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Monday, 24 May 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - वैशाख शुक्ल चतुर्दशी
Tuesday, 25 May 2021

अपनो जन प्रह्लाद उबार्यो ।
कमला हरिजू के निकट न आवत ऐसो रूप हरि कबहूँ न धार्यो ।।१।।
प्रह्लादै चुंबत अरु चाटत भक्त जानि कै क्रोध निवार्यो ।
सूरदास' बलि जाय दरस की भक्त विरोधी दैत्य निस्तार्यो ।।२।।

नृसिंह जयंती

विशेष – आज नृसिंह भगवान की जयंती है. पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीनृसिंह एवं श्री वामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है एवं इन चारों जयंतियों को उपवास किया जाता है. 
जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु हमारे मध्य पधारें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों. प्राचीन वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.

भगवान विष्णु के दशावतारों में से श्री महाप्रभुजी ने केवल चार अवतारों को ही मान्यता दी है. 
भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने नि:साधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला  पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का सामान्य अर्थ कृपा भी है.

सेवाक्रम - जयंती का उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज सभी समय झारीजी यमुनाजल की भरी जाती है. चारों समां (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दिवला सभी चांदी के आते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. 

नियम का केसरी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर केसरी मलमल की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है. 
आज प्रभु को आभरण में विशेष रूप से बघनखा धराया जाता है. इसके अतिरिक्त प्रभु के श्रीहस्त में सिंहमुखी कड़े और एक छड़ीजी (वेत्रजी) भी सिंहमुखी धराये जाते हैं (चित्र में दृश्य नहीं परन्तु धराये जाते हैं).

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगाये जाते हैं. आज भोग के फीका के स्थान पर बीज चालनी का घी में तला सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
संध्याआरती के ठोड़ के स्थान पर सतुवा के बड़े गोद के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

श्रीजी में ऊष्णता की वृद्धि के साथ ही शीतोपचार में भी वृद्धि होती है. 
अक्षय तृतीया से आज तक केवल भीतर मणिकोठा, डोलतिबारी और रतनचौक में ही जल का छिडकाव होता है. 

आज से प्रतिदिन राजभोग पश्चात और संध्या-आरती पश्चात रतन चौक और गोवर्धन-पूजा के चौक में भी शीतल जल का छिडकाव किया जाता है और खस के पर्दों पर भी अधिक छिडकाव किया जाता है. आज से शयन पश्चात कमल चौक में भी शीतल जल का छिडकाव किया जाता है. 
आज से प्रतिदिन गुलाबजल का भी छिड़काव किया जाता है.

आज से राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु के सम्मुख जल का थाल भी रखा जाता है जिसमें छतरी, बतख, कछुआ, नाव आदि चांदी के इक्कीस खिलौने और कमल आदि पुष्प रखे जाते हैं. प्रभु ऊष्णकाल में नित्य श्री यमुनाजी में जलविहार करने पधारते हैं इस भाव से यह थाल प्रभु के सम्मुख रखा जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत
नारद शुकव्यास रटत पावत नही पारही l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत 
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत 
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को केसरी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती की प्रधानता के हीरा मोती के मिलवा आभरण धराये जाते हैं. आभरण में नीचे पदक व ऊपर हीरा, मोती के माला एवं हार आते हैं.
आज हांस, पायल व चोटीजी नहीं धराये जाते.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक वनमाला धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो  वेत्रजी (एक मोती व एक नृसिंहजी के) धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी सोने की कूदते बाघ-बकरी की व आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

 श्री नृसिंह भगवान का जन्म सूर्यास्त पश्चात एवं रात्रि से पूर्व हुआ था अतः इस भाव से संध्या-आरती दर्शन पश्चात नृसिंह भगवान के जन्म के दर्शन होते हैं और जन्म के दर्शन में प्रभु के सम्मुख शालिग्रामजी को झांझ, घंटा, झालर और शंख की मधुर ध्वनियों के मध्य पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और बूरा) स्नान कराया जाता है. स्नान के पश्चात शालिग्रामजी को तिलक कर तुलसी समर्पित की जाती है व पुष्प-माला धरायी जाती है. 

प्रभु को जन्म के उपरांत जयंती फलाहार के रूप में दूधघर में सिद्ध खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) का भोग अरोगाया जाता है.

आज के दिन श्रीजी मथुरा सतघरा से गोपालपुर (जतीपुरा) श्री गिरिराजजी के ऊपर पधारे थे. 
वहां पधारकर शयन समय राजभोग भी संग अरोगें इस भाव से आज प्रभु को शयनभोग में आधे राजभोग जितनी सखड़ी की सामग्रियां अरोगायी जाती है. 

श्री नृसिंह भगवान उग्र अवतार हैं और उनके क्रोध का शमन करने के भाव से शयन की सखड़ी में आज विशेष रूप से शीतल सामग्रियां - खरबूजा का पना, आम का बिलसारू, घोला हुआ सतुवा, शीतल, दही-भात, श्रीखण्ड-भात आदि अरोगाये जाते हैं.

सभी वैष्णवजन को नृसिंह जयंती की बधाई 

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