By Vaishnav, For Vaishnav

Sunday, 22 November 2020

गोपाष्टमी

गोपाष्टमी

नंदराजकुमार प्रभु प्रथम वार बन में गौचारण को पधारे सो उत्सव गोपाष्टमी है। गौचारण लीला नित्य लीला है। अष्टछाप महानुभावो ने अपनी रचनाओं में यह लीला का सविस्तृत वर्णन किया है।

"दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै-
र्वनरूहाननं बिभ्रदावृतम्।
धनरजस्वलं दर्शयन् मुहु-
र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि।।"

श्रीगोपीगीत" के बारहवें श्लोक में वर्णित इस लीला को महानुभाव चतर्भुजदास जी ने अपने इस आवनी के पद में प्रकट किया हैं :--

लटकत चलत जुवतीन सुखदानी।
संध्या समे सखामंडल में सोभित तन गौरज लपटानी।।
मोरमुकुट गुंजा पीयरो पट मुख मुरली कूजत मृदु बानी।
'चतुर्भुजप्रभु' गिरिधारी आये बनतें, लै आरती वारत नंदरानी।।

प्रस्तुत चित्र में श्रीचतुर्भुजदासजी कृत इसी आवनीके पद अंतर्गत लीला के तादृश दर्शन हो रहे हैं...!!!

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