Saturday, 27 February 2021
व्रज - फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा
Wednesday, 24 February 2021
व्रज – माघ शुक्ल त्रयोदशी
Friday, 19 February 2021
व्रज – माघ शुक्ल अष्टमी
Thursday, 18 February 2021
व्रज – माघ शुक्ल सप्तमी
Wednesday, 17 February 2021
व्रज – माघ शुक्ल षष्ठी (द्वितीय)
Tuesday, 16 February 2021
सतघरा
Monday, 15 February 2021
व्रज – माघ शुक्ल पंचमी
व्रज – माघ शुक्ल पंचमी
Tuesday, 16 February 2021
नवल वसंत नवल वृंदावन खेलत नवल गोवर्धनधारी ।
हलधर नवल नवल ब्रजबालक नवल नवल बनी गोकुल नारी ।।१।।
नवल जमुनातट नवल विमलजल नौतन मंद सुगंध समीर ।
नवल कुसुम नव पल्लव साखा कुंजत नवल मधुप पिक कीर ।।२।।
नव मृगमद नव अरगजा वंदन नौतन अगर सुनवल अबीर ।
नवचंदन नव हरद कुंकुमा छिरकत नवल परस्पर नीर ।।३।।
नवलधेनु महुवरि बाजे, अनुपम भूषण नौतन चीर ।
नवलरूप नव कृष्णदास प्रभुको, नौतन जस गावत मुनि धीर ।।४।।
सभी वैष्णवजन को बसंतोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
बसंत-पंचम
आज बसंत-पंचमी है. आज के दिन कामदेव का प्रादुर्भाव हुआ था अतः इसे मदन-पंचमी भी कहा जाता है.
शीत ऋतु लगभग पूर्ण हो चुकी है और बसंत का आगमन हो गया है अतः आज से प्रभु बसंत खेलते हैं.
आज से सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में शीतकालीन साज बड़ा (हटा) कर सम्पूर्ण सफ़ेद साज धरा जाता है.
आज से डोलोत्सव (40 दिन) तक ज़री के वस्त्र वर्जित होते हैं. आज से डोल तक खंडपाट, चौकी, पडघा आदि सभी साज चांदी के आते हैं.
आज से निज-मंदिर में प्रभु स्वरुप के सम्मुख धरी जाने वाली लाल रंग की रुईवाली पतली रजाई (तेह) नहीं बिछाई जाएगी जो कि शीतकाल में प्रतिदिन राजभोग सरे पश्चात उत्थापन तक प्रभु सुखार्थ चरण-चौकी से शैया मन्दिर में शैयाजी तक बिछाई जाती है.
आज से दिन के अनोसर में श्रीजी को सौभाग्य-सूंठ भी नहीं आरोगायी जाएगी. अब केवल रात्रि अनोसर में ही प्रभु को सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाएगी जो कि आगामी दिनों में शीत रहने तक अरोगायी जाएगी.
आज से प्रतिदिन छोगा छड़ी धरायी जाती है व आज से चालीस दिनों तक प्रभु को धरायी जाने वाली गुंजामाला दोहरी (Double) आती है.
माघ, फाल्गुन एवं चैत्र मास श्री चन्द्रावलीजी के सेवा मास हैं परन्तु आज से दस दिन की सेवा श्री यमुनाजी के भाव से होती है. बसंत खेल के दस दिन हैं जो कि सात्विक भक्तों के खेल के दिन हैं.
गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन इन चार वस्तुओं से प्रभु को खेल खिलाया जाता है. गुलाल ललिताजी के भाव से, अबीर श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, चोवा श्री यमुनाजी के भाव से और केसरयुक्त चन्दन कंचनवर्णी श्री राधिकाजी (श्री स्वामिनीजी) के भाव से आते हैं.
इस प्रकार श्रीजी आगामी दस दिन इन चार वस्तुओं से खेलते हैं. अनामिका उंगली से टिपकियां करके सूक्ष्म खेल होता है.
आज से चालीस दिन तक गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन एवं केसर रंग से प्रभु व्रजभक्तों के साथ होली खेलते हैं. होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. प्रिया-प्रियतम परस्पर भी होली खेलते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं. ऐसी रसमय होली की आज शुरुआत होती है.
श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दिनभर सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दिन में सभी समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) थाली की आरती आती है.
गेंद, चौगान व दिवला सभी चांदी के आते हैं.
मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
नियम के श्वेत अड़तु के सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर श्याम खिड़की की श्वेत पाग के ऊपर सादी मोर-चंद्रिका धरायी जाती है.
आज से प्रतिदिन छोगा व श्रीहस्त में पुष्पों की छड़ी धरी जाती है.
आज से 10 दिन तक जैसे श्रृंगार हों उसी भाव के बसंत के पद गाये जाते हैं.
प्रत्येक पद बसंत राग में ही गाये जाते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : वसंत)
श्रीपंचमी परममंगल दिन, मदन महोच्छव आज l
वसंत बनाय चली व्रजसुंदरी ले पूजा को साज ll 1 ll
कनक कलश जलपुर पढ़त रतिकाममन्त्र रसमूल l
तापर धरी रसाल मंजुरी आवृत पीत दुकूल ll 2 ll
चोवा चंदन अगर कुंकुमा नव केसर घन सार l
धुपदीप नाना निरांजन विविध भांति उपहार ll 3 ll
बाजत ताल मृदंग मुरलिका बीना पटह उमंग l
गावत वसंत मधुर सुर उपजत तानतरंग ll 4 ll
छिरकत अति अनुराग मुदित गोपीजन मदनगुपाल l
मानों सुभग कनिकदली मधि शोभित तरुन तमाल ll 5 ll
यह विधि चली रति राज वधावन सकल घोष आनंद l
‘हरिजीवन’ प्रभु गोवर्धनधर जय जय गोकुल चंद ll 6 ll
साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत अड़तु का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का आता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
श्रृंगार – आज श्रीजी में मध्य का (छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के माणक, स्वर्ण एवं लाल मीना के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत पाग (श्याम खिड़की की) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पट्टीदार जड़ाऊ कटिपेंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, सोना के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. आज विशेष रूप से श्रीमस्तक पर सिरपैंच में आम के मोड़ धराये जाते हैं.
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की आती है.

🌸🌼बसंत अधिवासन🌼🌸
आज श्रीजी में दो राजभोग अरोगाये जाते हैं. प्रथम राजभोग में नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में मीठी सेव, केसरी पेठा आदि अरोगाये जाते हैं.
आज की सेवा में बसंत अधिवासन किया जाता है. बसंत के कलश की स्थापना की जाती है. रजत कलश (घट या हांडा) में जल भरकर इसे खजूर की डाल, आम के वृक्ष के पत्तों सहित आम्र मंजरी (आम के वृक्ष पर लगने वाली कोंपलें), सरसों के पीले पुष्प सहित टहनियां, यव (गेहूं) की बालियाँ, बेर आदि एवं विविध पुष्पों से सजाया जाता है.
कलश को लाल वस्त्र से लपेटा जाता है जो कि तूई की किनारी से सुसज्जित होता है.
प्रथम राजभोग अरोगे पश्चात इस कलश का अधिवासन किया जाता है. कामदेव के पांच बाणों के भाव से ऊपर वर्णित पांच वस्तुओं से कलश को सजाया जाता है. कामदेव के पूजन के भाव से ही कलश का पूजन किया जाता है. बसंत के कलश को सजाकर लकड़ी की चौकी पर पधराकर आचमन कर हाथ में जल, अक्षत लेकर निम्नलिखित श्लोक बोला जाता है.
‘भगवत: श्री पुरुषोत्तमस्य वृन्दावने वसन्तक्रीड़ार्थं वसंताधिवासनम अहं करिष्ये.’
तत्पश्चात जल-अक्षत छोड़कर, कलश के ऊपर कुंकुम व अक्षत के छींटे डाल मिश्री के बूरे की कटोरी एवं बीड़ा का भोग रखा जाता है.
इस प्रकार अधिवासन के उपरांत पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं.
आज राजभोग की आरती करते समय पुष्प उडाये जाते हैं.
दूधघर-शाकघर की सामग्रियां, सूखे-मेवे, फल आदि सामग्रियों का एक थाल सजाकर सिंहासन के पास रखा जाता है. प्रभु को बसंत खिलाने के पूर्व इस थाल, फरगुल एवं झारीजी के ऊपर सफ़ेद वस्त्र ढँक दिया जाता है.
प्रथम श्री ठाकुरजी को दंडवत प्रणाम कर क्रमशः केसरी चन्दन से, गुलाल से, अबीर से एवं अंत में चोवा से खिलाया जाता है. इसमें सर्वप्रथम प्रभु की पाग, वागा, सूथन इस रीती से क्रमानुसार अनामिका उंगली से टिपकियां कर प्रभु को खिलाया जाता है.
तत्पश्चात मालाजी, वेत्रजी, गेंद, गादी को रंगा जाता है. अंत में सिंहासन वस्त्र तथा पिछवाई को केवल चन्दन एवं गुलाल से रंगा जाता है. चंदरवा को केवल चन्दन से छांटा जाता है.
इसके बाद डोल-तिबारी में दर्शन कर रहे वैष्णवों पर अबीर और गुलाल छांटी जाती है. खेल हो जाने के बाद दर्शन बंद होने के पश्चात मंदिर-वस्त्र किया जाता है अर्थात गुलाल को पोंछ के साफ़ किया जाता है और उत्सव भोग रखे जाते हैं.
द्वितीय राजभोग के उत्सव भोग में गेहूं की पाटिया के लड्डू, कठोर मठडी, कूर (घी में सेके हुए मेवा मिश्रित कसार) के गुंजा, छुट्टी-बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
25 बीड़ा की बड़ी शिकोरी आती हैं.
धुप-दीप, तुलसी, शंखोदक किया जाता है. भोग का समां पूर्ण होने के पश्चात भोग सराकर द्वितीय राजभोग के दर्शन खोले जाते हैं.
आज के दिन केवल प्रथम राजभोग में ही गुलाल से प्रभु को खेलते हैं. कल से चालीस दिन तक प्रतिदिन ग्वाल और राजभोग में प्रभु को गुलाल, अबीर से खिलाया जायेगा.
खेल का सर्व साज (गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन) प्रतिदिन नये साजे जाते हैं और राजभोग पश्चात के अनोसर में भी श्रीजी के पास सजे रहते हैं. खेल के भोग एवं खेल का साज सायं उत्थापन समय सराये जाते हैं.
बसंत का कलश संध्या-आरती के पश्चात मंदिर के बाहर पधराया जाता है. यह कलश केवल आज के दिन ही धरा जाता है.
उत्सव भोग भी केवल आज के दिन ही धरे जाते हैं. कल से केवल खेल के साज का थाल धरा जायेगा जो कि खेल के श्रमभोग के रूप में अरोगाया जाता है.
अनामिका से चन्दन-गुलाल आदि की टिपकियां कर खेल होवे इस भाव से सूरदास जी ने गाया है –
‘नेक महोंडो मांडन देहो होरीके खेलैया, जो तुम चतुर खिलार कहावत अंगुरिन को रस लेहो.’
आज भोग समय फल के साथ अरोगाये जाने फीका के स्थान पर तले सूखे मेवे की बीज-चलनी अरोगायी जाती है वहीँ संध्या आरती में प्रभु को अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर पाटिया (सेव) के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.
संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े कर श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं और छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं.
आज से श्रीजी में शयन के दर्शन बाहर खुलने प्रारंभ हो जायेंगे और प्रतिदिन लगभग सायं 7 बजे खुलेंगे. आज से शयन दर्शन संभवतया चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नववर्ष) अथवा चैत्र शुक्ल नवमी (रामनवमी) तक गर्मी के आगमन के आधार पर होते रहेंगे. उसके पश्चात विजय दशमी तक शयन के दर्शन भीतर ही होते हैं.
वर्षभर में केवल आज के दिन श्रीजी में नौं दर्शन खुलते हैं. (यद्यपि इस बार महामारी प्रकोप के कारण छह दर्शन ही खुलेंगे)
Sunday, 14 February 2021
व्रज – माघ शुक्ल चतुर्थी
Saturday, 13 February 2021
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Thursday, 11 February 2021
व्रज– माघ शुक्ल प्रतिपदा
Wednesday, 10 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण अमावस्या
Tuesday, 9 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण चतुर्दशी
व्रज – माघ कृष्ण चतुर्दशी
Wednesday, 10 February 2021
श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.
मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को पतंगी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : आसावरी)
माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनि सजनी बिना हि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करौ ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर हसकर घुंघट खोले ll 2 ll
साज – श्रीजी में आज पतंगी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और क़तरा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पतंगी व गोटी चाँदी की आती है.
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Monday, 8 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण त्रयोदशी
Sunday, 7 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण द्वादशी(एकादशी व्रत)
व्रज – माघ कृष्ण द्वादशी(एकादशी व्रत)
Monday, 08 February 2021
आज हरि रैन उनींदे आये ।
अटपटी पाग लटपटी अलकें
भृकुटि अंग नचाये ।।१।।
अंजन अधर ललाट महावर
नयन तम्बोल खवाये ।
सूरदास कहे मोहे अचम्भो
हरि रात रात में तीन तिलक
कहांते पाये ।।२।।
षट्तिला एकादशी, डोलोत्सव का आगम का श्रृंगार
विशेष – कल एकादशी थी लेकिन वैष्णव मतानुसार षट्तिला एकादशी आज मानी गई है एवं षट्तिला एकादशी का व्रत आज किया जायेगा. आज श्रीजी में नियम से डोलोत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.
बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.
विक्रमाब्द १९७३-७४ में तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी ने प्रभु प्रीति के कारण अपने पिता और तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी से विनती कर इस श्रृंगार की आज्ञा ली और यह प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया था.
तदुपरांत यह श्रृंगार प्रतिवर्ष धराया जाता है.
बसंत-पंचमी के पूर्व श्रीजी में गुलाल वर्जित होती है अतः पिछवाई एवं वस्त्रों पर सफ़ेद और लाल रंग के वस्त्रों को काट कर ऐसा सुन्दर भरतकाम (Work) किया गया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो.
श्रीजी को आज के दिन षट्तिला एकादशी के कारण विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में तिलवा (तिल) के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं,
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सुधराई)
आज बने नवरंग छबीले डगमगात पग अंग-अंग ढीले ll 1 ll
जावक पाग रंगी धों कैसेरी जैसे करी कहो पिय तैसे ll 2 ll
बोलत वचन बहुत अलसाने पीक कपोल अधर लपटाने ll 3 ll
कुमकुम हृदय भूजन छबि वंदन ‘सूरश्याम’ नागर मनरंजन ll 4 ll
साज – आज श्रीजी में पतंगी (गुलाल जैसे) रंग की, अबीर व चूवा के भाव से सफ़ेद एवं श्याम रंग की टिपकियों के भरतकाम से डोल उत्सव सी सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. इसे देख के ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को पतंगी रंग का डोल उत्सव का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराया जाता है. पटका मोठड़ा का धराया जाता है. सभी वस्त्र सफ़ेद अबीर एवं श्याम चूवा की टिपकियों के भरतकाम से सुसज्जित होते हैं. मोजाजी लाल रंग के एवं ठाड़े वस्त्र श्वेत-श्याम रंग की टिपकियों वाले धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल गुलाल जैसे रंग की, श्वेत-श्याम टिपकियों वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना का पट्टीदार कटिपेच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका पर रंगीन तिकड़ी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में माणक के लोलकबंदी – लड़वाले चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में सोने का डोरा, हमेल, चन्द्रहार अक्काजी का आदि धराये जाते हैं. लाल, पीले एवं श्वेत रंग के पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में सोने के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की, पट चीड का, गोटी चांदी की और वस्त्र के छोगा आते हैं. आज छड़ी नहीं धरायी जाती है.
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Saturday, 6 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण एकादशी (दशमी क्षय)
व्रज – माघ कृष्ण एकादशी (दशमी क्षय)
Sunday, 07 February 2021
आज एकादशी है किंतु षट्तिला एकादशी का व्रत वैष्णव मतानुसार कल है इसलिये श्रीजी में नियम से डोलोत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार भी कल धराया जायेगा.
श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.
मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को मेघश्याम रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज धराया जायेगा.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : आशावरी)
माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में मेघश्याम रंग की शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज मेघश्याम साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेंटा का साज धराया जाता है. मेघश्याम रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मेघस्याम रंग की रेशम की बीच की चंद्रिका, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती की लोलकबंदी-लड़वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धरावे.
गुलाबी गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट मेघस्याम एवं गोटी चाँदी की बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.
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Friday, 5 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण नवमी
Thursday, 4 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण अष्टमी
व्रज – माघ कृष्ण अष्टमी
Friday, 05 February 2021
नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े दामोदरजी (दाऊजी) महाराज का उत्सव
विशेष – श्री गोवर्धनधरण प्रभु जिनके यहाँ व्रज से मेवाड़ पधारे, आज श्रीजी में उन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े दामोद (दाऊजी) का उत्सव है.
आपका प्राकट्य श्री लाल-गिरधरजी महाराज के यहाँ विक्रम संवत १७११ में गोकुल में हुआ.
आप अद्भुत स्वरुपवान थे एवं सदैव अदरक एवं गुड़ अपने साथ रखते थे एवं अरोगते थे.
इसी भाव से आज श्रीजी को विशिष्ट सामग्रियां भी अरोगायी जाती है जिसका विवरण मैं नीचे सेवाक्रम में दे रहा हूँ. (विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)
श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है और आरती दो समां में थाली में की जाती है.
गद्दल, रजाई लाल बड़े बूटा के धराये जाते हैं.
श्रीजी को नियम से लाल रंग की खीनखाब के बड़े बूंटे वाले चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव माणक की कुल्हे के ऊपर स्वर्ण जड़ाव का घेरा धराया जाता है.
प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
इसके अतिरिक्त आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ही केशरयुक्त संजाब (गेहूं के रवा) की खीर व श्रीखंड-वड़ा भी अरोगाये जाते हैं.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में आदा प्रकार अर्थात अदरक की विविध सामग्रियां जैसे अदरक का शाक व अदरक के गुंजा व अदरक भात अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी को अदरक के गुंजा आज के अतिरिक्त केवल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) के दिन ही अरोगाये जाते हैं.
उत्सव भोग के रूप में आज श्रीजी को संध्या-आरती में विशेष रूप से आदा (अदरक के रस से युक्त) की केसरी मनोर के लड्डू एवं आज अरोगाये जाने वाले ठोड़ के स्थान पर गुड़ की बूंदी के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं. ये दोनों सामग्रियां श्रीजी को वर्षभर में केवल आज के अतिरिक्त केवल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) के दिन ही अरोगायी जाती है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
सेवक की सुख रास सदा श्रीवल्लभ राजकुमार l
दरसन ही प्रसन्न होत मन पुरुषोत्तम अवतार ll 1 ll
सुदृष्टि चित्ते सिद्धांत बतायो लीला जग विस्तार l
यह तजि अन्य ज्ञानको ध्यावत, भूल्यो कुमति विचार ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ उद्धरे पतित श्रीविट्ठल कृपा उदार l
इनके कहे गही भुज दृढ करि गिरधर नन्द दुलार ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में कत्थई रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी रेशम से भरे छोटे-छोटे कूंडों (पात्रों) व हंसों की सज्जा से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. कत्थई एवं श्याम रंग के हांशिया के ऊपर भी सुन्दर सज्जा की हुई है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग की, बड़े बूटा के खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मलमल का पटका धराये जाते हैं. टंकमा हीरा के मोजाजी एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सव का भारी श्रृंगार धराये जाते हैं. मिलवा – प्रधानतया हीरा, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, स्वर्ण का जड़ाव का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. स्वरुप की बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में नीचे पदक, ऊपर हार, माला आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी गुलाब की एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
आरसी श्रुंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की, पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी जाली की आती है.
#pushtisaajshringar
Wednesday, 3 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण सप्तमी
Tuesday, 2 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण षष्ठी
Monday, 1 February 2021
व्रज – माघ कृष्ण पंचमी
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व्रज – माघ शुक्ल तृतीया Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...
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