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Monday, 11 November 2024

व्रज - कार्तिक शुक्ल एकादशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल एकादशी
Tuesday, 12 November 2024

देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत (देव-दीवाली)

"देव दिवारी शुभ एकादशी" की खूब खूब बधाई

देव दिवारी शुभ एकादशी,
हरी प्रबोध कीजे हो आज।।
निंद्रा तजो उठो हो गोविंद,
सकल विश्र्व हित काज।।१।।
घर घर मंगल होत सबनके,
ठौर ठौर गावत ब्रिजनारी।।
"परमानंद दास" को ठाकुर,
भक्त हेत लीला अवतारी।।२।।

देव प्रबोधिनी एकादशी (देव-दीवाली)

आज प्रभु को नियम के सुनहरी ज़री के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.  

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत,
नारद शुक व्यास रटत पावत नहीं पाररी l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत,
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत,
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल,
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्याम मखमल के आधार वस्त्र पर विद्रुम के पुष्पों के जाल के सुन्दर भारी ज़रदोज़ी काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी के ऊपर लाल रंग की, तकिया के ऊपर श्याम रंग की ज़री के कामवाली एवं चरणचौकी के ऊपर हरे मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी ज़री का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से ही सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका रुपहली ज़री का व चरणारविन्द में लाल रंग के जड़ाऊ मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सव वत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रधानता के स्वर्ण आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की जडाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) बायीं ओर धरायी जाती है. 
स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा पीठिका पर धराया जाता है. 
श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक व नीलम के हार, माला आदि धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली की माला धरायी जाती है.  
श्वेत पुष्पों की लाल एवं हरे पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

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