By Vaishnav, For Vaishnav

Tuesday, 11 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - वैशाख शुक्ल प्रतिपदा 
Wednesday, 12 May 2021

ग्रीष्म ऋतु का अंतिम मुकुट काछनी का श्रृंगार

विशेष - श्रीजी को आज इस ऋतु का अंतिम मुकुट का श्रृंगार धराया जायेगा. आज के पश्चात मुकुट-काछनी का श्रृंगार लगभग दो माह दस दिन पश्चात (आषाढ़ शुक्ल एकादशी को) धराया जायेगा.
आज के वस्त्र कांकरौली श्री द्वारिकाधीश मंदिर की तरफ़ से आते हैं.

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता. 

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

आज संभवतया श्रीजी के श्रीहस्त में पुष्पछड़ी अंतिम बार धरायी जाती है. कल से प्रभु के श्रीहस्त में कमल-छड़ी धरायी जायेगी.

कीर्तन – (राग : सारंग)

कुंजभवन तें निकसे माधो-राधा ये चले मेलि गले बांह l
तब प्यारी अरसाय पियसो मंद मंद ज्यों स्वेदकन वदन निहारत करत मुकुट की छांह ll 1 ll
श्रमित जान पट पीत छोरसो पवन ढुरावे हो व्रजवधु वनमांह l
‘जगन्नाथ’ कविराय की प्यारी देखत नयन सिराह ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल की, सुनहरी लप्पा की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराये जाते हैं. चोली नहीं धरायी जाती. 
सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना   के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर स्वर्ण का डांख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मोती मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है.
 श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर कलात्मक वनमाला धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोने के लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी शतरंज की आती है.

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