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Wednesday, 10 November 2021

व्रज - कार्तिक शुक्ल सप्तमी

व्रज - कार्तिक शुक्ल सप्तमी 
Thursday, 11 November 2021

श्री नवनीतप्रियाजी के व्रज पधारने का उत्सव (२०६३)
गोपाष्टमी (कार्तिक शुक्ल अष्टमी के क्षय के कारण)

विक्रम संवत २०६३ (वर्ष 2006) में आज सप्तमी के दिन पूज्य गोस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी ने प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी को व्रज पधराये थे. 
व्रज में लगभग एक माह आनंद वृष्टि कर कर प्रभु मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी के दिन पुनः नाथद्वारा पधारे थे.

इस भाव से आज संध्या आरती समय मनोरथ व विशेष सामग्रियाँ अरोगायी जाती हैं.

इस वर्ष कार्तिक शुक्ल अष्टमी के क्षय के कारण आज गोपाष्टमी मानी गयी है.

गोपाष्टमी

आज के दिन बालक नन्दकुमार पहली बार गौ-चारण हेतु वन में पधारे थे. आज से ही प्रभु श्रीकृष्ण को गोप (ग्वाल) का दर्ज़ा मिला था. इस भाव से आज का उत्सव गोपाष्टमी कहलाता है. गोपगण गायों की अष्टांग योग से सेवा करते हैं जिससे अष्टमी की तिथी को गौ-पूजन कर प्रभु गौ-चारण करने पधारे थे.
पुष्टिमार्ग ही ऐसा मार्ग अथवा संप्रदाय है जिसमें गौ-पालन, गौ-क्रीड़न, गौ-संवर्धन आदि होते हैं और गौ-सेवा प्रभु की सेवा की भांति की जाती है. 
व्रज में प्रभु श्रीकृष्ण की समस्त जीवन क्रिया गौ-चारण में ही हुई तभी प्रभु को गोपाल कृष्ण भी कहा जाता है.

श्री महाप्रभुजी भी गौ-सेवा के प्रति पूर्णतः समर्पित थे. श्रीजी ने जब गाय मांगी तब आपश्री अपने आभूषण बेच कर प्रभु के लिए गाय लाये. आज भी श्रीजी की गौशाला में लगभग 2,500 से अधिक गौधन का लालन-पालन होता है. 

प्रभु गायों के बिना एक क्षण भी नहीं रहते. आज वैष्णव विशेष रूप से गौशाला जाकर गायों को चारा, घांस, लड्डू आदि खिलाते हैं. 

आज के दिन उत्थापन उपरांत गौशाला में पाडों (भैंसों) की भिड़ंत करायी जाती है जिसमें हजारों की संख्या में नगरवासी गौशाला में एकत्र हो कर पाडों (भैंसों) की भिड़ंत का आनंद लेते हैं. आज की भिड़ंत के लिए ग्वालबाल कई माह पूर्व से पाडों (भैंसों) को अच्छी खुराक खिला कर तैयार करते हैं. 

आज श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी में नहीं परन्तु अन्य निधि स्वरूपों व वैष्णव मंदिरों में कुंडवारा का मनोरथ होता है. प्रभु गौ-चारण को पधारें तब सभी ग्वाल-बालों के साथ भोग अरोग कर पधारते हैं इस भाव से कुंडवारा का भोग अरोगाया जाता है. 

श्रीजी का सेवाक्रम – गोपाष्टमी का पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज सभी समय यमुना जल की झारीजी भरी जाती हैं. दो समां (राजभोग एवं संध्या आरती) की आरती थाली में की जाती है.

मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

पिछवाई श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में कशीदे की श्वेत गायों की आती है.  
गौचारण के भाव से आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

मुकुट के इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

आज इस ऋतु में मुकुट-काछनी का श्रृंगार अंतिम बार धराया जायेगा. 
शीतकाल में मान आदि की लीलाएँ होती है परन्तु रासलीला नहीं होती अतः मुकुट नहीं धराया जाता. 

आज से तीन दिन तक आठों समय में गौ-चारण लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
वस्त्र में काछनी लाल व हरी छापा की धरायी जाती है.

गोपाष्टमी के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है. सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व दहीभात अरोगाये जाते हैं व संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोपाल माई कानन चले सवारे l
छीके कांध बाँध दधि ओदन गोधन के रखवारे ll 1 ll
प्रातसमय गोरंभन सुन के गोपन पूरे श्रृंग l
बजावत पत्र कमलदल लोचन मानो उड़ चले भृंग ll 2 ll
करतल वेणु लकुटिया लीने मोरपंख शिर सोहे l
नटवर भेष बन्यो नंदनंदन देखत सुरनर मोहे ll 3 ll
खगमृग तरुपंछी सचुपायो गोपवधू विलखानी l
विछुरत कृष्ण प्रेम की वेदन कछु ‘परमानंद’ जानी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में गायों के कशीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग का रेशमी सूथन, मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली एवं हरे छापा की बड़ी काछनी  व लाल छापा की छोटी काछनी धरायी जाती है. लाल दरियाई वस्त्र का रास-पटका (पीताम्बर) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकने लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित पन्ना, माणक एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरा की टोपी पर सोने का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज (चोटी) नहीं धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में माला, दुलड़ा हार आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी की माला धरायी जाती है.
पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट काशी का व गोटी सोना की कूदते हुए बाघ बकरी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.

आज गोपाष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तक संध्या-आरती में प्रतिदिन श्रीजी को शाकघर में विशेष रूप से सिद्ध गन्ने के रस की एक डबरिया (छोटा बर्तन) अरोगायी जाती है. इस अवधि में कुछ बड़े उत्सवों पर इस रस में कस्तूरी भी मिश्रित होती है.

आज संध्या-आरती दर्शन में छोटा वैत्र श्रीहस्त में धराया जाता है.

दशहरा के दिन से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गौमाता आती है जो आज संध्या-आरती दर्शन उपरांत विदा होती है.  

प्रातः धराये मुकुट, टोपी और दोनों काछनी संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे व तनी धराये जाते हैं. आभरण छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.

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