By Vaishnav, For Vaishnav

Sunday, 2 August 2020

भाग - २ भगवद गुणगान का महिमा जानते है।

 

भाग - २

जय श्री कृष्णा

भगवद गुणगान का महिमा जानते है।

आज से ४५० वर्ष पहले की बात है। मेवाड़ में शिहाड़ नामक गाओ। अपनी अनन्य भक्त अजबकुँवरि को दिया हुआ वचन पूर्ण करने के लिए श्री गोवर्धननाथजी मेवाड़ पधरे और आज तक वही बिराजमान है। वही श्री हरिरायचरण भी पधारे। आपने सेव्य स्वरुप श्री विठ्ठलनाथजी को
श्रीनाथजी के मंदिर के पास ही हवेली सिद्ध करके बिराजमान किया। श्री हरिरायजी सत्संग के आग्रही थे। रोजाना रात्रि वैष्णवों की मण्डली में बिराजके भगवद वार्ता करते। भगवद वार्ता के चाहक वैष्णवगण भी देह , समय और स्थान का बोध भूल के श्रवण में लींन हो जाते। हवेली से बहार निकलके रासते के बीच में ही परस्पर सुने हुए सिधान्तो का मनन चिन्तन करते और कीर्तन गाते । भगवद वार्ता के रस में मध्य रात्रि तो कबकी व्यतीत हो जाती पर सत्संग नहीं।
वही आसपास कई जैन सम्प्रदाय को मैंनेवाले परिवार रहते थे। वैषणव मण्डली यु पूरी रात्रि वार्तालाप करते तो उनकी नींद में खलल होता।
एक दिन सब मिलके श्री हरिरायचरण के पास पहुंचे और बिनती की महाराज आपके सेवक पूरी रात्रि शोर मचाते हे और हमरी निद्रा बिगड़ जाती है । श्री हरिरायजी ने आश्वाशन दिया के में उनसे बात करूँगा। रात्रि में वैष्णवगण वार्ता स्मरण करके रस्ते पर एकत्रित हुए । सब मिलके कीर्तन गान कर रहे थे। श्री हरिरायजी वहा पधारे और आप श्री ने अद्भुत दर्शन किये। वैषणवो की मण्डली के बिच में स्वयं श्री गोवर्धन प्रशन्न चित हो कर नृत्य कर रहे थे। ऐसे अलौकिक दर्शन करके श्री हरिरायजी भावविभोर हो गए। आप श्री के मुख से अनायाश ही कीर्तन गान हुआ ।
"भाव भरी देखो मेरी अंखियन , मंडल मध्य बिराजत गिरिधर, हो वारि इन वल्लभीयन पर , मेरे तनको करो बिछोना , शीश धरो इनके चरनन तर। "
आज मेरे नेत्रों को फल मिल गया । मेरे वल्लभीय वैष्णवों की मण्डली के बिच स्वयं श्री गिरिधर बिराजे है। धन्य है इन सभीको। में तो ओवरलू सब को। इन सभी की में क्या सेवा करू अपने तन का बिछोना करू , अपना शीश नामऊ।
धन्य है इन सभी को जिन के मुख से गुणगान सुनकर श्री गोवार्थान्धार पधारे और प्रशन्न चित हो कर नृत्य करने लगे।
तो ये बात फिरसे सिद्ध हो गई की जहा भी प्रभु की लीलाका गुणगान होगा प्रभु वहा उपस्थित होंगे।

बोलो श्री गिरीराजधरण की जय।
पुष्तक - तुलसी क्यारो - १
राइटप टाइपिंग - वर्षा चिनाई

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