व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी
Wednesday, 21 October 2020
पाँचो विलास कियौ शयामाजू,
कदली वन संकेत ।
ताकी मुख्य सखी संजावलि,
पिया मिलनके हेत ।।१।।
चली रली उमगी युवती सब,
पूजन देवी निकसीं ।
धूप,दीप,भोग,संजावलि,
कमल कली सों विकसीं ।।२।।
आनँद भर नाचत गाबत,
वधू रस में रस उपजाती ।
मंडलमें हरी ततच्छि आये,
हिल मिल भये एकपाँती ।।३।।
द्वै युग जाम श्यामश्या
संग भाभिनी यह रस पीनौ ।
उनकी कृपा द्रष्टि अवलोकत,
रसिक दास रस भीनौ ।।४।।
विशेष - आज पंचम विलास का लीला स्थल कदलीवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी संजावलीजी हैं और सामग्री मनोहर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधपूआ है.
मनोर के लड्डू श्रीजी में नहीं अरोगाये जाते परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को दोनों सामग्रियां अरोगायी जाती है.
श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधपूआ (दूध में मेदे के घोल से सिद्ध मालपूए जैसी सामग्री) आरोगाए जाते हे
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
कहा कहो लाल सुघर रंग राख्यो मुरलीमें l
तान बंधान स्वर भेदलेत अतिजित
बिचबिच मिलवत विकट अवधर ll 1 ll
चोख माखनीकी रेख तामे गायन मिलवत लांबे लांबे स्वर l
बिच बिच लेत तिहारो नाम सुनरी सयानी,
‘गोविंदप्रभु’ व्रजरानी के कुंवर ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में श्याम रंग के छापा की, चाँद-सितारे और सूर्य की छापवाली, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें पीठिका के आसपास पुष्प-पत्रों का हांशिया बना है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम रंग के छापा का सूथन, श्याम छापा के वस्त्र की चोली एवं खुलेबंद का चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (छेड़ान) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्याम रंग के छापा वाली ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में सोना की लोलकबिन्दी धराये जाते हैं.
कमल माला धरायी जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों वाले पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
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