By Vaishnav, For Vaishnav

Friday, 7 August 2020

श्रीमद भगवद गीताजी में प्रभु ने जन्म मृत्यु का कारण तीन वजह से बताया है |

 

श्रीमद भगवद गीताजी में प्रभु ने जन्म मृत्यु का कारण तीन वजह से बताया है | अगर कर्म की दृष्टि से देखे तो हम कर्ता न होते हुए भी अहम् धारण करके कर्ता बनकर मै , मेरी वजह से , मेरे कारण पकड़कर रखते है | अगर ज्ञान की दृष्टि से देखे तो ज्ञान का अभाव , जिससे प्रकृति और खुद को अलग से जानकर मान लेना | अगर भक्ति की दृष्टि से देखे तो प्रभु से विमुखता ही हमारे जीवन मृत्य के चक्कर का ईंधन है|

श्री वल्लभ प्रभु द्वारा प्रकट यह पुष्टिमार्ग इस मनुष्य जीवन का वरदान है | आज के इस यांत्रिक दौर में तीनो योग जिसका पालन कठिनता से भी मुश्किल हो जाता है, ऐसे में श्री वल्लभ प्रभु की इतनी बड़ी कृपा हुई है कि हम तीनो योग का एक साथ अनुभव करने समर्थ हुए है |

सबसे पहले तो हम अनगिनत जन्मो से प्रभु से विमुख हो चुके थे , पुष्टिमार्ग का वरदान प्राप्त होते ही प्रभु सन्मुख हो जाते है | चूँकि पुष्टिमार्ग कोई साधना मार्ग नहीं ना ही कोई सिद्धि प्राप्त करने का मार्ग है , इस मार्ग में सिर्फ और सिर्फ प्रभु का सुख ही महत्वपूर्ण है , शेष कुछ भी मायने नहीं रखता | इसलिए पूर्ण समर्पण द्वारा श्री वल्लभ प्रभु ने हमें खुद को और जिसे भी हम अपना मानते है उसे समर्पित करवाया और प्रभु से विमुखता ख़त्म करके सन्मुख करवा दिया |

जब सब कुछ अपना समर्पण हो चूका तो हम या हमारा कहने कुछ बचा ही नहीं | ऐसे पूर्ण समर्पण के चलते अहम् नाश हो जाता है | क्योंकि मै या मेरा कुछ है ही नहीं , जो है सिर्फ प्रभु का है ,क्योंकि सब कुछ समर्पण हो चूका है | जब मै का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाता है समर्पण भाव से तो कर्ता कोई रह नहीं सकता | जब कोई कर्ता नहीं तो अहम् का नाश सरल तरीके से हो जाता है |

पूर्ण समर्पण से अहम् का विसर्जन हो जाता है तो दबा हुआ विवेक हमें ज्ञान करा देता है कि हम कुछ कर ही नहीं रहे , जो भी हो रहा है प्रभु कृपा से हो रहा है | सुख दुःख इस शरीर के है | सुख दुःख का ज्ञान होकर भी सुख का भोग न करना और दुःख से विचलित न होकर समता बनाये रखना ज्ञान है | शरीर के सुख दुःख को अपना न मानकर इस शरीर को और प्रकृति को खुद से अलग मान लेना ही ज्ञान है |

कर्म योग , ज्ञान योग या भक्ति योग , तीनो में से किसी एक योग में स्थित होना भी बहोत ही मुश्किल है जिसे प्रभु निरंतर अभ्यास द्वारा सिद्ध करने आज्ञा दिए है | श्री वल्लभ प्रभु कृपा से यह तीनो योग का साधन सहज और सरल तरीके से हो जाता है | पुष्टिमार्ग भावप्रधान है और यह तीनो योग में भी भाव की ही प्रधानता है | जरुरत ही तो सिर्फ भाव बढ़ाने की |

प्रभु कृपा बिना हम कर कुछ भी नहीं सकते | ऐसे में नित्य सोडष: ग्रन्थ का पाठ , श्रीमद भागवत में प्रभु लीला का पाठ , ८४/२५२ वैष्णवों के वार्ता प्रसंग , शिक्षापत्र और वैष्णवों संग नित्य सत्संग इस भाव बढ़ाने की प्रक्रिया को गति देकर मनुष्य जीवन के हेतु को फलित करने की क्षमता रखता है |

तीनो योग सहज अगर एक साथ हो सकते है तो पुष्टिमार्ग में हो सकते है और वो भी सिर्फ और सिर्फ श्री वल्लभ प्रभु की कृपा से क्योंकि पुष्टिमार्ग श्री वल्लभ प्रभु की कृपा का मार्ग है | हमारा फर्ज है हम "श्री कृष्ण शरणम् मम:" महामंत्र से प्रभु शरण में स्थित रहे ताकि फिर से भटक न जाए |

 

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