By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 27 February 2021

व्रज - फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा
Sunday, 28 February 2021

श्री गोकुल राजकुमार लाल रंग भीने हें ।
खेलत डोलत फाग सखा संग लीने हें  ।।१।।
चित्र विचित्र सुदेश सबे अनुकुले हें  ।
राजत रंग विरंग सरोजसे फुले हें ।।२।।
अेकनके कर कंठण जोरी जराय की ।
अेकनके पिचकाई सु हेम भराय की ।।३।।
अेसोई ध्यान सदा हरीको जीय जो रहे ।
तापे गदाधर याके भाग्यकी को रहे ।।४।।

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को आज प्रभु को श्वेत लट्ठा के चाकदार वस्त्र पर धराये जाते है. श्रीमस्तक पर केसरी छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव का क़तरा धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : बिलावल)

वंदो मुनसाई नंदके जुवती झंडा केसें लेहोजु l ये सब सुंदरि घोखकि क्यों परिरंभन देहो ll 1 ll
फाल्गुन मास देत फगुआ अति क्रीड़ा रस खेलो l तनकी गति ओर भई बोली ढोली मेलो ll 2 ll
काहेको अकुलात हो मन को भायो करि हैं l हो भैया बलदेवको पृथक पृथक करि धरि है ll 3 ll
पांच सखी मिलि एक व्है बीच झंडा ले रोप्यो l फरहर रतिपति ऊपरे बहोत नगन जट ओप्यो ll 4 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा रूपहरी आवे.

Wednesday, 24 February 2021

व्रज – माघ शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – माघ शुक्ल त्रयोदशी 
Thursday, 25 February 2021

सेहरा का शृंगार

आज श्रीजी को केसरी लट्ठा का सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मीना का सेहरा धराया जाता है.
आज कपोल पर कमल पत्र नहीं मंडे,रोपणी से मंडे.
राजभोग में दुमाला को सब से खिलाया जाता हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

देखो राधा माधो,सरस जोर,
खेलत बसंत पिय नवल किशोर।।ध्रु।
  ईत हलधर संग,समस्त बाल।।
मधि नायक सोहे नंदलाल।।
उत जुवती जूथ,अदभूत रूप।।
मधि नायक सोहें,स्यामा अनूप।।१।।
  बहोरि निकसि चले जमुनातीर,।।
मानों रति नायक जात धीर।।
देखत रति नायक बने जाय।।
संग ऋतु बसंत ले परत पाय।।२।।
  बाजत ताल,मृदंग तूर,।।
पुनि भेरि निसान रवाब भूर।।
डफ सहनाई,झांझ ढोल।।
हसत परस्पर करत बोल।।३।।
  जाई जूही,चंपक रायवेलि।।
रसिक सखन में करत केलि।।४।।
  ब्रज बाढ्यो कोतिक अनंत।।
सुंदरि सब मिलि कियो मंत।।
तुम नंदनंदन को पकरि लेहु।।
सखी संकरषन को माखेहु।।५।।
  तब नवलवधू कींनो उपाई।।
चहुँ दिशते सब चली धाई।।
श्रीराधा पकरि स्याम कों लाई।।
सखी संकरषन ,जिन भाजिपाई।।६।
  अहो संकरषन जू सुनो बात बात।।
नंदलाल छांडि,तुम कहां जात।।
दे गारी बोहो विधि अनेक।।
तब हलधर पकरे सखी अनेक।।७।।
  अंजन हलधर नेन दीन।।
कुंकुम मुख मंजन जू किन।।
हरधवजू फगवा आनी देहु।।
जुम कमल नेन कों छुडाई लेहु।।८।।
      जो मांग्यो सो़ं फगूआ दीन ।।
नवललाल संग केलि कौन हसत,
खेलत चले अपने धाम।।
व्रज युवती भई पूरन काम।।९।।
  नंदरानी ठाडी पोरि द्वार।।
नोछावरि करि देत वार ।।
वृषभान सुता संग रसिकराय।।
जन माणिक चंद बलिहारि जाय।।१०।।

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. लाल रंग के मोजाजी भी धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) फागुण का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मीना का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
आज त्रवल की जगह स्वर्ण की चंपाकली धरायी जाती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.
दुमाला रहे लूम तुर्रा नहीं आवे.

Friday, 19 February 2021

व्रज – माघ शुक्ल अष्टमी

व्रज – माघ शुक्ल अष्टमी 
Saturday, 20 February 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग का फ़ेटा धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) 

श्रीवृंदावन खेलत गुपाल, बनि बनि आई व्रजकी बाल ll 1 ll
नवसुंदरी नवतमाल, फूले नवल कमल मधि नव रसाल ll 2 ll
अपने कर सुंदर रचित माल, अवलंबित नागर नंदलाल ll 3 l
नव गोप वधू राजत हे संग, गजमोतिन सुंदर लसत मंग ll 4 ll
नवकेसर मेद अरगजा धोरि, छिरकत नागरिकों नवकिशोर ll 5 ll
तहां गोपीग्वाल सुंदर सुदेश, राजत माला विविध केस ll 6 ll
नंदनंदन को भूवविलास, सदा रहो मन 'सूरदास' ll 7 ll

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं गुलाबी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं. पटका गुलाबी रंग का धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, बीच की चंद्रिका, एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में लाल मीना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी हाथीदाँत की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेटा रहे लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Thursday, 18 February 2021

व्रज – माघ शुक्ल सप्तमी

व्रज – माघ शुक्ल सप्तमी 
Friday, 19 February 2021

सुखद तुव संग ब्रजसुंदरी गाईये | 
नवल बसंत नवल पियकंत, राधिका संग आईये ||१|| 
कंचन कुंभ मदन सिंधु ते, भरी कें नेह  लाईये | 
पीत बसन सों ढांपी के, कामतरोवर पाइये ||२|| 
घोष घोष ते गलिन गलिन प्रति बिछुवन नाद सुनाईये |
   केसु कुसुम नवरंग सुरंगे, अबीर गुलाल उडा़ईये ||३|| 
उठत उमंग मुख चंग मृदंग डफ ढम ढल बजाई |
 बूकाबंदन टरण रज वंदन, "सूरस्नेही" मिलन धाईये ||४||

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) 

श्रीवृंदावन खेलत गुपाल, बनि बनि आई व्रजकी बाल ll 1 ll
नवसुंदरी नवतमाल, फूले नवल कमल मधि नव रसाल ll 2 ll
अपने कर सुंदर रचित माल, अवलंबित नागर नंदलाल ll 3 l
नव गोप वधू राजत हे संग, गजमोतिन सुंदर लसत मंग ll 4 ll
नवकेसर मेद अरगजा धोरि, छिरकत नागरिकों नवकिशोर ll 5 ll
तहां गोपीग्वाल सुंदर सुदेश, राजत माला विविध केस ll 6 ll
नंदनंदन को भूवविलास, सदा रहो मन 'सूरदास' ll 7 ll

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं गुलाबी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. पटका हरे रंग का धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का कतरा एवं तुर्री बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में लाल मीना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फाल्गुन की हाथीदाँत की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 17 February 2021

व्रज – माघ शुक्ल षष्ठी (द्वितीय)

व्रज – माघ शुक्ल षष्ठी (द्वितीय)
Thursday, 18 February 2021

और राग सब भये बाराती दूल्हे राग बसंत।
मदन महोत्सव आज सखि री बिदा भयो हेमंत।।
मधुरे सुर कोकिल कल कूजत बोलती मोर हँसत।।
गावती नारि पंचम सुर ऊँचे जैसे पिक गुनवंत ।।
हाथन लइ कनक पिचकाई मोहन चाल चलंति।।
कुम्भनदास श्यामा प्यारी कों मिल्यो हे भांमतो कंत।।

बसंत पंचमी के दो दिन बाद आज श्रीजी में नियम से श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा के ऊपर गुलाबी झाँई फ़तवी धरायी जाती है. फ़तवी आधी बाँहों वाली एक बंडी या जैकेट जैसी पौशाक होती है जो कि शीतकाल में चोली और घेरदार वागा के ऊपर धरायी जाती है. 
फ़तवी सदैव घेरदार वागा से अलग रंग की होती है. शीतकाल में फ़तवी के चार श्रृंगार धराये जाते हैं. 

आज की फ़तवी द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आती है जबकि घेरदार वागा श्रीजी में ही सिद्ध होते हैं.
फ़तवी के संग श्रीजी के भोग हेतु  गुड़कल और घी की कटोरी भी पधारती है जो कि प्रभु को मंगलभोग में आरोगायी जाती है और सखड़ी में वितरित होती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)

खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा के ऊपर गुलाबी झाई की फ़तवी धरायी जाती है. लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) का फ़ागुन का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज फ़तवी धराए जाने से त्रवल, कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में सुआ वाले एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 16 February 2021

सतघरा

भारत मे पुष्टिमार्ग की प्रथम हवेली सतघरा मथुरा की एक संकरी गली में पुष्टिमार्ग की अमूल्य संपदा का भंडार छिपा है। भारत में वल्लभ कुल की प्रथम हवेली सतघरा में कभी सातों निधियां बिराजी थीं। पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक वल्लभाचार्य जी के पुत्र गोस्वामी विट्ठालनाथ जी ने मथुरा में सर्वप्रथम इसी भवन में वास किया था। गुजरात व विदेशों से आने वाले वैष्णवों के लिए सतघरा सबसे बड़ा तीर्थ है पर पर्यटन विभाग के लिए नहीं। धार्मिक पर्यटन के नक़्शे में दूर-दूर तक सतघरा का नाम नहीं है। पांच सौ वर्ष की विरासत को संजोए खड़ी यह गली एक हेरीटेज है। इसके संरक्षण व प्रचार प्रसार की ज़रूरत है। इसी गली को सतघरा के नाम से ही जाना जाता है। सात घरों की हवेली का स्वरूप बहुत छोटा रह गया है।
गली के आख़िर में गुसाई विट्ठलनाथ जी का प्राचीन स्थान है। प्रातः काल इस स्थान तक पहुँचे तो सेवायत शृंगार सेवा मिले। 
सतघरा श्रीनाथ जी की प्रथम चरण चौकी है। गुसाईं जी कौ घर है, सातौ निधि स्वरूप की हवेली है। गुसाईं जी अपने परिवार संग अडैल सों यहाँ पधारें और तीन कमरा बनवाय कै विराजे। यहाँ पुष्टिमार्ग की सात निधि और नवनीत प्रिया जी विराजे। ख़ुद श्री जी बाबा नै याए सतघरा नाम दियौ। यहाँ श्रीजी बाबा (श्रीनाथजी) पधारे तो बालकन नै बिनकी ख़ूब सेवा करी। यह सत्य स्वरूप नारायण कौ घर है। अकबर की बेगम ताज बीवी यहीं पै सेवक भई। अकबर नै आय कै विट्ठलनाथ जी कू गोस्वामी की उपाधि दई। तबही ते गोस्वामी परम्परा प्रारम्भ भई। यहीं पै गुसाँई जी के घनश्याम जी कौ प्राकट्य भयो। तबही ते पुष्टिमार्ग मै ब्रज भाषा शुरू भई। सातों बालकन कू एक-एक निधि की सेवा सौंप के गुसाँई जी गोकुल चले गए। वहाँ उन्होंने बस्ती बसाई। सतघरा मैं सातो बालकन की गद्दी हैं। 
देश-विदेश से वैष्णवजन सतघरा को आते हैं। वर्तमान में सप्त निधियां अलग-अलग स्थानों पर विराजमान हैं।
पुष्टि मार्ग की सात निधि 
१- मथुराधीश (कोटा)
२- विट्ठलनाथ जी (नाथद्वारा)
३- द्वारकाधीश (कांकरौली)
४- गोकुलनाथ (गोकुल)
५- गोकुल चंद्रमा (कामवन)
६- बालकृष्ण जी (सूरत)
७- मदन मोहन जी (कामवन)
इतिहास
वल्लभाचार्य के पुत्र गुसाई विट्ठलनाथ अपने अड़ैल स्थित निवास स्थान को छोड़कर सन् १५६६ में स्थाई रूप से ब्रज में वास करने लगे। उन्होंने अपने परिवार सहित मथुरा में जिस विशाल भवन में सर्वप्रथम निवास किया, उसे सतघरा कहा गया। वल्लभ सम्प्रदायी वार्ता में लिखा है कि गोंडवाना, मध्यप्रदेश की रानी दुर्गावती ने विट्ठलनाथ जी के लिए सतघरा का निर्माण करवाया था। गुसाई जी सन् १५७० तक इस भवन में रहे।
उसके बाद उन्होंने गोकुल में नई बस्ती बसा कर वहाँ भवनो व मंदिरो का निर्माण कराया। प्राचीन विशाल भवन नहीं रहा पर उनकी जगह छोटा मकान है जहाँ श्रीनाथजी की चरण चौकी स्थापित है। वार्ता साहित्य के अनुसार संवत १६२३ की फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को श्रीनाथ जी मथुरा आए। वह दो माह २२ दिन तक सतघरा में विराजमान रहे। उस समय यहाँ श्रीनाथ जी के उत्सवों की नित्य नई झाँकिया लगती थीं।

Monday, 15 February 2021

व्रज – माघ शुक्ल पंचमी

व्रज – माघ शुक्ल पंचमी
Tuesday, 16 February 2021

नवल वसंत नवल वृंदावन खेलत नवल गोवर्धनधारी ।
हलधर नवल नवल ब्रजबालक नवल नवल बनी गोकुल नारी ।।१।।
नवल जमुनातट नवल विमलजल नौतन मंद सुगंध समीर ।
नवल कुसुम नव पल्लव साखा कुंजत नवल मधुप पिक कीर ।।२।।
नव मृगमद नव अरगजा वंदन नौतन अगर सुनवल अबीर ।
नवचंदन नव हरद कुंकुमा छिरकत नवल परस्पर नीर ।।३।।
नवलधेनु महुवरि बाजे, अनुपम भूषण नौतन चीर ।
नवलरूप नव कृष्णदास प्रभुको, नौतन जस गावत मुनि धीर ।।४।।

सभी वैष्णवजन को बसंतोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

बसंत-पंचम

आज बसंत-पंचमी है. आज के दिन कामदेव का प्रादुर्भाव हुआ था अतः इसे मदन-पंचमी भी कहा जाता है.

शीत ऋतु लगभग पूर्ण हो चुकी है और बसंत का आगमन हो गया है अतः आज से प्रभु बसंत खेलते हैं.

आज से सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में शीतकालीन साज बड़ा (हटा) कर सम्पूर्ण सफ़ेद साज धरा जाता है.
आज से डोलोत्सव (40 दिन) तक ज़री के वस्त्र वर्जित होते हैं. आज से डोल तक खंडपाट, चौकी, पडघा आदि सभी साज चांदी के आते हैं.

आज से निज-मंदिर में प्रभु स्वरुप के सम्मुख धरी जाने वाली लाल रंग की रुईवाली पतली रजाई (तेह) नहीं बिछाई जाएगी जो कि शीतकाल में प्रतिदिन राजभोग सरे पश्चात उत्थापन तक प्रभु सुखार्थ चरण-चौकी से शैया मन्दिर में शैयाजी तक बिछाई जाती है.

आज से दिन के अनोसर में श्रीजी को सौभाग्य-सूंठ भी नहीं आरोगायी जाएगी. अब केवल रात्रि अनोसर में ही प्रभु को सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाएगी जो कि आगामी दिनों में शीत रहने तक अरोगायी जाएगी.

आज से प्रतिदिन छोगा छड़ी धरायी जाती है व आज से चालीस दिनों तक प्रभु को धरायी जाने वाली गुंजामाला दोहरी (Double) आती है.

माघ, फाल्गुन एवं चैत्र मास श्री चन्द्रावलीजी के सेवा मास हैं परन्तु आज से दस दिन की सेवा श्री यमुनाजी के भाव से होती है. बसंत खेल के दस दिन हैं जो कि सात्विक भक्तों के खेल के दिन हैं.

गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन इन चार वस्तुओं से प्रभु को खेल खिलाया जाता है. गुलाल ललिताजी के भाव से, अबीर श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, चोवा श्री यमुनाजी के भाव से और केसरयुक्त चन्दन कंचनवर्णी श्री राधिकाजी (श्री स्वामिनीजी) के भाव से आते हैं.

इस प्रकार श्रीजी आगामी दस दिन इन चार वस्तुओं से खेलते हैं. अनामिका उंगली से टिपकियां करके सूक्ष्म खेल होता है.

आज से चालीस दिन तक गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन एवं केसर रंग से प्रभु व्रजभक्तों के साथ होली खेलते हैं. होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. प्रिया-प्रियतम परस्पर भी होली खेलते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं. ऐसी रसमय होली की आज शुरुआत होती है.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

दिनभर सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दिन में सभी समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) थाली की आरती आती है.
गेंद, चौगान व दिवला सभी चांदी के आते हैं.  

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

नियम के श्वेत अड़तु के सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर श्याम खिड़की की श्वेत पाग के ऊपर सादी मोर-चंद्रिका धरायी जाती है.

आज से प्रतिदिन छोगा व श्रीहस्त में पुष्पों की छड़ी धरी जाती है.
आज से 10 दिन तक जैसे श्रृंगार हों उसी भाव के बसंत के पद गाये जाते हैं.
प्रत्येक पद बसंत राग में ही गाये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

श्रीपंचमी परममंगल दिन, मदन महोच्छव आज l
वसंत बनाय चली व्रजसुंदरी ले पूजा को साज ll 1 ll
कनक कलश जलपुर पढ़त रतिकाममन्त्र रसमूल l
तापर धरी रसाल मंजुरी आवृत पीत दुकूल ll 2 ll
चोवा चंदन अगर कुंकुमा नव केसर घन सार l
धुपदीप नाना निरांजन विविध भांति उपहार ll 3 ll
बाजत ताल मृदंग मुरलिका बीना पटह उमंग l
गावत वसंत मधुर सुर उपजत तानतरंग ll 4 ll
छिरकत अति अनुराग मुदित गोपीजन मदनगुपाल l
मानों सुभग कनिकदली मधि शोभित तरुन तमाल ll 5 ll
यह विधि चली रति राज वधावन सकल घोष आनंद l
‘हरिजीवन’ प्रभु गोवर्धनधर जय जय गोकुल चंद ll 6 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत अड़तु का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का आता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी में मध्य का (छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के माणक, स्वर्ण एवं लाल मीना के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत पाग (श्याम खिड़की की) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पट्टीदार जड़ाऊ कटिपेंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, सोना के  बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. आज विशेष रूप से श्रीमस्तक पर सिरपैंच में आम के मोड़ धराये जाते हैं.
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की आती है.

            🌸🌼बसंत अधिवासन🌼🌸

आज श्रीजी में दो राजभोग अरोगाये जाते हैं. प्रथम राजभोग में नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में मीठी सेव, केसरी पेठा आदि अरोगाये जाते हैं.

आज की सेवा में बसंत अधिवासन किया जाता है. बसंत के कलश की स्थापना की जाती है. रजत कलश (घट या हांडा) में जल भरकर इसे खजूर की डाल, आम के वृक्ष के पत्तों सहित आम्र मंजरी (आम के वृक्ष पर लगने वाली कोंपलें), सरसों के पीले पुष्प सहित टहनियां, यव (गेहूं) की बालियाँ, बेर आदि एवं विविध पुष्पों से सजाया जाता है.

कलश को लाल वस्त्र से लपेटा जाता है जो कि तूई की किनारी से सुसज्जित होता है.

प्रथम राजभोग अरोगे पश्चात इस कलश का अधिवासन किया जाता है. कामदेव के पांच बाणों के भाव से ऊपर वर्णित पांच वस्तुओं से कलश को सजाया जाता है. कामदेव के पूजन के भाव से ही कलश का पूजन किया जाता है. बसंत के कलश को सजाकर लकड़ी की चौकी पर पधराकर आचमन कर हाथ में जल, अक्षत लेकर निम्नलिखित श्लोक बोला जाता है.

‘भगवत: श्री पुरुषोत्तमस्य वृन्दावने वसन्तक्रीड़ार्थं वसंताधिवासनम अहं करिष्ये.’

तत्पश्चात जल-अक्षत छोड़कर, कलश के ऊपर कुंकुम व अक्षत के छींटे डाल मिश्री के बूरे की कटोरी एवं बीड़ा का भोग रखा जाता है.
इस प्रकार अधिवासन के उपरांत पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं.

आज राजभोग की आरती करते समय पुष्प उडाये जाते हैं.

दूधघर-शाकघर की सामग्रियां, सूखे-मेवे, फल आदि सामग्रियों का एक थाल सजाकर सिंहासन के पास रखा जाता है. प्रभु को बसंत खिलाने के पूर्व इस थाल, फरगुल एवं झारीजी के ऊपर सफ़ेद वस्त्र ढँक दिया जाता है.

प्रथम श्री ठाकुरजी को दंडवत प्रणाम कर क्रमशः केसरी चन्दन से, गुलाल से, अबीर से एवं अंत में चोवा से खिलाया जाता है. इसमें सर्वप्रथम प्रभु की पाग, वागा, सूथन इस रीती से क्रमानुसार अनामिका उंगली से टिपकियां कर प्रभु को खिलाया जाता है.
तत्पश्चात मालाजी, वेत्रजी, गेंद, गादी को रंगा जाता है. अंत में सिंहासन वस्त्र तथा पिछवाई को केवल चन्दन एवं गुलाल से रंगा जाता है. चंदरवा को केवल चन्दन से छांटा जाता है.

इसके बाद डोल-तिबारी में दर्शन कर रहे वैष्णवों पर अबीर और गुलाल छांटी जाती है. खेल हो जाने के बाद दर्शन बंद होने के पश्चात मंदिर-वस्त्र किया जाता है अर्थात गुलाल को पोंछ के साफ़ किया जाता है और उत्सव भोग रखे जाते हैं.

द्वितीय राजभोग के उत्सव भोग में गेहूं की पाटिया के लड्डू, कठोर मठडी, कूर (घी में सेके हुए मेवा मिश्रित कसार) के गुंजा, छुट्टी-बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
25 बीड़ा की बड़ी शिकोरी आती हैं.
धुप-दीप, तुलसी, शंखोदक किया जाता है. भोग का समां पूर्ण होने के पश्चात भोग सराकर द्वितीय राजभोग के दर्शन खोले जाते हैं.

आज के दिन केवल प्रथम राजभोग में ही गुलाल से प्रभु को खेलते हैं. कल से चालीस दिन तक प्रतिदिन ग्वाल और राजभोग में प्रभु को गुलाल, अबीर से खिलाया जायेगा.
खेल का सर्व साज (गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन) प्रतिदिन नये साजे जाते हैं और राजभोग पश्चात के अनोसर में भी श्रीजी के पास सजे रहते हैं. खेल के भोग एवं खेल का साज सायं उत्थापन समय सराये जाते हैं.

बसंत का कलश संध्या-आरती के पश्चात मंदिर के बाहर पधराया जाता है. यह कलश केवल आज के दिन ही धरा जाता है.
उत्सव भोग भी केवल आज के दिन ही धरे जाते हैं. कल से केवल खेल के साज का थाल धरा जायेगा जो कि खेल के श्रमभोग के रूप में अरोगाया जाता है.

अनामिका से चन्दन-गुलाल आदि की टिपकियां कर खेल होवे इस भाव से सूरदास जी ने गाया है –
‘नेक महोंडो मांडन देहो होरीके खेलैया, जो तुम चतुर खिलार कहावत अंगुरिन को रस लेहो.’

आज भोग समय फल के साथ अरोगाये जाने फीका के स्थान पर तले सूखे मेवे की बीज-चलनी अरोगायी जाती है वहीँ संध्या आरती में प्रभु को अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर पाटिया (सेव) के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े कर श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं और छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं.

आज से श्रीजी में शयन के दर्शन बाहर खुलने प्रारंभ हो जायेंगे और प्रतिदिन लगभग सायं 7 बजे खुलेंगे. आज से शयन दर्शन संभवतया चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नववर्ष) अथवा चैत्र शुक्ल नवमी (रामनवमी) तक गर्मी के आगमन के आधार पर होते रहेंगे. उसके पश्चात विजय दशमी तक शयन के दर्शन भीतर ही होते हैं.

वर्षभर में केवल आज के दिन श्रीजी में नौं दर्शन खुलते हैं. (यद्यपि इस बार महामारी प्रकोप के कारण छह दर्शन ही खुलेंगे) 


Sunday, 14 February 2021

व्रज – माघ शुक्ल चतुर्थी

व्रज – माघ शुक्ल चतुर्थी
Monday, 15 February 2021

शिशिर रितुको आगम भयो प्यारी बीदा भयो हेमंत ।
विरहिनके भाग्यते आलि आवत चल्यो वसंत ।।१।।       
 ताहि दुतिकाके  भवन बसे जहां भांवर लीने कंत ।
कुम्भनदास प्रभु वा जाडेको आय रह्यो हे अंत ।।२।।

श्री मुकुन्दरायजी (काशी) का पाटोत्सव, श्री दामोदरदासजी हरसानी का प्राकट्य दिवस

विशेष – आज श्री मुकुंदरायजी (काशी) का पाटोत्सव व पुष्टि सृष्टि के अग्रेश श्री दामोदरदास हरसानीजी का प्राकट्य दिवस है. (दामोदरदास हरसानीजी पर विशेष आलेख अन्य पोस्ट में)

प्रभु के सेवाक्रम में प्रत्येक ऋतु का परिवर्तन उसके आगमन और प्रस्थान के समय अद्भुत क्रमानुसार होता है. 

जिस प्रकार कोई भी ऋतु एकदम से नहीं परिवर्तित नहीं हो जाती वरन धीरे धीरे कई भागों में परिवर्तित होती है उसी प्रकार पुष्टिमार्ग में प्रभु का सेवाक्रम इस प्रकार निर्धारित किया गया है कि ऋतु के प्रत्येक भाग के बदलाव के अनुसार सेवाक्रम में भी बदलाव होता है.

बसंत पंचमी से बसंत ऋतु का आगमन और शीत ऋतु के प्रस्थान की उल्टी गिनती शुरू हो रही है तो प्रभु के सेवाक्रम में भी कुछ परिवर्तन होते हैं.

विजयदशमी के दिन प्रभु को ज़री के वस्त्र धराये जाने आरम्भ होते हैं जो कि आज अंतिम बार धराये जाते हैं. कल बसंत-पंचमी से वस्त्रों में ज़री का प्रयोग वर्जित होगा. 

देव-प्रबोधिनी एकादशी के दिन से प्रतिदिन निज-मंदिर में प्रभु स्वरुप के सम्मुख से शैया मंदिर तक बिछाई जाने वाली लाल तेह (चित्र में द्रश्य) भी आज अंतिम बार धरी जाएगी.

श्रीजी का सेवाक्रम – आज प्रभु में गेंद, चौगान, दिवला सोने के आते हैं. दिन में दो समय आरती थाली की आती है.  

आज बसंत-पंचमी के एक दिन पूर्व श्रीजी में शीतकाल की पांचवी चौकी होती है. 
मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार शीतकाल में पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी सहित) श्रीजी को अरोगायी जाती है. 

इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है.

आज पांचवी एवं अंतिम चौकी है जिसमें श्रीजी को मंगलभोग में गुड़कल अरोगायी जाती है. श्रीजी प्रभु को नियम से गुड़कल वर्षभर में केवल आज अरोगायी जाती है. 
ऐसा कहा जाता है कि गुड़कल के द्वारा प्रभु शीत को लुढ़का देते हैं अर्थात आज से प्रतिदिन शीत कम ही होगी. 

आज नियम से श्रीजी को लाल सलीदार ज़री का सूथन, श्वेत फुलकशाही ज़री के चोली व चागदार वस्त्र, मेघश्याम ठाड़े वस्त्र, पटका सुनहरी ज़री का, श्रीमस्तक पर हीरा का किरीट पान व भारी आभरण धराये जायेंगे. 

आज शीतकाल का किरीट का अंतिम श्रृंगार है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :

🌼 मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.
🌼 मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण देव-प्रबोधिनी से बसंत-पंचमी तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.
🌼 मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार अथवा घेरदार वागा धराये जा सकते हैं.
🌼 मुकुट धराया जावे तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत जामदानी (चिकन) के धराये जाते है परन्तु किरीट धराया जावे तब किसी भी अनुकूल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जा सकते हैं.
🌼 मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है.

राजभोग में प्रभु की पीठिका पर हीरा का रत्नजड़ित चौखटा धराया जाता है.

भोग विशेष में राजभोग की सखड़ी में श्याम-खटाई, रतालू प्रकार व श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध होकर पधारी गुड़कल अरोगायी जाती है.

दिन के अनोसर में अरोगायी जाने वाली शाकघर की सौभाग्यसूंठ आज अंतिम बार अरोगायी जाएगी. यद्यपि रात्रि अनोसर में शीत रहने तक प्रतिदिन सौभाग्य सूंठ जारी रहेगी.  

कल मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021 को बसंत-पंचमी है और कल श्रीजी में विशेष रूप से नौ दर्शन खुलेंगे. 
वर्ष में केवल बसंत-पंचमी के दिन ही प्रभु के नौ दर्शन होते हैं.(यद्यपि इस बार महामारी प्रकोप के कारण छह दर्शन खुलेंगे) 

प्रभु के सेवाक्रम में कई परिवर्तन होंगे जिनके विषय में कल की post में बताने का प्रयास करूंगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : पंचम/मालकौंस)

बोलत श्याम मनोहर बैठे कदंबखंड और कदंब की छैंया l
कुसुमित द्रुम अलि गुंजत सखी कोकिला कलकुजत तहियां ll 1 ll
सूनत दुतिकाके बचन माधुरी भयो है हुलास जाके मनमहियां l
‘कुंभनदास’ व्रजकुंवरि मिलन चलि रसिककुंवर गिरिधरन पैयां ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में फुलकशाही ज़री की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल सलीदार ज़री का सूथन, दीपावली वाला फुलकशाही ज़री की चोली, चागदार वागा एवं मोजाजी जड़ाऊ के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, पन्ना, माणक, मोती के मिलवा आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर हीरा का किरीट पान (शरद वाला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में उत्सव के हीरा के बड़े मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
उत्सव की हीरे की चोटी बायीं ओर धरायी जाती है. श्रीकंठ में नीचे पदक एवं ऊपर हार, माला, दुलड़ा आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.  
रंग-बिरंगी पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी जड़ाऊ की  आरसी शृंगार में सोने की डांडी की एवं राजभोग में चार झाड़ की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीकंठ के आभरण, किरीट, टोपी व मोजाजी बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल गोल-पाग के ऊपर हीरा की किलंगी व मोती की लूम धरायी जाती है. लूम तुर्रा नहीं धराये जाते. 
श्रीकंठ में छेड़ान के श्रृंगार व मोजाजी रुपहली ज़री के धराये जाते हैं.  

शयन उपरान्त अनोसर के पूर्व खंडपाट, चौकी, पडघा आदि सभी साज स्वर्ण के बदल कर चांदी के आयेंगे. चंदुवा श्वेत मलमल का बाँधा जायेगा.

Saturday, 13 February 2021

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Thursday, 11 February 2021

व्रज– माघ शुक्ल प्रतिपदा

व्रज– माघ शुक्ल प्रतिपदा
Friday, 12 February 2021

शीतकाल के सेहरा का चतुर्थ शृंगार

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को गुड़ की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को लाल सलीदार ज़री के सूथन, चोली व चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री)

अति रंग लाग्यो बनाबनी ।
दोऊजन अनुरागे पागे रजनी जुवती ज़ूथ चारु चितवनी ।।१।।
वृंदावन नित धाय रसिकवर तब गुनागुनी ।
मदनमोहन चिरजीयो दोऊ दुल्हे और दुल्हनी ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी विवाह के सेहरा के शृंगार में एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विराजमान हैं और गोपियाँ विवाह के मंगल गीत का गान साज सहित  कर रही हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री के सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं लाल मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. लाल ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हरे मीना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं. 
पट लाल एवं गोटी उत्सव की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Wednesday, 10 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण अमावस्या

व्रज – माघ कृष्ण अमावस्या
Thursday, 11 February 2021

फूली फूली डोले सोने के सदन मदन मोहन रसमाती ।
रसबस कीये सुहाग बिहारन मंदमद मुसकायनी ।।१।।
बैयां जोर परस्पर दोऊ लाडिली फेर जु लड़ाती ।
हरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी रस बरसत वो हो माती ।।२।।

एकादश (सुनहरी) घटा

विशेष – आज श्रीजी में शीतकाल की अंतिम सुनहरी घटा है. 

विशेष – ‘फूली फूली डोले सोने के सदन मदन मोहन रसमाती’ उपरोक्त कीर्तन के भाव के आधार पर प्रभु स्वर्ण भवन में व्रजभक्तों के साथ विहार कर रहे हैं इस भाव से आज श्रीजी में सुनहरी ज़री की घटा के दर्शन होते हैं.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज हेम कुंज की भावना से श्रीजी में सुनहरी घटा होगी. पिछवाई, वस्त्र आदि सभी सुनहरी ज़री के होते हैं वहीं गादी, तकिया, खण्डपाट आदि सभी साज केसरी साटन के आते हैं. सर्व आभरण सोनेला एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं.
आज सभी समां में केसरी पुष्प की माला धरायी जाती है.

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है. 
आज से माघ शुक्ल चतुर्थी तक पाँच दिन प्रभु को ज़री के वस्त्र धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री) 

गोपाल को मुखारविंद जियमें विचारो l
कोटि भानु कोटि चंद्र मदन कोटि वारो ll 1 ll
कमलनैन चारू बैन मधुर हास सोहै l
बंकन अवलोकन पर जुवती सब मोहे ll 2 ll
धर्म अर्थ काम मोक्ष सब सुखके दाता l
'चत्रभुज' प्रभु गोवर्धनधर गोकुल के त्राता ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज सुनहरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं खण्डपाट केसरी साटन के आते है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सुनहरी ज़री का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी सुनहरी ज़री के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण सोनेला एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की गोल-पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में सोनेला के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
आज पूरे दिन केसरी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट सुनहरी, गोटी सोने की चिड़िया की व आरसी सोने की आती है.

Tuesday, 9 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्दशी
Wednesday, 10 February 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.
मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को पतंगी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनि सजनी बिना हि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करौ ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर हसकर घुंघट खोले ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज पतंगी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और क़तरा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पतंगी व गोटी चाँदी की आती है.
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Monday, 8 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – माघ कृष्ण त्रयोदशी 
Tuesday, 09 February 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को हरे साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

जाको मन लाग्यो गोपाल सों ताहि ओर कैसें भावे हो ।
 लेकर मीन दूधमे राखो जल बिन सचु नहीं पावे हो ।।१।।
ज्यो सुरा रण घूमि चलत है पीर न काहू जनावे हो ।
ज्यो गूंगो गुर खाय रहत है सुख स्वाद नहि बतावे हो ।।२।।
जैसे सरिता मिली सिंधुमे ऊलट प्रवाह न आवे हो । 
तैसे सूर  कमलमुख निरखत चित्त ईत ऊत न डुलावे हो ।।३।।

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  चागदार  वागा धराये जाते हैं. पटका श्वेत ज़री का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच,जमाव का क़तरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में के कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा एवं गोटी चाँदी की आती है.

Sunday, 7 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण द्वादशी(एकादशी व्रत)

व्रज – माघ कृष्ण द्वादशी(एकादशी व्रत)
Monday, 08 February 2021

आज हरि रैन उनींदे आये ।
अटपटी पाग लटपटी अलकें
भृकुटि अंग नचाये ।।१।।
अंजन अधर ललाट महावर
नयन तम्बोल खवाये ।
सूरदास कहे मोहे अचम्भो
हरि रात रात में तीन तिलक
कहांते पाये ।।२।।

षट्तिला एकादशी, डोलोत्सव का आगम का श्रृंगार

विशेष – कल एकादशी थी लेकिन वैष्णव मतानुसार षट्तिला एकादशी आज मानी गई है एवं षट्तिला एकादशी का व्रत आज किया जायेगा. आज श्रीजी में नियम से डोलोत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

विक्रमाब्द १९७३-७४ में तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी ने प्रभु प्रीति के कारण अपने पिता और तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी से विनती कर इस श्रृंगार की आज्ञा ली और यह प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया था.

तदुपरांत यह श्रृंगार प्रतिवर्ष धराया जाता है.

बसंत-पंचमी के पूर्व श्रीजी में गुलाल वर्जित होती है अतः पिछवाई एवं वस्त्रों पर सफ़ेद और लाल रंग के वस्त्रों को काट कर ऐसा सुन्दर भरतकाम (Work) किया गया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो.

श्रीजी को आज के दिन षट्तिला एकादशी के कारण विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में तिलवा (तिल) के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं,

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सुधराई)

आज बने नवरंग छबीले डगमगात पग अंग-अंग ढीले ll 1 ll
जावक पाग रंगी धों कैसेरी जैसे करी कहो पिय तैसे ll 2 ll
बोलत वचन बहुत अलसाने पीक कपोल अधर लपटाने ll 3 ll
कुमकुम हृदय भूजन छबि वंदन ‘सूरश्याम’ नागर मनरंजन ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में पतंगी (गुलाल जैसे) रंग की, अबीर व चूवा के भाव से सफ़ेद एवं श्याम रंग की टिपकियों के भरतकाम से डोल उत्सव सी सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. इसे देख के ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को पतंगी रंग का डोल उत्सव का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराया जाता है. पटका मोठड़ा का धराया जाता है. सभी वस्त्र सफ़ेद अबीर एवं श्याम चूवा की टिपकियों के भरतकाम से सुसज्जित होते हैं. मोजाजी लाल रंग के एवं ठाड़े वस्त्र श्वेत-श्याम रंग की टिपकियों वाले धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल गुलाल जैसे रंग की, श्वेत-श्याम टिपकियों वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना का पट्टीदार कटिपेच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका पर रंगीन तिकड़ी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में माणक के लोलकबंदी – लड़वाले चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में सोने का डोरा, हमेल, चन्द्रहार अक्काजी का आदि धराये जाते हैं. लाल, पीले एवं श्वेत रंग के पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में सोने के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की, पट चीड का, गोटी चांदी की और वस्त्र के छोगा आते हैं. आज छड़ी नहीं धरायी जाती है.
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Saturday, 6 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण एकादशी (दशमी क्षय)

व्रज – माघ कृष्ण एकादशी (दशमी क्षय)
Sunday, 07 February 2021

आज एकादशी है किंतु षट्तिला एकादशी का व्रत वैष्णव मतानुसार कल है इसलिये श्रीजी में नियम से डोलोत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार भी कल धराया जायेगा.

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को मेघश्याम रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आशावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में मेघश्याम रंग की शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज मेघश्याम साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेंटा का साज धराया जाता है. मेघश्याम रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मेघस्याम रंग की रेशम की बीच की चंद्रिका, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती की लोलकबंदी-लड़वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धरावे.
गुलाबी गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट मेघस्याम एवं गोटी चाँदी की बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.
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Friday, 5 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण नवमी

व्रज – माघ कृष्ण नवमी
Saturday, 06 February 2021

तूतो मेरे प्राणनहूं ते प्यारी ।
नेक चितै हंसि बोलिये मोतें होंतो शरण तिहारी ।।१।।
अंतर दुरकरो अचराको खोलदे घूंघटपट सारी ।
"कृष्णदास" प्रभु गिरिधरनागर भरलीनेअंकवारी ।।२।।

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 
मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को गुलाबी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनि सजनी बिना हि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करौ ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर हसकर घुंघट खोले ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और क़तरा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी मीना की आती है.

Thursday, 4 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण अष्टमी

व्रज – माघ कृष्ण अष्टमी
Friday, 05 February 2021

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े दामोदरजी (दाऊजी) महाराज का उत्सव

विशेष – श्री गोवर्धनधरण प्रभु जिनके यहाँ व्रज से मेवाड़ पधारे, आज श्रीजी में उन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े दामोद (दाऊजी) का उत्सव है.
आपका प्राकट्य श्री लाल-गिरधरजी महाराज के यहाँ विक्रम संवत १७११ में गोकुल में हुआ.
आप अद्भुत स्वरुपवान थे एवं सदैव अदरक एवं गुड़ अपने साथ रखते थे एवं अरोगते थे.
इसी भाव से आज श्रीजी को विशिष्ट सामग्रियां भी अरोगायी जाती है जिसका विवरण मैं नीचे सेवाक्रम में दे रहा हूँ. (विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है और आरती दो समां में थाली में की जाती है.

गद्दल, रजाई लाल बड़े बूटा के धराये जाते हैं.
श्रीजी को नियम से लाल रंग की खीनखाब के बड़े बूंटे वाले चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव माणक की कुल्हे के ऊपर स्वर्ण जड़ाव का घेरा धराया जाता है.

प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
इसके अतिरिक्त आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ही केशरयुक्त संजाब (गेहूं के रवा) की खीर व श्रीखंड-वड़ा भी अरोगाये जाते हैं.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में आदा प्रकार अर्थात अदरक की विविध सामग्रियां जैसे अदरक का शाक व अदरक के गुंजा व अदरक भात अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी को अदरक के गुंजा आज के अतिरिक्त केवल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) के दिन ही अरोगाये जाते हैं.

उत्सव भोग के रूप में आज श्रीजी को संध्या-आरती में विशेष रूप से आदा (अदरक के रस से युक्त) की केसरी मनोर के लड्डू एवं आज अरोगाये जाने वाले ठोड़ के स्थान पर गुड़ की बूंदी के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं. ये दोनों सामग्रियां श्रीजी को वर्षभर में केवल आज के अतिरिक्त केवल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) के दिन ही अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सेवक की सुख रास सदा श्रीवल्लभ राजकुमार l
दरसन ही प्रसन्न होत मन पुरुषोत्तम अवतार ll 1 ll
सुदृष्टि चित्ते सिद्धांत बतायो लीला जग विस्तार l
यह तजि अन्य ज्ञानको ध्यावत, भूल्यो कुमति विचार ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ उद्धरे पतित श्रीविट्ठल कृपा उदार l
इनके कहे गही भुज दृढ करि गिरधर नन्द दुलार ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में कत्थई रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी रेशम से भरे छोटे-छोटे कूंडों (पात्रों) व हंसों की सज्जा से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. कत्थई एवं श्याम रंग के हांशिया के ऊपर भी सुन्दर सज्जा की हुई है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग की, बड़े बूटा के खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मलमल का पटका धराये जाते हैं. टंकमा हीरा के मोजाजी एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सव का भारी श्रृंगार धराये जाते हैं. मिलवा – प्रधानतया हीरा, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, स्वर्ण का जड़ाव का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. स्वरुप की बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में नीचे पदक, ऊपर हार, माला आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी गुलाब की एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
आरसी श्रुंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की, पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी जाली की आती है.

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Wednesday, 3 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण सप्तमी

व्रज – माघ कृष्ण सप्तमी 
Thursday, 04  February 2021

पीरेही कुंडल नूपुर पीरे पीरो पीतांबरो ओढे ठाडो ।
पीरीही पाग लटक सिर सोहे पीरो छोर रह्यो कटि गाढो ।।१।।
पीरी बनी कटि काछनी लालके पीरो छोर रच्यो पटुकाको ।
गोविन्द प्रभुकी लीला दरसत पीरोही लकुट लिये कर ठाडो ।।२।।

दशम (पीली/बसंती) घटा

विशेष – आज श्रीजी में शीतकाल की दशम (पीली) घटा है. विगत परसों ही श्रीजी ने बसंत के आगम का श्रृंगार धराया है और बसंत ऋतु का आभास हो और हम तत्परता से बसंत का स्वागत करें इस भाव से आज श्रीजी में पीली घटा के दर्शन होंगे. 

श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये.
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने अपने पुत्र श्री दामोदरलालजी की विनती और आग्रह पर निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं.

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.
जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज वसंत कुंज की भावना से श्रीजी में पीली घटा होगी. साज, वस्त्र आदि सभी पीले रंग के होते हैं. सर्व आभरण स्वर्ण के धराये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

शीतकाल में द्वादश घटाएँ होती हैं जिनमें केवल आज की पीली घटा में ही पीला मलमल का कटि-पटका भी धराया जाता है. 
अन्य किसी घटा में कटि-पटका नहीं धराया जाता.
आज पूरे दिन पिले फूलो की मालाजी आती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री/धनाश्री) 

देखत व्रजनाथ वदन मदन कोटि वारो l
जलज निकट नयन मीन उपमा बिचारो ll 1 ll
कुंडल ससि सूर उदित अघटनकी घटना l
कुंतल अलिमाल तामें मुरली कल रटना ll 2 ll
जलद खंड सुंदर तन पीत बसन दामिनी l
वनमाला सक्र चाप मोही सब भामिनी ll 3 ll
मुक्तामनि हार-मंडित तारागन पांति l
‘परमानंद स्वामी’ गोपाल सब विचित्र भांति ll 4 ll

साज – श्रीजी में आज पीले रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर पीली बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. पीले मलमल का कटि-पटका भी धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र भी पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण स्वर्ण के धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पीले रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, पीले रेशम के दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. अलख धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में सोना के दो कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. आरसी सोने की, पट पीला व गोटी छोटी सोने की आती है.

Tuesday, 2 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण षष्ठी

व्रज – माघ कृष्ण षष्ठी
Wednesday, 03 February 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को कत्थई साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी को आज कत्थई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कत्थई साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर कत्थई रंग के ग्वाल पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट कत्थई व गोटी बाघ बकरी की आती है.

Monday, 1 February 2021

व्रज – माघ कृष्ण पंचमी

व्रज – माघ कृष्ण पंचमी
Tuesday, 02  February 2020

बसंत-पंचमी का प्रतिनिधि का श्रृंगार

वसंत ऋतु आई फूलन फूले सब मिल गावोरी बधाई l
कामनृपति रतिपति आवत है चहुर्दिश कामिनी भोंह सों चोंप चढ़ाई ll

विशेष – आज बसंत-पंचमी का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है. सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

विक्रमाब्द १९७०-७१ में तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी ने प्रभु प्रीति के कारण अपने पिता और तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी से विनती कर इस श्रृंगार की आज्ञा ली और यह प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया था. 

वस्त्र आदि इस रीती के धराये गये कि जैसे बसंतपंचमी आ गयी हो और प्रभु बसंत की गुलाल खेलें हों.
तदुपरांत यह श्रृंगार प्रतिवर्ष धराया जाता है.

बसंत के पूर्व श्रीजी में गुलाल वर्जित होती है अतः पिछवाई एवं वस्त्रों लाल रंग के वस्त्रों को काट कर ऐसा सुन्दर भरतकाम किया गया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : पंचम/मालकौंस)

बोलत श्याम मनोहर बैठे कदंबखंड और कदम की छैंया l
कुसुमित द्रुम अलि गुंजत सखी कोकिला कलकुजत तहियां ll 1 ll
सुनत दुतिका के वचन माधुरी भयो है हुलास जाके मन महियां l
‘कुंभनदास’ व्रजकुंवरि मिलन चली रसिककुंवर गिरिधरन पैयां ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में बसंतपंचमी का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है अतः साज एवं वस्त्रादि सभी अबीर, गुलाल एवं चौवा से खेले हों ऐसा भरतकाम (Work) किया गया होता है. सफ़ेद रंग की पिछवाई में लाल रंग के वस्त्रों को काटकर गुलाल की चिड़ियों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद साटन का पीली, लाल, केसरी एवं श्याम रंग की टिपकियों के भरतकाम (Work) वाला सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं जिसमें रंगीन टिपकियों का भरतकाम (Work) किया गया है. 
पटका श्वेत मोठड़ा का व मोजाजी मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी में मध्य का (घुटने से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, पन्ना, माणक, मोती व स्वर्ण के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की लाल एवं श्याम रंग की टिपकियों के भरतकाम (Work) वाली छज्जेदार पाग पर पट्टीदार सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में स्वर्ण के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी बड़ी डांडी की, पट चीड़ का व गोटी चाँदी की आती है.
आज के दिन वस्त्र के छोगा, छड़ी भी आते हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...