुति)

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपीनाथजी का उत्सव

विशेष – आज श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र गोपीनाथजी का उत्सव है. 

श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.

संध्या आरती पश्चात चीर घाट की सांझी मांडी जाती है. 

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपीनाथजी

श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपीनाथजी का प्राकट्य विक्रमाब्द 1567 में आज के दिन प्रयाग (इलाहबाद) के निकट अडेल में हुआ था. उनके जन्म पर सभी को अपार आनंद अनुभव हुआ अतः महाप्रभुजी ने ब्राह्मणों, याचकों, गरीबों को खूब दान-दक्षिणा दी थी. 

7 वर्ष की आयु में आपका यज्ञोपवीत संस्कार कर स्वयं महाप्रभुजी ने आपको विद्याभ्यास प्रारंभ कराया. आप पर महाप्रभुजी की विद्वता एवं अनन्य भक्ति का बहुत प्रभाव पड़ा. 

महाप्रभुजी प्रतिदिन श्रीमद्भागवत का परायण करते. उन्हें देखकर आपने भी बाल्यावस्था में ही श्रीमद्भागवत का परायण करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करने का नियम लिया जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी वे तीन-चार दिवस बिना भोजन के भागवत परायण करते रहते. 

इससे व्यथित आपकी माताश्री को देख श्री महाप्रभुजी ने श्रीमद्भागवत साररूप ‘श्री पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम’ नामक ग्रन्थ की रचना की एवं गोपीनाथजी को ग्रन्थ दे कर आज्ञा की कि तुम प्रतिदिन इस ग्रन्थ का पाठ करो एवं इससे श्रीमदभागवत के पाठ का फल मिलेगा. 

श्री महाप्रभुजी ने आसुरव्यामोह लीला की तब आपकी आयु 19 वर्ष थी. इस अल्पायु में आपको आचार्य पद प्राप्त हुआ. 

आपकी बहूजी का नाम पयाम्मा जी था. आपको पुरुषोत्तमजी नाम के एक पुत्र, लक्ष्मी और सत्यभामा नाम की दो पुत्रियाँ हुई. 

आप शांत एवं गंभीर प्रवृति के विद्वान थे. आपकी रूचि ग्रंथों के अभ्यास एवं तीर्थयात्रा में विशेष रूप से थी. आप कई बार जगन्नाथपुरी एवं द्वारका की यात्रा को पधारते थे. 

एक बार आपश्री जगन्नाथपुरी की यात्रा को पधारे तब आपको एक लाख रुपये की धनराशि चरण भेंट में प्राप्त हुई. आपने इस राशी से सोने-चांदी के बर्तन एवं सेवा में आवश्यक सामग्रियां क्रय कर प्रभु को अर्पण कर दिए. तब से प्रभु का वैभव दिनोंदिन बढ़ने लगा.

आपके द्वारा रचित कई ग्रंथों में आज ‘साधन-दीपिका’ नाम का ग्रन्थ प्राप्त है. जिसमें भक्ति की साधना का स्वरुप सेवाविधि बतायी गयी है.

आप केवल 31 वर्ष भूतल पर विराजित रहे और जगन्नाथपुरी में ही नित्यलीला में पधारे. ऐसा कहा जाता है कि आप सदेह श्री जगन्नाथ भगवान के स्वरुप में अंतर्ध्यान हो गये थे. 

श्री गोपीनाथजी त्याग की मूर्ति, वैराग्यपूर्ण हृदय वाले भगवद सेवा परायण, समग्र परिवार को सुख देने वाले, एवं शिष्टबद्ध जीवन व्यतीत करने वाले थे. आपके बारे में श्री गुसांईजी ने कहा है :

“यदुग्रहतो जंतु: सर्व दु:खातिगोभवेत l
तमहं सर्वदा वंदे श्रीमद्वल्लभनंदनम् ll”

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l
जन्म धोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll
सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई आसपास युवतीजन करत है गुणगान l
‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस यह अवसर जे हुते ते महाभाग्यवान ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हल्के आसमानी रंगी की छापा वाली तथा लाल एवं रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की ज़री की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली आदि मालाए धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं.
 आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Friday, 27 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण एकादशी

व्रज – आश्विन कृष्ण एकादशी 
Saturday, 28 September 2024

प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।
यद्यपि रूप गुण शील 
सुघरता ईन बातन न रीजैयें ।।१।।
सतकुल जन्म कर्म शुभ लच्छन
वेद पुरान पढ़ैये ।
गोविंद प्रभु बिना स्नेह सुवालों
रसना कहाजु नचैये ।।२।।

भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.
रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.

महादान एकादशी

विशेष – आज इंदिरा एकादशी है. इसे पुष्टिमार्ग में महादान एकादशी भी कहा जाता है.

आज दान का नियम का छटा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. 
इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

Post में प्रदर्शित चित्र में द्रश्य नहीं हैं परन्तु आज प्रभु के स्वरुप से भी लम्बी एक लकुटी (छड़ी) प्रभु के पीठिका के सहारे खड़ी धरी जाती है जिसका भाव यह है कि भारी श्रृंगार के रहते प्रभु उछल के मटकी नहीं फोड़ पाएंगे अतः लम्बी वेत्रजी (छड़ी) पास में होगी होगी तो खड़े-खड़े ही प्रभु मटकी फोड़ देंगे.

आज प्रभु द्वारा शाकघर का महादान अंगीकार किया जाता है. 

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ, खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं. 
दान के अन्य दिनों के अपेक्षा आज प्रभु को कई गुना अधिक हांडियां अरोगायी जाती है.

आज व्रज के गोवर्धन के दान का भाव है. कीर्तनों में श्री हरिरायजी रचित बड़ी दानलीला गायी जाती है.

श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकनि दान दै री महादानी श्रीवृषभान कुमारी l
त्रिषित लोचन चकोर मेरे तुव वदन इंदु किरन पान दैरी ll 1 ll
सबविधि सुधर सुजान सुन्दरि सुनि विनति तू कान दैरी l
‘गोविंद’ प्रभु पिय चरण परस कह्यौ याचक को तू मान दैरी ll 2 ll

साज – आज प्रातः श्रीजी में गहरवन में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन व केसरी काछनी दूसरी काछनी लाल तथा केसरी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हीरा एवं स्वर्ण का जड़ाऊ मीनाकारी वाला मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मोर की आती है. 

Thursday, 26 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण दशमी

व्रज – आश्विन कृष्ण दशमी 
Friday, 27 September 2024

लाल सफेद चुंदड़ी का का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चन्द्रिका के श्रृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल एवं सफेद रंग की चूंदड़ी की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल एवं सफेद रंग की चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर ग्वालपाग (पगा) के ऊपर मोती की लड़, सुनहरी चमक (जमाव) की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में लोलकबिंदी (लड़ वाले) कर्णफूल धराये जाते हैं.

 रंग बिरंगे पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी व कमल के पुष्प की मालाजी  धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, स्वर्ण के वेणु वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की बाघ बकरी की आती हैं.

Wednesday, 25 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण नवमी

व्रज – आश्विन कृष्ण नवमी 
Thursday, 26 September 2024

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री के बहूजी एवं वर्तमान तिलकायत पूज्य गौस्वामी श्री राकेशजी महाराज की मातृचरण नित्यलीलास्थ अखंड सौभाग्यकांक्षी श्री विजयलक्ष्मी बहूजी का उत्सव है. 

आज श्रीजी को दान का पाचवा व नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 

श्रीजी में आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज के समस्त परिवारजनों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरी जाती है जिसमें स्वयं श्री गोविन्दलालजी महाराज बायीं ओर खड़े आरती कर रहे हैं, दोनों ओर उनके परिवार के सदस्य खड़े और विराजित हैं. 

आज तिलकायत परिवार की ओर से महादान की सामग्री अरोगायी जाती है. आज कदम्ब-खंडी के दान का भाव है.

श्रीजी मंदिर में आज संध्या-आरती पश्चात नन्दगाँव और बरसाना की सांझी मांडी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

जमुना घाट रोकी हो रसिक चन्द्रावलि l
हसि मुसिकयाय कहति व्रज सुंदरि छबीलै छैल छांडो अंचल ll 1 ll
दान निवेर लैहो व्रजसुंदरि छांडो अटपटी कित गहत अलकावलि l
करसों कर गहि हृदयसों लगाय लई ‘गोविंद’ प्रभुसो तु रासरंग मिलि ll 2 ll  

साज – श्रीजी में आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज के समस्त परिवारजनों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरी जाती है जिसमें स्वयं श्री गोविन्दलालजी महाराज बायीं ओर खड़े आरती कर रहे हैं और दायीं ओर क्रमशः नित्यलीलास्थ श्री राजीवजी (दाऊबावा), चिरंजीवी श्री विशालबावा, वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराज एवं उनकी माता श्री विजयलक्ष्मी बहूजी खड़ीं हैं. बायीं ओर विराजित स्वरूपों में बाएं से दूसरे श्री राजेश्वरीजी बहूजी (वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री राकेश जी महाराज श्री के बहूजी) हैं. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज लाल श्वेत (राजशाही) लहरिया के वस्त्र पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत भांतवार धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ा का मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों एवं कमल की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी व दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी मोर की आती हैं.

Tuesday, 24 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण अष्टमी

व्रज – आश्विन कृष्ण अष्टमी 
Wednesday, 25 October 2024

श्री महाप्रभुजी के पौत्र पुरुषोत्तमजी का उत्सव 

विशेष – आज श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपीनाथजी के पुत्र श्री पुरुषोत्तमजी का उत्सव है. 
श्री गोपीनाथजी के नित्यलीला में प्रवेश के समय आपकी आयु 10 वर्ष की थी.
श्री विट्ठलनाथजी ने तब आपको पुष्टिमार्गीय आचार्य के रूप में तिलक किया. आपने भी केवल 19 वर्ष की अल्पायु में नित्यलीला प्रवेश किया अतः आपके जीवन चरित्र के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. 
आपके अविवाहित ही नित्यलीलास्थ होने से श्री गोपीनाथजी का वंश श्री पुरुषोत्तमजी के पश्चात वहीँ समाप्त हो गया.

राजभोग दर्शन – 

साज – श्रीजी में आज दान के दिवसों के अनुरूप, मस्तक पर गौरस की स्वर्ण गौरसियाँ (कलश) लेकर आती व्रजभक्त गोपीजनों के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत भातवार के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरे तथा माणक का जड़ाऊ मुकुट एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
लाल गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी दो वैत्रजी ( एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी दान की आती हैं.

Monday, 23 September 2024

व्रज – अश्विन कृष्ण सप्तमी

व्रज – अश्विन कृष्ण सप्तमी
Tuesday, 24 September 2024

स्याम पीला लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर दुमाला पर कलगा (भीमसेनी क़तरा) के शृंगार

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

यहाँ अब काहे को दान देख्यो न सुन्यो कहुं कान l
ऐसे ओट पाऊ उठि आओ मोहनजु दूध दही लीयो चाहे मेरे जान ll 1 ll
खिरक दुहाय गोरस लिए जात अपने भवन तापर ईन ऐसी ठानी आनकी आन l
‘गोविंद’ प्रभु सो कहेत व्रजसुंदरी, चलो रानी जसोदा आगे नातर सुधै देहो जान ll 2 ll

साज - श्रीजी में आज स्याम पीला लहरियाँ की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया सफेद एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज स्याम पीला लहरियाँ का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर स्याम पीला लहरियाँ के दुमाला के ऊपर सिरपैंच, कल्गा (भीमसेनी कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं. 
पट स्याम व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Sunday, 22 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण षष्ठी

व्रज – आश्विन कृष्ण षष्ठी 
Monday, 23 September 2024

चौफ़ुली चूंदड़ी के मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज चौफ़ुली चूंदड़ी का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज श्रीकंठ के शृंगार छेड़ान के बाक़ी भारी श्रृंगारवत धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर चौफ़ुली चूंदड़ी का टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें स्वर्ण और मोती के टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
कमल माला धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी और वेत्रजी का धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

Saturday, 21 September 2024

व्रज – आश्विन कृष्ण पंचमी

व्रज – आश्विन कृष्ण पंचमी
Sunday, 22 September 2024

हो वारी इन वल्लभीयन पर,
मेरे तन को करों बिछौना,
सिस घरों इन के चरनन पर। 
भाव भरी देखो इन अँखियन,
मंडल मद्य बिराजत गिरिधर। 
ये तो मेरे प्राणजीवन धन,
दान दिये है श्रीवल्लभवर। 
पुष्टिमार्ग प्रकट करिबे को ,
प्रकटे श्रीविठ्ठल द्विज - वपु धर। 
दास 'रसिक 'बलैया लै लै,
वल्लभीयन की चरणरज अनुसर।

पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के मध्य श्रीजी के दर्शन कर के उनके लिए मन में उपरोक्त भाव भावना वाले महाप्रभु श्री हरिरायजी के प्राकट्योंत्सव की ख़ूब ख़ूब बधाई

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री हरिरायजी (1647) का उत्सव 

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री हरिरायजी का उत्सव है. 

आज श्रीजी को दान का चौथा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 

आज श्रृंगार दर्शन में प्रभु के बड़ी डांडी का कमल धराया जाता है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोहर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
आज दानगढ़-मानगढ़ का मनोरथ होता है, सांकरी खोर के महादान का भाव भी है इसलिए गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दान की शाकघर व दूधघर में सिद्ध विशिष्ट हांडियां अरोगायी जाती है. 

आज श्रृंगार से राजभोग तक श्री हरिरायजी द्वारा रचित 35 पदों की बड़ी दानलीला एवं सायंकाल सांझी के विशेष कीर्तन भी गाये जाते हैं.  (अन्य पोस्ट में)
मणिकोठा में पुष्पों की सांझी भी मांडी जाती है जिसके पुष्प द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर से आते हैं.

राजभोग दर्शन –

साज – श्रीजी में आज प्रभु को गौरस अरोगाने पधारीं मुग्ध भाव की व्रजभक्त गोपियों के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत भांतवार धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे व माणक के आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी व वैजयंती माला धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर स्वर्ण का श्रीगोकुलनाथजी के हीरे-जड़ित टोपी, मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मानक के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के पक्षी वाले वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी दान की आती है.

Friday, 20 September 2024

व्रज - अश्विन कृष्ण चतुर्थी

व्रज - अश्विन कृष्ण चतुर्थी
Saturday, 21 September 2024

रूपहरी किनारी के धोरा के गुलाबी सुथन, फेंटा और पटका के शृंगार

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से हो. 
इसी भाव से आज ठाकुर जी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में लगभग छह बार धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के दिन निश्चित नहीं हैं.

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी चितराम के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोडी)

देख गजबाज़ आज वृजराज बिराजत गोपनके शीरताज ।
देस देस ते खटदरसन आवत मनवा छीत कूल पावत 
किरत अपरंपार ऊंचे चढ़े दान जहाज़ ।।१।।
सुरभि तिल पर्वत अर्ब खर्ब कंचन मनी दीने, सो सुत हित के काज ।
हरि नारायण श्यामदास के प्रभु को नाम कर्म करावन,
महेर मुदित मन बंधि है धर्म की पाज ।।२।।

साज - श्रीजी में आज गुलाबी रंग की मलमल पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी की धोरेवाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है और चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल जड़ी होती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज गुलाबी रंग के धोरा का सुथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

शृंगार - ठाकुरजी को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हरे मीना के छेड़ान के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर गुलाबी फेंटा का साज धराया जाता है जिसमें गुलाबी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, बीच की चंद्रिका, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट गुलाबी रंग का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Thursday, 19 September 2024

व्रज - अश्विन कृष्ण तृतीया

व्रज - अश्विन कृष्ण तृतीया 
Friday, 20 September 2024

मुकुट काछनी का श्रृंगार

अहो विधना तोपै अँचरा पसार माँगू, जनम-जनम दिजौ याहि बृज बसिबौ।
अहिर की जात समीप नन्दघर, घरि-घरि घनस्याम सौं हेरि -हेरि हसिबौ॥
दधि के दान मिष बृजकी बिथीन माँझ झकझौरन अँग-अँगकौ परसिबौ। 
छीतस्वामी गिरधारी विठ्ठलेश वपुघारी,सरदरैंन माँझ रस रास कौ बिलसिबौ॥

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज – आज प्रातः श्रीजी में गहरवन में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कोयली रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जमदानी के होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मोती जड़ित स्वर्ण का मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट कोयली व गोटी दान की आती है. 

Wednesday, 18 September 2024

व्रज - अश्विन कृष्ण द्वितीया (प्रतिपदा क्षय)

व्रज - अश्विन कृष्ण द्वितीया (प्रतिपदा क्षय)
Thursday, 19 September 2024

लाल पीले लहरियाँ का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा के श्रृंगार

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ढाडोई यमुनाघाट देखोई ।
कहा भयो घर गोरस बाढयो और गोधन के घाट ।।१।।
जातपांत कुलको न बड़ो रे चले जाहु किन वाट ।
परमानंद प्रभु रूप ठगोरी लागत न पलक कपाट ।।२।।

साज - श्रीजी में आज लाल पीले लहरियाँ की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया सफेद एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल पीले लहरियाँ का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर गोल पाग धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र फ़िरोज़ी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज हल्का का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल पीले लहरियाँ की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली चार मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की आती हैं.

Tuesday, 17 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा
Wednesday, 18 September 2024

मुकुट काछनी का श्रृंगार, सांझी का प्रारंभ

विशेष – आज श्रीजी को दान का दूसरा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 
प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. 
दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. 
इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

आज का दान महादान कहा जाता है इस कारण आज श्रीजी को दान की अधिक और विशेष हांडियां अरोगायी जाती है.

सांझी - आज से पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सांझी का प्रारंभ होता है. श्रीजी मंदिर में कमलचौक में हाथीपोल के द्वार के बाहर आज से पंद्रह दिन तक संध्या-आरती पश्चात चौरासी कोस की व्रजयात्रा की लीला की सांझी मांडी जाती है. 
सफेद पत्थर के ऊपर कलात्मक रूप से केले के वृक्ष के पत्तों से विभिन्न आकर बना कर सुन्दर सांझी सजायी जाती है एवं उन्हीं पत्तों से उस दिन की लीला का नाम भी लिखा जाता है. भोग-आरती में सांझी के कीर्तन गाये जाते हैं. प्रतिदिन श्रीजी को अरोगाया एक लड्डू सांझी के आगे भोग रखा जाता है और सांझी मांडने वाले को दिया जाता है. 

आज प्रथम दिन व्रजयात्रा की सांझी मांडी जाती है.

यह सांझी अगले दिन प्रातः मंगलभोग सरे तक रहती है और तदुपरांत बड़ी कर (हटा) दी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकन दान देरी महादान वृखभान दुल्हारी । 
तृषित लोचन चकोर मेरे तू व बदन इन्दु किरण पान देरी ॥१॥
सबविध सुघर सुजान सुन्दर सुनहि बिनती कानदेरी ।
गोविन्द प्रभु पिय चरण परस कहे जाचक को तू मानदेरी ॥२॥

साज – आज श्रीजी में दानलीला एवं  सांझीलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मोरपंखों से सुसज्जित स्वर्ण का रत्नजड़ित मुकुट एवं मुकुट पिताम्बर बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी कमल आदि मालाजी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, भाभीजी वाले  वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट गुलाबी एवं गोटी मोर वाली आती हैं.

Monday, 16 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी
Tuesday, 17 September 2024

मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की गयी है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे मलमल  का रुपहली ज़री की तुईलैस किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज श्रीकंठ के शृंगार छेड़ान(हल्के) के बाक़ी सब भारी श्रृंगार धराया जाता है. सोना के सर्व आभरण धराये हैं. 
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया है जिसमें टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में हरे वस्त्र पर मोतियों से सुसज्जित मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.चोटीजी नहीं धराई हैं.
श्रीकंठ में कुंडल धराये जाते हैं.
कमल माला धराई जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक, रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट हरा एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

Sunday, 15 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी
Monday, 16 September 2024

स्याम चौफुली चूंदड़ी का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के शृंगार

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज स्याम चौफुली चूंदड़ी की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज स्याम श्याम चौफुली चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के आते हैं.

श्रीमस्तक पर श्याम चौफूली चूंदड़ी की ग्वाल-पगा के ऊपर सिरपैंच, पगा चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में लोलकबिन्दी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी बाघ बकरी की आती है.

Friday, 13 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल एकादशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल एकादशी
Saturday, 14 September 2024

दान मांगत ही में आनि कछु  कीयो।
धाय लई मटुकिया आय कर सीसतें रसिकवर नंदसुत रंच दधि पीयो॥१॥

छूटि गयो झगरो हँसे मंद मुसिक्यानि में तबही कर कमलसों परसि मेरो हियो।
चतुर्भुजदास नयननसो नयना मिले तबही गिरिराजधर चोरि चित्त लियो॥२॥

दान (परिवर्तिनी) एकादशी, दान आरंभ, दश-दिंगत विजयी नित्यलीलास्थ श्री पुरुषोत्तमजी का उत्सव

श्रृंगार समय दान के पद गाये जाते हैं.
आज परिवर्तिनी एकादशी है जिसे पद्मा एकादशी भी कहा जाता है. पद्म पुराण के अनुसार चतुर्मास के दौरान आने वाली इस एकादशी का महत्व देवशयनी और देवप्रबोधिनी एकादशी के समान है. 
इस दिन भगवान विष्णु चतुर्मास के शयन के दौरान करवट लेते हैं इसलिए देवी-देवता भी इनकी पूजा करते हैं.
आज के दिन दान देने और प्रभु को दान की सामग्री अरोगाने से देह की दशा में परिवर्तन होता है. 

अपने पांडित्य से दसों-दिशाओं में पुष्टिमार्ग की यश पताका फहराने वाले ‘दश-दिंगत विजयी’, नवलक्ष ग्रन्थकर्ता नित्यलीलास्थ श्री पुरुषोत्तमजी (१७१४) का भी आज उत्सव है. 
आप के सेव्य स्वरुप सूरत (गुजरात) में विराजित प्रभु श्री बालकृष्णलालजी हैं.

पुष्टिमार्ग में आज की एकादशी को दान-एकादशी कहा जाता है. 
नंदकुमार रसराज प्रभु ने व्रज की गोपियों से इन बीस दिनों तक दान लिया है. प्रभु ने तीन रीतियों (सात्विक, राजस एवं तामस) से दान लिए हैं. 
दीनतायुक्त स्नेहपूर्वक, विनम्रता से दान मांगे वह सात्विक दान, वाद-विवाद व श्रीमंततापूर्वक दान ले वह राजस एवं हठपूर्वक, झगड़ा कर के अनिच्छा होते भी जोर-जबरदस्ती कर दान ले वह तामस दान है. 
दान के दिनों में गाये जाने वाले कीर्तनों में इन तीनों प्रकार से लिये दान का बहुत सुन्दर वर्णन है.

प्रभु ने व्रजवितान में, दानघाटी सांकरी-खोर में, गहवर वन में, वृन्दावन में, गोवर्धन के मार्ग पर, कदम्बखंडी में, पनघट के ऊपर, यमुना घाट पर आदि विविध स्थलों पर व्रजभक्तों से दान लिया है और उन्हें अपने प्रेमरस का दान किया है.
इस प्रकार दान-लीला के विविध भाव हैं.

दान की सामग्री में दूध श्री स्वामिनीजी के भाव से, दही श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, छाछ श्री यमुनाजी के भाव से, और माखन श्री कुमारिकाजी के भाव से अरोगाया जाता है. 

दान के बीस दिनों में पांच-पांच दिन चारों युथाधिपतियों के माने गए हैं.

कल तक बाल-लीला के पद गाये जाते थे. अब आज से प्रतिदिन दान के पद गाये जायेंगे.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहि धो मोल या दधिको री ग्वालिन श्यामसुंदर हसिहसि बूझत है l
बैचेगी तो ठाडी रहि देखो धो कैसो जमायो, काहेको भागी जाति नयन विशालन ll 1 ll
वृषभान नंदिनी कौ निर्मोलक दह्यौ ताको मौल श्याम हीरा तुमपै न दीयो जाय,
सुनि व्रजराज लाडिले ललन हसि हसि कहत चलत गज चालन l
‘गोविंद’प्रभु पिय प्यारी नेह जान्यो तब मुसिकाय ठाडी भई ऐना बेनी कर सबै आलिन ll 2 ll  

साज – आज प्रातः श्रीजी में दानघाटी में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
राजभोग में पिछवाई बदल के जन्माष्टमी के दिन धराई जाने वाली लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रुपहली किनारी से सुसज्जित सूथन धराये जाते हैं. छोटी काछनी लाल रुपहली किनारी की एवं बड़ी काछनी कोयली सुनहरी किनारी की होती है. 
लाल रुपहली ज़री की तुईलैस वाला रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी का धराया जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं. आज प्रभु को बघनखा धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर माणक के टोपी व मुकुट( गोकुलनाथजी वाले) एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चित्र में द्रश्य है परन्तु चोटी नहीं धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, वेणु, वेत्र माणक के व एक वेत्र हीरा के धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी दान की आती हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Thursday, 12 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल दशमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल दशमी
Friday, 13 September 2024

आगम का श्रृंगार

विशेष - कल दान-एकादशी है. साथ ही कल अपने पांडित्य से दसों-दिशाओं में पुष्टिमार्ग की यश पताका फहराने वाले दश-दिंगत विजयी नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री पुरुषोत्तमजी का उत्सव भी है अतः आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादी चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

श्री राधिकाजी एवं श्री ठाकुरजी के बाल-लीला के पद आज तक ही गाये जाते हैं. कल से श्रीजी में दानलीला के कीर्तन गाये जायेंगे.  

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : गौड़सारंग)

परम धन राधा नाम आधार l
जाहि पिया मुरली में टेरत सुमरत वारंवार ll 1 ll
वेद मंत्र अरु जंत्र तंत्रमें येही कियो निरधार l
श्रीशुक प्रगट कियो नहीं ताते जान सार को सार ll 2 ll
कोटिन रूप धरे नंदनंदन तोऊ ना पायो पार l
‘व्यासदास’ अब प्रगट बखानत डार भार में भार ll 3 ll

राजभोग दर्शन - 

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्री मस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.इसी प्रकार पिले पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं. 
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी सोना की छोटी आती हैं.आरसी शृंगार में स्वर्ण की दिखाई जाती हैं.

Wednesday, 11 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी
Thursday, 12 September 2024

व्रज में रतन राधिका गोरी ।
हर लीनी वृषभान भवनतें नंद सुवन की जोरी ।।१।।
ग्रथित कुसुम अलकावली की छवि अरु सुदेश करडोरी ।
पिय भुज कन्ध धरें यों राजत ज्यों दामिनी घनसोंरी ।।२।।
कालिंदी तट कोलाहल सघन कुंजवन खोरी ।
कृष्णदास प्रभु गिरिधर नागर नागरी नवल किशोरी ।।३।।

राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार धराया जायेगा. परचारगी श्रृंगार में श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं, केवल पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा नहीं धराया जाता है और आभरण कुछ कम होते हैं. 
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है.

श्रीजी में सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है.

परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी चिरंजीवी श्री विशाल बावा होते हैं. यदि वे उपस्थित हों तो श्रीजी के श्रृंगारी वही होते हैं. 

जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपति स्वामिनीजी के भाव से होते हैं परन्तु श्री राधिकाजी प्रभु की अर्धांगिनी हैं अतः इस भाव से राधाष्टमी के श्रृंगार दो बार ही होते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मैं देखी सुता वृषभान की l
जननी संग आई व्रज रावरी शोभा रूप निधान की ll 1 ll
नेंक सुभायते भृकुटी टेढ़ी बेनी सरस कमानकी l
नैन कटाक्ष रहत चितवतही चितवनि निपट अयानकी ll 2 ll
पग जेहरी कंचन रोचनसी तनकसी पोहोंची पानकी l
खगवारी गले द्वै लर मोती तनक तरुवनी कानकी ll 3 ll
लै बैठी हंसि गोद जसोदा मनमें ऐसी बानकी l
‘सूरदास’ प्रभु मदनमोहन हित जोरी सहज समान की ll 4 ll    

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हीरा एवं माणक भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.
नीचे आठ पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार एवं माला धराए जाते हैं.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Tuesday, 10 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल अष्टमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल अष्टमी
Wednesday, 11 September 2024

आज वधाई है बरसाने ।
पंच शब्द बाजे सुनि सुर मुनि देखन मन तरसाने ।।१।।
कीरति कूखि चंद्रमा प्रगटी श्रीराधाजु पग दरसाने ।
ललित निकुंज बिहारीन के ऊर रहे रूप सरसाने ।।२।।

सभी वैष्णवजन को स्वामिनीजी के आगमन की ख़ूब ख़ूब बधाई

जय श्री कृष्ण 

राधाष्टमी

आज  ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खुलते गोपी वल्लभ (ग्वाल) के भोग सरे पश्चात स्वामिनीजी के शृंगार धराए जाते हैं.
मालाजी नवीन धरायी जाती हैं.
प्रभु के मुखारविंद पर (ऊबटना) चंदन से कपोलपत्र मांड़े जाते हैं. गुलाल,अबीर,चंदन,चोवा से सूक्ष्म खेल होवे फिर जड़ाऊ आरसी दिखा कर प्रभु श्री गोवर्धनधरण को कुंकुम-अक्षत से तिलक करके आरती करी जाती हैं.
शंख, झालर, घंटानाद के द्वारा स्वामिनीजी के आगमन का स्वागत किया जाता हैं.
तदुपरांत उत्सव भोग धरे जाते हैं जिसमें विशेष रूप से पंजीरी के लड्डू, छुट्टीबूंदी, खस्ता शक्करपारा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), सफ़ेद-केसरी मावा की गुंजिया, केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, रवा की खीर, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, और विविध प्रकार के संदाना अरोगाये जाते हैं.
साथ ही श्रीजी को श्री नवनीतप्रियाजी, द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी एवं तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के घर से सिद्ध होकर आये पंजीरी के लड्डू भी अरोगाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नियम से केसरी जामदानी के वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धराये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोरर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी एवं शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. 

उत्थापन समय फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.

भोग-आरती के दर्शन में ढाढ़ी-ढाढन (नाच-गा कर बधाई देने वाले) आते हैं एवं मणिकोठा में हो रहे कीर्तन के दौरान दोनों नृत्य करते हैं. 
ढाढ़ीलीला होती है, ढाढ़ीलीला के पद गाये जाते हैं. इसके पश्चात दोनों को बधाई स्वरुप दान दिया जाता है.

ढाढ़ी-ढाढन दोनों पुरुष ही होते हैं. पिछले कई वर्षों से ढाढ़न के रूप में बुरहानपुर (महाराष्ट्र) के परम वैष्णव श्री बलदेवभाई सुन्दर स्त्रीवेश धर कर श्रीजी के समक्ष नृत्य करते हैं.

शयन समय डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के पास में प्रिया-प्रीतम के भाव से बिछायत होती है, कांच का बंगला धरा जाता है एवं विविध सज्जा की जाती है जो कि अनोसर में भी रहती है और अगले दिन शंखनाद पश्चात हटा ली जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

प्रगट भई रावल श्री राधा।।
सुनि धाई व्रजपुरकी वनिता निरखत सुंदर रूप अगाधा।।1।।
तब वृषभान दान बहु दीने जाचककी सब पूजी साधा। 
द्वारिकेस स्वामिनी महिमा मुनिमन ध्यान लगाय समाधा।।2।।

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज वृषभान के आनंद l
वृंदाविपिन विहारिनि प्रगटी श्रीराधाजु आनंद कंद ll 1 ll
गोपी ग्वाल गाय गो सुत लै चले यशोदा नंद l
नंदी सुरर तें नाचत गावत आनंद करत सुछंद ll 2 ll
लेत विमल यश देत वसन पशु धरत दूब शिरवृंद l
लोचन कुमुद प्रफुल्लित देखियत ज्यों गोरी मुखचंद ll 3 ll
जाचक भये परमधन कहियत गोधन सुधा अमंद l
भये मनोरथ ‘व्यास’ दासके दूरि गए दुःख द्वंद ll 4 ll

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का दो जोड़ का हीरा एवं माणक भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
आज मोती का कमल धराया जाता हैं.
हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
 आरसी शृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Monday, 9 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल सप्तमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल सप्तमी
Tuesday, 10  September 2024

 राधाष्टमी के आगम का श्रृंगार 

विशेष - कल राधाष्टमी का उत्सव है अतः आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादा मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 

प्रभु को यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

धनि धनि प्रभावती जिन जाई ऐसी बेटी धनि धनि हो वृषभान पिता l
गिरिधर नीकी मानी सो तो तीन लोक जानी उरझ परी मानों कनकलता ll 1 ll
चरन गंगा ढारों मुख पर ससि वारों ऐसी त्रिभुवनमें नाहिन वनिता l
‘नंददास’ प्रभु श्याम बस करनको श्यामाजु के तोले नावे सिन्धु सुता ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की गईं है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच तथा मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराया है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली चार सुन्दर मालाजी धरायी हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये हैं.
पट लाल, गोटी स्वर्ण की छोटी व शृंगार में आरसी सोने की आती है.

Sunday, 8 September 2024

व्रज - भाद्रपद शुक्ल षष्ठी

व्रज - भाद्रपद शुक्ल षष्ठी
Monday, 09 September 2024

सभी वैष्णवजन को श्रीललिताजी के उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव की ख़ूब ख़ूब बधाई
 
बलदेव छठ, श्रीललिताजी का उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव

श्रीजी प्रभु को नियम के पंचरंगी लहरिया के वस्त्र व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.  

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज सखी शारदा कन्या जाई l
भादों सुदि षष्ठी है शुभ नक्षत्र वर आई ll 1 ll
भेरि मृदंग दुंदुभी बाजत नंदकुंवर सुखदाई l
गोपीजन प्रफुल्लित भई गावत मंगल गीत बधाई ll 2 ll
नामकरनको गर्ग पराशर गौतम वेद पढ़ाई l
दीने दान पिता विशोकजु नारद बीन बजाई ll 3 ll
आभूषण पाटंबर बहुविध गो भू दान कराई l
नंदराय वृषभानराय मीली विशोक ही देत बधाई ll 4 ll
सकल सुवासिनी धरत साथिये कीरति पंजरी धाई l
'व्रजपति' की स्वामिनी यह प्रगटी ललिता नाम धराई ll 5 ll

साज – श्रीजी में आज पंचरंगी लहरिया की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद मखमल मढ़ी हुई है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पंचरंगी लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के होते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे चार पान घाट की जुगावली, ऊपर मोतियों की माला आती है. त्रवल नहीं धराया जाता वहीं हीरा की बग्घी धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशरायजी के वेणु, वेत्र (व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की व राजभोग में सोना की डाँडी की आती  है.

Saturday, 7 September 2024

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी
Sunday, 08 September 2024

श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव, नील-पीत के पगा, पिछोड़ा का श्रृंगार

विशेष – आज राधिकाजी की परमसखी श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव है. आज से राधाष्टमी की चार दिवस की झांझ (एक प्रकार का वाध्य) की बधाई बैठती है.

श्री विट्ठलनाथजी (गुसांईजी) श्री चन्द्रावलीजी का प्राकट्य स्वरुप है. श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव स्वामिनीजी के उत्सव की भांति मनाया जाता है. 

आपका स्वरुप गौरवर्ण है अतः आज हाथीदांत के खिलौने और श्वेत वस्तुएं श्रीजी के सम्मुख श्री चन्द्रावलीजी के भाव से धरी जाती है. ( विस्तुत जानकारी अन्य आलेख में)

इसी भाव से श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नील-पीत के वस्त्र एवं ग्वाल-पगा का श्रृंगार धराया जाता है. वर्षभर में यह श्रृंगार आज ही धराया जाता है जिसमें नीले (मेघश्याम) रंग के हांशिया वाले पीले रंग के पगा, वस्त्र और पिछवाई धरायी जाती है. पगा पर नीले रंग की बिंदी होती है.

निम्नलिखित कीर्तन के आधार पर आज का यह श्रृंगार धराया जाता है.

किशोरीदास छाप का यह कीर्तन आज श्रीजी में गाया जाता है.

हो व्रज बासन को मगा l
वल्लभराज गोप कुल मंडन ईन दे घर को जगा ll 1 ll
नंदराय ऐक दियो पिछोरा तामे कनक तगा l
श्री वृषभान दिये कर टोडर हीरा जरत नगा ll 2 ll
किरत दई कुंवरि की झगुली जसुमत सुत को जगा l
‘किशोरीदास’ को पहरायो नील पीत को पगा ll 3 ll

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज सखी सुखमा कन्या जाई l
भादो सुदि पांचे शुभ लग्न चंद्रभान गृह आई ll 1 ll
नामकरनको गर्ग पराशर नारदादि सब आये l
चंद्रावली नाम सुख सागर कोटिक चंद लजाये ll 2 ll
सुनि वृषभान नंद मिलि आये कीरति जसोदा आई l
मंगल कलश सुवासिन सिर धारी मोतिन चौक पुराई ll 3 ll
देत दान और धरत साथिये गोपी सब हरखानी l
निगम सार जोरी गिरिधरकी व्रजपति के मनमानी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस और आसमानी हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीली मलमल का आसमानी हांशिये वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक के आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माला धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर पीले रंग का आसमानी किनारी और टिपकियों वाला ग्वालपाग (पगा) धराया जाता है जिसके ऊपर चमकना टिपारा का साज - मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में जड़ाव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में टोडर धराया जाता हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी बाघ बकरी की आती है.

शयन में कीर्तन - (राग : कान्हरो)

प्रकट भई शोभा त्रिभुवन की श्री वृषभान गोपके आई l
अद्भुत रूप देखि व्रजवनिता रीझी रीझी के लेत बलाई ll 1 ll
नहीं कमला नहीं शची रति रंभा उपमा उर न समाई l
जातें प्रकट भये व्रजभूषन धन्य पिता धनि माई ll 2 ll 
युग युग राज करौ दोऊ जन इत तुम उत नंदराई l
उनके मदनमोहन इत राधा ‘सूरदास’ बलिजाई ll 3 ll

Friday, 6 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी               
Saturday, 07 September 2024

डंडा चौथ (गणेश चतुर्थी )

विशेष – आज गणेश चतुर्थी है. पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में ‘गण’ का अर्थ समूह अथवा यूथ से एवं ‘पति’ का अर्थ गोपियों के नाथ श्री प्रभु से है. 

गोपालदासजी ने वल्ल्भाख्यान में गाया है जिसका भावार्थ यह है कि “श्याम वर्ण के श्रीजी प्रभु गोपीजनों के समूह के मध्य अत्यंत शोभित हैं. 
यह ‘गणपति’ रूप में प्रभु का स्वरुप कामदेव को भी मोहित करता है. गौरवर्ण गोपियाँ और मध्य में श्यामसुन्दर प्रभु.”

नाथद्वारा में कई वर्षों पहले यह परम्परा थी कि गणेश चतुर्थी के दिन नाथद्वारा के सभी स्कूलों और आश्रमों के बालक विविध वस्त्र श्रृंगार धारण कर के अपने गुरुजनों के साथ मंदिर के गोवर्धन पूजा के चौक में आते और डंडे (डांडिया) से खेलते थे. 
उन्हें गुड़धानी के लड्डू पूज्य श्री तिलकायत की ओर से दिए जाते थे. इसी भाव से आज डंके के खेल के चित्रांकन की पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. 
इसके अतिरिक्त अपने निज आवास मोतीमहल की छत पर खड़े हो कर तिलकायत गुड़धानी के लड्डू मंदिर पिछवाड़े में बड़ा-बाज़ार में खड़े नगरवासियों को देते थे जिन्हें सभी बड़े उत्साह से लेकर उल्हासित होते थे. 

आज श्रीजी को नियम से लाल चूंदड़ी का किनारी के धोरे वाला सूथन, छज्जे वाली पाग और पटका का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म से हो. 

इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. 

आज के दिन की एक और विशेषता है कि आज सूथन के साथ श्रीमस्तक पर छज्जे वाली पाग और जमाव का कतरा धराया जाता है. 

आज भोग में कोई विशेष सामग्री नहीं अरोगायी जाती है. केवल यदि कोई मनोरथी हो तो ठाकुरजी को सखड़ी अथवा अनसखड़ी में बाटी-चूरमा की सामग्री अरोगायी जा सकती है.

सायंकाल संध्या-आरती समय मंदिर के श्रीकृष्ण-भंडार और खर्च-भंडार में लौकिक रूप में भगवान गणेश के चित्रों का पूजन किया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

तू देख सुता वृषभान की l
मृगनयनी सुन्दर शोभानिधि अंग अंग अद्भुत ठानकी ll 1 ll
गौर बरन बहु कांति बदनकी शरद चंद उनमानकी l
विश्व मोहिनी बालदशामें कटि केसरी सुबंधानकी ll 2 ll
विधिकी सृष्टि न होई मानो यह बानिक औरे बानकी l
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर लायक व्रज प्रगटी जोरी समान की ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज व्रजवासियों के समुदाय की डंडाखेल के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद मखमल मढ़ी हुई है.

वस्त्र - श्रीजी को आज रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित लाल चोफुली चूंदड़ी के वस्त्र पर किनारी के धोरे वाला सूथन और पटका धराया है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये हैं.

श्रृंगार - प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराये है. हीरे के सर्व आभरण धराये हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल चूंदड़ी की छज्जे वाली पाग के ऊपर मोरशिखा, जमाव का कतरा लूम तथा तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये हैं.
 श्रीकर्ण में दो जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये हैं. 
श्रीकंठ में तिमनिया वाला सिरपेंच धराया हैं.
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी स्याम मीना आती हैं.

Thursday, 5 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल तृतीया

व्रज – भाद्रपद शुक्ल तृतीया
Friday, 06 September 2024

गुलाबी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर बाँकी गोल चंद्रिका के श्रृंगार

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

महारास पूरन प्रगट्यो आनि l
अति फूली घरघर व्रजनारी श्री राधा प्रगटी जानि ll 1 ll
धाई मंगल साज सबे लै महा ओच्छव मानि l
आई घर वृषभान गोप के श्रीफल सोहत पानि ll 2 ll
कीरति वदन सुधानिधि देख्यौ सुन्दर रूप बखानि l
नाचत गावत दै कर तारी होत न हरख अघानि ll 3 ll
देत असिस शीश चरनन धर सदा रहौ सुखदानि l
रसकी निधि व्रजरसिक राय सों करो सकल दुःख हानि ll 4 ll 

साज - श्रीजी में आज गुलाबी मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया सफेद एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज गुलाबी मलमल का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर गोल पाग धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज हल्का का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, बाँकी गोल चंद्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली चार मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती हैं.

Wednesday, 4 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वितीया

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वितीया
Thursday, 05 September 2024

पचरंगी लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव के क़तरा व तुर्री के श्रृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

महारास पूरन प्रगट्यो आनि l
अति फूली घरघर व्रजनारी श्री राधा प्रगटी जानि ll 1 ll
धाई मंगल साज सबे लै महा ओच्छव मानि l
आई घर वृषभान गोप के श्रीफल सोहत पानि ll 2 ll
कीरति वदन सुधानिधि देख्यौ सुन्दर रूप बखानि l
नाचत गावत दै कर तारी होत न हरख अघानि ll 3 ll
देत असिस शीश चरनन धर सदा रहौ सुखदानि l
रसकी निधि व्रजरसिक राय सों करो सकल दुःख हानि ll 4 ll 

साज – श्रीजी में आज पचरंगी लहरियाँ की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर स्वेत मखमल मढ़ी हुई होती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पचरंगी लहरियाँ का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पचरंगी लहरियाँ की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, जमाव (नागफणी) का कतरा तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोने का) धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की आती है.

Tuesday, 3 September 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा
Tuesday, 04 September 2024

राधाष्टमी की झाँझ की बधाई बैठे

आज से राधाष्टमी की आठ दिवस की झाँझ की बधाई बैठती है. आज से प्रतिदिन अष्ट सखियों का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है. इस भाव से आठ दिवस तक नित्य नूतन श्रृंगार, भोग और कीर्तनगान होता है.
 
पुष्टिमार्ग में श्रीस्वामनिजी(राधाजी) को श्रीकृष्ण की अभिन्न मुख्य शक्ति मानते है। जिनका सहज निवास श्रीकृष्ण के साथ सर्वत्र है।
आज के दर्शन एवं पोस्ट इसी आनंद से परिपूर्ण हैं इसे पूरा पड़े.

राधाष्टमी की बधाई आठ दिवस की ही क्यों होती है ?

श्री राधिकाजी प्रभु श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी हैं. 
षोडश कलायुक्त प्रभु श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ जिसका अर्धांग श्रीराधा हैं. श्री गुसांईजी ने अष्टयाम सेवा, अष्टसखा, अष्टछाप के कवि तथा भौतिक रूप में अष्टसिद्धि एवं अष्टांग योग रूप सेवा की स्थापना की थी. 
जिससे आठ दिवस की बधाई बैठती है. 
श्री राधिकाजी की सखियाँ भी आठ है, इस भावना से आठ दिवस की झांझ की बधाई बैठती है.

श्रीजी में आज श्रीमस्तक का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु लाल, केसरी अथवा पीले रंग का धोती-उपरना अवश्य धराया जाता है. 
आज श्रीजी को केसरी मलमल के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर क़तरा या चन्द्रिका धराये जायेंगे.

सभी बड़े उत्सवों की बधाई की भांति ही आज से आठ दिन अमंगल (श्याम, नीले या गहरे हरे) रंगों के वस्त्र नहीं धराये जाते.
आज भोग विशेष कुछ नहीं पर राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

सभी वैष्णवों को राधाष्टमी की बधाई बैठवे की बधाई

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

बरसाने वृषभान गोपके आनंद की निधि आई l
धन्य धन्य कूख रानी कीरति की जिन यह कन्या जाई ll 1 ll
इन्द्रलोक भुवलोक रसातल देखि सुनि न गाई l
सिंधुसुता, गिरिसुता सची रति इन सामान कोऊ नाई ll 2 ll
आनंद मुदित जसोदा रानी लालकी करों सगाई l
प्रभु कल्यान गिरिधरकी जोरी विधना भली बनाई ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी-तकिया के ऊपर लाल एवं चरण चौकी के ऊपर सफेद बिछावट होती है. 
सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के आते हैं. चांदी की त्रस्टीजी भी धरी जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा गोल चंद्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. हीरे-मोती की एक मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं.

Monday, 2 September 2024

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या (द्वितीय)

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या (द्वितीय)
Tuesday, 03 September 2024

स्याम पीला लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

यहाँ अब काहे को दान देख्यो न सुन्यो कहुं कान l
ऐसे ओट पाऊ उठि आओ मोहनजु दूध दही लीयो चाहे मेरे जान ll 1 ll
खिरक दुहाय गोरस लिए जात अपने भवन तापर ईन ऐसी ठानी आनकी आन l
‘गोविंद’ प्रभु सो कहेत व्रजसुंदरी, चलो रानी जसोदा आगे नातर सुधै देहो जान ll 2 ll

साज - श्रीजी में आज स्याम पीला लहरियाँ की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया सफेद एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज स्याम पीला लहरियाँ का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर स्याम पीला लहरियाँ के ग्वालपाग (पगा) के ऊपर मोती की लूम, सुनहरी चमक (जमाव) की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज कमल माला धरावे.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी व कमल के पुष्प की मालाजी  धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, सोना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम व गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

Sunday, 1 September 2024

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या(प्रथम) (कुशग्रहणी अमावस्या)(सोमवती अमावस्या)

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या(प्रथम) (कुशग्रहणी अमावस्या)(सोमवती अमावस्या)
Monday, 02 September 2024

मल्लकाछ-टिपारा एवं पटका के शृंगार

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है. 

आज कीर्तनों में माखनचोरी एवं गोपियों के उलाहने के पद गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में माखन-चोरी लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद लहरियाँ का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान  (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल सफ़ेद टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में हरे मीना के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
श्री कंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी और वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...