व्रज - चैत्र कृष्ण दशमी
Thursday, 04 April 2024
पीली ज़री की गोल काछनी, श्रीमस्तक पर टिपारा का साज के शृंगार
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
कहा कहों लाल सुधर रंग राख्यो मुरलीमें l
तानबंधान स्वरभेद लेत अतिजत बिचबिच मिलवत विकट अवधर ll 1 ll
चोख माखन की रेख तामें गायन मिलवत लांबे लांबे स्वर l
बिच बिच लेत तिहारो नाम सुनरी सयानी 'गोविंदप्रभु' व्रजरानी के कुंवर ll 2 ll
वस्त्र – श्रीजी को आज पीली ज़री का सूथन, दोनों काछनी एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. काछनी गोल धरायी जाती हैं.
श्रृंगार - आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. सुआपंखी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज जिसमें पीली ज़री के टिपारा के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटीजी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है.
गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पीला एवं गोटी बाघ बकरी की आती है.
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