व्रज - वैशाख शुक्ल तृतीया
Sunday, 23 April 2023
अक्षय तृतीया
श्याम अंग सखी हेम चंदनको नीको सोहे वागो ।
चंदन ईजार चंदन को पटुका बन्यो सीस चंदन को पागो ।।१।।
अति छबि देत चंदन ऊपरना बीच बन्यो चंदन को तागो ।
सब अंग छींट बनी चंदन की निरखत सूर सुभागो ।।२।।
श्रृंगार समां का कीर्तन –
आज मेरे आएंगे हरि मेहमान l
चंदन भवन लिपाय स्वच्छ करि धर्यो है अरगजा सान ll 1 ll
पलकन के पावड़े बिछाऊँ अंचल पवन दुराऊँ l
सुधे बसन सगमंगे किने मुक्ता ले पहराऊँ ll 2 ll
करके मनोरथ अपने मन को रही न कछु अभिलाष l
पहले बोल सुनत तू आली ‘कृष्णदास’ हित साख ll 3 ll
प्रभु को नियम का श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा व चंदनिया रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से कूर (घी में सेके गये कसार) के चाशनी चढ़े गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
अक्षय तृतीया अक्षयलीला नवरंग गिरिधर पहेरत चंदन l
वामभाग वृषभान नंदिनी बिचबिच चित्र नव वंदन ll 1 ll
तनसुख छींट ईजार बनी है पीत उपरना विरह-निकंदन l
उर उदार बनमाल मल्लिका सुखद पाग युवतीन मनफंदन ll 2 ll
नखसिख रत्न अलंकृत भूषन श्रीवल्लभ मारग मनरंजन l
‘कृष्णदास’ प्रभु रसिक सिरोमनि लोचन चपल लजावत खंजन ll 3 ll
साज – आज प्रभु में श्वेत चिकन बूटी की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केसर की किनार की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र चंदनिया (चंदन के) डोरिया के धराये जाते हैं.
#पोस्ट में प्रस्तुत चित्र में सभी वस्त्र एवं पिछवाई आदि पर चंदन के छापा द्रश्य हैं परन्तु वास्तव में ऐसा नही होता. वस्त्रादि साज पर केसर की किनार ही की जाती है.
श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) उष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. विशेष मोती, हीरा एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
नीचे उष्ण काल के मोती के पदक ऊपर मोती की माला धरायी जाती हैं.
कली एवं सात बालकन की माला धरायीं जाती हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के कुंडल धराये जाते हैं.
पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी मोती की व आरसी शृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
आज ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते और दो राजभोग दर्शन खुलते हैं.
पहले राजभोग में नित्य-नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, दहीभात आदि अरोगाये जाते हैं.
भोग सरे उपरान्त हस्तनिर्मित खस के पंखा, श्वेत माटी के करवा, कुंजा व चन्दन बरनी का अधिवासन होता है और दर्शन खोले जाते हैं.
आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है. चन्दन को घिस के मलमल के वस्त्र में लेकर जल निचो लिया जाता है एवं इसमें केशर, बरास, इत्र (खस अथवा गुलाब), गुलाबजल आदि मिलाकर इसकी गोलियां बनायी जाती है.
खुले दर्शन के मध्य प्रभु को चंदन समर्पित किया जाता है. पहली गोली प्रभु के वक्षस्थल पर, दूसरी गोली, दायें श्रीहस्त में, तीसरी बायें श्रीहस्त पर, चौथी दायें श्रीचरण पर और पांचवी गोली बायें श्रीचरण पर धरी जाती है.
इसके पश्चात दो नये हस्तनिर्मित ख़स के हाथ-पंखा को जल छिड़ककर प्रभु को कुछ देर पंखा झलकर गादी के पीछे तकिया की दोनों ओर रखे जाते हैं.
पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं परन्तु इस दर्शन में आरती नहीं की जाती.
दर्शन उपरांत दूसरे राजभोग में उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को खरबूजा (शक्कर टेंटी) के छिले हुए बीज के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फल, उत्तमोत्तम रत्नागिरी आम की डबरिया, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
सखड़ी में बड़े टूक, पाटिया, दहीभात, घोला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाती हैं.
दुसरे राजभोग दर्शन में आरती होती है. राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) में पान के बीड़ा धरे जाते हैं.
आज प्रभु के मुंडन का दिन भी है और इस कारण आज के उत्सव में ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य भी आमंत्रित किये जाते हैं और इसीलिए आज श्री यशोदाजी के पीहर की लकड़ी की विशिष्ट चौकी का प्रयोग भोग धरने में किया जाता है.
आज से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को क्रमशः जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. यद्यपि यह सामग्री रथयात्रा के पश्चात भी जन्माष्टमी तक अरोगायी जाती है परन्तु इसके स्वरुप में कुछ परिवर्तन होता है जिसका वर्णन मैं तभी दूंगा.
आज से जन्माष्टमी तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को शीतल (जल में बूरा, गुलाबजल, इलायची, बरास आदि मिलाकर सिद्ध किया गया पेय) अरोगाया जाता है.
चंदन की गोलियां संध्या-आरती पश्चात श्रृंगार बड़ा हो तब बड़ी की (हटाई) जाती है.
शयन समय शैयाजी के ऊपर छींट की गादी एवं उसके ऊपर श्वेत मलमल की चादर रखी जाती है. शैयाजी का यह क्रम आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक रहता है.
आप सभी को अक्षय-तृतीया के उत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
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