व्रज - चैत्र कृष्ण नवमी
Wednesday, 03 April 2024
हरे खिनख़ाब के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर चीरा (गोल पाग) पर गोल चंद्रिका के शृंगार
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में हरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग की ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. अमरसी रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर हरे रंग के चीरा (गोल पाग) के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
एक हार व नौलड़ा धराया जाता हैं
गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा एवं गोटी चाँदी की आती है.
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