व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी
Thursday, 22 October 2020
छठो विलास कियो श्यामा जु
गौधन वन चली भामा जु ।
पहेरे रंग रंग सारी हाथन पूजन थारी ।
ताकी मुख्य सहचरी राई खेलनमें बहुत सुधराई ।।१।।
चली बन बन बिहसी सुंदरी हार कंकन जगमगे ।
आई मंदिर पूजन देवी भोग सिखरन सगमगे ।।२।।
ता समे प्रभु पधारे कोटि मन्मथ मोहे ही ।
निरखी सखियन कमल मुख मानो निर्धन धन जो सोहे ।।३।।
खेलको आरंभ कीनो राधा माधो बीच किये ।
वाकी परछाई परी तब रसिक चरनन चित दिये ।।४।।
विशेष - आज छठे विलास का लीला स्थल गोवर्धन वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी राईजी हैं और सामग्री मोहनथाल एवं दूधपूवा है यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.
आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री के बहूजी का उत्सव है जिसे राणीजी का उत्सव भी कहा जाता हैं.
श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से सिकोरी (मूंगदाल, मावे, इलायची के मीठे मसाले से निर्मित पूरणपूड़ी जैसी सामग्री) अरोगायी जाती है.
आज श्रीजी को सखड़ी में पत्तरवेला प्रकार आरोगाया जाता हैं.
श्रीजी में सभी देवों को मान दिया जाता है और महाप्रभुजी ने भी भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीवामन एवं श्रीनृसिंह) को मान्यता दी है.
इसी सन्दर्भ में आज श्रीजी में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्रजी को मान देती आज श्री रामचंद्रजी के जीवन चरित्र का दर्शन कराती पिछवाई धरायी जाती है.
इसी प्रकार रामभक्त हनुमान जी के गुणगान एवं अन्य रामभक्त जानकीजी को खोज रहे हैं ऐसी लीला के कीर्तन संध्या-आरती में मारू राग में गाये जाते हैं.
पायं तो पूजि चले रघुनाथ
हनुमान आदि ले बडरे योद्धा लीने साथ।।
से तू बांधि के लंका लूटी, रावण के काटे माथ।
कृष्ण दास सीता घर लाये, विभीषण कियो सनाथ।।
आज प्रभु श्री रामचन्द्रजी के पराक्रम की भावना को दर्शाता मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जाता है.
इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.
आज के इस श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज मल्लकाछ के ऊपर चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि विशिष्ट वीर-रस का धोतक है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन (राग : सारंग)
वृन्दावन सघनकुंज माधुरी लतान तर जमुना पुलिनमे मधुर बाजे बांसुरी l
जबते धुनि सुनी कान मानो लागे मैंनबान, प्राननकी कासौ कहू पीर होत पांसुरी ll 1 ll
व्याप्यो जु अनंग ताते अंग सुधि भूल गई कौऊ वंदो कोऊ निंदो करौ उपहासरी l
ऐसे ‘व्रजाधीश’सों प्रीति नई रीति बाढ़ी जाके उर गढ़ रही प्रेम पुंज गांसरी ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में प्रभु श्री रामचंद्रजी के जन्म से रावण वध एवं उनके राज्याभिषेक तक के विविध प्रसंगों को दर्शाते चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं इसी प्रकार गुलाबी रंग के छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चड़ी आस्तीन का खुलेबंध का चाकदार वागा धराया जाता है. आज पटका लाल रंग का एक ही धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग के छापा की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
आज चड़ी आस्तीन का बागा धराने से हीरा की एक ही गोल पहुची धराई धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
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