By Vaishnav, For Vaishnav

Sunday, 31 January 2021

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्थी

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्थी
Monday, 01 February 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को फ़िरोज़ी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में पिले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की आती है.

Saturday, 30 January 2021

व्रज – माघ कृष्ण तृतीया

व्रज – माघ कृष्ण तृतीया
Sunday, 31 January 2021

मोरको शिर मुकुट दीये मोर ही की माला ।
दुल्हीनसि राधाजु दुल्हे नंदलाला ।।१।।
वचन रचन चारु हास गावत व्रजबाला ।
धोंधी के प्रभु राजत है मंडप गोपाला ।।२।।

शीतकाल के सेहरा का तृतीय शृंगार

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को गुड़ की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री)

अति रंग लाग्यो बनाबनी ।
दोऊजन अनुरागे पागे रजनी जुवती ज़ूथ चारु चितवनी ।।१।।
वृंदावन नित धाय रसिकवर तब गुनागुनी ।
मदनमोहन चिरजीयो दोऊ दुल्हे और दुल्हनी ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी विवाह के सेहरा के शृंगार में एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विराजमान हैं और गोपियाँ विवाह के मंगल गीत का गान साज सहित  कर रही हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. लाल ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर फ़ीरोज़ा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में फ़ीरोज़ा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं. 
पट केसरी एवं गोटी उत्सव की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Thursday, 28 January 2021

व्रज – माघ कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – माघ कृष्ण प्रतिपदा
Friday, 29 January 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 
मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को गुलाबी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गायनसो रति गोकुलसो रति गोवर्धनसों प्रीति निवाही ।
श्रीगोपाल चरण सेवारति गोप सखासब अमित अथाई ।।१।।
गोवाणी जो वेदकी कहियत श्रीभागवत भले अवगाही ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल नंदनंदनकी सब परछांई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती है.
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Wednesday, 27 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – पौष शुक्ल पूर्णिमा
Thursday, 28 January 2021

अरी में रतन जतन करि पायो ।
ऊधरे भाग आज सखी मेरे रसिक सिरोमनि आयो ।।१।।
आवतही उठ के दे आदर आगे ढिंग बैठायो ।
मुख चुंबन दे अधर पान कर भेट सकल अंग लायो ।।२।।
अद्भुत रूप अनूप श्यामको निरखत नैन सिरायो ।
निसदिन यही अपने ठाकुर को रसिक गुढ जश गायो ।।३।।

विशेष – वर्षभर में बारह पूर्णिमा होती है जिनमें से आज के अतिरिक्त सभी ग्यारह पूर्णिमाओं को नियम के श्रृंगार धराये जाते हैं अर्थात केवल आज की ही पूर्णिमा का श्रृंगार ऐच्छिक है.

ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज प्रभु को किरीट धराया जायेगा जिसे खोंप अथवा पान भी कहा जाता है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :

- मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.
- मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण देव-प्रबोधिनी से डोलोत्सव तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.
- मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार अथवा घेरदार वागा धराये जा सकते हैं.
- मुकुट धराया जावे तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत जामदानी (चिकन) के धराये जाते है परन्तु किरीट धराया जावे तब किसी भी अनुकूल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जा सकते हैं.
- मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है.

कीर्तन – (राग : आसावरी)

नवल किशोर में जु बन पाये l
नव घनश्याम फले वा वैभव देखत नयन चटपटी लाये ll 1 ll
धातु विचित्र काछनी कटितट ता महीं पीत वसन लपटाये l
माथे मोर मुकुट रचि बहु विधि ऊर गुंजामनि हार बनाये ll 2 ll
तिलक लिलाट नासिका बेसरी मुख गुन कहत सुनाए l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर तनमन लियो चोरी मंद मुसकाए ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद साटन के  का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं सफ़ेद रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, जड़ाव का छोटा पान के ऊपर किरीट का बड़ा जड़ाव पान (खोंप) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाती हैं. पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में भाभीजी वाले  वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत एवं गोटी मीना की आती हैं.

Tuesday, 26 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल चतुर्दशी

व्रज – पौष शुक्ल चतुर्दशी
Wednesday, 27 January 2021

कहो तुम सांचि कहांते आये भोर भये नंदलाल ।
पीक कपोलन लाग रही है घूमत नयन विशाल ।।१।।
लटपटी पाग अटपटी बंदसो ऊर सोहे मरगजी माल ।
कृष्णदास प्रभु रसबस कर लीने धन्य धन्य व्रजकी लाल ।।२।।

नवम (पतंगी) घटा

आज श्रीजी में पतंगी (गहरे गुलाबी) घटा के दर्शन होंगे. इसका क्रम नियत नहीं है और खाली दिन होने के कारण आज ली जा रही है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आजु नीको जम्यो राग आसावरी l
मदन गोपाल बेनु नीको बाजे नाद सुनत भई बावरी ll 1 ll
कमल नयन सुंदर व्रजनायक सब गुन-निपुन कियौ है रावरी l
सरिता थकित ठगे मृग पंछी खेवट चकित चलति नहीं नावरी ll 2 ll
बछरा खीर पिबत थन छांड्यो दंतनि तृन खंडति नहीं गाव री l
‘परमानंद’ प्रभु परम विनोदी ईहै मुरली-रसको प्रभाव री ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज पतंगी रंग की दरियाई की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर पतंगी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का दरियाई  का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी पतंगी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चमकना रूपहरी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
सभी समाँ में गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. आज पचलड़ा एवं हीरा का हार धराया जाता है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पतंगी व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.
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Sunday, 24 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल द्वादशी

व्रज – पौष शुक्ल द्वादशी
Monday, 25 January 2020

भोग श्रृंगार यशोदा मैया श्री बिटठ्लनाथ के हाथ को भावे ।
नीके न्हवाय श्रृंगार करतहे आछी रूचिसो मोहि पाग बॅधावे ।।१।।
ताते सदाहो उहाहि रहत हो तू डर माखन दुध छिपावे ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री बिटठ्ल निरख नयना त्रैताप नसावे ।।२।।

शीतकाल की चौथी चौकी

विशेष – मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी सहित) श्रीजी को अरोगायी जाती है.

इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है.

यह सामग्री प्रभु श्रीकृष्ण के ननिहाल से अर्थात यशोदाजी के पीहर से आती है.

श्रीजी में इस भाव से चौकी की सामग्री श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध हो कर आती है, अनसखड़ी में अरोगायी जाती है परन्तु सखड़ी में वितरित की जाती है.

इन सामग्रियों को चौकी की सामग्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि श्री ठाकुरजी को यह सामग्री एक विशिष्ट लकड़ी की चौकी पर रख कर अरोगायी जाती है. उस चौकी का उपयोग श्रीजी में वर्ष में तब-तब किया जाता है जब-जब श्री ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य आमंत्रित किये जायें.
इन चौकी के अलावा यह चौकी श्री ठाकुरजी के मुंडन के दिवस अर्थात अक्षय-तृतीया को भी धरी जाती है.

देश के बड़े शहर प्राचीन परम्पराओं से दूर हो चले हैं पर आज भी हमारे देश के छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ऐसी मान्यता है कि अगर बालक को पहले ऊपर के दांत आये तो उसके मामा पर भार होता है. इस हेतु बालक के ननिहाल से काले (श्याम) वस्त्र एवं खाद्य सामग्री बालक के लिए आती है.

यहाँ चौकी की सामग्रियों का एक यह भाव भी है. बालक श्रीकृष्ण को भी पहले ऊपर के दांत आये थे. अतः यशोदाजी के पीहर से श्री ठाकुरजी के लिए विशिष्ट सामग्रियां विभिन्न दिवसों पर आयी थी.

खैर....यह तो हुई भावना की बात, बालक श्रीकृष्ण तो पृथ्वी से अपने मामा कंस के अत्याचारों का भार कम करने को ही अवतरित हुए थे जो कि उन्होंने किया भी. ऊपर के दांत आना तो एक लौकिक संकेत था कि प्रभु पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्ति दिलाने आ चुके हैं.

आज चतुर्थ चौकी है जिसमें श्रीजी को मंगलभोग में मांडा अरोगाये जाते हैं.
मांडा के साथ प्रभु को कांतिवड़ा (उड़द की दाल के चाशनी में भीगे वड़ा) व चुगली अरोगायी जाती है.

श्रीजी प्रभु को नियम से मांडा वर्षभर में केवल आज, मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) और माघ कृष्ण द्वादशी (श्री विट्ठलनाथजी के घर के) के दिन ही अरोगाये जाते हैं.

चौकी के भोग धरने और सराने में लगने वाले समय के कारण पंद्रह मिनिट का अतिरिक्त समय लिया जाता है. श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी होता है.

आज रजाई गद्दल श्याम खीनखाब के आते हैं.

आज के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं. आज प्रभु को श्याम खीनखाब के चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव के ग्वाल-पगा के ऊपर सादी मोर चंद्रिका का विशिष्ट श्रृंगार धराया जाता है.

सामान्यतया श्रीमस्तक पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरें तब कर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं और छोटा (कमर तक) अथवा मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है.
आज के श्रृंगार की विशिष्टता यह है कि वर्ष में केवल आज मोर-चंद्रिका के साथ मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं और वनमाला का (चरणारविन्द तक) श्रृंगार धराया जाता है.

आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में तवापूड़ी अरोगायी जाती है.

श्रीजी में पांचवी और अंतिम चौकी आगामी बसंत पंचमी के एक दिन पूर्व अर्थात माघ शुक्ल चतुर्थी को गुड़कल की अरोगायी जाएगी.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

गोवर्धन की शिखर सांवरो बोलत धौरी धेनु l
पीत बसन सिर मोर के चंदोवा धरि मोहन मुख बेनु ll 1 ll
बनजु जात नवचित्र किये अंग ग्वालबाल संग सेनु l
‘कृष्णदास’ बलि बलि यह लीला पीवत धैया मथमथ फेनु ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की खीनखाब की बड़े बूटा की पिछवाई धरायी जाती है जो कि लाल रंग की खीनखाब की किनारी के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम रंग की खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा लाल रंग का पटका एवं टकमां हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, मोती तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर हीरा एवं माणक का जड़ाऊ ग्वाल पगा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
त्रवल नहीं धराया जाता हैं.हीरा की बघ्घी धरायी जाती हैं.
एक कली की माला धरायी जाती हैं.
सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में विट्ठलेशजी  के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट काशी का व गोटी कूदती हुई बाघ-बकरी की आती है.
आरसी शृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती हैं.
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Saturday, 23 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल एकादशी

व्रज – पौष शुक्ल एकादशी
Sunday, 24 January 2020

रसिकनी रसमे रहत गढी ।
कनकवेली व्रुषभानुं नंदिनी श्याम तमाल चढी ।।१।।
बिहरत श्री गिरिधरनलाल संग कोने पाठ पढी ।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर रति-रस केलि बढी ।।२।।

पुत्रदा एकादशी, श्रीजी में रस मंडान
त्रिकुटी के बागा को श्रृंगार

विशेष - आज पुत्रदा एकादशी है. आज श्रीजी में शाकघर का रस-मंडान होता है. रस-मंडान के दिन श्रीजी को संध्या-आरती में शाकघर में सिद्ध 108 स्वर्ण व रजत के पात्रों में गन्ने का रस अरोगाया जाता है.
इस रस की विशेषता है कि इस रस में विशेष रूप से कस्तूरी भी मिलायी जाती है.
आज प्रभु को संध्या-आरती दर्शन में चून (गेहूं के आटे) का सीरा का डबरा भी अरोगाया जाता है जिसमें गन्ने का रस मिश्रित होता है.

प्रभु के समक्ष उपरोक्त ‘रसिकनी रसमें रहत गढ़ी’ सुन्दर कीर्तन गाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

साज – आज श्रीजी में शीतकाल की  सुन्दर कलात्मक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पिले रंग के साटन के तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार (त्रिकुटी के) वागा धराये जाते हैं. श्याम तथा रुपहली ज़री का गाती का त्रिखुना पटका धराया जाता है. रुपहली ज़री के मोजाजी एवं ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पन्ना का त्रिखुना टीपारा का साज़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज चोटीजी नहीं आती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक टिपारा का साज बड़ा कर के छज्जेदार पाग धरा कर  रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

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Friday, 22 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल दशमी

व्रज – पौष शुक्ल दशमी
Saturday, 23 January 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को फ़िरोज़ी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आशावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर स्वर्ण की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और क़तरा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में पिले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी स्वर्ण की आती है.
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Thursday, 21 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल नवमी

व्रज – पौष शुक्ल नवमी
Friday, 22 January 2021

जुगल वर आवत है गठजोरें ।
संग शोभित वृषभान नंदिनी ललितादिक तृण तोरे ।।१।।
शीश सेहरो बन्यो लालकें, निरख हरख चितचोरे ।
निरख निरख बलजाय गदाधर छबि न बढी कछु थोरे ।।२।।

शीतकाल के सेहरा का द्वितीय शृंगार

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को खांड़ के रस की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को पतंगी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

मोरको सिर मुकुट बन्यो मोर ही की माला l
दुलहनसि राधाजु दुल्हे हो नंदलाला ll 1 ll
बचन रचन चार हसि गावत व्रजबाला l
घोंघी के प्रभु राजत हें मंडप गोपाला ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज पतंगी रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी विवाह के सेहरा के शृंगार में एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विराजमान हैं और गोपियाँ विवाह के मंगल गीत का गान साज सहित  कर रही हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं पतंगी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. पतंगी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग के दुमाला के ऊपर फ़िरोज़ा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है.
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं.
पट पतंगी एवं गोटी राग रंग की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

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Wednesday, 20 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल अष्टमी

व्रज – पौष शुक्ल अष्टमी
Thursday, 21 January 2021

तै जु नीलपट दियौरी ।
सुनहु राधिका श्यामसुंदरसो बिनहि काज अति रोष कियौरी ।।१।।
जलसुत बिंब मनहु जब राजत मनहु शरद ससि राहु लियो री ।
भूमि घिसन किधौं कनकखंभ चढि मिलि रसही रस अमृत पियौंरी ।।२।।
तुम अति चतुर सुजान राधिका कित राख्यौ भरि मान हियौरी ।
सूरदास प्रभु अंगअंग नागरि, मनहुं काम कियौ रूप बिचौरी ।।३।।

अष्टम (फिरोज़ी) घटा

आज श्रीजी में फिरोज़ी घटा के दर्शन होंगे. इसका क्रम ऐच्छिक है और खाली दिन होने के कारण आज धरायी जाएगी.

आज श्रीजी में फ़िरोज़ी घटा होगी.
साज, वस्त्र आदि सभी फ़िरोज़ी रंग के होते हैं. सर्व आभरण फिरोज़ी मीना के धराये जाते हैं.

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

फिरोज़ी घटा श्री यमुनाजी के भाव से धरायी जाती है. जिस प्रकार समुद्र में लहरें उठती हैं तब समुद्र का जल नभ के फ़िरोज़ी रंग सा प्रतीत होता है उस भाव से आज प्रभु को फ़िरोज़ी घटा धरायी जाती है.

नंददास जी ने इस भाव का एक पद भी गाया है.
“श्याम समुद्र में प्रेम जल पूरनता तामे राधाजु लहर री,”

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

कृष्णनाम जबते श्रवण सुन्योरी आली, भूलीरी भवन हों तो बावरी भईरी l
भरभर आवें नयन चितहु न परे चैन मुख हुं न आवे बेन तनकी दशा कछु ओरें भईरी ll 1 ll
जेतेक नेम धर्म व्रत कीनेरी मैं बहुविध अंग अंग भई हों तो श्रवण मईरी l
‘नंददास’ जाके श्रवण सुने यह गति माधुरी मूरति कैधो कैसी दईरी ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर फ़िरोज़ी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी फ़िरोज़ी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण फिरोज़ी मीना के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की मलमल की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, फिरोज़ी दोहरा कतरा एवं बायीं ओर फिरोज़ी मीना के शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में फिरोज़ी मीना के कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज चार माला धरावे.
श्वेत पुष्पों की सुन्दर रंगीन थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में फिरोज़ी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फिरोज़ी व गोटी चांदी की आती है.

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Tuesday, 19 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी

व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी
Wednesday, 20 January 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका केसरी मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच और गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में पिले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की आती है.

Sunday, 17 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल पंचमी

व्रज – पौष शुक्ल पंचमी
Monday, 18 January 2021

श्री विट्ठलनाथजी के घर का द्वितीय मंगलभोग

विशेष – श्रीजी में आज चतुर्थ एवं अंतिम मंगलभोग है. वैसे तो श्रीजी को नित्य ही मंगलभोग अरोगाया जाता है परन्तु गोपमास व धनुर्मास में चार मंगलभोग विशेष रूप से अरोगाये जाते हैं.

मंगलभोग का मुख्य भाव यह है कि शीतकाल में रात्रि बड़ी व दिन छोटे होते हैं.
शयन उपरांत अगले दिन का अंतराल अधिक होता तब यशोदाजी को यह आभास होता कि लाला को भूख लग आयी होगी अतः तड़के ही सखड़ी की सामग्रियां सिद्ध कर बालक श्रीकृष्ण को अरोगाते थे.

मंगलभोग का एक भाव यह भी है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक खाद्य खिलाये जावें तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं इन भावों से प्रेरित ठाकुरजी को शीतकाल में मंगलभोग अरोगाये जाते हैं.

इनकी यह विशेषता है कि इन चारों मंगलभोग में सखड़ी की सामग्री भी अरोगायी जाती है.

एक और विशेषता है कि ये सामग्रियां श्रीजी में सिद्ध नहीं होती. दो मंगलभोग श्री नवनीतप्रियाजी के घर के एवं अन्य दो द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर के होते हैं. अर्थात इन चारों दिवस सम्बंधित घर से श्रीजी के भोग हेतु सामग्री मंगलभोग में आती है.

आज द्वितीय गृहाधीश्वर श्री विट्ठलनाथजी के घर का दूसरा मंगलभोग है जिसमें वहाँ से विशेष रूप से अनसखड़ी में सिद्ध तवापूड़ी की छाब श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.

मंगलभोग में अरोगायी जाने वाली सखड़ी की सामग्री सिद्ध हो कर नहीं आती क्योंकि दोनों मंदिरों के मध्य आम रास्ता पड़ता है और खुले मार्ग में सखड़ी सामग्री का परिवहन नहीं किया जाता अतः श्री विट्ठलनाथजी के घर से कच्ची सामग्री आती है और सेवक श्रीजी के सखड़ी रसोईघर में विविध सामग्रियां सिद्ध कर प्रभु को अरोगाते हैं.

श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिवसों की तुलना में थोड़ा जल्दी होता है.

आज द्वितीय पीठाधीश्वर श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपेश्वरलालजी का उत्सव है अतः प्राचीन परंपरानुसार आज श्रीजी प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं.

वस्त्रों के संग बूंदी के लड्डुओं की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.

वर्षभर में लगभग सौलह बार द्वितीय गृह से वस्त्र सिद्ध होकर श्रीजी में पधारते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोडी)

हों बलि बलि जाऊं तिहारी हौ ललना आज कैसे हो पाँव धारे l
कौन मिस आवन बन्यो पिय जागे भाग्य हमारे ll 1 ll
अब हों कहा न्योछावर करूँ पिय मेरे सुंदर नंददुलारे l
'नंददास' प्रभु तन-मन-धन प्राण यह लेई तुम पर वारे ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की सुनहरी सुरमा-सितारा के कशीदे के भरतकाम एवं श्याम रंग के पुष्प-लताओं के भरतकाम के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन (Satin) के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. केसरी रंग के मोजाजी एवं केसरी रंग के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित कटि-पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण फ़िरोज़ा के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा, सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धरावे.
पीले रंग के पुष्पों की कमलाकार कलात्मक मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी गोटी मीना की आती हैं.

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Friday, 15 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल तृतीया

व्रज – पौष शुक्ल तृतीया
Saturday, 16 January 2021

फूल गुलाबी साज अति शोभित तापर राजत बालकृष्ण बिहारी ।
फ़ेंटा गुलाबी पिछोरा रह्यो फबि फूल गुलाबी रंग अति भारी ।।१।।
वाम भाग वृषभाननंदनी पहेरे गुलाबी कंचुकी सारी ।
फूल गुलाबी हस्तकमलमें छबि पर कुंभनदास बलिहारी ।।२।।

सप्तम (गुलाबी) घटा

व्रजभूमि नाथद्वारा में काफ़ी ठण्ड है और कुछ समय में गुलाब खिलने की प्रारंभ होंगे, इस भाव से आज श्रीजी में गुलाबी घटा के दर्शन होंगे.

यह घटा निश्चित है पर इसका दिन व क्रम ऐच्छिक है और इस वर्ष सातवें क्रम पर ली गयी है.

जैसा कि मैंने पूर्व की घटाओं के दिन भी बताया कि श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –
अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.
जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज कमल कुंज की भावना से श्रीजी में गुलाबी घटा होगी. साज, वस्त्र आदि सभी गुलाबी रंग के होते हैं. सर्व आभरण गुलाबी मीना एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी में आज गुलाबी दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर गुलाबी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी गुलाबी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गुलाबी रेशम के दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में गुलाबी मीना का  कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज दो दुलड़ा धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या आरती दर्शन में बत्तियां बुझा कर आरती की जाती है जिसमें प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है. 

संध्या-आरती उपरान्त प्रभु के श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े कर शयन समय छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रुपहरी धराये जाते हैं. इन दिनों शयन दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 

Thursday, 14 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल द्वितीया

व्रज – पौष शुक्ल द्वितीया
Friday, 15 January 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को हरे छीट के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराये जायेंगे

राजभोग दर्शन –

कीर्तन (राग : तोड़ी)

कटि पर नीके लटपटात पीत पट l
सीस टिपारो मोरचंदसो मिलि धातु प्रवाल विचित्र भेख नट ll 1 ll
पंचरंग छींट ऊदार ओढ़नी लटकत चलत तरनि-तनयातट l
व्रजभामिनी के मोतीहारसो उरझी रहीरी कुंचित अलकलत ll 2 ll
ज्यों गजराज मत्त करनी-संग आलिंगन कुच सुभग कनकघट l
"कृष्णदास" प्रभु गिरिधरनागर बिहरत बनबिहार बंसीबट ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में शीतकाल की  सुन्दर कलात्मक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे छीट का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोज़ाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (हरे छीट के टिपारा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोनों ओर मोरपंख के दोहरा कतरा सुनहरे फोन्दना के) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
आज कमल माला धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा एवं गोटी चाँदी की बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.

Wednesday, 13 January 2021

व्रज – पौष शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – पौष शुक्ल प्रतिपदा
Thursday, 14 January 2021

मलार मठा खींच को लोंदा।
जेवत नंद अरु जसुमति प्यारो जिमावत निरखत कोदा॥
माखन वरा छाछ के लीजे खीचरी मिलाय संग भोजन कीजे॥
सखन सहित मिल जावो वन को पाछे खेल गेंद की कीजे॥
सूरदास अचवन बीरी ले पाछे खेलन को चित दीजे॥

उत्तरायण पर्व मकर-संक्रांति

विशेष – आज उत्तरायण पर्व (मकर-संक्रांति) है. भारतीय तिथियों का आकलन चंद्रमा की कलाओं के आधार पर किया जाता है और सामान्यतया अधिकतर त्यौहार चन्द्र तिथियों के आधार पर ही मनाये जाते हैं परन्तु यह त्यौहार सूर्य के विभिन्न राशियों पर संक्रमण के आधार पर मनाया जाता है अतः सामान्यतया अंग्रेज़ी वर्ष की 14 अथवा 15 जनवरी को मनाया जाता है.

प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिमाह सूर्य का निरयण राशी परिवर्तन संक्रांति कहलाता है. 
इसके अनुसार सूर्यदेव आज मकर राशि में प्रवेश एवं दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान करते हैं. प्रतिमाह संक्रांति अलग-अलग वाहनों में, वस्त्र धारण कर, शस्त्र, भोज्य पदार्थ एवं अन्य पदार्थों के साथ आती है.

यह त्यौहार उत्तर भारत के कुछ भागों में लोहड़ी, गुजरात में उत्तरायण, दक्षिण भारत में पोंगल और असम में बीहू के नाम से मनाया जाता है जिसमें कृषक अपनी अच्छी फसलों की ख़ुशी मनाते हुए उसे अपने इष्टदेव को समर्पित करते हैं.

यद्यपि सूर्य की 12 संक्रांतियां है परन्तु इनमें से चार (मेष, कर्क, तुला एवं मकर) संक्रांति महत्वपूर्ण है. 

भारत में सामान्य लोग केवल मकर-संक्रांति के विषय में जानते हैं क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है परन्तु ‘पुष्टिमार्ग’ में भी दो (मेष एवं मकर) संक्रांति को मान्यता दी गयी है. 
मकर-संक्रांति 14-15 जनवरी एवं मेष-संक्रांति 14 अप्रेल को मनायी जाती है.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. रजाई व गद्दल छींट की आती है. दिन में दो समाँ में आरती थाली में की जाती है.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रीजी में आज रेशमी छींट के वस्त्र धराये जाते हैं. 
प्रभु के समक्ष नयी गेंदे धरी जाती है. सभी समां में गेंद खेलने के पद गाये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कट-पूवा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में नियम से दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में केसरी पेठा, मीठी सेव, विशेष रूप से सिद्ध सात धान्य का खींच व मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है. इसके साथ प्रभु को आज गेहूं का मीठा खींच भी अरोगाया जाता है.

श्रीजी की व्रतोत्सव की टिप्पणी के अनुसार इस वर्ष मकर संक्रांति प्रातः 8 बजकर 16 मिनिट पर प्रारंभ हुई है अतः मकर-संक्रांति का पुण्यकाल आज सूर्योदय से प्रारंभ होकर दोपहर 4 बजकर 16 मिनिट तक रहेगा जिसमें सूर्योदय से लगभग 2 घंटे (सुबह 7.26 से 9.25 तक) अतिमुख्य पुण्यकाल है.

श्रीजी को तिलवा के उत्सव भोग ग्वाल में धरे जायेंगे. 

उत्सव भोग में श्रीजी को तिलवा के गोद के बड़े लड्डू, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीश प्रभु के घर से आये तिलवा के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं तले हुए बीज-चालनी के नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है.

मकर संक्रांति में श्रीजी के कीर्तन -

श्रृंगार दर्शन – (राग-धनाश्री)

तरणी तनया तीर आवत है प्रातसमें गेंद खेलत देख्योरी आनंदको कंदवा l
काछिनी किंकिणी कटि पीतांबर कस बांधे लाल उपरेना शिर मोरनके चंदवा ll

आरती दर्शन -(राग-नट)

तुम मेरी मोतीन लर क्यों तोरी ।
रहो रहो ढोटा नंदमहरके करन कहत कहा जोरी ।।१।।
में जान्यो मेरी गेंद चुराई ले कंचुकी बीच होरी ।
परमानंद मुस्काय चली तब पूरन चंद चकोरी ।।२।।

शयन - (राग-धनाश्री) 

ग्वालिन तें मेरी गेंद चुराई l
खेलत आन परी पलका पर अंगिया मांझ दुराई ll 1 ll
भुज पकरत मेरी अंगिया टटोवत छुवत छतियाँ पराई l
‘सूरदास’ मोहि यहि अचंभो एक गयी द्वै पाई ll 2 ll

राजभोग दर्शन –

साज – आज श्रीजी में बड़े बूटों वाली लाल रंग की छींट की केरी भात की पिछवाई धरायी जाती है जो कि रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग की छींट का रुई भरा सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत लट्ठे के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की छींट की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल नहीं आवे व कंठी धरायी जाती है. सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की चार कलात्मक मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी (विट्ठलेशरायजी के) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की दिखाई जाती हैं.

आज शयनभोग में प्रभु को शाकघर में सिद्ध सूखे मेवे का अद्भुत खींच भी अरोगाया जाता है जो कि वर्षभर में केवल आज के दिन ही अरोगाया जाता है.

Tuesday, 12 January 2021

व्रज – पौष कृष्ण अमावस्या

व्रज – पौष कृष्ण अमावस्या
Wednesday, 13 January 2020

नाथद्वारा के युवराज परचारक महाराज श्री १०५ चिरंजीवी गौस्वामी श्री भूपेशकुमारजी (श्री विशालबावा) का जन्मदिवस

विशेष – आज नाथद्वारा के युवराज, युवा वैष्णवों के हृदय सम्राट चिरंजीवी गौस्वामी श्री भूपेशकुमारजी (श्री विशालबावा) का 40 वां जन्मदिवस है.

Shreenathji nity darshan की तरफ़ से आपश्री को जन्मदिवस की ख़ूबख़ूब बधाई

श्रीजी का सेवाक्रम – उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है. 
राजभोग में सोने का बंगला आता हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध दो प्रकार के फलों के मीठा का अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव, केशरयुक्त पेठा, व छहभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं. 
शामको भोग समय मगद के बड़े नग आरोगाये जाते हैं.
संध्या-आरती में मनोरथ के भाव से श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी में विविध सामग्रियां, दूधघर सामग्री आदि लवाज़मा सहित अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ मुख जाके l
सुन्दर नवनीत के प्रिय आवत हरि ताहि के हिय जन्म जन्म जप तप करि कहा भयो श्रमथाके ll 1 ll
मनवच अघ तूल रास दाहनको प्रकट अनल पटतर को सुरनर मुनि नाहिन उपमा के l
‘छीतस्वामी’ गोवर्धनधारी कुंवर आये सदन प्रकट भये श्रीविट्ठलेश भजनको फल ताके ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग के आधारवस्त्र के ऊपर झाड़ फ़ानुश एवं सेवा करती सखियों की सुनहरी कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली तथा पुष्पों के सज्जा के कशीदे के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग का खीनखाब का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं मैरुन ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. मैरुन रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी खीनखाब के चीरा  (ज़री की पाग) के ऊपर जड़ाऊ लूम तुर्रा सुनहरी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी गेड़ी के कर्णफूल धराये जाते हैं.
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती है. 
 पीले पुष्पों की सुन्दर कलात्मक थागवाली मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में नवरत्न के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी एवं गोटी जड़ाऊ की धरायी जाती हैं.
आरसी लाल मख़मल की दिखाई जाती हैं.

Monday, 11 January 2021

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – पौष कृष्ण चतुर्दशी
Tuesday, 12 January 2021

पीताम्बर को चोलना पहरावत मैया ।
कनक छाप तापर धरी झीनी एक तनैया ।।१।।
लाल इजार चुनायकी और जरकसी चीरा ।
पहोंची रत्न जरायकी ऊर राजत हीरा ।।२।।
ठाडी निरख यशोमति फूली अंग न समैया ।
काजर ले बिंदुका दियो बृजजन मुसकैया ।।३।।
नंदबाबा मुरली दई कह्यो ऐसै बजैया ।
जोई सुने जाको मन हरे परमानन्द बलजैया ।।४।।

आज उपरोक्त पद ‘पीताम्बर को चोलना’ के आधार पर होने वाले विशिष्ट श्रूँगार के  दर्शन का आनंद ले

विशेष – जिस प्रकार जन्माष्टमी के पश्चात भाद्रपद कृष्ण एकादशी से अमावस्या तक बाल-लीला के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं उसी प्रकार श्री गुसांईजी के उत्सव के पश्चात चार श्रृंगार बाल-लीला के धराये जाते हैं. 

गत एकादशी के दिन कुल्हे का प्रथम श्रृंगार धराया गया उसी श्रृंखला में आज ‘पीताम्बर को चोलना’ का दूसरा बाल-लीला का श्रृंगार धराया जाएगा जो कि उपरोक्त कीर्तन के आधार पर धराया जाता है.
‘पीताम्बर को चोलना पहरावत मैया, जोई सुने ताको मन हरे परमानंद बलि जैया.’

दिनभर बाल लीला के कीर्तन गाये जाते हैं. बाल-लीला का आगामी श्रृंगार तिलकायत श्री दामोदरलालजी के उत्सव के दिन (पौष शुक्ल षष्ठी) व चौथा श्रृंगार माघ कृष्ण अमावस्या के दिन धराया जाता है.

आज के श्रृंगार में विशेष यह है कि आज लाल छापा की सूथन एवं पीला छापा का सुनहरी किनारी का घेरदार वागा धराया जाता है. सामान्यतया सूथन एवं घेरदार वागा एक ही रंग के धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मीठे हरिजु के बोलना ।
पांय पैंजनी रुनझुन बाजे आंगन आंगन डोलना ।।१।।
काजर तिलक कंठ कठुला पीतांबर कौ चोलना ।
परमानंददास को ठाकुर गोपी झुलावे झोलना ।।२।।

साज – आज श्रीजी में मेघश्याम रंग की, सुनहरी सुरमा-सितारा के कशीदे से चित्रित मोर-मोरनियों के भरतकाम (Work) वाली अत्यंत आकर्षक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का सूथन, पीले रंग की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. मोजाजी सुनहरी ज़र्री के एवं ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच, लूम तुर्री तथा जमाव (नागफणी) का कतरा एवं बायीं शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल,एक हालरा, बघनखा सभी धराये जाते हैं. कली की माला धरायी जाती है.
रंग-बिरंगे पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी सोना की चिड़िया की धरायी जाती हैं.

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Sunday, 10 January 2021

व्रज – पौष कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – पौष कृष्ण त्रयोदशी
Monday, 11 January 2021

बैंगनी घटा

विशेष – आज श्रीजी में बैंगनी घटा के दर्शन होंगे. यह घटा नियत है और सामान्यतया आज के दिन ही होती है यद्यपि इसका क्रम निश्चित नहीं और इस वर्ष छटे क्रम पर ली गयी है.

श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. 
आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं.

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज श्रीजी में बैंगनी घटा होगी. साज, वस्त्र आदि सभी बैंगनी रंग के होते हैं. सर्व आभरण हीरे एवं मोती एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

ए कहूं उमडे घुमडे गाजतहो पिय कहुं बरखत कहुं उघरजात ।
कहुं दमकत चमकत चपला ज्यों एकठोरन ठहरात ।।१।।
स्याम घनके लछन तुमहीपें स्यामघन मेहनेह आडंबर वृथा वहे जात ।
मुरारीदास प्रभु तिहारे वाम चरन पुजीयेजु को किनकी कही न बात को पत्यात ।।२।।

साज – श्रीजी में आज बैंगनी रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर बैंगनी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बैंगनी रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी बैंगनी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बैंगनी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोती की लूम तथा चमकनी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. हीरे की एक माला हमेल की भांति धरायी जाती है.एक हार एवं पचलड़ा धराया जाता हैं.
आज श्रीकंठ में पुरे दिन सफ़ेद मनका की माला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी एवं गोटी चाँदी आती हैं.

Saturday, 9 January 2021

व्रज – पौष कृष्ण द्वादशी

व्रज – पौष कृष्ण द्वादशी
Sunday, 10 January 2021

शीतकाल की तृतीय चौकी

विशेष – मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी सहित) श्रीजी को अरोगायी जाती है. 

इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है. 

यह सामग्री प्रभु श्रीकृष्ण के ननिहाल से अर्थात यशोदाजी के पीहर से आती है. श्रीजी में इस भाव से चौकी की सामग्री श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध हो कर आती है, अनसखड़ी में अरोगायी जाती है परन्तु सखड़ी में वितरित की जाती है. 

इन सामग्रियों को चौकी की सामग्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि श्री ठाकुरजी को यह सामग्री एक विशिष्ट लकड़ी की चौकी पर रख कर अरोगायी जाती है. उस चौकी का उपयोग श्रीजी में वर्ष में उन किया जाता है जब-जब श्री ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य आमंत्रित किये जायें. 
इन चौकी के अलावा यह चौकी श्री ठाकुरजी के मुंडन के दिवस अर्थात अक्षय-तृतीया को भी धरी जाती है.

देश के बड़े शहर प्राचीन परम्पराओं से दूर हो चले हैं पर आज भी हमारे देश के छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ऐसी मान्यता है कि अगर बालक को पहले ऊपर के दांत आये तो उसके मामा पर भार होता है. इस हेतु बालक के ननिहाल से काले (श्याम) वस्त्र एवं खाद्य सामग्री बालक के लिए आती है. 

यहाँ चौकी की सामग्रियों का एक यह भाव भी है. बालक श्रीकृष्ण को भी पहले ऊपर के दांत आये थे. अतः यशोदाजी के पीहर से श्री ठाकुरजी के लिए विशिष्ट सामग्रियां विभिन्न दिवसों पर आयी थी. 

खैर....यह तो हुई भावना की बात, बालक श्रीकृष्ण तो पृथ्वी से अपने मामा कंस के अत्याचारों का भार कम करने को ही अवतरित हुए थे जो कि उन्होंने किया भी. ऊपर के दांत आना तो एक लौकिक संकेत था कि प्रभु पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्ति दिलाने आ चुके हैं.

आज तृतीय चौकी में श्रीजी को मंगलभोग में खरमंडा मंगोड़ा की छाछ एवं कच्चा संधाना अरोगाये जाते हैं. श्रीजी प्रभु को अनसखड़ी खरमंडा वर्षभर में केवल आज और फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी के पाटोत्सव) के दिन ही अरोगाये जाते हैं.

चौकी के भोग धरने और सराने में लगने वाले समय के कारण पंद्रह मिनिट का अतिरिक्त समय लिया जाता है. श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी होता है.

आज के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं. आज प्रभु को हरे खीनखाब के चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की पाग पर साज सहित टिपारा धराया जाता है.

आज से विशेष रूप से ललित राग के कीर्तन भी प्रारंभ हो जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंद बधाई दीजे ग्वालन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गौदान l
गोकुल मंगल महा महोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंदगोपके लाल ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में हरे रंग की किनखाब की पिछवाई धरायी जाती है जो कि सुनहरी ज़री के केरी भांत के भरतकाम एवं रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग की खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं (मोजाजी जड़ाऊ) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. हीरा की बघ्घी धरायी जाती है और हांस, त्रवल नहीं धराये जाते. 
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (हीरा पन्ना, माणक के टिपारा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोनों ओर मोरपंख के दोहरा कतरा सुनहरे फोन्दना के) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में विट्ठलेशरायजी वाले वेणुजी एवं वेत्रजी व एक सोने के धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी सोना की बाघ बकरी की धरायी जाती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की दांडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक टीपारा बड़ा करके लाल छज्जेदार पाग धरा कर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

શ્રી નાથજીની છત ઉપર ...સાત ધજા કેમ ફરકે છે ...?

શ્રી નાથજીની છત ઉપર ...
સાત ધજા કેમ ફરકે છે ...?

શ્રી નાથજીના મંદિર ઉપર દિવ્ય સુદર્શન ચક્ર શોભે છે. શ્રી નાથજીની ધજાને ‘ઘ્વજાજી’ કહેવામાં આવે છે. શ્રી નાથ દ્વારામાં રાજભોગના દર્શન કર્યા બાદ ઘ્વજાજી ચઢાવવામાં તેમજ ભોગ ધરાવવાની સેવા થાય છે. ઘ્વજાજીના દર્શનથી હૃદયમાં આનંદ થાય છે. શ્રીજીબાવા પ્રસન્ન થાય છે. ઘ્વજાજી સાથે જ સુદર્શન ચક્ર શોભે છે. ઘ્વજાજી એ શ્રી નાથજીનું જ દિવ્ય સ્વરૂપ છે. શ્રીજીના મંદિર ઉપરનો કળશ અને ચક્ર તે ઐશ્વર્ય, ધર્મનું પ્રતિક છે. તેની નીચે ચાર સંિહ છે તે વેદનું સ્વરૂપ છે.
સુદર્શન ચક્ર શ્રી ધર્મનું સ્વરૂપ છે. સુદર્શનને અત્તર અંગીકાર કરાવાય છે તેમજ ભોગ ધરાવવામાં આવે છે છત ઉપર વૈષ્ણવોને જવાની મનાઇ છે.

પરમાનંદ દાસજી પદમાં ગાય છે...

‘‘પદ્ય ધર્યો જન તાપ નિવારન
ચક્ર સુદર્શન ધર્યો કમલ કર,
ભક્તિ કી રક્ષા કે કારન ।। (૧)

શંખ ધર્યો રિપુ ઉદર વિદારન
ગદા ધરી દુષ્ટના સંહારન
ચારો ભુજર ચારુ આયુધ ધરિ
નારાયણ ભુવિ ભાર ઉતારન ।। (૨)

દીનાનાથ દયાલ જગતગુરૂ
આરતિ હરન ભક્ત ચંિતામન
પરમાનંદદાસકો ઠાકુર
યહ ઔસર છોડો જિના ।। (૩)

'સું' એટલે સુંદર-
'દર્શન' એટલે શાસ્ત્ર...

સુદર્શન ચક્ર સર્વ શાસ્ત્રોના સારરૂપ છે. આથી પુષ્પોના સારરૂપ સુગંધીના ભંડારરૂપ અત્તર નિત્ય અંગીકાર કરે છે.

જે વૈષ્ણવો ભાવપૂર્વક અત્તર શ્રઘ્ધાથી સમર્પણ કરે છે તેની મનોકામના પૂર્ણ થાય છે.
કલશ ઉપરનું શ્રી નાથજીનું સુદર્શન ચક્ર છે, ભક્તોની સદાય રક્ષા મનોકામના પૂર્ણ કરે છે તે મહાપ્રભુજીના જ્યેષ્ઠ લાલજી શ્રી ગોપીનાથજીના સ્વરૂપે છે.

મંદિરમાં ચાર ચોક છે.
(૧) ગોવર્ધન પૂજાનો ચોક,
(૨) ફુલ ચોક (ધોલી પટિયા), 
(૩) કમલ ચોક, 
(૪) રત્ન ચોક.

રતન ચોકમાંથી સીડી વાટે આ સુદર્શન ચક્રના દર્શન માટે જવાય છે. શ્રી ઘ્વજાજી અને કલશ ચાર કોઠાની વચ્ચે છે. મોટો કલશ શ્રી મહાપ્રભુજીનો અને નાનો કલશ શ્રી સ્વામીજીનાં ભાવનો છે. કલશોની નીચેના ચાર સંિહો ધર્મ, અર્થ કામના અને મોક્ષ સ્વરૂપે દેખા દે છે. ઘ્વજાજી વાંસની લાકડીમાં ખોસાય છે. પ્રભુની વાંસળી વેણુ વાંસની બનેલી છે. વાંસ પ્રભુને પ્રિય છે. સાત ઘ્વજાઓ ફરકે છે. આ ઘ્વજાજી ગોપીઓના ભાવથી છે. ઘ્વજાજીનાં વસ્ત્રો ગોપીજનોના વસ્ત્રોના ભાવથી છે.

જે વૈષ્ણવ ઘ્વજાનાં દર્શન કરે તેને શ્રીજી બાવા આશીર્વાદ આપે છે. વ્રજભક્ત શ્રીજીની સન્મુખ કરે છે. માન્યતા મુજબ સુદર્શન ચક્રની અત્તરની પ્રસાદી નિજમણિને માદળિયામાં મુકી બાળકોના ગળામાં રાખે છે. આથી બાળકો કોઇ "મેલી વિદ્યાનો ભોગ બનતા નથી. શ્રીજીબાવા તેનું રક્ષણ કરે છે."

‘સુદર્શન’ ચક્રની પાસે વાંસના ૭ વાંસ શ્રી ગુસાંઇજીના સાત લાલજીના સ્વરૂપો માનવામાં આવ્યા છે.

ઘ્વજાજી સાત રંગોની છે.
(૧) મેધ રંગ - શ્રી નાથજીનો ભાવ,
(૨) પીળો રંગ - શ્રી રાધાજીનો ભાવ,
(૩) શ્યામ રંગ - શ્રી યમુનાજીનો ભાવ,
(૪) સફેદ રંગ - ચંદ્રાવલીનો ભાવ,
(૫) લીલો રંગ - શ્રી રાધા સહચારીણીનો ભાવ,
(૬) જાંબલી રંગ - શ્રી ગિરિરાજજીનો ભાવ,
(૭) ગુલાબી રંગ - શ્રી ગોપીજનોનો ભાવ.

આમ સાત ઘ્વજાઓ. શ્રી નાથજી સકલ લીલા પરિકર સહિત મંદિરમાં બિરાજે છે અને દર્શન કરવા આવનાર વૈષ્ણવોના સુખ પ્રદાન કરે છે.
‘સાત’નો અંક પુષ્ટિ અંક છે.

(૧) પ્રભુએ સાત દિવસ ગોવર્ધન ધારણ ટચલી આંગણી ઉપર કર્યો.

(૨) પ્રભુએ સાત વર્ષની આયુમાં ગોવર્ધન ધારણ કર્યો.

(૩) શ્રી નાથજીનું નામાત્મક સ્વરૂપ સાત પ્રકારે ભાગવત્‌માં વર્ણન છે ઐશ્વર્ય, વીર્ય, યશ શ્રી સાત વૈરાગ્ય. પ્રભુના સાત ધર્મી સ્વરૂપ છે.

(૪) પ્રભુની ‘વેણું’માં સાત છિદ્રો છે.

(૫) સંગીતના સાત સૂરો છે.

(૬) જીવના સાત રક્ષક તત્ત્વો છે.

(૭) પંચ મહાભુતનું શરીર અને અંતઃકરણ અને આત્મા એમ સાત થાય.

(૮) શ્રી નાથજીનો પાટોત્સવ મહાવદી સાતમે આવે છે.

(૯) સપ્તપદી સાત છે.

(૧૦) સાત વારમાંથી એક વારે સૌએ શ્રીજી ચરણે જવાનું છે.

‘સુદર્શન કવચ’ વૈષ્ણવોની રક્ષા કરે છે. આ કવચનો પાઠ ‘સુદર્શન કવચમ્‌’ વૈષ્ણવોનો પરમ હિતકારી છે.

‘‘કૃષ્ણ ત્વમાહં શરણાગતઃ
વૈષ્ણવાર્થ કૃતં પાત્ર,
શ્રી વલ્લભનિરૂપિત્તમ’’

Friday, 8 January 2021

व्रज – पौष कृष्ण एकादशी

व्रज – पौष कृष्ण एकादशी
Saturday, 09 January 2021

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविंदजी का उत्सव, सफला एकादशी

विशेष – आज सफला एकादशी है. आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दजी महाराज का उत्सव है. आपका जन्म विक्रम संवत 1769 में गौस्वामी श्री विट्ठलेशजी के द्वितीय पुत्र के रूप में हुआ. 

आपके बड़े भ्राता श्री गोवर्धनेशजी के यहाँ कोई पुत्र ना होने के कारण उनके पश्चात आप तिलकायत पद पर आसीन हुए. वर्तमान की भांति तब भी एक पीढ़ी में दो तिलकायत हुए. 

पुष्टिमार्ग में आप बाल-भाव भावित तिलकायत हुए हैं. एक बार बाल्यकाल में आप श्रीजी के शैया मंदिर में रह गये तब श्रीजी ने आपको अपने हाथों से महाप्रसाद खिलाया था. 

आपने प्रभु सुखार्थ कई मनोरथ किये. आपके पुत्र श्री गिरधारीजी ने श्रीजी को घसियार से नाथद्वारा पधराकर नवीन नाथद्वारा का निर्माण किया.

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. आज दो समय की आरती थाली में करी जाती हैं.

गद्दल, रजाई सफ़ेद खीनखाब के आते हैं.
निजमंदिर के सभी साज (गादी, तकिया आदि) पर आज पुनः सफेदी चढ़ जाती है. 
श्री गोविंदजी महाराज के यशस्वरुप आज श्वेत खीनखाब के वस्त्र एवं अनुराग के भाव से लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 
 
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में खरमंडा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बर्षन अधिकाई l
सुखद रसना एक कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज श्वेत साटन के वस्त्र के ऊपर फूल-पत्तियों के लाल, हरे, पीले रंग के कलाबत्तू के काम (Work) वाली पिछवाई धरायी जाती है जो कि फिरोजी रंग के वस्त्र के ऊपर पुष्प-लता के भरतकाम (Work) से सुसज्जित होती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहली ज़री का बड़े बूटा का किनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं धराये जाते हैं. पटका लाल रंग का धराया जाता हैं. मोजाजी हरे केरीभात के धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
ठाडी लड़ मोती धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.
 श्रीकंठ में माणक का दुलड़ा हार (जो आपश्री ने श्रीजी को भेंट किया था), कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में जड़ाव स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (पन्ना व सोने के) धराये जाते हैं. पट उत्सव का व गोटी श्याम मीना की आती है. आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती हैं.

શ્રીગુસાંઇજી

*પ્રશ્ન ૧: શ્રીગુસાંઇજી નું પ્રાગટ્ય ક્યાં અને ક્યારે થયું હતું?* 
*જવાબ ૧: શ્રીગુસાંઇજી નું પ્રાગટ્ય ચરણાટ માં સંવત ૧૫૭૨ માં પોષ વદ નોમ ને દિવસે થયું હતું.*

*પ્રશ્ન ૨: શ્રીગુસાંઇજી ના માતા-પિતા નું અને મોટાભાઈ નું નામ શું હતું?* 
*જવાબ ૨: શ્રીગુસાંઇજી ના માતા નું નામ શ્રીમહાલક્ષ્મી વહુજી અને પિતા નું શ્રીમહાપ્રભુજી અને મોટાભાઈ નું નામ શ્રીગોપીનાથજી હતું.*

*પ્રશ્ન ૩: શ્રીગુસાંઇજી નું મૂળ નામ શું હતું?*
*જવાબ ૩: શ્રીગુસાંઇજી ના મૂળ નામ 'શ્રીવિઠ્ઠલનાથજી' હતું.*

*પ્રશ્ન ૪: શ્રીગુસાંઇજી એ કેટલા વર્ષે પોતાનો સર્વ વિદ્યા અભ્યાસ પૂર્ણ કર્યો હતો?* *જવાબ ૪: શ્રીગુસાંઇજી એ દશ વર્ષ ની ઉંમરે જ પોતાનો સર્વ અભ્યાસ પૂર્ણ કર્યો હતો.*

*પ્રશ્ન ૫: શ્રીગુસાંઇજી ને બીજી કઈ કળાઓ નો શોખ હતો?* *જવાબ ૫: શ્રીગુસાંઇજી ને નૃત્ય, સંગીત, ચિત્રકળા તથા ઘોડેસવારી નો ખુબ શોખ હતો.*

*પ્રશ્ન ૬: શ્રીગુસાંઇજી ના સમય માં કયા રાજા નું રાજ્ય હતું?* *જવાબ ૬: શ્રીગુસાંઇજી ના સમય માં મોગલ બાદશાહ 'અકબર' નું રાજ્ય હતું.*

*પ્રશ્ન ૭: શ્રીગુસાંઇજી એ સૌપ્રથમ કયા સ્ત્રોત ની રચના કરી હતી?* *જવાબ ૭: ૪: શ્રીગુસાંઇજી એ સૌપ્રથમ 'શ્રીસર્વોત્તમ સ્ત્રોત' ની રચના કરી હતી.*

*પ્રશ્ન ૮: શ્રીગુસાંઇજી ના બે પત્ની (વહુજી) ના નામ આપો.* *જવાબ ૮: શ્રીગુસાંઇજી ના પ્રથમ પત્ની નું નામ 'શ્રીરુકમણી વહુજી' અને બીજા પત્ની નું નામ "શ્રીપદ્માવતી વહુજી' હતું.*

*પ્રશ્ન ૯: શ્રીગુસાંઇજી ના કેટલા બાળકો હતા? તેમના નામ શું હતા?* *જવાબ ૯: શ્રીગુસાંઇજી ના સાત પુત્રો અને ચાર પુત્રીઓ હતી. સાત પુત્રો ના નામ: ૧. શ્રીગીરીધરજી ૨. શ્રીગોવિંદલાલજી ૩. શ્રીબાલકૃષ્ણલાલજી, ૪. શ્રીગોકુલનાથજી ૫. શ્રીરઘુનાથજી ૬. શ્રીયદુનાથજી ૭. શ્રી ઘનશ્યામલાલજી ચાર પુત્રીઓ ના નામ: ૧. શ્રીશોભાબેટીજી ૨. શ્રીયમુનાબેટીજી ૩. શ્રીકમલાબેટીજી ૪. શ્રીદેવકીબેટીજી*

*પ્રશ્ન ૧૦: શ્રીગુસાંઇજી એ મથુરા માં સાતેય પુત્રો માટે બનાવેલા ઘર નું નામ શું છે?* *જવાબ ૧૦: સાતધરા*

*પ્રશ્ન ૧૧: અકબર બાદશાહે શ્રીવિઠ્ઠલનાથજી ને કઈ પદવી આપી હતી જેને લીધે આપશ્રી શ્રીગુસાંઇજી તરીકે પ્રસિદ્ધ થયા?* *જવાબ ૧૧: અકબર બાદશાહે આપશ્રી ને 'ગોસ્વામી' ની પદવી આપી હતી.*

*પ્રશ્ન ૧૨: શ્રીગુસાંઇજી ના મુખ્ય સેવકો કેટલા હતા?* *જવાબ ૧૨: શ્રીગુસાંઇજી ના મુખ્ય ૨૫૨ સેવકો હતા. જેમની ૨૫૨ વૈષ્ણવો ની વાર્તાઓ પ્રસિદ્ધ છે.*

*પ્રશ્ન ૧૩: પુષ્ટિમાર્ગ ની સ્થાપના કોણે કરી અને તેનો વિસ્તાર કોણે કર્યો?* *જવાબ ૧૩: પુષ્ટિમાર્ગ ની સ્થાપના શ્રીમહાપ્રભુજી એ કરી અને તેનો પ્રચાર અને પ્રસાર-વિસ્તાર શ્રીગુસાંઇજી એ કર્યો.*

*પ્રશ્ન ૧૪: શ્રીઠાકોરજી ની સેવામાં પ્રીતિ વધારવા માટે શ્રીગુસાંઇજી એ વૈષ્ણવોને (પુષ્ટિમાર્ગમાં) શું આપ્યું?* *જવાબ ૧૪: શ્રીગુસાંઇજી એ શ્રીઠાકોરજી ની સેવા માં 'રાગ, ભોગ અને શૃંગાર' આપ્યા.*

*પ્રશ્ન ૧૫: શ્રીગુસાંઇજી નો જન્મદિવસ સૌપ્રથમ ધામધૂમ થી કોણે ઉજવ્યો હતો અને તે ઉત્સવ ને શું કહેવાય છે?* *જવાબ ૧૫: શ્રીગુસાંઇજી નો જન્મદિવસ સૌપ્રથમ શ્રીગોવર્ધનનાથજી (શ્રીઠાકોરજી) એ ધામધૂમ ઉજવ્યો હતો અને તે 'જલેબી ઉત્સવ' તરીકે ઉજવાય છે.*

*પ્રશ્ન ૧૬: શ્રીગુસાંઇજી ને શ્રીગોવર્ધનનાથજી ની સેવા માં છ (૬) માસ નો વિરહ કોણે આપ્યો હતો?* *જવાબ ૧૬: શ્રીગુસાંઇજી ને શ્રીગોવર્ધનનાથજી ની સેવા માં છ (૬) માસ નો વિરહ ' શ્રીકૃષ્ણદાસ અધિકારી' એ આપ્યો હતો.*

*પ્રશ્ન ૧૭: આ છ માસ ના વિરહ દરમ્યાન શ્રીગુસાંઇજી એ શેની રચના કરી હતી?* *જવાબ ૧૭: શ્રીગુસાંઇજી આ છ માસદરમ્યાન 'વિજ્ઞપ્તિ' ની રચના કરી જે ૯ વિજ્ઞપ્તિ છે.*

*પ્રશ્ન ૧૮: શ્રીગુસાંઇજી ની કુલ કેટલી બેઠકજી છે?* *જવાબ ૧૮: શ્રીગુસાંઇજી ની કુલ ૨૮ બેઠકજી છે.*

*પ્રશ્ન ૧૯: શ્રીગુસાંઇજી ની ગુજરાત માં કેટલી બેઠકજી છે?* *જવાબ ૧૯: શ્રીગુસાંઇજી ની ગુજરાત માં ૭ (સાત) બેઠકજી છે.*

*પ્રશ્ન ૨૦: શ્રીગુસાંઇજી એ જીવન માં એક નિયમ લીધો હતો જે પૂરો થયા વગર તેઓ જમતા નહોતા. તો તે નિયમ કયો હતો?* *જવાબ ૨૦: શ્રીગુસાંઇજી એ દરરોજ બે જીવો ને શરણે લેવા નો નિયમ લીધો હતો જે પૂરો થયા વગર તેઓ જમતા નહોતા.*

*પ્રશ્ન ૨૧: શ્રીગુસાંઇજી એ સ્થાપેલા 'અષ્ટછાપ શખા મંડળ' માં કુલ કેટલા કીર્તનકારો હતા? તેમના નામ આપો.* *જવાબ ૨૧: શ્રીગુસાંઇજી ના 'અષ્ટછાપ શખા મંડળ' માં કુલ ૮ (આઠ) કીર્તનકારો હતા. ૧. સુરદાસજી ૨. પરમાનંદદાસજી ૩. કુંભનદાસજી ૪. શ્રીકૃષ્ણદાસજી ૫. ગોવિંદસ્વામી ૬. છીતસ્વામી ૭. ચતુર્ભુજદાસજી ૮. નંદદાસજી*

*પ્રશ્ન ૨૨: ભંડાર માં ઘણું દ્રવ્ય ભેગું થઇ જવા થી પ્રભુ ના સુખ માટે તેનો ઉપયોગ કરવા શ્રીગુસાંઇજી એ પુષ્ટિમાર્ગમાં સૌ પ્રથમ વખત શેનો મનોરથ કર્યો હતો?* *જવાબ ૨૨: શ્રીગુસાંઇજી એ સૌ પ્રથા વખત માગસર સુદ પૂનમ ના રોજ છપ્પનભોગ નો મનોરથ કર્યો હતો.*

*પ્રશ્ન ૨૩: જગન્નાથપૂરી ની યાત્રા પછી શ્રીગુસાંઇજી એ પુષ્ટિમાર્ગ માં સેવા માં શેનો ઉત્સવ અપનાવ્યો?* *જવાબ ૨૩: જગન્નાથપૂરી ની યાત્રા પછી શ્રીગુસાંઇજી એ રથયાત્રા નો ઉત્સવ અપનાવ્યો.*

*પ્રશ્ન ૨૪: શ્રીગુસાંઇજી એ શ્રીયમુનાજી વિષે કયા સ્તોત્ર ની રચના કરી?* *જવાબ ૨૪: શ્રીગુસાંઇજીએ 'યમુનાષ્ટપદી' ની રચના કરી.*

*પ્રશ્ન ૨૫: શ્રીગુસાંઇજી ના રાજવંસી સેવકો માંથી કોઈપણ પાંચ ના નામ આપો.* *જવાબ ૨૫: બીરબલ, ટોડરમલ, રાજા માનસિંહ, રાજા આશકરણ, ધોળકા ના રાણી લાછબાઈ, મેવાડ ના રાણી અજબકુંવરીજી, રાજા જોતસિંહ રૂપમંજરી.*

*પ્રશ્ન ૨૬: શ્રીગુસાંઇજી એ શામાં પ્રવેશ કરી સદેહે આસુરવ્હ્યોમ લીલા કરી?* *જવાબ ૨૬: શ્રીગુસાંઇજી એ શ્રી ગોવર્ધન ની તળેટી ગીરીરાજ માં પ્રવેશ કરી સદેહે આસુરવ્હ્યોમ લીલા કરી.*

*પ્રશ્ન ૨૭: શ્રીગુસાંઇજી એ જયારે સદેહે આસુરવ્હ્યોમ લીલા કરી ત્યારે તેમણે પોતાના કયા સેવક ને પોતાની સાથે સદેહે લીલા માં લઇ ગયા?* *જવાબ ૨૭: શ્રીગુસાંઇજી શ્રીગોવિંદસ્વામી ને પોતાની સાથે લીલા માં લઇ ગયા.*

*પ્રશ્ન ૨૮: શ્રીગુસાંઇજી કેટલા વર્ષ સુધી ભૂતલ પર બિરાજ્યા હતા?* *જવાબ ૨૮: શ્રીગુસાંઇજી ૭૨ વર્ષ સુધી ભૂતલ પર બિરાજ્યા હતા.*

*પ્રશ્ન ૨૯: શ્રીગુસાંઇજી ના ૧૦૮ નામો વાળા સ્તોત્ર નું નામ શું છે?* *જવાબ ૨૯: 'નામ રત્નાખ્ય સ્તોત્ર'*

*પ્રશ્ન ૩૦: શ્રીગુસાંઇજી એ કયા સ્વરૂપ ની સેવા કરી હતી? તે હાલ માં ક્યાં બિરાજે છે?* *જવાબ ૩૦:શ્રીગુસાંઇજી એ 'શ્રીનવનીતપ્રિયાજી' ની સેવા કરી હતી જે તે હાલ માં શ્રીનાથજી (નાથદ્વારા) માં બિરાજે છે.*

*પ્રશ્ન ૩૧: શ્રીગુસાંઇજી ના ૨૫૨ વૈષ્ણવો પૈકી કોઈપણ પાંચ સેવકો ના નામ આપો.* *જવાબ ૩૧: શ્રીગુસાંઇજી ના મુખ્ય ૨૫૨ સેવકો પૈકી નાગજી ભટ્ટ, ચાચા હરિવંસજી, કૃષ્ણદાસ ભટ્ટ, ગોવિંદસ્વામી, છીતસ્વામી આ પાંચ સેવકો હતા..*

*પ્રશ્ન ૩૨: શ્રીગુસાંઇજી એ પોતાના એક સેવક દ્વારા એક મુસલમાન બાઈ ને શ્રીનાથજી ની સોના ની ઝારીજી માંથી જળ પીવડાવી ને તેના પ્રાણ બચાવ્યા હતા. તે બાઈ નું નામ શું છે?* *જવાબ ૩૨: તે મુસલમાન બાઈ નું નામ કુંજરી હતું.*

*પ્રશ્ન ૩૩: શ્રીગુસાંઇજી એ 'વિજ્ઞપ્તિ' ની રચના કયા સ્થળે કરી હતી?* *જવાબ ૩૩: શ્રીગુસાંઇજી એ 'વિજ્ઞપ્તિ' ની રચના ‘ચંદ્ર સરોવર’ નામના સ્થળે કરી

Thursday, 7 January 2021

व्रज – पौष कृष्ण दशमी

व्रज – पौष कृष्ण दशमी
Friday, 08 January 2021

श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है. आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं.

श्रीजी में लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.

आज राजभोग में सखड़ी में विशेष रूप से सूरण प्रकार अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंद बधाई दीजे ग्वालन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गौदान l
गोकुल मंगल महा महोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंदगोपके लाल ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. यही पिछवाई जन्माष्टमी के दिन भी आती है. आज भी सभी साज जडाऊ आते हैं, गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट नहीं आती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
आज दो समय की आरती थाली में करी जाती हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र - बिना किनारी का अडतू का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. पटका केसरी किनारी के फूल का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
 श्रीकंठ में त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है. कस्तूरी, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं. श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का गोटी जडाऊ आती है. आरती चार झाड़ की व सोने की डांडी की आती है.

व्रज – पौष कृष्ण नवमी

व्रज – पौष कृष्ण नवमी
Thursday, 07 January 2020

श्रीवल्लभ नंदन वह फिरि आये।
वेद स्वरुप फेर वह लीला करत आप मन भाये।।१।।
वे फिर राज करत गोकुल में वोही रीत प्रकटाये।
वही श्रृंगार भोग छिन छिन में वह लीला पुनि गाये।।२।।
जे जसुमति को आनंद दीनो सो फिर व्रज में आये।
श्रीविट्ठल गिरधर पद पंकज गोविंद उर में लाये।।३।।

श्रीमद प्रभुचरण श्री विट्ठलनाथजी (श्री गुसांईजी) का प्राकट्योत्सव

आज पुष्टिमार्ग में बहुत विशिष्ट दिन है. पुष्टिमार्ग के आधार राग, भोग व श्रृंगार को अद्भुत भाव-भावना के अनुरूप नियमबद्ध करने वाले प्रभुचरण श्री विट्ठलनाथजी (श्री गुसांईजी) का आज प्राकट्योत्सव है.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

सभी वैष्णवों को प्रभुचरण श्री गुसांईजी के प्राकट्योत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

श्रीजी का सेवाक्रम – उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज मन्दिर के प्रत्येक द्वार के ऊपर रंगोली भी मांडी जाती है. हल्दी को गला कर द्वार के ऊपर लीपी जाती है एवं सूखने के पश्चात उसके ऊपर गुलाल, अबीर एवं कुंकुम आदि से कलात्मक रूप से कमल, पुष्प-लता, स्वास्तिक, चरण-चिन्ह आदि का चित्रांकन किया जाता है और अक्षत छांटते हैं.

निजमन्दिर के सभी साज जडाऊ आते हैं. गादी व खंड आदि पर मखमल का साज आता है. गेंद, चौगन, दीवला आदि सभी सोने के आते हैं. 

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है.
दिनभर बधाई, पलना एवं ढाढ़ी के कीर्तन गाये जाते हैं.

🌸🌼
श्री गुसांईजी का प्राकट्य स्वयं प्रभु का प्राकट्य है. श्रीजी ने स्वयं आनंद से यह उत्सव मनाया है एवं कुंभनदासजी व रामदासजी को आज्ञा कर जलेबी टूक की सामग्री मांग कर अरोगी है.
इसी कारण आज श्रीजी को मंगला भोग से शयन भोग तक प्रत्येक भोग में विशेष रूप से जलेबी टूक की सामग्री अरोगायी जाती है और आज के उत्सव को जलेबी उत्सव भी कहा जाता है.

श्रीजी को नियम से केवल जलेबी टूक ही अरोगाये जाते हैं अर्थात गोल जलेबी के घेरा की सामग्री कभी नहीं अरोगायी जाती. विविध मनोरथों पर बाहरी मनोरथियों द्वारा घेरा की सामग्री अरोगायी जाती है.

सभी वैष्णवों को भी आज अपने सेव्य स्वरूपों को यथाशक्ति जलेबी की सामग्री सिद्धकर अंगीकार करानी चाहिए.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, उबटन एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज निज मन्दिर में विराजित श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी का भी अभ्यंग व श्रृंगार किया जाता है. 

श्रीजी को आज नियम के केसरी साटन के बिना किनारी का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरे व पन्ने की केसरी कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका का भारी में भारी श्रृंगार धराया जाता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया है.

श्रीजी को कुछ इसी प्रकार के भारी आभरण जन्माष्टमी के दिन भी धराये जाते हैं. भारी श्रृंगार व बहुत अधिक मात्रा में जलेबी के भोग के कारण ही आज सेवाक्रम जल्दी प्रारंभ किया जाता है.

श्रृंगार दर्शन में श्रीजी के मुख्य पंड्याजी प्रभु के सम्मुख वर्षफल पढ़ते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.
प्रभु सम्मुख 25 पान के बीड़ा सिकोरी में अरोगाये जाते हैं.

राजभोग समय उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को केशरयुक्त जलेबी टूक, दूधघर में सिद्ध मावे के मेवायुक्त पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी का डबरा, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.

इसी प्रकार श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी की गादी को भी एक थाल में यही सब सामग्रियां भोग रखी जाती हैं.

राजभोग समय प्रभु को बड़ी आरसी (उस्ताजी वाली) दिखायी जाती है, तिलक किया जाता है, थाली में चून (आटे) का बड़ा दीपक बनाकर आरती की जाती है एवं राई-लोन-न्यौछावर किये जाते हैं.

कल की post में भी मैंने बताया था कि विगत रात्रि से प्रतिदिन श्रीजी को शयन के पश्चात अनोसर भोग में एवं आज से प्रतिदिन राजभोग के अनोसर में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ अरोगायी जाती है.

केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, स्वर्ण वर्क, विविध सूखे मेवों, घी व मावे सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि अत्यन्त सौभाग्यशाली व्यक्ति ही इसे खा सकता है.

आयुर्वेद में भी शीत एवं वात जन्य रोगों में इसके औषधीय गुणों का वर्णन किया गया है अतः विभिन्न शीत एवं वात जन्य रोगों, दमा, जोड़ों के दर्द में भी इसका प्रयोग किया जाता है.

राजभोग दर्शन –

तिलक होवे तब का कीर्तन – (राग : सारंग)

आज वधाई को दिन नीको l
नंदघरनी जसुमति जायौ है लाल भामतो जीकौ ll 1 ll
पांच शब्द बाजे बाजत घरघरतें आयो टीको l
मंगल कलश लीये व्रज सुंदरी ग्वाल बनावत छीको ll 2 ll
देत असीस सकल गोपीजन चिरजीयो कोटि वरीसो l
‘परमानंददास’को ठाकुर गोप भेष जगदीशो ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है. लाल मखमल के गादी, खंड आदि व जड़ाव के तकिया धरे जाते हैं (गादी एवं तकिया पर सफेद खोल नहीं चढ़ायी जाती). चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र - बिना किनारी का सूथन, चोली, अडतू किये चाकदार वागा एवं टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
सर्व साज, वस्त्र, श्रृंगार आदि जन्माष्टमी की भांति ही होते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. दो हालरा व बघनखा भी धराये जाते हैं.
बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है.
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती हैं.
आरसी जड़ाऊ एवं सोना की डाँडी की दिखाई जाती हैं.

Wednesday, 6 January 2021

श्रीराधिका स्तवनम्

"श्रीराधिका स्तवनम्" ।

इस अद्भुत-अलौकिक स्तोत्र के... सात श्लोकों का रसास्वाद... 
अब तक हम ने किया...। आइये... आज अष्टम श्लोक का 
अवगाहन करते हैं...!!!

श्लोक :- 8
श्रीस्वामिनी युगलेन युक्तो मन्मथाधिकमोहनः 
वेणो रसावृत गोपिकां संनीयते विपिने रहः।
तत्रैव गोपित कृष्णरूपः प्रार्थनैः पुनरागतः 
मोदान्विते वृषभानुकन्ये रक्ष मां खलु दूषणात्।।
श्रीराधिका भवतारिणी दूरीकरोतु ममापदम्। 
गोवर्द्धनोद्धरणेन साकं कुंज मण्डप शोभिनी।।

भावार्थ :--
श्रीस्वामिनीजी के युगल सह विराजमान... कामदेव को निज स्वरूपलावण्य से मोहित करनेवाले श्रीमदनमोहनजी स्वरूपधारी रासेश्वर... वेणुनाद-श्रवण से रसाविष्ट श्रीगोपीजनों को एकांत वन में बुलाते हैं...और... वहाँ ...(स्वल्प संयोग के कारण उत्पन्न सौभाग्यमद के शमन हेतु) अपने स्वरूप को तिरोहित कर देते हैं... तब... विरह से अत्यंत व्याकुल श्रीगोपीजनों की दैन्यसभर प्रार्थना से पुनः प्रकट होनेवाले प्राणप्रेष्ठ के दर्शन से अति आनंदित... हे वृषभानुजा! आप मेरी (रासलीला के श्रवण से उत्पन्न होनेवाले लौकिक भावरूप) दूषण से रक्षा कीजिए...। (रासलीला की फलश्रुति रूप लौकिक कामरूपी दूषण के नाश का मुझे दान कीजिए...।)

श्रीगोवर्धनधरण के संग... कुंजमण्डप में शोभायमान...भवाब्धि से पार उतारनेवालीं... हे श्रीराधिकाजी! मेरी आपत्ति दूर कीजिए...!!!

Tuesday, 5 January 2021

व्रज – पौष कृष्ण अष्टमी

व्रज – पौष कृष्ण अष्टमी
Wednesday, 06 January 2020

श्री गुसांईजी के उत्सव के आगम का श्रृंगार

विशेष – कल प्रभुचरण श्री गुसांईजी का प्राकट्योत्सव है अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है और इसे उत्सव के आगम का श्रृंगार कहा जाता है. 
आज दिनभर उत्सव की बधाई एवं ढाढ़ी के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज से प्रतिदिन श्रीजी को शयन उपरांत अनोसर भोग में एवं कल अर्थात नवमी से राजभोग उपरांत अनोसर भोग में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ अरोगायी जानी आरंभ हो जाएगी.

केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, स्वर्ण वर्क, विविध सूखे मेवों, घी व मावे सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि इसे खाने वाला व्यक्ति अत्यन्त सौभाग्यशाली होता है.

आयुर्वेद में भी शीत एवं वात जन्य रोगों में इसके औषधीय गुणों का वर्णन किया गया है अतः विभिन्न शीत एवं वात जन्य रोगों, दमा, जोड़ों के दर्द में भी इसका प्रयोग किया जाता है. 

नाथद्वारा के श्रीजी मंदिर में निर्मित इस सामग्री को प्रभु अरोगे पश्चात देश-विदेश के वैष्णव मंगाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 
कीर्तन – (राग : धनाश्री)

रानी तेरो चिरजीयो गोपाल ।
बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥१॥
उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल।
सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥२॥
सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्याम तमाल।
रज आरज लागो मेरी अंखियन, रोग दोष जंजाल॥३।

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मखमल की, सुनहरी लप्पा की  ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की साटन (Satin) का बिना किनारी का अड़तू का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. उर्ध्व भुजा की ओर सुनहरी किनारी से सुसज्जित कटि-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. ठाडी लड़ मोती की धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी सोना की आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...