व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी
Saturday, 23 November 2024
श्रीविठ्ठलनाथजुके आज बधाई ।
मार्गशिर कृष्ण अष्टमीको शशी उदयो पूरण माई ।।१।।
पूरे चोक धाम मोतिनके बंदनवार बंधाई ।
ध्वजा पताका दीप कलश सज धूप सुगंध महाई ।।२।।
बाजत ढोल निशान नगारे झांझ झमक सहनाई ।
गगन विमानन छाय रह्यो है देव कुसुम बरखाई ।।३।।
श्रुति मुख बोलत जय जय बोलत डोलत चहुर्दिश धाई ।
रसिकदास मतिहीन दीन अति गोविंद नाम कहाई ।।४।।
श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव
विशेष – आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव है. (विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)
श्री गुसांईजी के सभी सात लालजी के प्राकट्योत्सव सभी सात गृहों में उत्सववत मनाये जाते हैं.
नियम के वस्त्र पीले साटन के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर पीले कुल्हे पर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है.
आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं.
वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.
साथ ही आज प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु जलेबी के टूक की सामग्री आती है.
आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
गोवल्लभ गोवर्धन वल्लभ श्रीवल्लभ गुन गिने न जाई l
भुवकी रेनु तरैया नभकी घनकी बूँदें परति लखाई ll 1 ll
जिनके चरन कमल रज वन्दित संतन होत सदा चितचाई l
‘छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल’ नंदनंदन की सब परछाई ll 2 ll
साज – श्रीजी में आज पीली साटन के वस्त्र पर कत्थइ(मैरून) हांशिया वाली एवं रुपहली ज़री की चौकड़ी की सज्जा वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को पिले साटन का सुनहरी तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं जडाऊ मोजाजी (गोकुलनाथजी के) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे (गोकुलनाथजी की) के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पीला, गोटी श्याम मीना की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
No comments:
Post a Comment