By Vaishnav, For Vaishnav

Friday, 30 April 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण पंचमी

व्रज - वैशाख कृष्ण पंचमी
Saturday, 01 May 2021

श्री वल्लभाचार्यजी के उत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार

विशेष – आज से श्रीमद्वल्लभाचार्यजी के जन्मोत्सव की नौबत की बधाई बैठती है एवं उत्सव का प्रतिनिधि का पहला परचारगी श्रृंगार धराया जाता है. 
मैं पहले भी बता चुका हूँ कि सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.

इसे परचारगी श्रृंगार भी कहते हैं. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चि. श्री विशाल बावा) होते हैं और यदि आज के दिन वे श्रीजी में विराजित हों तो वे ही श्रीजी के श्रृंगारी होते हैं.

जन्माष्टमी के उत्सव के चार श्रृंगार धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी एवं श्री गुसांईजी के उत्सव के तीन श्रृंगार (एक प्रतिनिधि का, दूसरा उत्सव के दिन एवं तीसरा उत्सव के अगले दिन का परचारगी श्रृंगार) ही धराये जाते हैं.
 
इसका कारण यह है कि जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपतियों (स्वामिनी जी) के भाव से धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी स्वयं स्वामिनीजी के एवं श्री गुसांईजी स्वयं चन्द्रावलीजी के स्वरुप हैं अतः आप स्वयं श्रृंगारकर्ता हों और स्वयं की ओर का श्रृंगार कैसे करें इस भाव से इन दोनों उत्सवों का एक-एक श्रृंगार कम हो जाता है.

सेवाक्रम- आज दो समय आरती थाली में की जाती है.
राजभोग में पीठका पर पुष्पों का चौखटा आता हैं.

आज ही के दिन श्री महाप्रभुजी के उत्सव, आगामी नृसिंह जयंती व वामन द्वादशी के दिन धराये जाने वाले वस्त्र केसर से रंगे जाते हैं. 

आज राजभोग आरती पश्चात श्रीजी के मुखियाजी, निज सेवक व दर्जीखाना के प्रभु सेवकों के सानिध्य में श्रीठाकुरजी के वस्त्र रंगे जायेंगे.

पंचमी के दिन वस्त्र रंगने का भाव ये हे कि इसमें श्री गोवर्धनधरण प्रभु से विनती का भाव है कि जिस प्रकार यह श्वेत वस्त्र आज केसर के रंग में रंग गए हैं, आज पंचमी के दिन मेरी पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ भी प्रभु रंग में रंग जाएँ. 

कीर्तन – (राग : सारंग)

शुभ वैशाख कृष्ण एकादशी श्री वल्लभ प्रभु प्रकट भये l
दैवी जीवन के भाग्य विस्तरे निरखत ताप तन के गये ll 1 ll
पुष्टि भक्तिरस निजदासनको अति उदार मन दान दिये l
‘माणिकचंद’ हिये बसो निरंतर श्रीवल्लभ आनंद मये ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को उत्सववत वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. एक हीरा का एवं एक हीरा तथा माणक के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर तीन जोड़ी श्रृंगार धराए जाते हैं
 कुल्हे पर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं.

 चैत्री गुलाबों एवं अन्य पुष्पों से निर्मित वन-चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली वनमाला धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते है.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.

Thursday, 29 April 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्थी

व्रज - वैशाख कृष्ण चतुर्थी
Friday, 30 April 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को हरे सफ़ेद लहरियाँ के घेरदार वागा पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं गोल पाग का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : नट)

नातर लीला होती जूनी।
जो पै श्रीवल्लभ प्रकट न होते वसुधा रहती सूनी।।१।।
दिनप्रति नईनई छबि लागत ज्यों कंचन बिच चूनी।
सगुनदास यह घरको सेवक जस गावत जाको मुनी।।२।।

साज – श्रीजी में आज हरे सफ़ेद लहरियाँ की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को हरे सफ़ेद लहरियाँ का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हरे सफ़ेद लहरियाँ की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 

चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी मीना की आती है.

Wednesday, 28 April 2021

व्रज - वैशाख कृष्ण तृतीया

व्रज - वैशाख कृष्ण तृतीया
Thursday, 29 April 2021

 धोती पटका पर खुले बन्ध के श्रृंगार

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को केसरी धोती, पटका पर लाल खुले बन्ध एवं एवं छज्जेदार पाग एवं क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

देखो अद्भुत अविगतकी गति कैसो रूप धर्यो है हो ।
तीन लोक जाके उदर बसत है सो सुप के कोने पर्यो है ।।१।।
नारदादिक ब्रह्मादिक जाको सकल विश्व सर साधें हो ।
ताको नार छेदत व्रजयुवती वांटि तगासो बाँधे ।।२।।
जा मुख को सनकादिक लोचत सकल चातुरी ठाने ।
सोई मुख निरखत महरि यशोदा दूध लार लपटाने ।।३।।
जिन श्रवनन सुनी गजकी आपदा गरुडासन विसराये ।
तिन श्रवननके निकट जसोदा गाये और हुलरावे ।।४।।
जिन भूजान प्रहलाद उबार्यो हरनाकुस ऊर फारे ।
तेई भुज पकरि कहत व्रजगोपी नाचो नैक पियारे ।।५।।
अखिल लोक जाकी आस करत है सो  माखनदेखि अरे है ।
सोई अद्भुत गिरिवरहु ते भारे पलना मांझ परे है ।।६।।
सुर नर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधि न टारी ।
सोई प्रभु सूरदास को ठाकुर गोकुल गोप बिहारी ।।७।।

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती हे.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की धोती, लाल रंग के खुलेबंद के चाकदार वागा, चोली एवं केसरी रंग का अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है.
सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 स्वर्ण के सर्व आभरण धराया जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरावे.
गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी वेत्र धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की आती है.

Monday, 26 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - चैत्र शुक्ल पूर्णिमा
Tuesday, 27 April 2021

पूरी पूरी पूरनमासी पूर्यो पूर्यो शरदको चन्दा।
पूर्यो है मुरली स्वर केदारो, कृष्ण कला संपूरन भामिनी रास रच्यो सुखकंदा।।१।।
तान मान गति मोहन सोहे कहियत औरहि मन मोहंदा।
नृत्य करत श्रीराधा प्यारी नचवत आप बिहारी ऊदघत थेई थेई थुंगन छंदा।।२।।
मन आकर्षि लियो व्रजसुंदरी जय जय रुचिर गति मन्दा।
सखी आसीस देत हरिवंश तैसेई विहरत श्रीवृंदावन कुंवरि कुंवर नंदनंदा।।३।।

विशेष – आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की रास की छः मास की रात्रि आज पूर्ण होने से आज रासोत्सव मनाया जाता है. 
कुछ पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में आज शरद उत्सव मनाया जाता है और शरद पूर्णिमा को अरोगायी जाने वाली सामग्रियां  अरोगायी जाती है यद्यपि श्रीजी में ऐसा सेवाक्रम नहीं होता है.

श्रीजी में आज रास की चार सखी के भाव के चित्रांकन की पिछवाई आती है. नियम का रास के भाव का मुकुट और गुलाबी काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐसी बंसी बाजी बनघनमें व्यापी रही घ्वनि महामुनिनकी समाधी लागी l
भयो ब्रह्मनाद ऊठत आह्लाद जहाँ तहाँ व्रज घोष रत्न वृंद भये सब त्यागी ll 1 ll
रास आदि अनेक लीला रसभाव पूरित मूरति मुखारविंद छबि धरे विरह अनंग जागी l
तब वेणुनाद द्वार अब श्रीलक्ष्मणभट भूपकुमार ‘पद्मनाभ’ दैवोद्धार अर्थ त्यागी ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में रास रमती चार गोपियों के चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी मलमल का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं श्याम मलमल की चोली धरायी जाती हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के हीराजड़ित वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लहरिया व सोने के) धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी नाचते मोर की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण, मुकुट व टोपी बड़े किये जाते हैं व श्रीमस्तक पर गुलाबी गोल-पाग धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.

Sunday, 25 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्दशी
Monday, 26 April 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल पिले लहरियाँ के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल-पगा धराये जायेंगे

राजभोग दर्शन –

कीर्तन (राग : घनाश्री)

यशोदा रानी जायो है सुत नीको l
आनंद भयो सकल गोकुलमें गोप वधु लाई टीको ll 1 ll
अक्षत दूब रोचन वंदन नंदे तिलक दहीं को l
अंचल वारि वारि मुख निरखत कमल नैन प्यारो जीकों ll 2 ll
अपने अपने भवन से निकसी पहेरे चीर कसुम्भी को l
'यादवेन्द्र' व्रजकुल प्रति पालक कंस काल भय भीको ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में लहरिया की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल-पिले लहरिया का सूथन, चोली तथा चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल-पिले लहरिया के ग्वाल पगा के ऊपर सिरपैंच, लूम, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
कमल माला धरावे.
गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी वेत्र धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की बाघ बकरी की आती है.

Saturday, 24 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी
Sunday, 25 April 2021

पहर री माल गुलाब सुगंधकी ले राधे मोहन तोहे दीनी ।
अबही उर ते उतार लइ है अपने अंगराग रस भीनी ।।१।।
मान निहोरी निहारी नयन भर हंस गही हाथ सखीपे लीनी ।
सूर कहे जिन गहरु कर भामिनि गिरिधर छेल तोपे बस कीनी ।।२।।

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को गुलाबी मलमल के घेरदार वागा गोल पाग एवं क़तरा, चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

शुभ वैशाख कृष्ण एकादशी श्री वल्लभ प्रभु प्रकट भये l
दैवी जीवन के भाग्य विस्तरे निरखत ताप तन के गये ll 1 ll
पुष्टि भक्तिरस निजदासनको अति उदार मन दान दिये l
‘माणिकचंद’ हिये बसो निरंतर श्रीवल्लभ आनंद मये ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज गुलाबी मलमल की  रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, कतरा ,चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी मीना की आती है.

Friday, 23 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वादशी

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वादशी
Saturday, 24 April 2021

मल्लकाछ टीपारा पे खुलेबंध के विशिष्ट श्रृंगार एवं माखन चोरी की पिछवाई

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को मल्लकाछ-टिपारा के ऊपर चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में माखन-चोरी लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद लहरियाँ  के, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं इसी प्रकार लाल सफ़ेद लहरियाँ का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चड़ी आस्तीन का खुलेबंध का चाकदार वागा धराया जाता है. आज पटका एक ही धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल सफ़ेद लहरियाँ की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं. हास, कड़ा, हस्थसाखला धराये जाते हैं.
कमल माला धरायी जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Thursday, 22 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल एकादशी

व्रज - चैत्र शुक्ल एकादशी
Friday, 23 April 2021

कामदा एकादशी, श्री महाप्रभुजी के उत्सव की बधाई बैठे, बालभाव के श्रृंगार आरंभ

विशेष - आज कामदा एकादशी है.
आज से श्रीजी में श्री महाप्रभुजी के उत्सव की बधाई पंद्रह दिवस की बैठती है. अगले पंद्रह दिवस श्री महाप्रभुजी की एवं जन्माष्टमी की बधाईयाँ गायी जातीं हैं.

आज से प्रभु को बालभाव के श्रृंगार धराये जाते हैं. जैसे श्रृंगार हो उस भाव के बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज से आगामी पंद्रह दिन तक श्याम, बादली, नीले आदि अमंगल रंगों के वस्त्र नहीं धराये जाते हैं एवं इस अवधि में अशुभ में गये सेवक की दंडवत (सेवा में पुनः प्रवेश) भी वर्जित होती है.

प्राकट्योत्सवों के पूर्व बधाई बैठने के कारण कुछ यूं है कि भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ उसके पूर्व ब्रह्माजी, इन्द्र, शिवजी आदि सभी देवों द्वारा देवकीजी के गर्भ में विराजित प्रभु की स्तुति की गयी थी तब प्रभु का प्राकट्य हुआ. इस प्रकार पहले बधाई बैठती है, बधाईयाँ गायी जाती हैं और प्रभु की वंदना करने, गुणगान करने से प्रभु अवतरित होते हैं.

महाप्रभुजी के उत्सव की  पंद्रह दिवस की बधाई बैठने का एक प्रमुख कारण यह है कि श्री महाप्रभुजी के लौकिक पिता श्री लक्ष्मणभट्टजी को उनके द्वारा किये सौ सोमयज्ञों के फलस्वरुप प्रभु ने रामनवमी के दिन स्वप्न में माला-बीड़ा देकर आज्ञा की थी कि मैं तुम्हारे घर प्रकट होने वाला हूँ.
इस भाव से श्री महाप्रभुजी के उत्सव की बधाई पंद्रह दिवस पूर्व बैठती है.

सेवा क्रम - उत्सव की बधाई बैठने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

दो समय आरती थाली में की जाती है.

पिछवाई पलना के भाव के चित्रांकन की, नियम के घेरदार वस्त्र एवं श्रृंगार धराये जाते हैं जिनका वर्णन नीचे दिया गया है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

धन्य यशोदा भाग्य तिहारो जिन ऐसो सुत जायो l
जाके दरस परस सुख उपजत कुलको तिमिर नसायो ll 1 ll
विप्र सुजन चारन बंदीजन सबै नंदगृह आये l
नौतन सुभग हरद दूब दधि हरखित सीस बंधाये ll 2 ll
गर्ग निरुप किये सुभ लच्छन अविगत हैं अविनासी l
‘सूरदास’ प्रभुको जस सुनिकें आनंदे व्रजवासी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की प्रभु को पलना झुलाते पूज्य गौस्वामी बालकों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती  के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, जड़ाव की गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी चांदी की आती है.

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Monday, 19 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल अष्टमी

व्रज - चैत्र शुक्ल अष्टमी
Tuesday, 20 April 2021

रामनवमी के आगम का श्रृंगार

विशेष – कल रामनवमी है और आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला आगम का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिकतर बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 
यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज की बानिक कही न जाय, बैठे निकस कुंजद्वार l
लटपटी पाग सिर सिथिल चिहुर चारू खसित बरुहा चंदरस भरें ब्रजराजकुमार ll 1 ll
श्रमजल बिंदु कपोल बिराजत मानों ओस कन नीलकमल पर l
‘गोविंद’ प्रभु लाडिलो ललन बलि कहा कहों अंग अंग सुंदर वर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग सुनहरी लप्पा की, सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. उर्ध्व भुजा की ओर कटि-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
आज चार माला धरावे.
 श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी छोटी सोने की व आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Saturday, 17 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल षष्ठी

व्रज - चैत्र शुक्ल षष्ठी
Sunday, 18 April 2021

चतुर्थ (काजली, श्याम अथवा केसरी) गणगौर

विशेष – आज काजली (श्याम) गणगौर है और श्री यमुनाजी के भाव की है अतः इसे घर की गणगौर भी कहा जाता है. नाथद्वारा में आज मेला गणगौर बाग़ के स्थान पर मोतीमहल में और उसके बाहर चौपाटी बाज़ार में आयोजित किया जाता है.

आज श्रीजी में श्री गुसांईजी के छठे लालजी श्री यदुनाथजी का उत्सव होता है अतः आज गणगौर काजली (श्याम) के स्थान पर केसरी रंग की मानी गयी है.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवा युक्त बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सेवककी सुखराशि सदा श्री वल्लभ राजकुमार l
दरसन ही प्रसन्न होत मन पुरुषोत्तम अवतार ll 1 ll
सुदृष्टि चित्तै सिद्धांत बतायो, लीला जग विस्तार l
ईह तजि आन, ज्ञान कहां धावत भूले कुमति विचार ll 2 ll
‘चत्रभुज’ प्रभु उद्धरे पतित श्रीविट्ठल कृपा उदार l
जाके चरन गहि भुज दृढ करी, गिरधर नंद दुलार ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की उत्सव की मलमल की, रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर कमल का काम किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे पर माणक का पान, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल और उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.
 श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना को) धराये जाते हैं.
पट पिला गोटी स्याम मीना की व आरसी श्रृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं.  कुल्हे रहे लूम-तुर्रा नहीं धराया जाता है.

Friday, 16 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल पंचमी

व्रज - चैत्र शुक्ल पंचमी
Saturday, 17 April 2021

रंगीली गुलाबी गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।
विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥
लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।
कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥

तृतीया (गुलाबी) गणगौर

विशेष – आज गुलाबी गणगौर है और ललिताजी के भाव की है अतः आज सर्व साज एवं वस्त्र गुलाबी घटावत धराये जाते हैं

आज के वस्त्र शीतकाल की गुलाबी घटा जैसे ही होते हैं परन्तु उन दिनों शीतकाल होने से वस्त्र साटन (Satin) के धराये जाते हैं और आज उष्णकाल के कारण मलमल के वस्त्र धराये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त शीतकाल की गुलाबी घटा के दिन किनारी वाले वस्त्र नहीं होते जबकि आज के वस्त्र सुनहरी ज़री की किनारी से सुशोभित होते हैं. 

प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चैत्री गुलाब का सीरा अरोगाया जाता है.

आज श्रीजी में नियम की चैत्री गुलाब की मंडली आती है. 
श्रृंगार समय धरायी पिछवाई ग्वाल बाद बड़ी कर (हटा) दी जाती है और चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में प्रभु विराजित होते हैं. 
मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां प्रभु को अरोगायी जाती हैं. राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं एवं आरती दर्शन के पश्चात मंडली हटा दी जाती है. 
आज विशेष रूप से प्रभु में गोखड़े (तिबारी) वाली मंडली धरायी जाती है. इस प्रकार की मंडली में श्रीजी वर्ष में केवल आज के दिन ही विराजते हैं.

शयनभोग की सखड़ी में श्री नवनीतप्रियाजी में सिद्ध होकर श्रीजी के अरोगने के लिए गुलाब का सीरा आता है.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

कमलमुख देखत कौन अघाय l
सुनही सखी लोचन अलि मेरे मुदित रहे अरुझाय ll 1 ll
सोहति मुक्तामाल श्याम तन जनु बन फूली वनराय l
गोवर्धनधर के अंग अंग पर ‘कृष्णदास’ बल जाय ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी गुलाबी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. हीरे की हमेल धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, तथा गोल चमक की चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी और गोटी चांदी की आती हैं.

Thursday, 15 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्थी

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्थी
Friday, 16 April 2021

रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।
विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥१॥
लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।
कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥२॥

द्वितीय (हरी) गणगौर

विशेष – आज हरी गणगौर है. आज की गणगौर चन्द्रावलीजी के भाव की है अतः श्रीजी को नियम के पंचरंगी लहरिया वस्त्र धराये जाते हैं.

पहली तीनों गणगौरों (चूंदड़ी, हरी व गुलाबी) में रात्रि के अनोसर में श्रीजी को सूखे मेवे (बादाम, पिस्ता, काजू, किशमिश, चिरोंजी आदि), खसखस, मिश्री की मिठाई के खिलौने, ख़ासा भण्डार में सिद्ध मेवा-मिश्री के लड्डू, माखन-मिश्री आदि से सज्जित थाल अरोगाया जाता है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई l
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुन निधान
जान बुझ एक तान चूकके बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन 
अति नवीन रूप सहित, वही तान सूनाई ll 2 ll
‘वल्लभ’ गिरिधरन लाल रिझ दई अंकमाल
कहत भले भले जु लाल सुंदर सुखदाई ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में एक ओर श्रीकृष्ण एवं दूसरी ओर श्रीबलरामजी के साथ घूमर नृत्य करती व्रजललनाओं (गोपियों) और गणगौर के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पंचरंगी लहरिया का सूथन, चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफ़ेद डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल के स्थान पर पन्ना का कंठा धराया जाता है.
गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी लहरिया की आती है.

Wednesday, 14 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल तृतीया

व्रज - चैत्र शुक्ल तृतीया
Thursday, 15 April 2021

छबीली राधे,पूज लेनी गणगौर ।
 ललिता विशाखा,सब मिल निकसी,
आइ वृषभान की पोर,
सधन कुंज गहवर वन नीको,
मिल्यो नंदकिशोर ।।
" नंददास " प्रभु आये अचानक,
 घेर लिये चहुं ओर ।।

प्रथम (चुंदड़ी) गणगौर

आज से राजस्थान का प्रमुख पर्व गणगौर उत्सव आरम्भ होता है. सामान्यतया राजस्थान में चार (चूंदड़ी, हरी, गुलाबी एवं काजली) गणगौर होती है. 

विश्व के सभी हिस्सों में बसे राजस्थानी विवाहित स्त्रियाँ गणगौर का पूजन करती हैं.
 
जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, नाथद्वारा, कांकरोली आदि में तो गणगौर के अवसर पर भव्य सवारियां निकाली जाती है. 

नाथद्वारा में भी पूज्य श्रीतिलकायत के निजी आवास मोती-महल में ईशरजी व गणगौर की सुसज्जित प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है. 

श्रीजी में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है यद्यपि गणगौर के चौथे दिन श्रीजी में श्री गुसांईजी के छठे पुत्र श्री यदुनाथजी का उत्सव होता है अतः श्रीजी में चौथी गणगौर काजली (श्याम) के स्थान पर केसरी रंग की मानी गयी है.

आज से प्रभु को चूंदड़ी व लहरिया के वस्त्र भी धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. पहली गणगौर स्वामिनीजी के भाव की है अतः आज श्रीजी को लाल चूंदड़ी के खुलेबंद के चाकदार वस्त्र धराये जाते हैं.

आज श्रीजी को विशेष रूप से चूंदड़ी के भाव से ही गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चिरोंजी (चारोली) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. चिरोंजी (चारोली) के लड्डू श्रीजी प्रभु को वर्ष में केवल पांच बार अरोगाये जाते हैं.

पहली तीनों गणगौरों (चूंदड़ी, हरी व गुलाबी) में रात्रि के अनोसर में श्रीजी को सूखे मेवे (बादाम, पिस्ता, काजू, किशमिश, चिरोंजी आदि), खसखस, मिश्री की मिठाई के खिलौने, ख़ासा भण्डार में सिद्ध मेवा-मिश्री के लड्डू, माखन-मिश्री आदि से सज्जित थाल अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कुंवर बैठे प्यारीके संग अंग अंग भरे रंग,
बल बल बल बल त्रिभंगी युवतीन के सुखदाई l
ललित गति विलास हास दंपती मन अति हुलास
विगलित कच सुमनवास स्फुटित कुसुम निकट तैसीये सरद रेन सुहाई ll 1 ll
नवनिकुंज भ्रमरगुंज कोकिला कल कूजन पुंज
सीतल सुगंध मंद बहत पवन सुखदाई l
‘गोविंद’ प्रभु सरस जोरी नवकिशोर नवकिशोरी
निरख मदन फ़ौज मोरी छेल छबीलेजु नवलकुंवर व्रजकुल मनिराई ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सूवापंखी (तोते के पंख जैसे हल्के हरे रंग) रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. छेड़ान के हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम-तुर्री रूपहरी, डांख का नागफणी (जमाव) का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की चूंदड़ी भांत की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Tuesday, 13 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वितीया

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वितीया 
Wednesday, 14 April 2021

मेष (सतुवा) संक्रांति

विशेष-आज मेष संक्रांति है जिसे पुष्टिमार्ग में सतुवा संक्रांति भी कहा जाता है. 

भारतीय तिथियों का आकलन चंद्रमा की कलाओं के आधार पर किया जाता है और इसी कारण सभी उत्सव और त्यौहार भारतीय तिथियों के आधार पर मनाये जाते हैं परन्तु यह पर्व सूर्य के विभिन्न राशियों पर संक्रमण के आधार पर मनाया जाता है अतः सामान्यतया अंग्रेज़ी वर्ष की 13 या 14 अप्रेल को मनाया जाता है. 
प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिमाह सूर्य का निरयण राशी परिवर्तन संक्रांति कहलाता है. इसके अनुसार सूर्यदेव आज मेष राशी में प्रवेश करते हैं. प्रतिमाह संक्रांति अलग-अलग वाहनों में, वस्त्र धारण कर, शस्त्र, भोज्य पदार्थ एवं अन्य पदार्थों के साथ आती है. यद्यपि सूर्य की 12 संक्रांतियां है परन्तु इनमें से चार (मेष, कर्क, तुला एवं मकर) संक्रांति महत्वपूर्ण है. 

भारत में सामान्य लोग केवल मकर-संक्रांति के विषय में जानते हैं क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है परन्तु पुष्टिमार्ग में भी दो (मेष एवं मकर) संक्रांति को मान्यता दी गयी है. 
मकर-संक्रांति 13 या 14 जनवरी एवं मेष-संक्रांति मंगलवार  (चैत्र शुक्ल द्वितीया) रात्रि 2.48 पर आरम्भ होने से 14 अप्रेल को मनायी जायेगी.

श्रीजी में आज से रथयात्रा के दिन तक मगद (बेसन) के लड्डू नहीं अरोगाये जाते और इसके स्थान पर सतुवा के (चना दाल और जौ से निर्मित) लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

सतुवा उष्णकाल में विशेष लाभकारी सामग्री है. आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में कई स्थानों पर उष्णकाल के प्रमुख खाद्य के रूप में इसका वर्णन है. छाछ के साथ इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी है. श्रीजी को यह सामग्री आज से रथयात्रा तक अरोगायी जाती है.

अनसखड़ी में सतुवा लड्डू के रूप में व सखड़ी में सतुवा थोड़ा आंशिक तरल रूप में अरोगाया जाता है.   

सामान्यतया पुण्यकाल के आधार पर मेष संक्रांति मनायी जाती है. इस वर्ष मेष संक्रान्ति मंगलवार रात्रि 2.48 पर आरम्भ होने से पुण्यकाल आज सूर्योदय से मध्याह्न तक माना जायेगा सूर्य का मेष राशि में प्रवेश रात्रि को 2 बजकर 48 मिनिट से होगा इस लिए सूर्योदय 6.17 से दो घंटे तक अति मुख्य पुण्यकाल है अतः पुण्यकाल आज ही माना जायेगा.
श्रीजी मंदिर में शृंगार के दर्शन में उत्सव भोग रखे जायेंगे.
 अष्ट प्रहर की सेवा करने वाले समस्त वैष्णव भी इसी प्रकार अपने सेव्य ठाकुरजी को सतुवा का भोग रखें एवं तत्पश्चात दान आदि कर सकते हैं. 
अन्य वैष्णव आज शाम को शयन समय या कल सुबह सतुवा श्री ठाकुरजी को अरोगा सकते हैं.

उत्सव भोग में श्रीजी को सतुवा के गोद के (सामान्य से बड़े) नग, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीश प्रभु के घर से सिद्ध होकर आये सतुवा की सामग्री, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं बीज-चालनी का नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है.

कल से प्रतिदिन राजभोग की सखड़ी में प्रभु को सीरा के रूप में सिद्ध घोला हुआ सतुवा अरोगाया जायेगा.

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल रंग की धोती के ऊपर श्याम रंग के छापा के खुलेबंध के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नयनन लागी हो चटपटी l
मदनमोहन पिय नीकसे द्वार व्है, शोभित पाग लटपटी ll 1 ll
दूर जाय फीर चितयेरी मो तन, नयन कमल मनोहर भृकुटी l
'गोविंद' प्रभु पिय चलत ललित गति, कछुक सखा अपनी गटी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग के छापा की सुनहरी तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग की धोती के ऊपर श्याम रंग के छापा के खुलेबंध के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार  पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का कतरा,तुर्री सुनहरी तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल  धराये जाते हैं.
आज कमल माला धरावे.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट श्याम व गोटी चाँदी की आती है.

Monday, 12 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०७८

व्रज - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०७८
Tuesday, 13 April 2021

चैत्र मास संवत्सर परवा, वरस प्रवेश भयो है आज l
कुंज महल बैठे पिय प्यारी, लालन पहेरे नौतन साज ll 1 ll
आपुही कुसुम हार गुही लीने, क्रीड़ा करत लाल मन भावत l
बीरी देत दास ‘परमानंद’, हरखि निरखि जश गावत ll 2 ll

आज की पोस्ट भी काफी लम्बी परन्तु आज से श्रीजी की सेवा में होने वाले परिवर्तनों की विलक्षण जानकारियों से युक्त है अतः इसे पूरा पढ़ें और उत्सव का आनंद लें.

आप सभी वैष्णवों को नव-संवत्सर २०७८ की ख़ूबख़ूब बधाई 
       
भारतीय नव-संवत्सर २०७८

विशेष – आज भारतीय नव-संवत्सर (नववर्ष) है. ऐसा कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिवस सूर्योदय के समय श्री ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की उत्पत्ति की थी. अतः आज इस दिन को नव-संवत्सर के रूप में मनाया जाता है. 

त्रेतायुग में आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था. 

आज ही के दिन २०७८ वर्ष पहिले उज्जैनी के सम्राट महाराजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत का शुभारम्भ हुआ था.

शक्ति उपासना का पर्व चैत्री नवरात्रि आज से प्रारंभ हो जाता है.

आज के दिन मीठे नीम की कोंपलें और मिश्री का सेवन करना चाहिए. 

पुष्टिमार्ग में आज की सेवा श्री स्वामिनीजी की ओर से होती है अतः प्रभु को आज छापा के खुलेबंद के वस्त्र, श्रीमस्तक पर छापा की कुल्हे एवं मोरपंख की जोड़ धराये जाते हैं. 

देवीपूजन के जो पद आश्विन मास की नवरात्रि में गाये जाते हैं वही पद इन नौ दिनों में भी गाये जाते हैं. 

श्रीजी में आज से सेवाक्रम में कई परिवर्तन होंगे 

विगत कल तक मंगला में श्रीजी के श्रीअंग पर दत्तु और पीठिका पर दग्गल धरायी जा रही थी. 
आज से प्रभु के श्रीअंग पर उपरना धराया जायेगा, दग्गल पूर्ण रूप से विदा हो जाएगी. दत्तु केवल पीठिका पर धरायी जाएगी एवं श्री महाप्रभुजी के उत्सव के अगले दिन (वैशाख कृष्ण द्वादशी) से पूर्ण रूप से बड़ी कर (हटा) दी जाएगी.

आज से श्रीजी में ज़री के वस्त्र नहीं धराये जायेंगे. मलमल पर छापा के वस्त्र आज से प्रभु को धराने प्रारंभ हो जायेंगे.

कुछ वैष्णव मंदिरों में आज नववर्ष के अवसर पर मीठे नीम की कोमल कोंपलों के रस में मिश्री के टूक एवं इलायची पधराकर प्रभु के सम्मुख धरी जाती है यद्यपि ऐसा कोई सेवाक्रम श्रीजी में नहीं किया जाता. श्रीजी के पातल-घर में प्रशादी मिश्री की कणी और नीम की कोंपलें बाहर से लाकर रखी जाती है जिन्हें आज सेवकगण एवं वैष्णव लेते हैं.

आज से प्रभु की शैयाजी शैया मन्दिर के स्थान पर मणिकोठा में साजी जाती है और इस कारण आज से शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
गेंद, चौगान व दिवला सभी सोने के आते हैं. राजभोग में 6 बीड़ा की शिकोरी(स्वर्ण का जालीदार पात्र) आवे. सभी जगह भाँतवार बंटा चढ़े.
  
आज दिनभर झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. सभी समय आरती थाल में की जाती है. आज से प्रतिदिन आरती में एक खण्ड (बाती) कम आता है.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रृंगार समय प्रभु के मुख्य पंड्याजी श्रीजी के सम्मुख नववर्ष का पंचांग वाचन करते हैं एवं न्यौछावर की जाती है.

श्रृंगार दर्शन 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

नवनिकुंज देवी जय राधिका, वरदान नीको देहौ, प्रिय वृन्दावन वासिनी l
करत लाल आराधन, साधन करी प्रन प्रतीत, नामावली मंत्र जपत जय विलासीनी ll 1 ll
प्रेम पुलक गावत गुन, भावत मन आनंद भर, नाचत छबि रूप देखी मंद हासिनी l
अंगन पर भूषण पहिराई, आरसी दिखाई, तोरत तृन लेत बलाई सुख निवासीनी ll 2 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल पर लाल छापा की हरी किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. सिंहासन, चरणचौकी, पडघा, झारीजी आदि स्वर्ण जड़ाव के धरे जाते हैं. प्रभु के सम्मुख चांदी के त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो प्रतिदिन राजभोग पश्चात अनोसर में धरे जाते हैं. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, लाल छापा की चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग दरियाई वस्त्र के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा की प्रधानता, मोती, माणक, पन्ना एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पान, टीका, दोहरा त्रवल, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में पदक, हार, माला, दुलड़ा आदि धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली वाली व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है. पीठिका पर लाल छापा का सेला धराया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केसरी पेठा अरोगाये जाते हैं.
आज भोग समय फल के साथ अरोगाये जाने फीका के स्थान पर तले सूखे मेवे की बीज-चलनी अरोगायी जाती है

सभी वैष्णवों को भारतीय नववर्ष की मंगल कामना

Saturday, 10 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण अमावस्या (प्रथम)

व्रज - चैत्र कृष्ण अमावस्या (प्रथम)
Sunday, 11 April 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को कत्थई साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्Shreenathjinitydarshaज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी को आज बैंगनी ज़री की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बैंगनी ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं.ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर बैंगनी रंग के ग्वाल पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बेंगनी व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर पगा रहे लूम-तुर्रा नहीं आवे.

Friday, 9 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - चैत्र कृष्ण चतुर्दशी 
Friday, 09 April 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को मेघश्याम ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में मेघश्याम ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को मेघश्याम रंग की ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. गुलाबी रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मेघश्याम रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, चन्द्रिका क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, श्याम मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट मेघश्याम एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Thursday, 8 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - चैत्र कृष्ण त्रयोदशी 
Friday, 09 April 2021

मुकुट काछनी का श्रृंगार

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 
जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 
जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मुकुट की छांह मनोहर कीये l
सघन कुंजते निकस सांवरो संग राधिका लीये ll 1 ll
फूलन के हार सिंगार फूलन के खोर चंदन की कीये l
'परमानंद दास'को ठाकुर ग्वालबाल संग लीये ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्री यमुना जी एवं प्रभु की सेवा में पधारती गोपियों के चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पचरंगी ज़री का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं मेघश्याम दरियाई की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर डाँख की मुकुट टोपी के ऊपर मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी नाचते मोर की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण, मुकुट, टोपी, पीताम्बर, चोली व दोनों काछनी बड़े किये जाते हैं.

शयन दर्शन में  मेघश्याम चाकदार वागा व लाल तनी धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
आभरण छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.

Wednesday, 7 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण द्वादशी

व्रज - चैत्र कृष्ण द्वादशी
Thursday, 08 April 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल ज़री पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन -     

कीर्तन (राग : सारंग)

लालन बैठे कुंजस्थली।
कुसुमित वन परिमल आमोद तहां कूजत, कोकिला रहे रसमत्त अली ।।१।। कुवलय दल कोमल शय्या रची, 
मृदुल सुहस्त वेणी ग्रथित चंपकली।गोविद प्रभु दंपतीजु परस्पर, 
रहे रसमत्त रली।।२।।

साज – आज श्रीजी में लाल ज़री की, हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल ज़री का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग के चीरा ( ज़री की गोल पाग) के ऊपर सिरपैंच, क़तरा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं.
गुलाब के पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Tuesday, 6 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण एकादशी

व्रज - चैत्र कृष्ण एकादशी 
Wednesday, 07 April 2021

विशेष – आज पापमोचनी एकादशी है. श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.
श्रीजी के अलावा नाथद्वारा में अन्य सभी पुष्टि स्वरूपों जैसे श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी, श्री वनमालीजी आदि को नित्य की सामग्री के अलावा राजभोग समय फलाहार का भोग लगाया जाता है.
एकादशी फलाहार में पुष्टि स्वरूपों को विशेष रूप से सिंघाड़े के आटे का सीरा (हलवा), सिंगाड़े के आटे की मीठी सेव, विविध प्रकार के शाक, सिंघाड़े के आटे की मोयन की पूड़ी, तले हुए कंद (रतालू, सूरण, अरबी), सिंघाड़े के आटे की राब, रायता आदि आरोगाये जाते हैं.

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मुझे प्राप्त जानकारी के अनुसार आज केसरी ज़री का सूथन, चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर लाल ज़री के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा धराया जायेगा. यद्यपि यह श्रृंगार सामान्यतया आगामी त्रयोदशी को धराया जाता है परन्तु ऐच्छिक होने के कारण आज लिया जा रहा है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतरत मैया ll 1 ll
नित प्रति मौतिन चौक पुरावत नित प्रति विप्रन वेद पढ़ैया l
नित ही राई लोन उतारत नित ही 'गदाधर' लेत बलैया ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में विवाह खेल लीला की, विवाह मंडप के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. श्रीजी लग्न-मंडप में विराजित हैं, श्री स्वामिनी जी एवं श्री यमुना जी सेहरा के श्रृंगार में दोनों ओर खड़े हैं. गोपियाँ विवाह के मंगल गीत गाती हुई इस अद्भुत शोभा को निरख रहीं हैं. 
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी ज़री का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी ज़री के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी राग रंग की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के आभरण पटका सेहरा बड़े कर के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं.
दुमाला पर सिरपेच, टीका धराये जाते हैं, लूम तुर्रा नहीं आवे.

Monday, 5 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण दशमी

व्रज - चैत्र कृष्ण दशमी
Tuesday, 06 April 2021

विशेष – आज के दिन ही नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीव जी (दाऊ बावा) महाराज श्री नित्यलीला में पधारे थे. 

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को पिले रंग की ज़री पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन -     

कीर्तन (राग : सारंग,कल्याण)

नवल घनश्याम नव नवल वर
राधाके नवल नवकुंज में केली ठानि ।
नवल कुसुमावलि नवल शय्या रचि
नवल कोकिल किर भृंग गानी ।।१।।
नवल सहचरी वृंद नवल वीना मृदंग
नवल रागनी राग तान गानि ।
नवल गोपीनाथ होत नवल रस रीत  
येहे नवल रस रीत हरिवंश जानि ।।२।।

साज – आज श्रीजी में पिली ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पिली ज़री का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पिले रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा, चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी माणक के कर्णफूल धराये जाते हैं.
गुलाबी पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Sunday, 4 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण नवमी

व्रज - चैत्र कृष्ण नवमी
Monday, 05 April 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल ज़री का सूथन, गोल काछनी एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली का श्रृंगार एवं श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहा कहों लाल सुधर रंग राख्यो मुरलीमें l
तानबंधान स्वरभेद लेत अतिजत बिचबिच मिलवत विकट अवधर ll 1 ll
चोख माखन की रेख तामें गायन मिलवत लांबे लांबे स्वर l
बिच बिच लेत तिहारो नाम सुनरी सयानी 'गोविंदप्रभु' व्रजरानी के कुंवर ll 2 ll  

वस्त्र – श्रीजी को आज gol ज़री का सूथन, दोनों काछनी एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं. काछनी गोल धरायी जाती हैं.

श्रृंगार - आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज जिसमें लाल ज़री के टिपारा के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर सोना की चोटीजी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
 गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी बाघ बकरी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण एवं दोनो काछनी बड़ी करके चाकदार बागा धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर टीपारा रहे लूम-तुर्रा नहीं आवे.

Saturday, 3 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण अष्टमी

व्रज - चैत्र कृष्ण अष्टमी
Sunday, 04 April 2021

श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है. 

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को गुलाबी का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. हरे रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, चन्द्रिका क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी मीना की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Friday, 2 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण सप्तमी (षष्ठी क्षय)

व्रज - चैत्र कृष्ण सप्तमी (षष्ठी क्षय)
Saturday, 03 April 2021

समस्त वैष्णव सृष्टि को प्रधान गृह युवराज श्री विशाल बावाश्री के गो. चि. श्री लाल गोविन्दजी (लालबावा साहब) के द्वितीय जन्मदिन की ख़ूबख़ूब बधाई

श्री वल्लभ कल्पद्रुम फल्यो, फल लाग्यो विट्ठलेश ।
शाखा सब बालक भये, ताको पार ना पावत शेष ।।
श्री वल्लभ को कल्पद्रुम, छाय रह्यो जग मांहि।
पुरुषोत्तम फल देत हैं, नेक जो बैठों छांह ॥ 

गो. चि. श्री लाल गोविन्दजी (लालबावा साहब) का द्वितीय जन्मदिन

सेवाक्रम - श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज प्रभु को नियम के लाल सलीदार चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल दुमाला रंग की पाग के ऊपर हीरा का सिरपैंच, सुनहरी भीमसेनी कतरा  धराया जाता हैं.

आज प्रभु को चेती गुलाब की छड़ी गेंद बसंत वत विशेष धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में चेती गुलाब की छड़ी धरायी जाती हैं. 

आज राजभोग में चैत्री-गुलाब की छज्जे वाली बड़ी फूल मंडली आती हैं.

आज पुरे दिन श्रीजी के सम्मुख खिरक विराजे

आज गोविंद शब्द वाले कीर्तन गाए जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनमनोहर (केशर बूंदी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी और चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में बड़े टुक पाटिया व छह-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात व नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं. 
भोग में फीका की जगह चालनी अरोगायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन -     

कीर्तन (राग : सारंग)

वृन्दावन सघनकुंज माधुरी लतान तर, जमुना पुलिनमे मधुर बाजे बांसुरी l
जबते धुनि सुनि कान मानो लागे मदनबान, प्रानहुकी कहा कहू पीर होत पांसुरी ll 1 ll
लाल काछनी कटि किंकिणी पग नूपुर झंझनन, सिर टिपारो अति खरोई सुरंग ll 2 ll
उरप तिरप मंद चाल मुरलिका मृदंग ताल, संग मुदित गोपग्वाल आवत तान तरंग l
व्रजजन सब हरखनिरख जै जै कहि कुसुम बरखि, 'गोविंदप्रभु' पर वारौ कोटि अनंग ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में गौचारण के भाव की सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाएगी.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल सलीदार ज़री के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - आज प्रभु को मध्य का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे व पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सिरपैंच, सुनहरी भीमसेनी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.

कंठला एवं उत्सव की पन्ना की मालाये धरायी जाती है.
हास की जगह पन्ना को कंठा एवं हीरा का त्रवल धराया जाता हैं.
एक कली का हार एवं कमल माला धरायी जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
हीरा की मुठ के  वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल का एवं गोटी सोना की बाघ बकरी की आती हैं.
आरसी बावा साहब वाली काँच के टुकड़ों की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर दुमाला रहे लूम-तुर्रा नहीं आवे.

Thursday, 1 April 2021

व्रज - चैत्र कृष्ण पंचमी

व्रज - चैत्र कृष्ण पंचमी
Friday, 02 April 2021

रंग पंचमी

विशेष – आज की पंचमी को रंग-पंचमी कहा जाता है. उत्तर भारत में विशेषकर मध्य-प्रदेश, राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आज के दिन सूखे और गीले रंगों से होली खेली जाती है.
पुष्टिसंप्रदाय के अलावा अन्य मर्यादामार्गीय मंदिरों में आज रंगपंचमी को प्रभु स्वरूपों को होली खेलायी जाती है और आगामी चैत्र कृष्ण एकादशी को डोल झुलाये जाते है.

श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी माला-तिलक रक्षण हेतु कश्मीर पधारे थे. श्री गोवर्धनधरण प्रभु ने आपको वसंत खेलाने और डोल झुलाने की आज्ञा की. 
आपश्री डोल पश्चात पधारे और लौटने में विलम्ब होने से प्रभु ने पुनः अपनी इच्छा दोहराई अतः आपने उस वर्ष श्रीजी को आज के दिन पुनः वसंत खेलाये और आगामी एकादशी को डोल झुलाये.

श्री गोवर्धनधरण प्रभु जतीपुरा से राजस्थान पधारे उपरांत राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति से प्रेरित श्री दामोदरलालजी महाराज ने अपनी कुमारावस्था में फाग की सवारी का प्रारंभ किया.

इस सवारी के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में साजी जाती है. यह पिछवाई इसके अतिरिक्त कुंज-एकादशी के दिन शयन समय भी साजी जाती है.

आज नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कुंजभवन तें निकसे माधो राधापे चले मेलि गले बांह l
जब प्यारी अरसाय पियासो मंदमंद त्यों स्वेदकन वदन निहारत करत मुकुटकी छांह ll 1 ll
श्रमित जान पटपीत छोरसों पवन ढुरावे व्रजवधु वनमांह l
‘जगन्नाथ कविराय’ प्रभुको प्यारी देखत नयन सिराह ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में हाथी के ऊपर सवारी, पृष्ठभूमि में महल, व्रजभक्तों के साथ होली खेल आदि के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्वेत ज़री का लाल हाशिया सुथन, दोनों काछनी, रास-पटका एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के 
 सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट टोपी के ऊपर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी नाचते मोर की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण, मुकुट, टोपी, पीताम्बर, चोली व दोनों काछनी बड़े किये जाते हैं.

शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा व लाल तनी धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग के ऊपर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
आभरण छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...