व्रज - कार्तिक शुक्ल अष्टमी
Saturday, 09 November 2024
गोपाष्टमी
मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
पिछवाई श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में कशीदे की श्वेत गायों की आती है.
गौचारण के भाव से आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
मुकुट के इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.
इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.
आज इस ऋतु में मुकुट-काछनी का श्रृंगार अंतिम बार धराया जायेगा.
शीतकाल में मान आदि की लीलाएँ होती है परन्तु रासलीला नहीं होती अतः मुकुट नहीं धराया जाता.
आज से तीन दिन तक आठों समय में गौ-चारण लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
वस्त्र में काछनी लाल व हरी छापा की धरायी जाती है.
गोपाष्टमी के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है. सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व दहीभात अरोगाये जाते हैं व संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
गोपाल माई कानन चले सवारे l
छीके कांध बाँध दधि ओदन गोधन के रखवारे ll 1 ll
प्रातसमय गोरंभन सुन के गोपन पूरे श्रृंग l
बजावत पत्र कमलदल लोचन मानो उड़ चले भृंग ll 2 ll
करतल वेणु लकुटिया लीने मोरपंख शिर सोहे l
नटवर भेष बन्यो नंदनंदन देखत सुरनर मोहे ll 3 ll
खगमृग तरुपंछी सचुपायो गोपवधू विलखानी l
विछुरत कृष्ण प्रेम की वेदन कछु ‘परमानंद’ जानी ll 4 ll
साज – आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में गायों के कशीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का रेशमी सूथन, मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली एवं हरे छापा की बड़ी काछनी व लाल छापा की छोटी काछनी धरायी जाती है. लाल दरियाई वस्त्र का रास-पटका (पीताम्बर) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकने लट्ठा) के धराये जाते हैं.
श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित पन्ना, माणक एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर हीरा की टोपी पर सोने का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज (चोटी) नहीं धरायी जाती है.
श्रीकंठ में माला, दुलड़ा हार आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी की माला धरायी जाती है.
पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट काशी का व गोटी सोना की कूदते हुए बाघ बकरी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.
आज गोपाष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तक संध्या-आरती में प्रतिदिन श्रीजी को शाकघर में विशेष रूप से सिद्ध गन्ने के रस की एक डबरिया (छोटा बर्तन) अरोगायी जाती है. इस अवधि में कुछ बड़े उत्सवों पर इस रस में कस्तूरी भी मिश्रित होती है.
आज संध्या-आरती दर्शन में छोटा वैत्र श्रीहस्त में धराया जाता है.
दशहरा के दिन से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गौमाता आती है जो आज संध्या-आरती दर्शन उपरांत विदा होती है.
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