व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी
Tuesday, 23 March 2021
सुन्दर स्याम सुजान सिरोमनि देहु कहा कहि गारी जू।।बड़े लोग के औगुन ब्ररनत सकुच होत जिय भारी।।1।।
को करि सके पिता को निर्णय जाति पांति को जानें।। जिनके जिय जेसी बनि आवे तेसी भांति बखानें।।2।।
माया कुटिल नटी तन चितयो कोन बड़ाई पाई।।उन चंचल सब जगत विगोयो जहाँ तहाँ भई हँसाई।।3।।
तुम पुनि प्रगट होई बारेते कोन भलाई कीनी।।मुक्ति वधू उत्तम जन लायक ले अधमन कों दीनी।।4।।
बसि दस मास गर्भ माता के उन आशा करी जाये।।सो घर छांडि जीभ के लालच व्हे गाये पूत पराये।।5।।
बारेही ते गोकुल गोपिन के सूने ग्रह तुम डाटे।।व्हे निशंक तहाँ पेठि रंकलो दधि के भाजन चाटे।।6।।
आपु कहाय बड़े के ढोटा बात कृपन लों मांग्यो।।मनभंग पर दूजें याचत नेंक संकोच न लाग्यो।।7।।
लरिकाई तें गोपन के तुम सूने भवन ढढोरे।। यमुना न्हात गोपकन्या के निपट निलज पट चोरे।।8।।
वेन बजाय विलास कियो बन बोलि पराई नारी।।वे बतें मुनि राजसभा में व्हे निसंक विस्तारी।।9।।
सब कोउ कहत नंद बाबा को घर भर्यो रतन अमोले।। गिरे गंजा सिर मोर पखौवा गायन के संग डोले।।10।।
राजसभा को बेठनहारो कोन त्रियन संग नाचे।। अग्रज सहित राजमारग में कुबजा देखत राचे।।11।।
अपनी सहोदरा आपुही छल करि अर्जुन संग भजाई।।भोजन करि दासी सुत के घर जादों जाति लजाई।।12।।
ले ले भजे राजन की कन्या यहधों कोन भलाई।।सत्यभामा जु गोत में ब्याही उलटी चाल चलाई।।13।।
बहनि पिता की सास कहाई नेंक हू लाज न आई।। एते पर दीनी जु बिधाता अखिल लोक ठकुराई।।14।।
मोहन वशीकरन चट चेटक यंत्र मंत्र सब जाने।।ताते भलें भलें करी जाने भलें भलें जग माने।।15।।
वरनों कहा यथामती मेरी वेद हू पार न पावे।।दास गदाधर प्रभु की महिमा गावत ही उर आवे।।16।।
डोलोत्सव के आपके (तिलकायत श्री) के श्रृंगार आरम्भ ( यद्यपि त्रयोदशी क्षय के कारण द्वादशी का शृंगार फाल्गुन शुक्ल सप्तमी(द्वितीय) को धराया जा चुका हैं)
आज से प्रतिदिन झारीजी सभी समय यमुनाजल से भरी जाएगी. प्रतिदिन दो समय (राजभोग व संध्या) की आरती थाली में की जाएगी और डोलोत्सव की नौबत की बड़ी बधाई बैठेगी.
आज से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.
इन श्रृंगार के अधिकृत श्रृंगारी स्वयं पूज्य श्री तिलकायतजी होते हैं.
आज नियम का श्रृंगार है जिसमें दोहरी किनारी वाले श्वेत चौखाना वस्त्र के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर लूम की किलंगी धराये जाते हैं.
विगत कुछ दिनों से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो गयी है. इनमें से कुछ सामग्रियां आज से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को अरोगायी जाती हैं.
इस श्रृंखला में सर्वप्रथम आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डु अरोगाये जाते हैं.
आज से राजभोग के खेल में टिपकियाँ नहीं की जाती और भारी खेल होता है और अबीर की टिपकियां की जाती है. आज प्रभु की दाढ़ी रंगी जाती है और खेल के समय गुलाल भी फेंट (पोटली) में भर कर वैष्णवों पर उड़ाई जाती है.
प्रभु की चोली पर खेल नहीं होता.
कीर्तनों में कल (दशमी) तक अष्टपदी गायी जाती है और परसों से डोल के भाव के कीर्तन आरंभ होंगे.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : काफी)
गोपकुमार लिये संग हो हो होरी खेले व्रजनायक l ईत व्रजयुवति यूथ मधिनायक श्रीवृषभान किशोरी ll 1 ll
मोहन संग डफ दुंदुभी सहनाई सरस धुनि राजे l बीचबीच युवती मनमोहन महुवर मुरली बाजे ll 2 ll
श्याम संग मृदंग झांझ आवज आन भांत बजावे l किन्नरी बीन आदि बाजे साजे गिनत न आवे ll 3 ll
ईत व्रजकुंवर करनी कर राजत रत्न खचित पिचकाई l उत करकमल कुसुम नवलासी गावत गारि सुहाई ll 4 ll.....अपूर्ण
साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत चौखाना वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्वेत रंग का कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं.
सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सफ़ेद रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर पट्टीदार सिरपैंच, लाल गोटी, लूम की सुनहरी किलंगी तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी शृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में बटदार आती है.
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