व्रज - वैशाख शुक्ल पंचमी
Tuesday, 25 April 2023
मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार
मल्लकाछ (मल्ल एवं कच्छ) दो शब्दों से बना है और ये एक विशेष पहनावा है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं.
सामान्यतया वीर-रस का यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु की चंचलता प्रदर्शित करने की भावना से धराया जाता है.
कीर्तन – (राग : सारंग)
अक्षय तृतीया गिरिधर बैठे चंदन को
तन लेप किए ।
प्रफुल्लित वदन सुधाकर निरखत गोपी नयन चकोर पियें ।।१।।
कनक वरन शिर बनयो हे टीपारो ठाडे है कर कमल लिए ।
गोविंद प्रभु की बानिक निरखत वार फेर तन मनजु दिये ।।२।।
साज – आज श्रीजी में माखनचोरी लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें कृष्ण-बलराम अपने मित्रों के साथ मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराये माखन चोरी कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज अंगूरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इसी प्रकार अंगूरी रंग का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला पटका भी धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा एवं दोहरा पटका का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र केसरी डोरिया के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को श्रीकंठ का शृंगार छेड़ान (हल्का) बाक़ी मध्य का (घुटने तक) ऊष्णक़ालीन श्रृंगार धराया जाता है. मोतियों के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (अंगूरी मलमल की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में फ़ीरोज़ी रंग की मोरशिखा और दोनों ओर दोहरा कतरा) तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
हांस, त्रवल, पायल कड़ा हस्तसाखलाआदि धराये जाते हैं. श्रीकंठ में श्वेत माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमल के फूल की छड़ी, सुवा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
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