व्रज - फाल्गुन शुक्ल एकादशी
Wednesday, 20 March 2024
फागुन लाग्यौ सखि जब तें,
तब तें ब्रजमण्डल में धूम मच्यौ है।
नारि नवेली बचै नाहिं एक,
बिसेख मरै सब प्रेम अच्यौ है।।
सांझ सकारे वही 'रसखानि'
सुरंग गुलालन खेल मच्यौ है।
को सजनी निलजी न भई अरु ,
कौन भटु जिहिं मान बच्यौ है।।
कुंज एकादशी
श्रृंगार दर्शन में कुंज के भाव की पिछवाई आती है जिसे ग्वाल समय बड़ा कर दिया जाता है.
आज नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
वर्ष में केवल आज श्रीजी को एक दिन में तीन विविध प्रकार के मुकुट धराये जाते हैं.
प्रातः श्रृंगार में स्वर्ण का मीनाकारी वाला मुकुट, राजभोग में पुष्प का मुकुट एवं संध्या-आरती में विविध पुष्पों का ही अन्य मुकुट प्रभु को धराया जाता है.
फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है.
फाल्गुन शुक्ल दशमी से इनमें से कुछ सामग्रियां प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी.
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी अरोगायी जाती हैं.
इसके अतिरिक्त आज उत्सव के कारण प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी भी अरोगायी जाती है.
साज – आज प्रभु को होली के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है जिसमें व्रजभक्त प्रभु को होली खिला रहे हैं और ढप वादन के संग होली के पदों का गान कर रहे हैं.
वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी चौखाना वस्त्र का सूथन एवं छोटी काछनी वहीँ चोवा की बड़ी काछनी एवं चोली धराये जाते हैं. केसरी चौखाना का गाती का पटका भी धराया जाता है.
सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.
श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना, मोती तथा जड़ाव सोने के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में दो माला अक्काजी की, एक चन्द्रहार, डोरा, हमेल आदि धराये जाते हैं.
लाल गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोने के बटदार वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
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