By Vaishnav, For Vaishnav

Friday, 30 September 2022

व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी

व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी
Saturday, 01 October 2022

छठो विलास कियो श्यामा जु 
गौधन वन चली भामा जु ।
पहेरे रंग रंग सारी  हाथन पूजन थारी ।
ताकी मुख्य सहचरी राई  खेलनमें बहुत सुधराई ।।१।।
चली बन बन बिहसी सुंदरी  हार कंकन जगमगे ।
आई मंदिर पूजन देवी  भोग सिखरन सगमगे ।।२।।
ता समे प्रभु पधारे  कोटि मन्मथ मोहे ही ।
निरखी सखियन कमल मुख मानो  निर्धन धन जो सोहे ।।३।।
खेलको आरंभ कीनो  राधा माधो बीच किये ।
वाकी परछाई परी तब रसिक चरनन चित दिये ।।४।।

विशेष - आज छठे विलास का लीला स्थल गोवर्धन वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी राईजी हैं और सामग्री मोहनथाल एवं दूधपूवा है यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है. 

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री के बहूजी का उत्सव है जिसे राणीजी का उत्सव भी कहा जाता हैं.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से सिकोरी (मूंगदाल, मावे, इलायची के मीठे मसाले से निर्मित पूरणपूड़ी जैसी सामग्री) अरोगायी जाती है.
आज श्रीजी को सखड़ी में पत्तरवेला प्रकार आरोगाया जाता हैं.

श्रीजी में सभी देवों को मान दिया जाता है और महाप्रभुजी ने भी भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीवामन एवं श्रीनृसिंह) को मान्यता दी है. 
इसी सन्दर्भ में आज श्रीजी में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्रजी को मान देती आज श्री रामचंद्रजी के जीवन चरित्र का दर्शन कराती पिछवाई धरायी जाती है. 
इसी प्रकार रामभक्त हनुमान जी के गुणगान एवं अन्य रामभक्त जानकीजी को खोज रहे हैं ऐसी लीला के कीर्तन संध्या-आरती में मारू राग में गाये जाते हैं.

पायं तो पूजि चले रघुनाथ  
हनुमान आदि ले बडरे योद्धा लीने साथ।।
से तू  बांधि के लंका लूटी, रावण के काटे माथ।
कृष्ण दास सीता घर लाये, विभीषण  कियो सनाथ।।

आज प्रभु श्री रामचन्द्रजी के पराक्रम की भावना को दर्शाता मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जाता है. 
इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

आज के इस श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज मल्लकाछ के ऊपर चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि विशिष्ट वीर-रस का धोतक है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन (राग : सारंग)

वृन्दावन सघनकुंज माधुरी लतान तर जमुना पुलिनमे मधुर बाजे बांसुरी l
जबते धुनि सुनी कान मानो लागे मैंनबान, प्राननकी कासौ कहू पीर होत पांसुरी ll 1 ll
व्याप्यो जु अनंग ताते अंग सुधि भूल गई कौऊ वंदो कोऊ निंदो करौ उपहासरी l
ऐसे ‘व्रजाधीश’सों प्रीति नई रीति बाढ़ी जाके उर गढ़ रही प्रेम पुंज गांसरी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में प्रभु श्री रामचंद्रजी के जन्म से रावण वध एवं उनके राज्याभिषेक तक के विविध प्रसंगों को दर्शाते चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं इसी प्रकार गुलाबी रंग के छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चड़ी आस्तीन का खुलेबंध का चाकदार वागा धराया जाता है. आज पटका लाल रंग का एक ही धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग के छापा की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
आज चड़ी आस्तीन का बागा धराने से हीरा की एक ही गोल पहुची धराई धराई जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी  व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Thursday, 29 September 2022

व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी

व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी
Friday, 30 September 2022

पाँचो विलास कियौ शयामाजू,
कदली वन संकेत ।
ताकी मुख्य सखी संजावलि,
पिया मिलनके हेत ।।१।।
चली रली उमगी युवती सब,
पूजन देवी निकसीं ।
धूप,दीप,भोग,संजावलि,
कमल कली सों विकसीं ।।२।।
आनँद भर नाचत गाबत,
वधू रस में रस उपजाती ।
मंडलमें हरी ततच्छि आये,
हिल मिल भये एकपाँती ।।३।।
द्वै युग जाम श्यामश्या
संग भाभिनी यह रस पीनौ ।
उनकी कृपा द्रष्टि अवलोकत,
रसिक दास रस भीनौ ।।४।।

विशेष - आज पंचम विलास का लीला स्थल कदलीवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी संजावलीजी हैं और सामग्री मनोहर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधपूआ है. 

मनोर के लड्डू श्रीजी में नहीं अरोगाये जाते परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को दोनों सामग्रियां अरोगायी जाती है. 

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधपूआ (दूध में मेदे के घोल से सिद्ध मालपूए जैसी सामग्री) आरोगाए जाते हे 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहा कहो लाल सुघर रंग राख्यो मुरलीमें l
तान बंधान स्वर भेदलेत अतिजित
बिचबिच मिलवत विकट अवधर ll 1 ll
चोख माखनीकी रेख तामे गायन मिलवत लांबे लांबे स्वर l
बिच बिच लेत तिहारो नाम सुनरी सयानी,
‘गोविंदप्रभु’ व्रजरानी के कुंवर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग के छापा की, चाँद-सितारे और सूर्य की छापवाली, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें पीठिका के आसपास पुष्प-पत्रों का हांशिया बना है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम रंग के छापा का सूथन, श्याम छापा के वस्त्र की चोली एवं खुलेबंद का चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (छेड़ान) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर श्याम रंग के छापा वाली ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में सोना की लोलकबिन्दी धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों वाले पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Wednesday, 28 September 2022

व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्थी (दुहरा मनोरथ)

व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्थी (दुहरा मनोरथ)
Thursday, 29 September 2022

चौथौ विलास कियौ श्यामाजू,
परासौली बन माँई ।
ताके वृक्षलता द्रुमवेली,
तन पुलकित आनंद न समाईं ।।१।।
चंद्रभगा मुख्य यथावलि,
अपनी सखी सब न्यौति बुलाई ।
खंडमंडा,जलेबी लडुआ,
प्रत्येक अंगकौ भाव जनाई ।।२।।
साज कियौ पूजन देविकौ,
बहू उपहार भेट लै आई ।
खेलन चली बनी तिहिंशोभा,
ज्यों धनमें चपला चमकाई ।।३।।
पोहोंची जाय दरस देवी तब है,
गये श्यामकिशोर कन्हाई ।
मनकौ चीत्यौ भयौ लालनकौ,
हास बिलास करत किलकाई ।।४।।
श्यामाश्याम भुज भर भेटे,
तृण तोरत,और लेत बलाई ।
कही न जाय शोभा ता सुख की.
कुंजन दुरे रसिक निधिपाई ।।५।।

विशेष – आज चतुर्थ विलास का लीलास्थल परासोली है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चंद्रभागाजी हैं और सामग्री खरमंडा, जलेबी और लड्डू हैं यद्यपि ये भोगक्रम श्रीजी में नहीं होता परन्तु कई अन्य गृहों में यह सेवाक्रम होता है.

आज की पोस्ट आज के विशिष्ट दोहरा उत्सव की तरह काफी लम्बी परन्तु बहुत सुन्दर व अर्थपूर्ण है. समय देकर पूरी अवश्य पढ़ें

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी (दाऊजी प्रथम) महाराज का उत्सव, दोहरा उत्सव, भलका चौथ

आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरधरजी के पुत्र श्री दामोदरजी (दाऊजी) का उत्सव है. आप भाला धारण करते थे अतः आपको भाला वाले दाऊजी व आज के दिवस को भलका-चौथ भी कहा जाता है.

आपका प्राकट्य विक्रमाब्द 1853 में नाथद्वारा में एवं आपका उपनयन संस्कार घसियार में हुआ. आपने ही श्री गोवर्धनधरण प्रभु को घसियार से पुनः नाथद्वारा पधराया था.
आपने तिलकायत पद पर आसीन होने के पश्चात नगर की सुदृढ़ता के लिए कई विशिष्ठ कार्य किये थे. आपने विक्रमाब्द 1872 में नगर के प्रसिद्द लालबाग़ का निर्माण करवाया.
आपने विक्रमाब्द 1877 की मार्गशीर्ष कृष्ण 13 से विक्रमाब्द 1878 की मार्गशीर्ष कृष्ण 13 तक श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी के दोहरा मनोरथ, नैमितिकोत्सव, महोत्सवादी किये.

इसके पश्चात सेवकों ने आपसे विनती की कि यह दोहरा (Double) सेवाक्रम व्यवहार रूप में अधिक समय तक निभाया नही जाना संभव नहीं अतः आपने इसे केवल अपने जन्मदिवस अर्थात आज के दिन करने की आज्ञा दी.

आपने श्रीजी की प्रेरणा व अपनी दादीजी श्री पद्मावतीजी की आज्ञानुसार सप्तस्वरूपोत्सव किया. इस प्रकार आपने सर्वप्रथम चार स्वरुप पधराये और श्री विट्ठलनाथजी (नाथद्वारा), श्री मथुराधीशजी (कोटा), श्री गोकुलनाथजी (गोकुल) एवं श्री नवनीतप्रियाजी को श्रीजी के साथ के विराजित कर बहुत धूमधाम से विविध मनोरथ किये.
पुष्टिमार्ग में षडरितु के मनोरथ को इसकी भाव-भावना का प्रमाण देकर प्राम्भ करने का श्रेय भी आप ही को जाता है.
तत्पश्चात आपने विक्रमाब्द 1878 की पौष कृष्ण 4 के दिवस छः स्वरूपोत्सव आयोजित किया जिसमें श्री विट्ठलनाथजी (नाथद्वारा), श्री द्वारकाधीशजी (कांकरोली), श्री गोकुलनाथजी (गोकुल), श्री गोकुलचंद्रमाजी (कामवन), श्री मदनमोहनजी (कामवन) एवं छठे स्वरुप श्री बालकृष्णलाल जी के बदले काशी से श्री मुकुंदरायजी पधारे और सभी स्वरूपों ने साथ विराजित हो अन्नकूट अरोगा.

विक्रमाब्द 1881 में आपने जगदीश यात्रा की और इसी वर्ष आप लीला में पधारे.

इस प्रकार छः स्वरूपोत्सव, बारह मास तक दोहरा मनोरथ एवं इसके मध्य अनेक भव्य मनोरथों की झड़ी लगा कर आपने श्रीजी को खूब लाड लड़ाए. प्रतिवर्ष अन्नकूट के दिन श्रीजी में धरायी जाने वाली पिछवाई आपके द्वारा निर्मित करायी गयी थी जो कि आज भी धरायी जाती है.

सेवाक्रम - आज श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी में मंगला से शयन तक सभी नियमित सेवाक्रम दोहरा (दोगुना) होता है.

पर्वरुपी उत्सव एवं दुहेरा मनोरथ होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को दोहरी कलात्मक रूप से हल्दी से माँड़ी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल भी दोहरी बाँधी जाती हैं. 
आज एक दिन की नोबत की बधाई बेठे झाँझ बजे

मंगला एवं उत्थापन में दो बार शंखनाद होते हैं, दिन की चारों आरती (मंगला, राजभोग, संध्या और शयन) दो बार (एक सोने की एवं एक चांदी की थाली में) की जाती है. 

महाप्रभुजी की बैठक में भोग धरवे की खबर भी हर बार दो बार जाती है. 
राजभोग समय माला दो बार बोलती है और राजभोग के भोग भी दो बार सरते हैं.
माला, बीड़ा, कमलछड़ी, झारीजी, बंटाजी आदि सभी साज दोहरा (Double) रखे जाते हैं. 

ठाकुरजी को आज केसरी डोरिया के घेरदारवस्त्र भी दोहरी किनारी वाले धराये जाते हैं. प्रभु समक्ष वेणुजी, वैत्रजी भी दो धराये जाते हैं.

कीर्तन भी दोगुने होते हैं.आज पूरे दिन झांझ (एक प्रकार का वाध्य) बजे
ग्वाल समय होने वाले धूप दीप भी दो बार होते हैं.
मंगलाभोग से ले कर संध्या आरती के पश्चात धैया (दूध) अरोगे तब तक सभी ‘नित्य-नियम के भोग’ भी दोहरा (दोगुना) अरोगाये जाते हैं. 

शयन भोग में पुनः भोग का क्रम पूर्ववत हो जाता है. केवल शयन की बासोंदी दोहरी अरोगायी जाती है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से नवविलास के भाव से केशर की चाशनी युक्त घेवर व प्राकट्योत्सव के भाव से  केशर-युक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की दो हांडियां अरोगायी जाती है.

राजभोग समय अनसखड़ी में दाख (किशमिश) और दूसरा केले का रायता अरोगाया जाता है. 

राजभोग में नियम का सभी सखड़ी महाप्रसाद भी दोहरा (दोगुना) अरोगाया जाता है जिसमें विशेष मीठा में बूंदी प्रकार आरोगाया जाता हैं.

आज की एक अति विशिष्ट प्राचीन परम्परा है कि आज के द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी व तृतीय गृहाधीश्वर श्री द्वारकाधीश प्रभु को धराये जाने वाले केसर से रंगे डोरिया के वस्त्र भी श्रीजी से सिद्ध होकर जाते हैं. इसके साथ प्रभु के अरोगवे की सामग्री भी पधारती है. 
प्रधानगृह, द्वितीय गृह और तृतीय गृह में पधारने वाले ये वस्त्र विगत आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को केसर से रंगे जाते हैं.
 
वर्ष में केवल दो बार श्रीजी से इन दोनों गृहों के वस्त्र पधारते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सदा व्रजहीमें करत विहार l
तबके गोप भेख वपु धार्यो अब द्विजवर अवतार ll 1 ll
तब गोकुलमें नंदसुवन अब श्रीवल्लभ राजकुमार l
आपुन चरित्र सिखावत औरन निजमत सेवा सार ll 2 ll
युगलरूप गिरिधरन श्रीविट्ठल लीला ईक अनुसार l
‘चत्रभुज’ प्रभु सुख शैल निवासी भक्तन कृपा उदार ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज नन्दमहोत्सव और छठी पूजन के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी घेरदार वागा, रुपहली ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी वाला जामदानी का सूथन, चोली, एवं पटका धराये जाते हैं. पटका का एक छोर  ऊर्ध्व भुजा की ओर और एक शैया मन्दिर की और धराया जाता है. 
ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के जामदानी के  धराये जाते है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के डोरिया की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के  कर्णफूल धराये जाते हैं. विविध पुष्पों की चार सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
आज अलक धराया जाता हैं.
श्रीहस्त में दो कमलछड़ी, पन्ना एवं हरे मीना के दो वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गोटी राग रांग की आती हैं.

Tuesday, 27 September 2022

व्रज - आश्विन शुक्ल तृतीया

व्रज - आश्विन शुक्ल तृतीया
Wednesday, 28 September 2022

तृतिय विलास कियो श्यामाजू प्रविन ।
खेलनको उत्साह सखी एकत्र किन ।।१।।
तिनमे मुख्यसखी विशाखाजू ऐन ।
चलीनिकुंज महेलमें कोकिला ज्यौं बैंन ।।२।।
भोग धरी सँवार बासोंधी सनी । 
कुसुमरंग अनेक गुही कामिनी ।।३।।
गानस्वर कियो बनदेवी बिहार । 
नव त्रियाकौ वेष कोटि काम वार ।।४।।
ढिंग आसन कराय प्यारीकों बेठाय । 
दोउ एकत्र किन निरखत लेत बलाय ।।५।।
यह लीलाको द्यान मम ह्रदय ठहराय । 
देखत सुरनर मुनिभूले रसिक बलबल जाय ।।६।।

विशेष – आज तृतीय विलास का लीला स्थल निकुंज महल है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी विशाखाजी हैं और सामग्री बासुंदी है. यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती परन्तु कई गृहों में प्रभु स्वरूपों को अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ‘चाशनीयुक्त कूर के गुंजा’ अरोगाये जाते हैं l
यह एक समोसे जैसी सामग्री है जिसके भीतर कूर (घी में सेका कसार और कुछ सूखा मेवा) भरा होता है. इसके ऊपर चाशनी चढ़ी होती है l

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई l
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुन निधान
जान बुझ एक तान चूकके बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन 
अति नवीन रूप सहित, वही तान सूनाई ll 2 ll
‘वल्लभ’ गिरिधरन लाल रिझ दई अंकमाल
कहत भले भले जु लाल सुंदर सुखदाई ll 3 ll

साज – श्रीजी को आज हरे रंग के छापा की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी वाला सूथन और इसी प्रकार हरे रंग के छापा के वस्त्र पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाले खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हरे रंग का छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का नागफणी का कतरा व लूम और तुर्री सुनहरी जरी की एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत रंग के पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी मीना की आती है. 

Monday, 26 September 2022

व्रज - आश्विन शुक्ल द्वितीया

व्रज - आश्विन शुक्ल द्वितीया
Tuesday, 27 September 2022

द्वितीय विलास कियौ श्यामाजू, खेल
समस्या कीनी ।
ताकी मुख्य सखी ललिताजू, आनंद महारस भीनी ।। १ ।।
चली संकेत बिहार करन बलि, पूजा साजि संपूरन ।
बहु उपहार भोग पायस लै, बाँह हलावत मूर ।।२।।
मंदिर देवी गान करत यश, आय मिले गिरिधारी ।
मन कौ भायौ भयौ सबन कौ, काम वेदना टारी ।।३।।
स्यामा कौ शृंगार श्याम कौ,
ललिता नीवी खोली ।
लीला निरखत दास रसिकजन, श्रीमुख
स्यामा बोली ।। ४ ।।

द्वितीय विलास के अंतर्गत सेहरा के शृंगार

नवविलास के अंतर्गत द्वितीय विलास के आधार पर आज द्वितीय विलास की भावना का स्थल व्रज में संकेत वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी श्री ललिताजी है और सामग्री खीर की है. यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती परन्तु कई गृहों में नवविलास में अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी प्रभु को नियम के पीले छापा के वस्त्र, पीला खूंट का दुमाला के ऊपर हीरो का सेहरा और आभरण में विशेष पन्ना के कुंडल व पन्ना की जोड़ी धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की छापा की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी वाली धोती और इसी प्रकार का राजशाही पटका धराया जाता है. आज के वस्त्र विशिष्ठता लिए हुए है. आज विशेष रूप से धोती के ऊपर पीले रंग के छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली भी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पीले रंग का छापा का खूंट का दुमाला के ऊपर हीरो का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में पन्ना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
 श्वेत रंग के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी राग रांग की आती हैं

Sunday, 25 September 2022

व्रज – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा 
Monday, 26 September 2022

प्रथम विलास कियो श्यामाजू 
                  किनौ विपिन विहारजू ।।
उनके बिधकी शोभा बरनो 
               कहत न आवे पारजू ।।१।।
बाके युथकी गणना नाहीं
                      निर्गुण भक्ति कहावे ।।
तारी संख्या कहत न आवै
                    शेषहू पार न पावे ।।२।।
घोषघोष प्रति गलिनगलिन प्रति
                         रंगरंग अंबर साजें ।।
कियौ शृंगार नखशिख अंग युवती
              ज्यों करनी गण साजें ।।३।।
बहु पूजा लै चली वृंदावन
                        पान फूल पकवानै ।।
तारे यूथ मुख्य संजावलि 
                     चंद्रकलासी बानै ।।४।।
पोहौंची जाय निकुंज भवनमें
                             दरसी वृंदादेवी ।।
तारे पद बदन करि माँग्यौ
                श्याम सुंदर वर एवा ।।५।।
तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे
                     कोटिक मन्मथ मोहै ।।
अंगअंग प्रति रुपरुप प्रति
              उपमा रवि शशि कोहै ।।६।।
द्वैजुग जाम श्याम श्यामा संग
                   केलि बिबिध रंग कीने ।।
उठत तरंग रंगरस उछलित 
               दास रसिक रस पीने ।।७।।

आजसे नौ दिन तक नव विलास की भाव भावना का आनंद ले

आश्विन नवरात्रि स्थापना, नवविलास आरम्भ

विशेष – आज आश्विन नवरात्रि स्थापना का दिन है. सनातन धर्म में वर्ष में चार नवरात्रियाँ होती है जिसमें दो गुप्त और दो गोचर अथवा प्रत्यक्ष (चैत्री और आश्विन) नवरात्रियाँ होती हैं. प्रत्यक्ष नवरात्रियों में सात्विक शक्ति स्वरुप दैवी-पूजन होता है. 

पुष्टिमार्ग में विश्व के प्राचीनतम हिन्दू धर्म की कई रीतियों का समावेश है और विविध त्यौहारों, उत्सवों पर पंचामृत, अधिवासन, जवारा रोपण आदि रीतियाँ आदि पुरातन हिन्दू वेदों से प्रेरित हैं.

इसी श्रंखला में पुष्टिमार्ग में आज से ललिताजी के सेवा मास का आरंभ होता है जिसमें आज से नव-विलास के उत्सव का आरंभ होता है और इन नौ दिनों में प्रतिदिन नूतन भाव अंकुरित होते हैं, इस भाव से प्रतिदिन नूतन वस्त्र और नूतन सामग्रियां श्री प्रभु को अरोगायी जाती हैं. सभी नौ दिन विविध रंगों के छापा के वस्त्र ठाकुरजी को धराये जाते हैं.

आज श्रीजी सहित सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में दस मिटटी के कूंडों (पात्रों) में गेहूं के जवारे बोये जाते हैं. माटी के इन कूंडों (पात्रों) में गेहूं और जौ बोये जाते हैं. जिसे अंकुर-रोपण कहा जाता है. 
सात्विक, राजस, तामस आदि नौ प्रकार के गुणों के भाव से और एक निर्गुण भाव से, ऐसे दस पात्रों में ज्वारा अंकुरित किये जाते हैं. ये अंकुरित ज्वारा दशहरा के दिन प्रभु के श्रीमस्तक पर कलंगी के रूप में धराये जाते हैं.

त्रेतायुग में व्रज में इन नौ दिनों गोप कन्याओं ने दैवी पूजन के भाव में प्रभु श्रीकृष्ण को विविध मनोरथ कर प्रसन्न किया था. प्रभु से मिलाप कर प्रभु को सर्वस्व अर्पण कर विविध भोग-सामग्रियां अरोगायी थी. यह भावना नव-विलास कहलाती है.

श्री हरिराय महाप्रभु ने इस नवविलास के भाव से नव पद की रचना की है. हालांकि श्रीजी मंदिर में ये पद नहीं गाये जाते परन्तु अन्यत्र कई वैष्णव मंदिरों में प्रतिदिन एक विलास गाया जाता है.

आज प्रथम विलास की भावना का स्थल निकुंजभवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चन्द्रावलीजी है. आज से मुरली एवं रास के पद गाये जाते हैं. इकाइयों के पद सायं भोग समय गाये जाते हैं और रास-पंचाध्यायी का पाठ भोग दर्शन का टेरा आये पश्चात एवं प्रभु शयन भोग अरोगें तब किया जाता है.

सेवाक्रम - पर्वरुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.चारों समा की आरती थाली में की जाती है.

आज श्रीजी को नियम के लाल छापा के केसरी सूथन, चोली एवं चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर कुल्हे धरायी जाती है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चन्द्रकला (सूतर फेणी) और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर-युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.भोग आरती में फीका में चालनी (तला हुआ मेवा )आरोगाया जाता हैं.
सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव खडंरा प्रकार इत्यादि अरोगाया जाता हैं.

आज से प्रतिदिन दोनों अनोसर में सिंहासन से शैयाजी तक पेंडा (रुई से भरी पतली गादी) बिछाई जाती है जिससे हल्की ठंडी भूमि पर ठाकुरजी को शीत का आभास ना हो.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बल बल आज की बानिक लाल l
कसुम्भी पाग पीत कुलह भरित कुसुम गुलाल ll 1 ll
विश्वमोहन नवकेसर को तिलक ललित भाल l
सुन्दर मुख कमल हि लपटावत मधुप जाल ll 2 ll
बरुनी पीत विथुरित बंद सुभग उर विसाल l
‘गोविंद’ प्रभुके पदनख परसत तरुन तुलसीमाल ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की छापा की त्रिशूल वाली सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित एवं हरे रंग के हांशिया वाली (किनारी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 
सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि सर्वसाज जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं. 
प्रभु के सम्मुख चांदी की त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो कि दिन के अनोसर में ही धरे जाते हैं. 

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी की चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन हरे रंग का आता हैं.
ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल छापा के कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरा का जड़ाव का चौखटा सुशोभित होता है. 
एक दुलड़ा एवं सतलड़ा धराया जाता हैं.
नीचे सात पदक एवं ऊपर हीरा पन्ना, मानक एवं मोती के हार धराए जाते है 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी सोने की जाली वाली आती हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Saturday, 24 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण अमावस्या

व्रज – आश्विन कृष्ण अमावस्या 
Sunday, 25 September 2022

अहो विधना तोपै अँचरा पसार माँगू, जनम-जनम दिजौ याहि बृज बसिबौ।
अहिर की जात समीप नन्दघर, घरि-घरि घनस्याम सौं हेरि -हेरि हसिबौ॥
दधि के दान मिष बृजकी बिथीन माँझ झकझौरन अँग-अँगकौ परसिबौ। 
छीतस्वामी गिरधारी विठ्ठलेश वपुघारी,सरदरैंन माँझ रस रास कौ बिलसिबौ॥

सर्वपितृ अमावस्या, बड़ा मनोरथ (छप्पनभोग) कोट की आरती, सांझी की समाप्ति

विशेष – आज सर्वपितृ अमावस्या है. पुष्टिमार्ग में आज दानलीला का अंतिम दिन है और इस कारण श्रीजी में आज श्री हरिरायजी कृत बड़ी दानलीला गायी जाती है.

दान के बीस दिनों में कई बार सात और कई बार आठ मुकुट काछनी के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज दान का आठवाँ नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.  

आज श्रृंगार दर्शन में जब प्रभु को आरसी दिखावें तब स्वरुप से भी लम्बी एक लकुटी (छड़ी) प्रभु के निकट धरी जाती है जिसका भाव यह है कि भारी श्रृंगार के रहते प्रभु उछल के मटकी नहीं फोड़ पाएंगे अतः लम्बी लकुटी (छड़ी) पास में होगी होगी तो खड़े-खड़े ही प्रभु मटकी फोड़ देंगे. दान के दिनों में जब भी वनमाला का भारी श्रृंगार धरा जावे तब यह छड़ी श्रीजी के निकट धरी जाती है.
आज प्रभु द्वारा दूधघर का महादान अंगीकार किया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ, खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं. 
दान के अन्य दिनों के अपेक्षा आज प्रभु को दूधघर की कई गुना अधिक हांडियां अरोगायी जाती है. 

बड़ा मनोरथ (छप्पनभोग)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
 
बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दान निवेरी लाल घर आये l
आरती करत नंदजु की रानी और हँसी हँसी मंगल गीत गवाये ll 1 ll
ऐसे वचन सुने में श्रवणन बड़े महरि के पुत कहावे l
फिर फिर राय बात हँसि बूझत हमको कहौ कहा तुम लाये ll 2 ll
लाऊ कहा सुनों किन में छीन छीन सबकी दधि खाये l
‘श्रीविट्ठल गिरिधरलालने’ बातन ही दोऊ बौराये ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की मलमल पर सुनहरी सूरजमुखी के फूल के छापा और सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कोयली रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जमदानी के होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर नीलम जड़ित स्वर्ण का मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम व गोटी दान की आती है. 

Friday, 23 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी 
Saturday, 24 September 2022

हरे एवं सफ़ेद रंग के लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के  श्रृंगार

ऋतु का छेला (अंतिम) पिछोड़ा का शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को इस रितु का छेला (अंतिम) हरे सफ़ेद लहरियाँ  का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकन दान देरी महादान वृखभान दुल्हारी । 
तृषित लोचन चकोर मेरे तू व बदन इन्दु किरण पान देरी ॥१॥
सबविध सुघर सुजान सुन्दर सुनहि बिनती कानदेरी ।
गोविन्द प्रभु पिय चरण परस कहे जाचक को तू मानदेरी ॥२॥

साज – श्रीजी में आज हरे लहरियाँ की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे सफ़ेद लहरिया का सुनहरी पठानी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जायेंगे.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हरे सफ़ेद लहरियाँ की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तथा गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
 सफेद एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चाँदी की आती है. 

Thursday, 22 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी 
Friday, 23 September 2022

नित्यलीलास्थ गौस्वामी बालकृष्णजी का उत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के तृतीय पुत्र बालकृष्णजी का उत्सव है. 

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.

श्री गुसांईजी के सभी सात पुत्रों के जन्मोत्सव सभी गृहों में मनाये जाते हैं परन्तु आपश्री तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के आचार्य थे अतः आज का उत्सव श्री द्वारकाधीश मंदिर (कांकरोली) में भव्य रूप से मनाया जाता है और इस अवसर पर वहां से जलेबी के टूक की सामग्री श्रीजी के भोग हेतु आती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखद एक रसना कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल पर लाल रंग की गायों, हरे रंग की लता के भरतकाम वाली एवं लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल का रूपहरी किनारी से सुशोभित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्वेत पुष्पों और कमल की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी,माणक के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का)धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं. आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Wednesday, 21 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी 
Thursday, 22 September 2022

“श्रीवल्लभप्रतिनिधिं तेजेराशिं दयार्णवम् l
गुणातीतं गुणनिधिं श्रीगोपीनाथमाश्रये ll”

भावार्थ - श्रीवल्लभ के प्रतिनिधि स्वरुप, तेज के भंडाररूप, दया के सागर, सत्वादि गुणों के बल पर सत्ता भोगने वाले, सद्गुणों के भंडाररूप ऐसे श्री गोपीनाथजी का मैं आश्रय करता हूँ.  

(दशदिंगत विजयी पुरुषोत्तमजी महाराज द्वारा अपने ग्रन्थ ‘अणुभाष्य प्रकाश’ में की गई आपकी स्तुति)

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपीनाथजी का उत्सव

विशेष – आज श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र गोपीनाथजी का उत्सव है. 

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज मंगला व श्रृंगार में दान के, राजभोग में श्री गोपीनाथजी की बधाई के और संध्या को सांझी के कीर्तन गाये जाते हैं. 

श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.

संध्या आरती पश्चात चीर घाट की सांझी मांडी 

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपीनाथजी

श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपीनाथजी का प्राकट्य विक्रमाब्द 1567 में आज के दिन प्रयाग (इलाहबाद) के निकट अडेल में हुआ था. उनके जन्म पर सभी को अपार आनंद अनुभव हुआ अतः महाप्रभुजी ने ब्राह्मणों, याचकों, गरीबों को खूब दान-दक्षिणा दी थी. 

7 वर्ष की आयु में आपका यज्ञोपवीत संस्कार कर स्वयं महाप्रभुजी ने आपको विद्याभ्यास प्रारंभ कराया. आप पर महाप्रभुजी की विद्वता एवं अनन्य भक्ति का बहुत प्रभाव पड़ा. 

महाप्रभुजी प्रतिदिन श्रीमद्भागवत का परायण करते. उन्हें देखकर आपने भी बाल्यावस्था में ही श्रीमद्भागवत का परायण करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करने का नियम लिया जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी वे तीन-चार दिवस बिना भोजन के भागवत परायण करते रहते. 

इससे व्यथित आपकी माताश्री को देख श्री महाप्रभुजी ने श्रीमद्भागवत साररूप ‘श्री पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम’ नामक ग्रन्थ की रचना की एवं गोपीनाथजी को ग्रन्थ दे कर आज्ञा की कि तुम प्रतिदिन इस ग्रन्थ का पाठ करो एवं इससे श्रीमदभागवत के पाठ का फल मिलेगा. 

श्री महाप्रभुजी ने आसुरव्यामोह लीला की तब आपकी आयु 19 वर्ष थी. इस अल्पायु में आपको आचार्य पद प्राप्त हुआ. 

आपकी बहूजी का नाम पयाम्मा जी था. आपको पुरुषोत्तमजी नाम के एक पुत्र, लक्ष्मी और सत्यभामा नाम की दो पुत्रियाँ हुई. 

आप शांत एवं गंभीर प्रवृति के विद्वान थे. आपकी रूचि ग्रंथों के अभ्यास एवं तीर्थयात्रा में विशेष रूप से थी. आप कई बार जगन्नाथपुरी एवं द्वारका की यात्रा को पधारते थे. 

एक बार आपश्री जगन्नाथपुरी की यात्रा को पधारे तब आपको एक लाख रुपये की धनराशि चरण भेंट में प्राप्त हुई. आपने इस राशी से सोने-चांदी के बर्तन एवं सेवा में आवश्यक सामग्रियां क्रय कर प्रभु को अर्पण कर दिए. तब से प्रभु का वैभव दिनोंदिन बढ़ने लगा.

आपके द्वारा रचित कई ग्रंथों में आज ‘साधन-दीपिका’ नाम का ग्रन्थ प्राप्त है. जिसमें भक्ति की साधना का स्वरुप सेवाविधि बतायी गयी है.

आप केवल 31 वर्ष भूतल पर विराजित रहे और जगन्नाथपुरी में ही नित्यलीला में पधारे. ऐसा कहा जाता है कि आप सदेह श्री जगन्नाथ भगवान के स्वरुप में अंतर्ध्यान हो गये थे. 

श्री गोपीनाथजी त्याग की मूर्ति, वैराग्यपूर्ण हृदय वाले भगवद सेवा परायण, समग्र परिवार को सुख देने वाले, एवं शिष्टबद्ध जीवन व्यतीत करने वाले थे. आपके बारे में श्री गुसांईजी ने कहा है :

“यदुग्रहतो जंतु: सर्व दु:खातिगोभवेत l
तमहं सर्वदा वंदे श्रीमद्वल्लभनंदनम् ll”

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l
जन्म धोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll
सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई आसपास युवतीजन करत है गुणगान l
‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस यह अवसर जे हुते ते महाभाग्यवान ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हल्के आसमानी रंगी की छापा वाली तथा लाल एवं रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की ज़री की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली आदि मालाए धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं.
 आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Tuesday, 20 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण एकादशी

व्रज – आश्विन कृष्ण एकादशी 
Wednesday, 21 September 2022

प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।
यद्यपि रूप गुण शील 
सुघरता ईन बातन न रीजैयें ।।१।।
सतकुल जन्म कर्म शुभ लच्छन
वेद पुरान पढ़ैये ।
गोविंद प्रभु बिना स्नेह सुवालों
रसना कहाजु नचैये ।।२।।

भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.
रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.

महादान एकादशी

विशेष – आज इंदिरा एकादशी है. इसे पुष्टिमार्ग में महादान एकादशी भी कहा जाता है.

आज दान का नियम का सातवाँ मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. 
इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

Post में प्रदर्शित चित्र में द्रश्य नहीं हैं परन्तु आज प्रभु के स्वरुप से भी लम्बी एक लकुटी (छड़ी) प्रभु के पीठिका के सहारे खड़ी धरी जाती है जिसका भाव यह है कि भारी श्रृंगार के रहते प्रभु उछल के मटकी नहीं फोड़ पाएंगे अतः लम्बी वेत्रजी (छड़ी) पास में होगी होगी तो खड़े-खड़े ही प्रभु मटकी फोड़ देंगे.

आज प्रभु द्वारा शाकघर का महादान अंगीकार किया जाता है. 

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ, खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं. 
दान के अन्य दिनों के अपेक्षा आज प्रभु को कई गुना अधिक हांडियां अरोगायी जाती है.

आज व्रज के गोवर्धन के दान का भाव है. कीर्तनों में श्री हरिरायजी रचित बड़ी दानलीला गायी जाती है.

श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकनि दान दै री महादानी श्रीवृषभान कुमारी l
त्रिषित लोचन चकोर मेरे तुव वदन इंदु किरन पान दैरी ll 1 ll
सबविधि सुधर सुजान सुन्दरि सुनि विनति तू कान दैरी l
‘गोविंद’ प्रभु पिय चरण परस कह्यौ याचक को तू मान दैरी ll 2 ll

साज – आज प्रातः श्रीजी में गहरवन में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन व लाल काछनी दूसरी काछनी कोयली तथा लाल रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हीरा एवं स्वर्ण का जड़ाऊ मीनाकारी वाला मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मोर की आती है. 

Monday, 19 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण दशमी

व्रज – आश्विन कृष्ण दशमी 
Tuesday, 20 September 2022

श्याम चौफुली चूंदड़ी का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और क़तरा या चंद्रिका के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्याम चौफुली चूंदड़ी का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और क़तरा या चंद्रिका
 का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज श्याम चौफुली चूंदड़ी की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज श्याम श्याम चौफुली चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के आते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्याम चौफुली चूंदड़ी की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा या चंद्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल एक जोड़ी धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी चाँदी की आती हैं.

Sunday, 18 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण नवमी

व्रज – आश्विन कृष्ण नवमी 
Monday, 19 September 2022

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री के बहूजी एवं वर्तमान तिलकायत पूज्य गौस्वामी श्री राकेशजी महाराज की मातृचरण नित्यलीलास्थ अखंड सौभाग्यकांक्षी श्री विजयलक्ष्मी बहूजी का उत्सव है. 

आज श्रीजी को दान का छठा व नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 

श्रीजी में आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज के समस्त परिवारजनों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरी जाती है जिसमें स्वयं श्री गोविन्दलालजी महाराज बायीं ओर खड़े आरती कर रहे हैं, दोनों ओर उनके परिवार के सदस्य खड़े और विराजित हैं. 

आज तिलकायत परिवार की ओर से महादान की सामग्री अरोगायी जाती है. आज कदम्ब-खंडी के दान का भाव है.

श्रीजी मंदिर में आज संध्या-आरती पश्चात नन्दगाँव और बरसाना की सांझी मांडी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

जमुना घाट रोकी हो रसिक चन्द्रावलि l
हसि मुसिकयाय कहति व्रज सुंदरि छबीलै छैल छांडो अंचल ll 1 ll
दान निवेर लैहो व्रजसुंदरि छांडो अटपटी कित गहत अलकावलि l
करसों कर गहि हृदयसों लगाय लई ‘गोविंद’ प्रभुसो तु रासरंग मिलि ll 2 ll  

साज – श्रीजी में आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज के समस्त परिवारजनों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरी जाती है जिसमें स्वयं श्री गोविन्दलालजी महाराज बायीं ओर खड़े आरती कर रहे हैं और दायीं ओर क्रमशः नित्यलीलास्थ श्री राजीवजी (दाऊबावा), चिरंजीवी श्री विशालबावा, वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराज एवं उनकी माता श्री विजयलक्ष्मी बहूजी खड़ीं हैं. बायीं ओर विराजित स्वरूपों में बाएं से दूसरे श्री राजेश्वरीजी बहूजी (वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री राकेश जी महाराज श्री के बहूजी) हैं. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज लाल चोफुली  चूंदड़ी की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ा का मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 

कस्तूरी, कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों एवं कमल की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी मोर की आती हैं.

Saturday, 17 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण अष्टमी

व्रज – आश्विन कृष्ण अष्टमी 
Sunday, 18 September 2022

श्री महाप्रभुजी के पौत्र पुरुषोत्तमजी का उत्सव 

विशेष – आज श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपीनाथजी के पुत्र श्री पुरुषोत्तमजी का उत्सव है. 
श्री गोपीनाथजी के नित्यलीला में प्रवेश के समय आपकी आयु 10 वर्ष की थी.
श्री विट्ठलनाथजी ने तब आपको पुष्टिमार्गीय आचार्य के रूप में तिलक किया. आपने भी केवल 19 वर्ष की अल्पायु में नित्यलीला प्रवेश किया अतः आपके जीवन चरित्र के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. 
आपके अविवाहित ही नित्यलीलास्थ होने से श्री गोपीनाथजी का वंश श्री पुरुषोत्तमजी के पश्चात वहीँ समाप्त हो गया.

राजभोग दर्शन – 

साज – श्रीजी में आज दान के दिवसों के अनुरूप, मस्तक पर गौरस की स्वर्ण गौरसियाँ (कलश) लेकर आती व्रजभक्त गोपीजनों के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत भातवार के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरे तथा माणक का जड़ाऊ मुकुट एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
लाल गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी दो वैत्रजी ( एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी दान की आती हैं.

Friday, 16 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण सप्तमी

व्रज – आश्विन कृष्ण सप्तमी 
Saturday, 17 September 2022

हरे मलमल का मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरे मलमल का मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज  हरे मलमल का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज श्रीकंठ के शृंगार छेड़ान के बाक़ी भारी श्रृंगारवत धराया जाता है. स्वर्ण के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें स्वर्ण और मोती के टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
कमल माला धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी और वेत्रजी का धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

Thursday, 15 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण षष्ठी

व्रज – आश्विन कृष्ण षष्ठी 
Friday, 16 September 2022

लाल सफ़ेद लहरियाँ का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल सफ़ेद लहरियाँ का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल सफ़ेद लहरियाँ की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद लहरियाँ का रूपहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लहरियाँ रंग के ग्वालपाग (पगा) के ऊपर मोती की लड़, सुनहरी चमक (जमाव) की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज कमल के फूल की माला धरायी जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी व कमल के पुष्प की मालाजी  धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो (एक सोना का) वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल रंग का व गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

Wednesday, 14 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण पंचमी

व्रज – आश्विन कृष्ण पंचमी 
Thursday, 15 September 2022

हो वारी इन वल्लभीयन पर,
मेरे तन को करों बिछौना,
सिस घरों इन के चरनन पर। 
भाव भरी देखो इन अँखियन,
मंडल मद्य बिराजत गिरिधर। 
ये तो मेरे प्राणजीवन धन,
दान दिये है श्रीवल्लभवर। 
पुष्टिमार्ग प्रकट करिबे को ,
प्रकटे श्रीविठ्ठल द्विज - वपु धर। 
दास 'रसिक 'बलैया लै लै,
वल्लभीयन की चरणरज अनुसर।

पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के मध्य श्रीजी के दर्शन कर के उनके लिए मन में उपरोक्त भाव भावना वाले महाप्रभु श्री हरिरायजी के प्राकट्योंत्सव की ख़ूब ख़ूब बधाई

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री हरिरायजी (1647) का उत्सव 

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री हरिरायजी का उत्सव है. 

आपश्री द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के आचार्य थे अतः आज का उत्सव वहां भव्यता से मनाया जाता है. 
श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में स्थित हरिरायजी की बैठक में गादी पर आभूषण धराये जाते हैं, तिलक किया जाता है और आरती की जाती हैं. हरिरायजी की जन्मपत्रिका पढ़ी जाती है. श्री विट्ठलनाथजी का राजभोग का महाप्रसाद ठाकुरजी के अरोगे उपरांत बैठकजी में गादी को भोग धरा जाता है.

सायं श्रीजी मन्दिर और श्री विट्ठलनाथजी मंदिर के कीर्तनिया बधाई के कीर्तन और आपश्री द्वारा रचित बड़ी दानलीला का गायन करते हैं.

आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से सिद्ध होकर आते हैं. 
वस्त्रों के साथ ही जलेबी के घेरा की छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहां से सिद्ध होकर आती हैं.

आज श्रीजी को दान का चौथा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 

आज श्रृंगार दर्शन में प्रभु के बड़ी डांडी का कमल धराया जाता है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोहर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
आज दानगढ़-मानगढ़ का मनोरथ होता है, सांकरी खोर के महादान का भाव भी है इसलिए गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दान की शाकघर व दूधघर में सिद्ध विशिष्ट हांडियां अरोगायी जाती है. 

आज श्रृंगार से राजभोग तक श्री हरिरायजी द्वारा रचित 35 पदों की बड़ी दानलीला एवं सायंकाल सांझी के विशेष कीर्तन भी गाये जाते हैं.
मणिकोठा में पुष्पों की सांझी भी मांडी जाती है जिसके पुष्प द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर से आते हैं.

राजभोग दर्शन –

साज – श्रीजी में आज प्रभु को गौरस अरोगाने पधारीं मुग्ध भाव की व्रजभक्त गोपियों के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत भांतवार धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे व माणक के आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी व वैजयंती माला धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर स्वर्ण का श्रीगोकुलनाथजी के हीरे-जड़ित टोपी, मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मानक के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के पक्षी वाले वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी दान की आती है. 

Tuesday, 13 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्थी

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्थी 
Wednesday, 14 September 2022

मेघश्याम धोरा के सुथन, फेंटा और पटका के शृंगार

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से हो. 
इसी भाव से आज ठाकुर जी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में लगभग छह बार धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के दिन निश्चित नहीं हैं.

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोडी)

देख गजबाज़ आज वृजराज बिराजत गोपनके शीरताज ।
देस देस ते खटदरसन आवत मनवा छीत कूल पावत 
किरत अपरंपार ऊंचे चढ़े दान जहाज़ ।।१।।
सुरभि तिल पर्वत अर्ब खर्ब कंचन मनी दीने, सो सुत हित के काज ।
हरि नारायण श्यामदास के प्रभु को नाम कर्म करावन,
महेर मुदित मन बंधि है धर्म की पाज ।।२।।

साज – आज श्रीजी में श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज मेघश्याम रंग के धोरा का सुथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के होते हैं.

शृंगार - ठाकुरजी को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण गुलाबी मीना के छेड़ान के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मेघश्याम फेंटा का साज धराया जाता है जिसमें मेघश्याम रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, बीच की चंद्रिका, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में लोलकबंदी (लड़ वाले कर्णफूल) धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम रंग का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Monday, 12 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण तृतीया

व्रज – आश्विन कृष्ण तृतीया 
Tuesday, 13 September 2022

गुलाबी मलमल के धोती-पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल के धोती-पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ढाडोई यमुनाघाट देखोई ।
कहा भयो घर गोरस बाढयो और गोधन के घाट ।।१।।
जातपांत कुलको न बड़ो रे चले जाहु किन वाट ।
परमानंद प्रभु रूप ठगोरी लागत न पलक कपाट ।।२।।

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका,लूम एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, वेणु वेत्र श्याम मीना के धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदीकी आती हैं.

Sunday, 11 September 2022

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वितीया

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वितीया 
Monday, 12 September 2022

आज श्रीजी को मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. 

दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिसे मुकुट पीताम्बर कहा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. 

इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

ऐसे अद्भुत भाव-भावना के नियमों से ओतप्रोत पुष्टिमार्ग को कोटि-कोटि प्रणाम

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज दधि कंचन मोल भई।
जा दधि को ब्रह्मादिक इच्छत सो गोपन बांटि दई॥१॥

दधि के पलटे दुलरी दीनी जसुमति खबर भई।
परमानंददास को ठाकुर वरवट प्रीति नई॥२॥

कीर्तन – (राग : सारंग)

यहाँ अब काहे को दान देख्यो न सुन्यो कहुं कान l
ऐसे ओट पाऊ उठि आओ मोहनजु दूध दही लीयो चाहे मेरे जान ll 1 ll
खिरक दुहाय गोरस लिए जात अपने भवन तापर ईन ऐसी ठानी आनकी आन l
‘गोविंद’ प्रभु सो कहेत व्रजसुंदरी, चलो रानी जसोदा आगे नातर सुधै देहो जान ll 2 ll

साज – आज प्रातः श्रीजी में गहरवन  में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को अमरसी मलमल का  रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है.मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.
श्रीमस्तक पर जड़ाऊ मोतीपड़ा के टोपी व मुकुट एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में सोना के कुंडल धराये जाते हैं. चोटी नहीं धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, वेणु,वेत्र हरे मीना के धराये जाते हैं.
पट अमरसी एवं गोटी दान की आती हैं.

Saturday, 10 September 2022

व्रज - अश्विन कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - अश्विन कृष्ण प्रतिपदा 
Sunday, 11 September 2022

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
 
बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में चितराम की गायों के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज लाल मलमल का सुनहरी ज़री के धोरा वाला पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार –  प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल टिपारे की टोपी के ऊपर लाल रंग के सुनहरी किनारी वाले गौकर्ण, सुनहरी घेरा धराया जाता है. श्रीकर्ण में मीना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.सफेद एवं पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.पट उष्णकाल का  एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.
आरसी चार झाड़ की आती हैं.

Friday, 9 September 2022

व्रज – भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा
Saturday, 10 September 2022

सांझी का प्रारंभ

विशेष – आज श्रीजी को दान का दूसरा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 
प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. 
दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. 
इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

आज का दान महादान कहा जाता है इस कारण आज श्रीजी को दान की अधिक और विशेष हांडियां अरोगायी जाती है.

सांझी - आज से पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सांझी का प्रारंभ होता है. श्रीजी मंदिर में कमलचौक में हाथीपोल के द्वार के बाहर आज से पंद्रह दिन तक संध्या-आरती पश्चात चौरासी कोस की व्रजयात्रा की लीला की सांझी मांडी जाती है. 
सफेद पत्थर के ऊपर कलात्मक रूप से केले के वृक्ष के पत्तों से विभिन्न आकर बना कर सुन्दर सांझी सजायी जाती है एवं उन्हीं पत्तों से उस दिन की लीला का नाम भी लिखा जाता है. भोग-आरती में सांझी के कीर्तन गाये जाते हैं. प्रतिदिन श्रीजी को अरोगाया एक लड्डू सांझी के आगे भोग रखा जाता है और सांझी मांडने वाले को दिया जाता है. 

आज प्रथम दिन व्रजयात्रा की सांझी मांडी जाती है.

यह सांझी अगले दिन प्रातः मंगलभोग सरे तक रहती है और तदुपरांत बड़ी कर (हटा) दी जाती है.

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा, 21 सितम्बर 2021, गुरुवार से आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, 7 अक्टूबर 2021 तक श्राद्धपक्ष (पितृपक्ष) रहेगा.

पूज्य श्री तिलकायत महाराज की आज्ञा से श्रीजी की व्रतोत्सव की टिप्पणी में श्राद्धपक्ष (पितृपक्ष) का निर्णय सरल भाषा और चार्ट फॉर्मेट द्वारा दिया है.
उसी विगत को कल चित्र स्वरूप में पोस्ट किया था. इसका लाभ लें और शेयर कर अन्य को भी लाभ लिवावें.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकन दान देरी महादान वृखभान दुल्हारी । 
तृषित लोचन चकोर मेरे तू व बदन इन्दु किरण पान देरी ॥१॥
सबविध सुघर सुजान सुन्दर सुनहि बिनती कानदेरी ।
गोविन्द प्रभु पिय चरण परस कहे जाचक को तू मानदेरी ॥२॥

साज – आज श्रीजी में दानलीला एवं  सांझीलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी तथा रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मोरपंखों से सुसज्जित स्वर्ण का रत्नजड़ित मुकुट एवं मुकुट पिताम्बर बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी कमल आदि मालाजी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, भाभीजी वाले  वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट गुलाबी एवं गोटी मोर वाली आती हैं.

Thursday, 8 September 2022

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी
Friday, 09 September 2022

मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज चौफुली चुंदड़ी का रुपहली ज़री की तुईलैस किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज श्रीकंठ के शृंगार छेड़ान(हल्के) के बाक़ी सब भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें चौफुली चुंदड़ी की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में पर मोतियों से सुसज्जित मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
श्रीकंठ में कुंडल धराये जाते हैं.
कमल माला धराई जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक, रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

Wednesday, 7 September 2022

व्रज – भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी
Thursday, 08 September 2022

अहो बलि द्वारे ठाडे वामन ।
चार्यो वेद पढत मुखपाठी अति सुमंद स्वर गावन ।।१।।
बानी सुनी बलि बुझन आये अहो देव कह्यो आवन ।
तीन पेंड वसुधा हम मागे परनकुटि एक छावन ।।२।।
अहो अहो विप्र कहा तुम माग्यो अनेक रत्न देहु गामन ।
परमानंद प्रभु चरन बढायो लाग्यो पीठन पावन ।।३।।

(वामन लीला मे प्रभु के वचन हैं कि मैं जिस पर कृपा किया करता हू उसका धन छीन लिया करता हूं. मनुष्ययोनि मे जन्म मिलने पर यदि कुलीनता,कर्म, अवस्था,रूप विद्या एश्वर्य ओर धन का घमंड न हो जाय तब समझना चाहिये कि मेरी बड़ी कृपा है)

वामन द्वादशी के शृंगार

विशेष - विगत कल वामन द्वादशी का पर्व था लेकिन दान एकादशी होने के कारण शृंगार आज धराया जायेगा.

भाद्रपद कृष्ण पंचमी को केसर से रंगे गये वस्त्र जन्माष्टमी, राधाष्टमी और वामन द्वादशी के उत्सवों पर श्रीजी को धराये जाते हैं. 
आज श्रीजी को नियम का केसरी धोती-पटका का श्रृंगार धराया जाता है. काफी अद्भुत बात है कि आज यह श्रृंगार धराया प्रभु का स्वरुप अन्य दिनों की तुलना में कुछ छोटा प्रतीत होता है अर्थात दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि श्रीजी आज वामन रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

प्रगटे श्रीवामन अवतार l
निरख अदित मुख करत प्रशंसा जगजीवन आधार ll 1 ll
तनघनश्याम पीतपट राजत शोभित है भुज चार l
कुंडल मुकुट कंठ कौस्तुभ मणि उर भृगुरेखा सार ll 2 ll
देखि वदन आनंदित सुर मुनि जय जय करे निगम उच्चार l
‘गोविंद’प्रभु बलिवामन व्है कैं ठाड़े बलि के द्वार ll 3 ll 

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है.गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं गाती का उपरना धराया जाता है. प्रभु के यश विस्तार भाव से ठाड़े वस्त्र सफेद धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता वाले आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो एक सवर्ण का) वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी दान की आती हैं.
 आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Tuesday, 6 September 2022

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वादशी ,दान (परिवर्तिनी) एकादशी व्रत

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वादशी ,दान (परिवर्तिनी) एकादशी व्रत
Wednesday, 07 September 2022

दान मांगत ही में आनि कछु  कीयो।
धाय लई मटुकिया आय कर सीसतें रसिकवर नंदसुत रंच दधि पीयो॥१॥

छूटि गयो झगरो हँसे मंद मुसिक्यानि में तबही कर कमलसों परसि मेरो हियो।
चतुर्भुजदास नयननसो नयना मिले तबही गिरिराजधर चोरि चित्त लियो॥२॥

दान (परिवर्तिनी) एकादशी, दान आरंभ, वामन जयंती

विशेष – आज पुष्टिमार्ग में कई उत्सव साथ आ गए हैं. 

सर्व प्रथम आज आज परिवर्तिनी एकादशी है. आज दान देने और प्रभु को दान की सामग्री अरोगाने से देह की दशा में परिवर्तन होता है. 

पुष्टिमार्ग में आज के दिन को दान-एकादशी कहा जाता है. 
नंदकुमार रसराज प्रभु ने व्रज की गोपियों से इन बीस दिनों तक दान लिया है. प्रभु ने तीन रीतियों (सात्विक, राजस एवं तामस) से दान लिए हैं. दीनतायुक्त स्नेहपूर्वक, विनम्रता से दान मांगे वह सात्विक दान, वाद-विवाद व श्रीमंततापूर्वक दान ले वह राजस एवं हठपूर्वक, झगड़ा कर के अनिच्छा होते भी जोर-जबरदस्ती कर दान ले वह तामस दान है. 
दान के दिनों में गाये जाने वाले कीर्तनों में इन तीनों प्रकार से लिये दान का बहुत सुन्दर वर्णन है.

प्रभु ने व्रजवितान में, दानघाटी सांकरी-खोर में, गहवर वन में, वृन्दावन में, गोवर्धन के मार्ग पर, कदम्बखंडी में, पनघट के ऊपर, यमुना घाट पर आदि विविध स्थलों पर व्रजभक्तों से दान लिया है और उन्हें अपने प्रेमरस का दान किया है.

भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को प्रभु का वामन रूप में प्रादुर्भाव हुआ. प्रभु ने ब्राह्मण रूप में राजा बलि से दान लिया. 

इस प्रकार दान-लीला के विविध भाव हैं.

दान की सामग्री में दूध श्री स्वामिनीजी के भाव से, दही श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, छाछ श्री यमुनाजी के भाव से, और माखन श्री कुमारिकाजी के भाव से अरोगाया जाता है. 

दान के बीस दिनों में पांच-पांच दिन चारों युथाधिपतियों के माने गए हैं.

कल तक बाल-लीला के पद गाये जाते थे. अब आज से प्रतिदिन दान के पद गाये जायेंगे.

आज सूर्योदय तो एकादशी तिथि में हैं किंतु सुबह 8 बज कर 07 मिनिट से द्वादशी लग जाने एवं विष्णु शृंखल योग होने आज वामन जयंती भी मानी गयी है. 

पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से चार (श्री कृष्ण, श्री राम, श्री नृसिंह एवं श्री वामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है. 

भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने नि:साधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला  पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का सामान्य अर्थ कृपा भी है.

इन चारों जयंतियों को उपवास व फलाहार किया जाता है. जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु जन्म लें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों. प्राचीन हिन्दू वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.

दोनों उत्सव आज होने से वामन द्वादशी का अभ्यंग स्नान, उत्सव भोग, सालिग्रामजी का पंचामृत व दो राजभोग खुलने का क्रम आज श्रीजी प्रभु में कर लिए जायेंगे. 
यद्यपि आज दान एकादशी के कारण मुकुट काछनी का श्रृंगार नियम से धराया जाता है अतः वामन द्वादशी का धोती उपरना का श्रृंगार आगामी कल अर्थात भाद्रपद शुक्ल द्वादशी (शनिवार, 18 सितम्बर 2021) को धराया जायेगा.

दान एकादशी व वामन जयंती कई बार एक ही दिन होती है और ऐसी स्थिति में सदैव दान के श्रृंगार (मुकुट-काछनी) को प्राथमिकता दी जाती है इसका कारण यह है कि वामन भगवान ने ‘आंशिक’ पुष्टि लीला की थी इसीलिए श्री महाप्रभुजी ने आपकी जयंती को पुष्टिमार्ग में मान्यता दी थी जबकि दानलीला पूर्णतः पुष्टि लीला है अतः वामन जयंती का श्रृंगार अगले दिन लिया जाता है.

चिरंजीवी गौस्वामी श्री विशाल बावा से यह सेवा सम्बन्धी जानकारी प्राप्त हुई इसके लिए आपश्री का हृदय से आभार. 

श्रीजी का सेवाक्रम – विविध उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.

श्रृंगार समय दान के पद गाये जाते हैं. आज विशेष रूप से श्रृंगार दर्शन में बड़ा कमल धराया जाता है.

दान एकादशी के दिन अभ्यंग स्नान नहीं होता परन्तु वामन जयंती आज होने के कारण मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रृंगार समय दान के पद गाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. 

दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

ऐसे अद्भुत भाव-भावना के नियमों से ओतप्रोत पुष्टिमार्ग को कोटि-कोटि प्रणाम

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त दोनों उत्सवों के भाव से दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त दो बासोंदी की हांडियां प्रभु को अरोगायी जाएगी. 

आज से 20 दिन तक प्रतिदिन ग्वाल भोग में श्री ठाकुरजी को दान की सामग्रियां अरोगायी जाती है. इन सामग्रियों में प्रभु को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ की हांडियां एवं खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं.

वामन जयंती के कारण आज श्रीजी में दो राजभोग दर्शन होते हैं. 
प्रथम राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में जयंती के भाव के पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. 

प्रथम राजभोग दर्शन में लगभग बारह बजे के आसपास अभिजित नक्षत्र में श्रीजी के साथ विराजित श्री सालिग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है एवं दर्शन के उपरांत उनको अभ्यंग, तिलक-अक्षत किया जाता है और श्रीजी के समक्ष उत्सव भोग रखे जाते हैं. 

दूसरे राजभोग में उत्सव भोग में कूर (कसार) के चाशनी वाले बड़े गुंजा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना (आचार) और फल आदि अरोगाये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन में प्रभु के श्रीहस्त में हीरा का वैत्र ठाड़ा धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहि धो मोल या दधिको री ग्वालिन श्यामसुंदर हसिहसि बूझत है l
बैचेगी तो ठाडी रहि देखो धो कैसो जमायो, काहेको भागी जाति नयन विशालन ll 1 ll
वृषभान नंदिनी कौ निर्मोलक दह्यौ ताको मौल श्याम हीरा तुमपै न दीयो जाय,
सुनि व्रजराज लाडिले ललन हसि हसि कहत चलत गज चालन l
‘गोविंद’प्रभु पिय प्यारी नेह जान्यो तब मुसिकाय ठाडी भई ऐना बेनी कर सबै आलिन ll 2 ll  

साज – आज प्रातः श्रीजी में दानघाटी में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
राजभोग में पिछवाई बदल के जन्माष्टमी के दिन धराई जाने वाली लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रुपहली किनारी से सुसज्जित सूथन धराये जाते हैं. छोटी काछनी केसरी रुपहली किनारी की एवं बड़ी काछनी लाल सुनहरी किनारी की होती है. 
केसरी रुपहली ज़री की तुईलैस वाला रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी का धराया जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं. आज प्रभु को बघनखा धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर माणक के टोपी व मुकुट( गोकुलनाथजी वाले) एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चित्र में द्रश्य है परन्तु चोटी नहीं धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, वेणु, वेत्र माणक के व एक वेत्र हीरा के धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी दान की आती हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

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