By Vaishnav, For Vaishnav

Wednesday, 30 June 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण सप्तमी

व्रज - आषाढ़ कृष्ण सप्तमी
Thursday, 01 July 2021

गुलाबी रंग का पिछोड़ा एवं ग्वाल पगा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी रंग का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

पनिया न जेहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकी के पटकी l
ठीक दुपहरी में अटकी कुंजनमे कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll
कहारी करो कछु बस नहीं मेरो नागर नट सों अटकी l
‘नंददास’ प्रभु की छबि निरखत सुधि न रही पनघट की ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के ग्वाल पगा पर मोती की लड़, पगा चंद्रिका (मोरशिखा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट ऊष्णकाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Tuesday, 29 June 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण षष्ठी

व्रज - आषाढ़ कृष्ण षष्ठी
Wednesday, 30 June 2021

केसरी मलमल में गुलाबी छाप की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर छोर वाली गोल पाग और श्वेत मोरपंख  की चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

जब मेरो मोहन चलेगो घटुरुवन तब हौं री करौंगी वधाई l
सर्वसु वारी देहुँगी तिहि छिनु मैया कहि तुतुराई ll 1 ll
यशोदा के वचन सुनत ‘केशो प्रभु’ जननी प्रीति जानी अधिकाई l
नंदसुवन सुख दियो मात कों अतिकृपाल मेरो नंद ललाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की प्रभु को पलना झुलाते पूज्य गौस्वामी बालकों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को केसरी मलमल में गुलाबी छाप की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की छोर वाली गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, श्वेत मोरपंख की चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट एवं गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.

Monday, 28 June 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण पंचमी

व्रज - आषाढ़ कृष्ण पंचमी
Tuesday, 29 June 2021

चंदनी मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को चंदनी मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सोहत लाल के परदनी अति झीनी।।
तापर एक अधिक छबि उपजत जलसुत पांति बनी कटी छीनी।।1।।
उज्जवल पाग श्याम शिर शोभित अलकावली मधुप मधुपीनी।।
‘कुंभनदास' प्रभु गोवरधनधर चपल नयन युवतीन बस कीनी।।2।।

साज – आज श्रीजी में चंदनी रंग की मलमल की रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को चंदनी रंग की मलमल की गोल छोर वाली रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चंदनी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Sunday, 27 June 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी

व्रज - आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी
Monday, 28 June 2021

उष्णकाल शयन दर्शन को पद
राग केदारो

चलो क्यों न देखेंरी खरे दोउ कुँजन की परछाँही।
एक भुजा गहि डार कदंब की दूजी भुजा गलबाँही।।
छबि सों छबीली लपट लटक रहि कनक बेलि तरु तमाल अरूझाई।
हरिदास के स्वामी श्यामा कुँज बिहारी रंगे हैं प्रेम रंग माँही।।

शरबती मलमल का छाप वाला आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा पगा और तुर्रा के श्रृंगार

ऊष्णकाल का चतुर्थ अभ्यंग 

विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का चतुर्थ अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल वाली पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती मलमल का छाप वाला आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा(तह वाला) पगा और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराज जी की कन्दरा में विराजित श्री गुसांईजी के पुत्रों के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती मलमल का छाप वाला रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर शरबती मलमल के चिनमां (तह वाले) पगा के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Saturday, 26 June 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण तृतीया

व्रज - आषाढ़ कृष्ण तृतीया
Sunday, 27 June 2021

प्राचीन बसरा के मोतियों का मल्लकाछ-टिपारा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को प्राचीन बसरा के मोतियों का मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोविंद लाडिलो लडबोरा l
अपने रंग फिरत गोकुलमें श्यामवरण जैसे भोंरा ll 1 ll
किंकणी कणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खोरा l
नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll
माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पिछोरा l
‘परमानंद’ दास को जीवन संग दिठो नागोरा ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) पर लहरियाँ के काम (Work) से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का ऊष्णकालीन हल्का (छेड़ान) शृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (मोती की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में श्वेत रेशम की मोरशिखा तथा दोनों ओर श्वेत रेशम के दोहरा कतरा) धराये जाते हैं. बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
हांस, त्रवल, कड़ा, हस्तसांखला, पायल आदि सभी भारी शृंगारवत धराये जाते हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

Thursday, 24 June 2021

व्रज – आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा
Friday, 25 June 2021

प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।
यद्यपि रूप गुण शील सुघरता, इन बातन न रीजैयें ॥१॥
सतकुल जन्म करम शुभ लक्षण, वेद पुरान पढ़ैये ।
“गोविंदके प्रभु” बिना स्नेह सुवालों, रसना कहा जू नचैये ॥२॥

भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.
रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री का गादी उत्सव

विशेष – कल नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री का गादी उत्सव था. विक्रम संवत १९३२ में आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा के दिन आप तिलकायत की गादी पर आसीन हुए थे. कल ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा) के कारण ये उत्सववत शृंगार आज धराया जायेगा. आपने प्रभु सुखार्थ कई भव्य मनोरथों का आयोजन किया और नाथद्वारा की उत्तरोत्तर प्रगति के क्षेत्र में कई कार्य किये अतः आपका युग नाथद्वारा के लिए स्वर्णयुग कहा जाता है.

सेवाक्रम - गादी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

आज का श्रृंगार भी निश्चित है. आज प्रभु को गुलाबी रंग की परधनी, श्रीमस्तक पर पाग एवं हीरा के आभरण धराये जाते हैं. 
आज से कीर्तनों में सूहा, बिलावल एवं सायंकाल सोरठ राग भी गाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से आमरस की तवापूड़ी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में आमरस-भात अरोगाये जाते हैं.

प्रभु को नियम से आमरस की तवापूड़ी वर्ष में केवल आज के दिन ही अरोगायी जाती है.
आज से सायंकाल भोग दर्शन के समय श्रीजी के सम्मुख मणिकोठा में पुष्पों पत्तियों से सुसज्जित फुलवारी धरी जाती है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गायनसों रति गोकुलसों रति गोवर्धनसों प्रीति निवाहीं l
श्रीगोपाल चरण सेवा रति गोप सखा सब अमित अथाई ll 1 ll
गोवाणी जो वेदकी कहियत श्रीभागवत भलें अवगाही ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ गिरिधरन श्रीविट्ठल नंदनंदन की सब परछांई ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा की निकुंज एवं श्री स्वामिनीजी आदि के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल की परधनी धरायी जाती है. परधनी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होती है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की ऊपर छोर व नीचे लटकन वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की रुपहली किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. अलख धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में हीरा की बघ्घी आती है व त्रवल नहीं धराये जाते. हरे एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीं हीरे की एक सुन्दर माला हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

Wednesday, 23 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा (चतुर्दशी क्षय)

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा (चतुर्दशी क्षय)
Thursday, 24 June 2021

नंदको मन वांछित दिन आयो,
फुली फरत यशोदा रोहिणी,
उर आनंद न समायो ।।
गाम गाम ते जाति बलाई
मोतिन चोक पुरायो 
व्रज वनिता सब मंल गावत,
बाजत घोष बधायो ।।
प्रथम रात्रि यमुना जल घट भरि,
अधिवासन करवायो ।।
उठि प्रातकंचन चोकी धरी
ता पर लाल बैठायो ।।
राज बेठ अभिषेक करत है
विप्रन वेद पठायो ।
जेष्ठ शुकल पून्यो दिन सुर बधु,
हरखि फूल बरखायो ।।
रंगी कोर धोती उपरणा,
आभूषण सब साज, ।
द्वारकेश आनंद भयो प्रभु,
नाम धर्यो ब्रजराज

ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा)

विशेष – आज ज्येष्ठाभिषेक है. इसे केसर स्नान अथवा स्नान-यात्रा भी कहा जाता है. 
आज के दिन ही ज्येष्ठाभिषेक स्नान का भाव एवं सवालक्ष आम अरोगाये जाने का भाव ये हे की यह स्नान ज्येष्ठ मास में चन्द्र राशि के ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है और सामान्यतया ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को होता है.

श्री नंदरायजी ने श्री ठाकुरजी का राज्याभिषेक कर उनको व्रजराजकुंवर से व्रजराज के पद पर आसीन किया, यह उसका उत्सव है. 

इसी भाव से स्नान-अभिषेक के समय वेदमन्त्रों-पुरुषसूक्त का वाचन किया जाता है. वेदोक्त उत्सव होने के कारण सर्वप्रथम शंख से स्नान कराया जाता है.

इस आनंद के अवसर पर व्रजवासी अपनी ओर से प्रभु को अपनी ओर से अपनी ऋतु के फल की भेंट के रूप में उत्तमोत्तम ‘रसस्वरुप’ आम प्रभु को भोग रखते हैं इस भाव से आज श्रीजी को सवा लाख (1,25,000) आम (विशेषकर रत्नागिरी व केसर) आरोगाये जाते हैं.

ऐसा भी कहा जाता है कि व्रज में ज्येष्ठ मास में पूरे माह श्री यमुनाजी के पद, गुणगान, जल-विहार के मनोरथ आदि हुए. इसके उद्यापन स्वरुप आज प्रभु को सवालक्ष आम अरोगा कर पूर्णता की.

सेवाक्रम – पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, दिवाला, चौगान आदि सभी चांदी के आते हैं.

स्नान का कीर्तन - (राग-बिलावल)

मंगल ज्येष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी l
दधि और दूब मधु ले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी ll 1 ll
चोवा चन्दन मृगमद सौरभ सरस सुगंध कपूरन न्यारी l
अरगजा अंग अंग प्रतिलेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी ll 2 ll
सखियन यूथयूथ मिलि छिरकत गावत तान तरंगन भारी l
केशो किशोर सकल सुखदाता श्रीवल्लभनंदनकी बलिहारी ll 3 ll

स्नान में लगभग आधा घंटे का समय लगता है और लगभग डेढ़ से दो घंटे तक दर्शन खुले रहते हैं. 

दर्शन पश्चात श्रीजी मंदिर के पातलघर की पोली पर कोठरी वाले के द्वारा वैष्णवों को स्नान का जल वितरित किया जाता है.

मंगला दर्शन उपरांत श्रीजी को श्वेत मलमल का केशर के छापा वाला पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर सफ़ेद कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धराये जाते हैं.

मंगला दर्शन के पश्चात मणिकोठा और डोल तिबारी को जल से खासा कर वहां आम के भोग रखे जाते हैं. इस कारण आज श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, श्रीखण्ड भात, दहीभात, मीठी सेव, केशरयुक्त पेठा व खरबूजा की कढ़ी अरोगाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) में ही उत्सव भोग भी रखे जाते हैं जिसमें खरबूजा के बीज और चिरोंजी के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल के दो हांडा, चार थाल अंकुरी (अंकुरित मूंग) आदि अरोगाये जाते हैं.

इसके अतिरिक्त आज ठाकुरजी को अंकूरी (अंकुरित मूंग) एवं फल में आम, जामुन का भोग अरोगाने का विशेष महत्व है.

 अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को बारी-बारी से जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. 

इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से ठाकुरजी को छुकमां मूँग (घी में पके हुए व नमक आदि मसाले से युक्त) अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन  –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जमुनाजल गिरिधर करत विहार ।
आसपास युवति मिल छिरकत कमलमुख चार ॥ 1 ll
काहुके कंचुकी बंद टूटे काहुके टूटे ऊर हार ।
काहुके वसन पलट मन मोहन काहु अंग न संभार ll 2 ll
काहुकी खुभी काहुकी नकवेसर काहुके बिथुरे वार ।
‘सूरदास’ प्रभु कहां लो वरनौ लीला अगम अपार ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केशर के छापा व केशर की किनार की गयी है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केशर के छापा वाला पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
हीरा एवं मोती के उत्सव के मिलमा आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसर की छाप वाली श्वेत  रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में बघ्घी धरायी जाती है व हांस, त्रवल नहीं धराये जाते. कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी मोती की आती है.
आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

आज शयन में आम की मंडली आवे

Tuesday, 22 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी
Wednesday, 23 June 2021

केसरी धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर दुमाला और सेहरा के शृंगार

दिन दुल्हे तेरे सोहे शीश सुहावनो ।
मणि मोतिन को शेहरो सोहे बसियो मन मेरे ।।१।।
मुख पून्यो को चंद है मुक्ताहल तारे । 
उन के नयन चकोर हैं, ऐ सब देखन हारे ।।२।।
पिय बने प्यारि, अति सुंदर बनि आय । 
परम आगरी रूप नागरी ऐ सब देखन आई ।।३।। 
दुलहनि रेन सुहाग की, दुलह सुंदर वर पायो । 
श्रीनंदलाल को शेहरो, जन परमानंद यश गायो ।।४।।

विशेष – आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरिधारीजी महाराज श्री (वि.सं.१८९९) का उत्सव है. आप सभी को नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री (वीर) गिरधारी जी महाराज के उत्सव की बधाई

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

प्रभु को नियम के वस्त्र और श्रृंगार - केसरी धोती, पटका व दुमाला के ऊपर सेहरा धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं. 

खंडरा प्रकार प्रसिद्द गुजराती व्यंजन खांडवी का ही रूप है. इसे सिद्ध करने की प्रक्रिया व बहुत हद तक उससे प्रेरित है, केवल खंडरा सिद्ध कर उन्हें घी में तला जाता है फिर अलग से घी में हींग-जीरा का छौंक लगाकर खांड का रस पधराया जाता है और तले खंडरा उसमें पधराकर थोडा नमक डाला जाता है. प्रभु सेवा में इस सामग्री को खंडरा की कढ़ी कहा जाता है और यह सामग्री वर्ष में कई बार बड़े उत्सवों पर व विशेषकर अन्नकूट पर अरोगायी जाती है. 

भोग समय फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज बने गिरिधारी दूलहे,
चंदन की तन खोर करें ।।
सकल सिंगार बने मोतीनके,
बिविध कुसुम की माला गरें ।।१।।
खासा को कटि बन्यो पिछोरा,
मोतीन सहेरो शीश धरें ।।
राते नयन बंक अनियारे,
चंचल खंजन मान हरें ।।२।।
ठाडे कमल फिराजत,
गावत कुंडल श्रमकण बिंदु परें ।।
सूरदास मदन मोहन मिल,
राधासों रति केलि करें ।।३।।

बधाई-

केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े
तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l
जन्मधोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान,
नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll
सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई
आसपास युवतीजन करत है गुणगान l
‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस
यह अवसर जे हुते ते महा भाग्यवान ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल की, उत्सव के कमल के काम वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया गया है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य से दो अंगुल नीचे (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया गया है. हीरा व मोती के मिलवा उत्सव के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा पर पांच हीरा के फूल एवं बायीं ओर शीशफूल धराये हैं. दायीं ओर सेहरे की हीरे की चोटी धरायी गयी है. मोती की बग्घी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये हैं.
श्रीकंठ में कली आदि सब माला धरायी जाती है. आज हांस-त्रवल नहीं धराये जाते. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में दो कमल की कमलछड़ी, जड़ाव मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी राग-रंग की, आरसी श्रृंगार में पीले खंड की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

स्नान का जल भरने जाना एवं स्नान के जल का अधिवासन

आज प्रातः श्रृंगार उपरांत श्रीजी को ग्वाल भोग धरकर चिरंजीवी श्री विशालबावा, श्रीजी व श्रीनवनीतप्रियाजी के मुखियाजी, भीतरिया व अन्य सेवकों, वैष्णवजनों के साथ श्रीजी मन्दिर के दक्षिणी भाग में मोतीमहल के नीचे स्थित भीतरली बावड़ी पर ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल लेने पधारेंगे.

कुछ वर्ष पूर्व तक ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल मन्दिर की पश्चिम दिशा में कुछ दूरी पर गणगौर घाट में स्थित चूवा वाली बावड़ियों से लाया जाता था परन्तु अब वहां का जल प्रभुसेवा में प्रयुक्त होने योग्य न होने के कारण पिछले तीन वर्षों से भीतरली बावड़ी से ही जल लिया जाता है.

स्वर्ण व रजत पात्रों में जल भर कर लाया जायेगा और शयन के समय के इसका अधिवासन किया जायेगा.

पुष्टिमार्ग में सर्व वस्तु भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से अधिवासन अर्थात जल की गागर का चंदन आदि से पूजन कर भोग धरकर उसमें देवत्व स्थापित कर बालक की रक्षा हेतु अधिवासन किया जाता है.
 
अधिवासन में जल की गागर भरकर उसमें कदम्ब, कमल, गुलाब, जूही, रायबेली, मोगरा की कली, तुलसी, निवारा की कली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केशर, बरास, गुलाबजल, यमुनाजल, आदि पधराये जाते हैं.
अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है.
“श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये l”

कल ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल मंगला समय प्रभु को इस जल के 108 धड़ों (स्वर्ण पात्र) से प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक कराया जायेगा. 
सवा लाख आमों का भोग लगाया जायेगा.

Monday, 21 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी
Tuesday, 22 June 2021

यमुना जल घट भर चलि चंद्रावली नारि ।
मारग में खेलत मिले घनश्याम मुरारि ।।१।।
नयनन सों नयना मिले मन हर लियो लुभाय ।
मोहन मूरति मन बसी पग धर्यो न जाय ।।२।।

  स्नान को जल भरवे को श्रृंगार

श्री विशाल बावा स्नान यात्रा के उत्सव के लिये कल शाम को नाथद्वारा पधार गये हैं.

(चतुर्दशी क्षय होने से एवं त्रयोदशी को नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरिधारीजी महाराज श्री का उत्सव होने से स्नान का जल भरने  का शृंगार आज लिया जायेगा लेकिन स्नान का जल कल त्रयोदशी को भरा जायेगा.
 
विशेष – आज प्रभु को नियम का गुलाबी आड़बंद व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग धरायी जाती है. ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल भरकर आती गोपियों की पिछवाई धरायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दुपहरी झनक भई तामें आये पिय मेरे मैं ऊठ कीनो आदर l
आँखे भर ले गई तनकी तपत सब ठौर ठौर बूंदन चमक ll 1 ll
रोम रोम सुख संतोष भयो गयो अनंग तनमें न रह्यो ननक l
मोहें मिल्यो अब ‘धोंधी’ के प्रभु मिट गई विरहकी जनक ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) पर जल भरकर लाती गोपियों के सुन्दर काम (Work) से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, श्वेत पंख के कतरा (खंडेला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ ऐसी ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सोने-चांदी (गंगा-जमुना) के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट-गोटी उष्णकाल के आते हैं.

Sunday, 20 June 2021

व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी

व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी
Monday, 21 June 2021

निर्जला एकादशी

श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर मोती का किरीट के श्रृंगार

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार

विशेष – आज निर्जला एकादशी है. आज के दिन कई लोग निर्जल रह कर एकादशी करते हैं यद्यपि पुष्टिमार्ग में कोई भी व्रत निर्जल रह कर नहीं किया जाता अतः वैष्णव हल्का फलाहार महाप्रसाद अवश्य लें.

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर मोती का किरीट का श्रृंगार धराया जायेगा.

अति ऊष्णकाल में मुकुट नहीं धराया जाता अतः इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.
कुछ वैष्णव किरीट और मुकुट को एक ही समझते हैं. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं.

मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.

मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण देव-प्रबोधिनी से डोलोत्सव तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.

मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार, घेरदार वागा, धोती-पटका अथवा पिछोड़ा धराये जा सकते हैं.

🌸 मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है.

ज्येष्ठ और आषाढ़ मास की चारों एकादशियों में श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में लिचोई (मिश्री के बूरे और पीसी हुई इलायची से सज्जित पतली पूड़ी) अरोगायी जाती है.

श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज ठाड़े लाल मुकुट धरे l
वदन लसत मकराकृत कुंडल रतिपति मन जु हरे ll 1 ll
अरुन अधर और चिबुक चारु बन्यो दुलरी मोहन माल गरे l
अति सुगंध और चंदन खोर किये पहोंची मोतीन की लरे ll 2 ll
कर मुरली कटि लाल काछनी किंकणी नूपुर शब्द करे l
गुन भरे ‘कृष्णदास’ प्रभु राधा निरख नेन ईत ऊत न टरे ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) पर लहरियाँ के काम (Work) से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोती का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
चोटीजी मोती की धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर, कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की बड़ी आती है.

आज शाम को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जायेंगे. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं.

उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री  संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं.
कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं.

 

Saturday, 19 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल दशमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल दशमी
Sunday, 21 June 2021

आगे आगे भाज्यो जात भागीरथ को रथ, पाछे  पाछे आवत रंग भरी गंग । 
झलमलात उज्वल जल ज्योति अब निरखत, मानो सीस भर मोतिन मंग ।।१।।
जहां परे है भूप कबके भस्म रूप ठोर ठोर, 
जाग उठे होत सलिल संग ।
नंददास मानों अग्नि के यंत्र छूटे, ऐसे 
सुर पुर चले धरें दिव्य अंग।।२।।

गंगादशमी, नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज का गादी उत्सव

विशेष – आज गंगा दशमी है. आज श्री यमुनाजी एवं श्री गंगाजी का उत्सव मनाया जाता है.

श्री यमुनाजी ने कृपा कर अपनी बहन गंगा का प्रभु के साथ शुभ मिलन कराया एवं जल-विहार के निमित गंगाजी ने भी प्रभु मिलन का आनंद लिया था. 
आज ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को ही गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था एवं सभी दस इन्द्रियों के ऊपर अधिपत्य प्राप्त कर उनकी प्रभु मिलन की आकांक्षा श्री यमुनाजी द्वारा पूर्ण हुई अतः आज के दिन को गंगा दशहरा भी कहा जाता है. 
श्री यमुनाजी पृथ्वी के जीवों पर कृपा कर गंगाजी से मिले हैं. श्री यमुनाजी के स्पर्श मात्र से गंगाजी भी पवित्र हो गयी हैं अतः गंगाजी के स्नान एवं पान से भी जीवमात्र का उद्धार हो जाता है. 

गंगाजी और श्री यमुनाजी के भाव से आज सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में जल भरा जाता है और प्रभु जल-विहार करते हैं. कुछ पुष्टिमार्गीय हवेलियों में आज के दिन नौका-विहार के मनोरथ भी होते हैं.

आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज श्री का गादी उत्सव भी है. 

सेवाक्रम – गंगादशमी व गादी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है. चार में से दो समय की आरती थाली में की जाती है.

श्रीजी को नियम के केसरी पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर केसरी रंग की श्याम झाईं वाली छज्जेदार पाग के ऊपर रुपहली लूम की किलंगी धरायी जाती है.

आज के दिन ही नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलाल जी महाराज श्री का गादी उत्सव भी है. दो उत्सव होने के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ भोग में दो नवीन प्रकार की सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में दहीभात, सतुवा, केसरयुक्त पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत,
नारद शुक व्यास रटत पावत नहीं पाररी l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत,
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत,
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल,
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम और रुपहली तुईलैस की किनारी से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल का किनारी वाला पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
उत्सव के हीरा एवं उष्णकाल के मिलमा आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी मलमल की श्याम झाईं वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी झुमका वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल की जगह कंठी धरायी जाती हैं.
तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार श्वेत व गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी मोती की आती है.

राजभोग समय गंगादशमी के उत्सव भोग रखे जाते हैं जिसमें केशर युक्त सुंवाली (गेहूं के आटा की कड़क खरखरी), खस्ता मठड़ी, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी, विविध प्रकार के संदाना एवं सूखे मेवे की बीज-चालनी आदि सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.
राजभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख चार बीड़ा सिकोरी (स्वर्ण के झालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.

श्रीजी में राजभोग दर्शन पश्चात मणिकोठा और डोल-तिबारी में घुटनों तक जल भरा जाता है. जल में विविध शीतल इत्र भी पधराये जाते हैं. 
चहुँ दिशाओं में कुंज के भाव से केले के स्तम्भ खड़े किये जाते हैं. प्रभु के सम्मुख रुई की बतखें रखी जाती है वहीँ लकड़ी के खिलौना (मगरमच्छ, कछुआ रुई की बतखें आदि) व एक छोटी नाव जल में तैराये जाते हैं. सुन्दर कमल और अन्य पुष्प भी जल में तैराये जाते हैं. 
डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के नीचे की ओर चांदी का बड़ा सिंहासन और गंगाजी-यमुना जी के घाटों के भाव से चार सीढियाँ भी साजी जाती हैं.
पनघट और जल-विहार के पद गाये जाते हैं. 
उत्थापन समय उत्सव भोग में प्रभु को उत्तमोत्तम आम की चांदी की डबरिया और शाककेरी (आम की छिलके बगैर की फांक) की डबरिया अरोगायी जाती है. 
उत्थापन के दर्शन नहीं खोले जाते और भोग समय सर्व-सज्जा हटाकर डोल-तिबारी का जल छोड़ दिया जाता है. 
वैष्णव जल में ही खड़े हो कर दर्शनों का आनंद लेते हैं. मणिकोठा का जल संध्या-आरती के पश्चात छोड़ा जाता है.

पुष्टिमार्ग में प्रभु के सुख के लिए बहुत छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा जाता है. आज की भी अद्भुत विशेषता यह है कि ऊष्णता की अधिकता के चलते आज गंगादशमी के दिन राजभोग व संध्या-आरती में प्रभु की आरती मणिकोठा में खड़े होकर की जाती है. 
सामान्यतया प्रभु की आरती निज मंदिर में ही होती है.

प्रभु सुखार्थ कितना सूक्ष्म भाव है कि आरती की लौ से भी प्रभु को गर्मी का अनुभव होगा.

शीतकाल में आरती में जहाँ 16 तक बत्तियां होती हैं वहीँ ऋतु अनुसार उनमें परिवर्तन होकर इन दिनों प्रभु की आरती में केवल 4 बत्तियां ही होती है.

सायंकाल संध्या-आरती में श्री नवनीतप्रियाजी में गादी-उत्सव के निमित उत्सव भोग अरोगाये जाते हैं जिसमें आमरस की बूंदी के लड्डू, पतली पूड़ी-खीर, गुंजा-कचौरी, दहीवड़ा, चना-दाल, बूंदी का रायता, चालनी का सूखा मेवा, आमरस, बिलसारु (आम का मुरब्बा) आदि अरोगाये जाते हैं.

Friday, 18 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल नवमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल नवमी
Saturday, 19 June 2021

गुलाबी मलमल की धोती, अंतरवास का पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव का क़तरा के शृंगार

ऊष्णकाल का तृतीय अभ्यंग 

विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का तृतीय अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल वाली पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी धोती-पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव का क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

चलो सखी कुंज गोपाल जहाँ l
तेरी सों मदनमोहनमें चल ले जाऊं तहां ll 1 ll
आछे कुसुम मंद मलयानिल तरु कदम्ब की छांह l
तहां निवास कियो नंदनंदन चित्त तेरे मन मांह ll 2 ll
ऐसीरी बात सुनत व्रजसुंदरी तोहि रह्यो क्यों भावे l
‘परमानंद’ स्वामी मन मोहन भाग्य बड़े ते पावे ll 3 ll

साज - आज श्रीजी में सफेद रंग के मलमल पर कमल के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी रंग की मलमल धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, जमाव (नागफनी का क़तरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में दो जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल के राग-रंग का एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.

Thursday, 17 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी
Friday, 18 June 2021

शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

साज – (राग : सारंग)

सोहत श्याम मनोहर गात l
श्वेत परदनी अति रसभीनी केसर पगिया माथ ll 1 ll
कर्णफूल प्रतिबिंब कपोलन अंग अंग मन्मथ ही लजात l
‘परमानंद’ दास को ठाकुर निरख वदन मुसकात ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में शरबती रंग की मलमल रूपहली ज़री की किनारी वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती मलमल की रूपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती ह

Wednesday, 16 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी
Thursday, 17 June 2021

उष्णकाल शयन को पद
राग केदारो

चलो क्यों न देखेंरी खरे दोउ कुँजन की परछाँही।
एक भुजा गहि डार कदंब की दूजी भुजा गलबाँही।।
छबि सों छबीली लपट लटक रहि कनक बेलि तरु तमाल अरूझाई।
हरिदास के स्वामी श्यामा कुँज बिहारी रंगे हैं प्रेम रंग माँही।।

श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और क़तरा, चंद्रिका का श्रृंगार 

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और क़तरा, चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत छज्जेदार पाग  के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा, चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार की एक व एक कमल माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी हक़ीक की आते हैं.

Tuesday, 15 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी
Wednesday, 16 June 2021

चंदनी मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा पगा और तुर्रा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को चंदनी मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा(तह वाला) पगा और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में चंदनी मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को चंदनी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर चंदनी मलमल के चिनमां (तह वाले) पगा के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Monday, 14 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी 
Tuesday, 15 June 2021

श्रीजी में नियम का नाव का मनोरथ

बैठै घनस्याम सुंदर खेवत है नाव।
आज सखी मोहन संग , खेलवे को दाव।।१।।
यमुना गम्भीर नीर, अति तरंग लोले। 
गोपिन प्रति कहन लागे, मीठे मृदु बोले।। २।। 
पथिक हम खेवट तुम , लीजिये उतराई। 
बीच धार मांझ रोकी , मिष ही मिष डुलाई ।। ३।। 
डरपत हों स्याम सुंदर, राखिये पद पास।
याहि मिष मिल्यो चाहे, परमानंद दास।।। ४।। 

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री ने उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपालसिंहजी व उदयपुर की महारानीजी की विनती पर विक्रम संवत 2005 में ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को नाव का मनोरथ किया था. 
डोलतिबारी में जल भरकर नाव में प्रभु श्री मदनमोहनजी को विराजित कर सुन्दर मनोरथ हुआ था. तब से यह मनोरथ उनके द्वारा जमा करायी गयी धनराशी के ब्याज से प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को होता है.

सेवाक्रम- दिन में दो समय राजभोग एवं संध्या आरती की आरती थाली में की जाती है.

आज श्रीजी को नियम की बिना किनारी की गुलाबी परदनी और श्रीमस्तक पर गोल-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 

 द्वितीय गृह में आज श्री गोविन्दरायजी (द्वितीय) का प्राकट्योत्सव है.
आज प्राचीन परंपरानुसार श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध होकर पधारते हैं.
श्री नवनीतप्रियाजी के लिए ओढ़नी भी द्वितीय गृह से पधारती है.
वस्त्रों के संग बूंदी के लड्डुओं की छाब भी वहां से आती है.

वर्ष में लगभग 16 बार श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के वस्त्र द्वितीय पीठ से पधारते हैं.

आज श्रीजी को नियम की बिना किनारी की गुलाबी परधनी और श्रीमस्तक पर गोल-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. उदयपुर के गणगौर घाट के सुन्दर चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

करत जल केलि पिय प्यारी भुज मेलि l
छुटत फूहारे भारी उज्जवल हो दस बारे अत्तरही सुगंधि रेलि ll 1 ll
निरख व्रजनारी कहा कहौ छबि वारी सखा सहत सहेलि l
राधा-गोविंद जल मध्य क्रीड़त ख्याल वृंदावन सखी सब टहेलि ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में उदयपुर के प्रसिद्द गणगौर-घाट, राजमहल, नौका-विहार, घूमर नृत्य करती गोपियों, श्री ठाकुर जी, श्री बलदेव जी एवं श्री नंद-यशोदा जी के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बिना किनारी की गुलाबी मलमल की परदनी धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी मलमल की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, मोती की घुमावदार चमकनी गोल-चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में एक हार व पंचलड़ा धराया जाता है. 
हरे एवं कमल के पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है वहीँ श्वेत पुष्पों एवं कमल की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी हकीक की आती ह

Sunday, 13 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी
Monday, 14 June 2021

शरबती मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर फेटा के साज का श्रृंगार

ऊष्णकाल का द्वितीय अभ्यंग 

विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का द्वितीय अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल वाली पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर फेटा के साज का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोविंद लाडिलो लडबौरा l
अपने रंग फिरत गोकुल में श्याम बरण जैसे भौंरा ll 1 ll
किंकणी कवणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खौरा l
नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll
माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पीत पिछोरा l
देखी स्वरुप ठगी व्रजवनिता जिय भावे नहीं औरा ll 3 ll
जाकी माया जगत भुलानो सकल देव सिरमौरा l
‘परमानंददास’ को ठाकुर संग ढीठौ ना गौरा ll 4 ll

साज - आज श्रीजी में सफेद रंग के मलमल पर कमल के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती रंग की मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फेंटा का साज धराया जाता है. शरबती मलमल के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, श्वेत रेशम की मोरशिखा, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
 तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरी की आती है.

Saturday, 12 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया 
Sunday, 13 June 2021

श्वेत मलमल की धोती गाती का पटका एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे और श्वेत मोरपंख के जोड़ के शृंगार
उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत मलमल की धोती गाती का पटका एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे और श्वेत मोरपंख के जोड़ का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यो माई पगा श्याम सिर नीको l
धोती ओर उपरेना ओढ़े ओर गहेनो मोती को ll 1 ll
अंग अरगजा कमल हाथ में लीने मिल्यो भावतो जीको l
नेन चकोर चंद मुख निरखत 'रसिक' प्रीतम सबहीको ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज स्वेत मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं गाती का उपरना धराया जाता है.  

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.  मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, श्वेत मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं इसी प्रकार श्वेत पुष्पों और तुलसी की दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

आज शाम को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जायेंगे. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. 

उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री  संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं. 
कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं.

Thursday, 10 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा 
Friday, 11 June 2021

बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और मोती के दोहरा क़तरा के श्रृंगार 

शृंगार दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

देखे री हरि नंगमनंगा l
जलसुत भूषन अंग विराजत बसन हीन छबि उठि तरंगा ll 1 ll
अंग अंग प्रति अमित माधुरी निरखि लज्जित रति कोटि अनंगा l
किलकत दधिसुत मुख लेपन करि ‘सूर’ हसत ब्रज युवतिन संगा ll 2 ll

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को आज एक विशिष्ट श्रृंगार धराया जायेगा,
इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन नियत नहीं परन्तु ज्येष्ठ मास के किसी खाली दिन धराया अवश्य जाता है l
बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और मोती के दोहरा क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर
पंथी सब झूक रहे देख छांह गहरी l
धंधीजन धंध छांड रहेरी धूपन के लिये
पशु-पंछी जीव जंतु चिरिया चूप रही री ll 1 ll
व्रज के सुकुमार लोग दे दे किंवार सोये 
उपवन की ब्यार तामें सुख क्यों न लहेरी l
‘सूर’ अलबेली चल काहेको डरात है
महा की मधरात जैसी जेठ की दुपहरी ll 2 ll  

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की (Net) जाली की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर बसरा के मोतियों की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोती का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो मालाएँ हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी,मोती के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की आती है.

Wednesday, 9 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या 
Thursday, 10 June 2021

गुलाबी रंग का पिछोड़ा एवं टिपारा का साज के श्रृंगार
उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा का साज का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोविंद लाडिलो लडबोरा l
अपने रंग फिरत गोकुलमें श्यामवरण जैसे भोंरा ll 1 ll
किंकणी कणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खोरा l
नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll
माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पिछोरा l
‘परमानंद’ दास को जीवन संग दिठो नागोरा ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) पर गोपीजन के सुन्दर काम (Work) से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (मोती की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में श्वेत रेशम की मोरशिखा तथा दोनों ओर श्वेत रेशम के दोहरा कतरा) धराये जाते हैं. बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है.
 तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरी की आती है.

आज शाम को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जायेंगे. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. 

उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री  संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं. 
कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं. 

Tuesday, 8 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी
Wednesday, 09 June 2021

ऊष्णकाल का प्रथम अभ्यंग 

पीत पिछोड़ी का श्रृंगार (पद के भाव का श्रृंगार)

विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का प्रथम अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल वाली पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

पीत पिछोड़ी का श्रृंगार (पद के भाव का श्रृंगार)

विशेष – आज भी श्रीजी को एक विशिष्ट श्रृंगार धराया जायेगा. इस विशिष्ट श्रृंगार को ‘पीत पिछोड़ी’ का श्रृंगार कहा जाता है. 

ज्येष्ठ मास में यह श्रृंगार होना निश्चित है परन्तु इसकी तिथी नियत नहीं है और आज खाली दिन होने के कारण यह श्रृंगार धराया जायेगा.

इस लीला के अनुसंधान मे आज श्रृंगार दर्शन में केसरी पटका व उत्थापन दर्शन में गुलाबी पटका धराया जाता है.

इस लीला का सुंदर पद 'पीत पिछोड़ी कहाँ जु बिसारी...' भी आज भोग दर्शन में प्रभु समक्ष गाया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

करत जल केलि पिय प्यारी भुज मेलि l
छुटत फूहारे भारी उज्जवल हो दस बारे अत्तरही सुगंधि रेलि ll 1 ll
निरख व्रजनारी कहा कहौ छबि वारी सखा सहत सहेलि l
राधा-गोविंद जल मध्य क्रीड़त ख्याल वृंदावन सखी सब टहेलि ll 2 l।

साज - आज श्रीजी में सफेद रंग के मलमल पर कमल के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रंग की मलमल की बिना किनारी की धोती एवं केसरी (चंदनिया) रंग का राजशाही पटका धराया जाता है. 
राजशाही पटका रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं इसी प्रकार श्वेत पुष्पों और तुलसी की दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की आती है.

Monday, 7 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी
Tuesday, 08 June 2021

शरबती रंग का पिछोड़ा एवं ग्वाल पगा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती रंग का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर
पंथी सब झूक रहे देख छांह गहरी l
धंधीजन धंध छांड रहेरी धूपन के लिये
पशु-पंछी जीव जंतु चिरिया चूप रही री ll 1 ll
व्रज के सुकुमार लोग दे दे किंवार सोये 
उपवन की ब्यार तामें सुख क्यों न लहेरी l
‘सूर’ अलबेली चल काहेको डरात है
महा की मधरात जैसी जेठ की दुपहरी ll 2 ll  

साज – आज श्रीजी में शरबती रंग की मलमल की रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को शरबती मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग के ग्वाल पगा पर मोती की लड़, पगा चंद्रिका (मोरशिखा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट ऊष्णकाल का व गोटी बाघ बकरी की आती है.

Sunday, 6 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी
Monday, 07 June 2021

श्वेत मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर केसरी गोल पाग और क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग और क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

सोहत श्याम मनोहर गात l
श्वेत परदनी अति रसभीनी केसर पगिया माथ ll 1 ll
कर्णफूल प्रतिबिंब कपोलन अंग अंग मन्मथ ही लजात l
‘परमानंद’ दास को ठाकुर निरख वदन मुसकात ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल गोल छोर वाली बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Saturday, 5 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी (द्वितीय)

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी (द्वितीय)
Sunday, 06 June 2021

अपरा एकादशी व्रत 

चंदन की चोली एवं कली के आभरन
का मनोरथ

विशेष- आज राजभोग में आभरन बड़े करके चंदन की चोली एवं कली के आभरन धराए जायेंगे.

ऊष्णकाल में सूर्य जब रोहिणी नक्षत्र में होवे तब शीतोपचारार्थ चंदन की गोली, चंदन की चोली, लपट-झपट, ख़स-खाना, जल-विहार, शीतल जल से स्नान (संध्या में) आदि प्रशस्त (उत्तम) माने गए हैं.

आज श्रीजी को चंदन की चोली धरायी जाएगी. इसके साथ चंदनिया रंग का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर छज्जेदार  पाग धरायी जाएगी. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज बने नंदनंदनरी नव चंदनको तन लेप किये l
तामे चित्र बने केसर के राजत हैं सखी सुभग हिये ll 1 ll
तन सुखको कटि बन्यो हे पिछोरा ठाड़े है कर कमल लिये l
रूचि वनमाल पीत उपरेना नयन मेन सरसे देखिये ll 2 ll
करन फूल प्रतिबिंब कपौलन मृगमद तिलक लिलाट दिये l
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन लाल छबि टेढ़ी पाग रही भृकुटी छिये ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में केसर एवं चंदन मिश्रित चंदनी रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसर मिश्रित चंदनिया रंग की मलमल की चोली एवं पिछोड़ा धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चंदनिया रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमनी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट एवं गोटी ऊष्णकाल के आते है.

राजभोग में आभरन बड़े करके चंदन की चोली एवं कली के आभरन धराए जाते हैं.

Friday, 4 June 2021

व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी (प्रथम)

व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी (प्रथम)
Saturday, 05 June 2021

 शरबती धोती पटका के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती धोती-पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज धरी गिरधर पिय धोती
अति झीनी अरगजा भीनी पीतांबर घन दामिनी जोती ll 1 ll
टेढ़ी पाग भृकुटी छबि राजत श्याम अंग अद्भुत छबि छाई l
मुक्तामाल फूली वनराई, 'परमानंद' प्रभु सब सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में शरबती रंग की मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. 
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर मोती की लड़, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की छोटी आती है.

Thursday, 3 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण दशमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण दशमी
Friday, 04 June 2021

यमुना दशमी

विशेष - आज यमुना दशमी है. यमुनाजी के भाव का उत्सव होने के कारण आज आरती दो समय की थाली में की जाती है.

वस्त्रों में प्रभु को नियम से श्वेत मलमल का आड़बंद और श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल का श्याम झाईं वाला फेंटा धराये जाते हैं. आज प्रभु को जाली वाला तानिया धराया जाता है व पिछवाई दूधिया घांस-फूस की आती है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
राजभोग की सखड़ी में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं.

खंडरा प्रकार प्रसिद्द गुजराती व्यंजन खांडवी का ही रूप है. इसे सिद्ध करने की प्रक्रिया व बहुत हद तक उससे प्रेरित है, केवल खंडरा सिद्ध कर उन्हें घी में तला जाता है फिर अलग से घी में हींग-जीरा का छौंक लगाकर खांड का रस पधराया जाता है और तले खंडरा उसमें पधराकर थोडा नमक डाला जाता है. प्रभु सेवा में इस सामग्री को खंडरा की कढ़ी कहा जाता है और यह सामग्री वर्ष में कई बार बड़े उत्सवों पर व विशेषकर अन्नकूट पर अरोगायी जाती है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

पनिया न जेहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकिके पटकी l
ठीक दुपहरीमें अटकी कुंजनमें कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll
कहारी करो कछु बस नहि मेरो नागर नटसों अटकी l
‘नंददास’ प्रभुकी छबि निरखत सुधि न रही पनघटकी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में दूधिया रंग की घास फूस की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को जालीदार तनिया एवं श्वेत मलमल का आड़बंद धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. पौंची आदि लड़ की धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल की श्याम झाईं के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख के दोहरा कतरा (खंडेला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ श्वेत पुष्पों की दो मालाएँ हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा-जमुनी (सोने-चांदी) के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.


यमुना दशमी 

राजभोग दर्शन पश्चात मणिकोठा और डोल-तिबारी में घुटनों तक जल भरा जाता है. 
डोल तिबारी की सभी दिशाओं में कुंज के भाव से केले के स्तम्भ खड़े किये जाते हैं. 
प्रभु के सम्मुख रुई की बतखें रखी जाती है वहीँ लकड़ी के खिलौना (मगरमच्छ, कछुआ रुई की बतखें आदि) जल में तैराये जाते हैं. सुन्दर कमल और अन्य पुष्प भी जल में तैराये जाते हैं. 
डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के छोर पर नीचे की ओर चांदी का सिंहासन और यमुनाजी के घाट के भाव से चार सीढियाँ भी साजी जाती हैं. 

पनघट और जल-विहार के पद गाये जाते हैं. 

उत्थापन समय उत्सव भोग में प्रभु को रत्नागिरी हापुस आम की चांदी की डबरिया और शाककेरी (हापुस आम की छिलके बगैर की फांक) की डबरिया अरोगायी जाती है. 

आज से प्रतिदिन भोग समय प्रभु के सम्मुख रखे जाने वाले खिलौना के थाल (जिसे यमुनाजी का थाल भी कहा जाता है) में रुई की बतख भी तैराई जाती है.

उत्थापन के दर्शन नहीं खोले जाते और भोग समय सर्व-सज्जा हटाकर डोल-तिबारी का जल छोड़ दिया जाता है. 
वैष्णव जल में ही खड़े हो कर दर्शनों का आनंद लेते हैं. 
मणिकोठा का जल संध्या-आरती के पश्चात छोड़ा जाता है.

पुष्टिमार्ग में प्रभु के सुख के लिए बहुत छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा जाता है. आज की अद्भुत विशेषता यह है कि ऊष्णता की अधिकता के चलते आज यमुना दशमी के दिन राजभोग व संध्या-आरती में प्रभु की आरती मणिकोठा में भरे जल में खड़े हो कर की जाती है. 
सामान्यतया प्रभु की आरती निज मंदिर में ही होती है.

प्रभु सुखार्थ कितना सूक्ष्म भाव है कि आरती की लौ से भी प्रभु को गर्मी का अनुभव होगा.

शीतकाल में आरती में जहाँ 16 तक बत्तियां होती हैं वहीँ ऋतु अनुसार उनमें परिवर्तन होकर इन दिनों प्रभु की आरती में केवल 4 बत्तियां ही होती है.

सभी वैष्णवों को यमुना दशमी की ख़ूबख़ूब बधाई

Wednesday, 2 June 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी
Tuesday, 01 June 2021

ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान 

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को मोतीया मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा पगा और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में मोतियों की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को मोतीया मलमल का आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर मोतीया मलमल के चिनमा(नर्म सल दार) पगा के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान 

आज श्रीजी में संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...