व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी(द्वितीय)
Sunday, 21 March 2021
आज से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.इसी शृंखला में आज द्वादशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.
विशेष – आज सभी समय झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है और दो समय आरती थाली में होती है.
आज द्वादशी को धराया जाने वाला श्रृंगार जायेगा जिसमें श्वेत लाल बसंत के किनारी वाले वस्त्र के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर चीला वाली गोल पाग के ऊपर सुनहरी फोंदना का मोर का क़तरा धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे धराये जायेंगे.
फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां आज से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को अरोगायी जाती हैं.
इस श्रृंखला में श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में बूंदीके लड्डु अरोगाये जाते हैं.
राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर दोहरी चिड़िया मांडी जाती है.
राजभोग के खेल में तीन बिंदी लगायी जाती हैं और भारी खेल होता है और अबीर की टिपकियां की जाती है. आज प्रभु की दाढ़ी रंगी जाती है और खेल के समय गुलाल भी फेंट (पोटली) में भर कर वैष्णवों पर उड़ाई जाती है.ठाडे वस्त्र सबसे खेले.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : काफी)
गोपकुमार लिये संग हो हो होरी खेले व्रजनायक l ईत व्रजयुवति यूथ मधिनायक श्रीवृषभान किशोरी ll 1 ll
मोहन संग डफ दुंदुभी सहनाई सरस धुनि राजे l बीचबीच युवती मनमोहन महुवर मुरली बाजे ll 2 ll
श्याम संग मृदंग झांझ आवज आन भांत बजावे l किन्नरी बीन आदि बाजे साजे गिनत न आवे ll 3 ll
ईत व्रजकुंवर करनी कर राजत रत्न खचित पिचकाई l उत करकमल कुसुम नवलासी गावत गारि सुहाई ll 4 ll.....अपूर्ण
साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है एवं दोहरी चिड़िया माँड़ी जाती हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लाल बसंत के किनारी का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. लाल रंग का कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे हरे रंग के धराये जाते हैं.
सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल चीला वाली पाग के ऊपर सुनहरी फोंदना का मोर का क़तरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का, गोटी चांदी की आती है.
आरसी शृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में छोटी आती है.
प्रतिदिन गुलाल खेल में वृद्धि हो रही है और भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं जिससे प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.
संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.
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