व्रज - आश्विन शुक्ल दशमी
सोमवार, 26.10.2020
श्रीगुसाँईजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गिरधरजी के प्रथम लालजी श्रीमुरलीजी का उत्सव
विशेष - आज का श्रीजी का श्रृंगार कल के श्रृंगार का परचारगी श्रृंगार है.
अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन उपरांत उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है.
इसमें सभी वस्त्र एवं श्रृंगार लगभग सम्बंधित उत्सव की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज होते हैं.
सेवाक्रम - पर्वरुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. गेंद, चैगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.
राजभोग दर्शन -
कीर्तन - (राग: सारंग)
नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो ।
तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ।।1।।
अद्भुत अवधि कहां लगी वरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो ।
भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ।।2।।
साज - आज श्रीजी में हरे रंग के आधार वस्त्र पर पुष्प-पत्रों की लता के सुरमा-सितारा के कशीदे के जरदोजी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचैकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र - श्रीजी को आज रुपहली जरी का चोली घेरदार वागा एवं सूथन लाल सलीदार जरी का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे दरियाई के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी जरी का धराया जाता है.
श्रृंगार - आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर चीरा (रुपहली जरी की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, लूम, काशी के काम का तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. किलंगी नवरत्न की धराई जाती हैं. कली, कस्तूरी आदि माला धरायी जाती हैं.
श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक हीरा का) धराये जाते हैं.
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