By Vaishnav, For Vaishnav

Monday, 30 August 2021

व्रज - भाद्रपद कृष्ण नवमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण नवमी
Tuesday, 31 August 2021

नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की l
हाथी दीने, घोड़ा दीने और दीनी पालकी ll

सभी वैष्णवों को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व नन्द महोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

नंद महोत्सव

आज की Post को गत रात्रि से प्रारंभ करता हूँ. गत रात्रि शयनभोग अरोगकर प्रभु रात्रि लगभग 9.30 बजे जागरण में बिराज जाते हैं. 
रात्रि लगभग 11.45 को जागरण के दर्शन बंद होते हैं, भीतर रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है. 

श्रीजी में जन्म के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते जबकि श्री नवनीतप्रियाजी में जन्म के दर्शन सीमित व्यक्तियों को होते हैं.

प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं. 

श्रीजी में प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है, तदुपरांत महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, कई प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं. 

प्रातः लगभग 5.30 बजे महाभोग सराये जाते हैं. भोग सरे पश्चात नन्दबाबा (श्रीजी के मुखियाजी), यशोदाजी (श्री नवनीतप्रियाजी के मुखियाजी), गोपियों एवं ग्वाल (श्रीजी व नवनीतप्रियाजी के सेवक व उनके परिवारजन) को गहनाघर, दर्ज़ीखाना, उस्ताखाना आदि के सेवक तैयार करते हैं. 

अनोसर नहीं होने से श्रीजी में जगावे के कीर्तन नहीं गाये जाते. 
महाभोग सराने के पश्चात झारीजी नई आती है और श्रीकंठ में मालाजी नई धराई जाती हैं एवं आरसी चार झाड़ की आती है.
इसके अलावा नंदमहोत्सव मे श्रृंगार, वस्त्र, साज़ इत्यादि जन्माष्टमी के दिन वाले ही रहते है. 

प्रातः लगभग 6.30 बजे नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी लालन में छठी पूजन को पधारते हैं और छठी पूजन के उपरांत पूज्य श्री तिलकायत श्री नवनीतप्रियाजी को श्रीजी में पधराते हैं.
नंदबाबा व यशोदाजी श्रीजी के सम्मुख सोने के पलने में प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी को झुलाते है.

नंदमहोत्सव के भोग में पलने की दाई तरफ रंगीन वस्त्र से ढँक कर दूधघर एवं खांडघर की सामग्री, माखन मिश्री तथा पंजीरी धरी जाती है वहीँ पलने की बायीं ओर पडघा के ऊपर झारीजी पधराये जाते है.
१२ बिड़ी अरोगाई जाती हैं और चार आरती करके न्योछावर करके राई लोन (नमक) से नज़र उतारी जाती हैं.
 
सभी भीतरिया, अन्य सेवक व उनके परिवारजन गोपियाँ ओर ग्वाल-बाल का रूप धर कर मणिकोठा में घेरा बनाकर नाचते-गाते हैं और दर्शनार्थी वैष्णवों पर हल्दी मिश्रित दूध-दही का छिडकाव करते हैं.

कीर्तन – (राग : सारंग)

हेरि है आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

कीर्तन – (राग : सारंग) 

आज महा मंगल मेहराने l
पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घर घर बैरख बाने ll 1 ll
ग्वाल भरे कांवरि गोरस की वधु सिंगारत वाने l
गोपी ग्वाल परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ll 2 ll
नाम करन जब कियो गर्गमुनि नंद देत बहु दाने l
पावन जश गावति ‘कटहरिया’ जाही परमेश्वर माने ll 3 ll

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll 

सभी वैष्णव नाचते, गाते आनंद से "लालो आयो रे...लालो आयो रे" गाते हैं.
नंदमहोत्सव के दर्शन लगभग 11 बजे तक खुले रहते हैं व दर्शन के उपरांत श्री नवनीतप्रियाजी अपने घर पधारकर मंगलभोग अरोगते हैं. 
वहीँ दूध-दही से सरोबार मणिकोठा, डोल-तिबारी रतन-चौक, कमल-चौक सहित पूरे मंदिर को जल से धोया जाता है.

नंदमहोत्सव के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत एवं श्री विशालबावा, नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी को कीर्तन समाज व ग्वाल-बाल की टोली के साथ श्री महाप्रभुजी की बैठक में पधराते हैं

मंगला के दर्शन लगभग 12 बजे खुलते हैं. आज के दिन मंगला और श्रृंगार दोनों दर्शन साथ में होते हैं. उसी दर्शन में केवल टेरा लेकर मालाजी धरायी जाती है और श्रृंगार के कीर्तन गाये जाते हैं. 

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को कूर के गुंजा, कठोर मठड़ी, सेव के लड्डू व दूधघर में सिद्ध बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

ग्वाल दर्शन नहीं खोले जाते व राजभोग दर्शन दोपहर लगभग 2.00 बजे खुलते हैं. आगे का क्रम अन्य दिनों के जैसे ही होता है. 

राजभोग से शयन तक सभी समां में बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं. 
जन्माष्टमी के दिन धराया हुआ श्रृंगार आज शयन मे बड़ा होता है.

Saturday, 28 August 2021

व्रज - भाद्रपद कृष्ण सप्तमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण सप्तमी 
Sunday, 29 August 2021

षष्ठी उत्सव

“षष्टी देवी नमस्तुभ्यं सूतिकागृह शालिनी l
पूजिता परमयाभक्त्या दीर्घमायु: प्रयच्छ मे ll”  

विशेष –आज तीन समां की आरती थाली में की जाती है. आज सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
 रक्षाबन्धन से नंदोत्सव तक पिछवाई, गादी, तकिया आदि सर्व साज पर आगे की सफेदी नहीं चढ़ाई जाती है, इस क्रम में आज तकिया के खोल जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

आज ऊष्णकाल की सेवा का अंतिम दिन होने से गुलाबदानी एवं माटी का कुंजा अंतिम बार धरा जायेगा. 
कल से गुलाबदानी, कुंजा, चन्दन की बरनी, अंकुरित मूंग, चने की दाल, मूंग की दाल, शीतल आदि (जो अक्षय तृतीया से प्रभु को प्रतिदिन संध्या-आरती में अरोगाये जा रहे थे) नहीं आयेंगे.

आज श्रीजी में पिछवाई, पलंगपोश, सूजनी, खिलौने, चौपाट, आरसी आदि बदल के उत्सव का नया साज लिया जाता है. 
एक छाब में जन्माष्टमी के दिवस धराये जाने वाले नये वस्त्र, इत्र की शीशी, गुंजा माला, कुल्हे जोड़, श्रीफल, भेंट-न्यौछावर के सिक्के आदि तैयार कर के रखे जाते हैं.
प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के दिवस केसरी वस्त्र, गुंजा की माला एवं कुल्हे जोड़ नयी धरने की रीत है. 
जन्माष्टमी के दिवस पंचामृत के लिए दूध, दही, घी, शहद एवं बूरा आदि भी साज के रखना चाहिए. कुंकुम, अक्षत और हल्दी आदि भी तैयार रखने चाहिए.

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है पर आज श्री यशोदाजी के भाव से भावित साज आता है. 

साज, पिछवाई, खण्डपाट, ठाड़े वस्त्र सभी पीले रंग के आते हैं. इसका यह भाव है कि माता यशोदाजी पीले वस्त्र धारण कर लाला को गोद में ले कर छठ्ठी पूजन करने विराजित है. 
इसी प्रकार प्रत्येक उत्सव के एक दिन पहले पन्ना एवं मोती के आभरण धराये जाते हैं परन्तु आज हीरे-मोती के आभरण धराये जाते हैं. इस प्रकार आज अनोखा-अद्भुत भावभावित श्रृंगार धराया जाता है.

भोग – आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरिया घेवर अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन - 
कीर्तन – (राग : देवगंधार)

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l
व्रज पूरव पूरे पुन्य रुपी कुल, सुथिर थुनी, ग्रह लग्न नक्षत्र बलि सोधि, कीनी वेद ध्वनी ll 1 ll  
सुनि धाई सबे व्रजनारी, सहज सिंगार कियें, तन पहेरे नौतन चीर, काजर नैन दिये l
कसि कंचुकी तिलक लिलाट, शोभित हार हिये, कर कंकण कंचन थार, मंगल साज लिये ll 2 ll....अपूर्ण

कीर्तन – (राग : सारंग)

घरघर ग्वाल देत हे हेरी l
बाजत ताल मृदंग बांसुरी ढ़ोल दमामा भेरी ll 1 ll
लूटत झपटत खात मिठाई कहि न सकत कोऊ फेरी l
उनमद ग्वाल करत कोलाहल व्रजवनिता सब घेरी ll 2 ll
ध्वजा पताका तोरनमाला सबै सिंगारी सेरी l
जय जय कृष्ण कहत ‘परमानंद’ प्रकट्यो कंस को वैरी ll 3 ll 

साज - श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल रंग का डोरिया का रूपहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छेड़ान का  (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
नीचे चार पान घाट की जुगावली एवं ऊपर मोतियों की माला धरायी जाती हैं.
त्रवल नहीं धरावें परन्तु हीरा की बघ्घी धरायी जाती है.
गुलाब के पुष्पों की एक मालाजी एवं दूसरी श्वेत पुष्पों की कमल के आकार की मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशजी वाले वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
 आरसी शृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Friday, 27 August 2021

व्रज - भाद्रपद कृष्ण षष्ठी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण षष्ठी
Saturday, 28 August 2021

विशेष – जन्माष्टमी के पूर्व श्रीजी को घर के श्रृंगार धराये जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ भी कहा जाता है.
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को हरा सफ़ेद लहरिया और श्रीमस्तक पर पाग और जमाव का कतरा धराया जाता है. 
आज सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
आज श्रीजी में जन्माष्टमी की पानघर की सेवा की जाती हैं.
आज प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी (मेवा मिश्रित खस्ता ठोड़) अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll

साज - श्रीजी में आज हरे-श्वेत रंग के लहरिया की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज हरे-श्वेत लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
माणक तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे-सफेद लहरिया की पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सुनहरी जमाव का कतरा एवं सुनहरी तुर्री तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मानक के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में हार एवं दुलड़ा धराया जाता हैं.
पीले पुष्पों की विविध रंग की थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है एवं इसी प्रकार की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट शतरंज का हरा एवं गोटी स्वर्ण की शतरंज की धराई जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती है.

Thursday, 26 August 2021

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी
Friday, 27 August 2021

आज से आपके श्रृंगार प्रारम्भ

विशेष – आज के दिन श्रीजी में चंदरवा, टेरा, वंदनमाल, कसना, तकिया के खोल आदि बदले जाते हैं.
आज से भाद्रपद कृष्ण नवमी के दिन तक सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
मैं पूर्व में भी बता चुका हूँ कि सभी बड़े उत्सवों के पूर्व श्रीजी को नियम के घर के श्रृंगार धराये जाते हैं जिन्हें घर के श्रृंगार भी कहा जाता है और इन पर श्रीजी के तिलकायत महाराज का विशेष अधिकार होता है.

जन्माष्टमी के पूर्व आज भाद्रपद कृष्ण पंचमी से घर के श्रृंगार धराये जाते हैं. इस श्रृंखला में आज श्रीजी को लाल एवं पीले रंग की इकदानी चूंदड़ी का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर चुंदड़ी की छज्जेदार पाग  के ऊपर लूम की किलंगी धरायी जाती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू आरोगाये जाते हैं.

आज ही जन्माष्टमी के दिन श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र एवं साज के लिए सफेद मलमल एवं डोरिया के वस्त्र केसर से रंगे जाते हैं. 
वस्त्र रंगते समय नक्कारे, थाली एवं मादल बजाये जाते हैं एवं सभी वैष्णव बधाईगान करते हैं. 

राजभोग आरती पश्चात पूज्य तिलकायत परिवार के सदस्य, मुखियाजी वस्त्र रंगते हैं, वैष्णवजन और दर्जीखाना के सेवकगण अपने हाथ में रख के सुखाते हैं. 

भाद्रपद कृष्ण पंचमी के दिन ये वस्त्र रंगे जाते हैं इसका यह भाव है कि “हे प्रभु, जिस प्रकार ये श्वेत वस्त्र आज केशर के रंग में रंगे जा रहे हैं, मेरी पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँचों कर्मेन्द्रियाँ भी आज पंचमी के दिवस आपके रंग में रंग जाएँ.”

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आँगन नंदके दधि कादौ l
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रगटे जगमे जादौ ll 1 ll
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन मांट संयुत l
घर घर ते सब गावत आवत भयो महरि के पुत ll 2 ll
बाजत तूर करत कुलाहल वारि वारि दे दान l
जायो जसोदा पुत तिहारो यह घर सदा कल्यान ll 3 ll
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पीत सुवास l
‘मेहा’ आनंद पुंज सुमंगल यह व्रज सदा हुलास ll 4 ll  

साज - श्रीजी में आज लाल एवं पीले रंग की मलमल पर इकदानी चूंदड़ी की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर मेघश्याम  मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल एवं पीले रंग की इकदानी चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चुंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
आज चार माला धरायी जाती हैं.
पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी स्वर्ण की छोटी धराई जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में स्वर्ण की छोटी एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Wednesday, 25 August 2021

व्रज – भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी

व्रज – भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी
Thursday, 26  August 2021

लाल पिला लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव के क़तरा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को लाल पिला लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव के क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

महारास पूरन प्रगट्यो आनि l
अति फूली घरघर व्रजनारी श्री राधा प्रगटी जानि ll 1 ll
धाई मंगल साज सबे लै महा ओच्छव मानि l
आई घर वृषभान गोप के श्रीफल सोहत पानि ll 2 ll
कीरति वदन सुधानिधि देख्यौ सुन्दर रूप बखानि l
नाचत गावत दै कर तारी होत न हरख अघानि ll 3 ll
देत असिस शीश चरनन धर सदा रहौ सुखदानि l
रसकी निधि व्रजरसिक राय सों करो सकल दुःख हानि ll 4 ll 

साज – श्रीजी में आज लाल पीले लहरियाँ की रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल पीले लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान (घुटने तक) का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल पीले लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव के क़तरा एवं तुर्री बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंगीन थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की आती हैं.

Tuesday, 24 August 2021

व्रज – भाद्रपद कृष्ण तृतीया

व्रज – भाद्रपद कृष्ण तृतीया 
Wednesday, 25 August 2021

केसरी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को केसरी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

साज - श्रीजी में आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका,लूम एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.. 
पट केसरी एवं गोटी चाँदी की धराई जाती हैं.

Monday, 23 August 2021

व्रज – भाद्रपद कृष्ण द्वितीया

व्रज – भाद्रपद कृष्ण द्वितीया
Tuesday, 24 August 2021

हिंडोलना विजय के दिन, प्रथम हिंडोलना रोपण के दिन धराये गये साज दीवालगरी, वस्त्र, श्रृंगार आदि सभी वैसे ही धराये जाते हैं.
 श्रीजी को सुनहरी लप्पा से सुसज्जित लाल पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर आसमानी बाहर की खिड़की वाली लाल छज्जेदार पाग पर सादी मोर-चन्द्रिका धरायी जाती है.

चांदी को शुभ माना जाता है अतः प्रथम हिंडोलने की भांति ही हिंडोलना विजय के दिन भी श्री मदनमोहनजी चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज महा मंगल महराने ।
पंच शब्द ध्वनि भीर वधाई घर घर बैरख बाने ।।१।।
ग्वाल भरे कांवरि गोरसकी वधू सिंगारत वाने ।
गोपी गोप परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ।।२।।
नामकरन जब कियो गर्ग मुनि नंद देत बहु दाने ।
पावन जस गावति कटहरिया जाहि परमेश्वर माने ।।३।।

साज – श्रीजी में आज साज लाल रंग की मलमल की सुनहरी लप्पा की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी लप्पा से सुसज्जित  पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.

श्रृंगार - आज प्रभु को हीरों का छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है.
 हीरे के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर आसमानी मलमल की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
मोतियों की माला के ऊपर चार पान घाट की जुगावली धराई जाती हैं.श्रीकंठ में त्रवल नहीं धराया जाता हैं. हीरे की बघ्घी धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी छोटी स्वर्ण की छोटी धराई जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Sunday, 22 August 2021

व्रज – भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा
Monday, 23 August 2021

स्वर्णयुगदाता नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज का प्राकट्योत्सव, स्वर्ण(हेम) हिंडोलना

विशेष – आज नाथद्वारा के स्वर्णयुग दाता नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज का उत्सव है. 

जीवन परिचय - आज के उत्सवनायक नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज का जन्म श्री गिरिधारीजी के यहाँ विक्रम संवत 1917 में हुआ. विक्रम संवत 1927 में नाथद्वारा में आपका उपनयन संस्कार हुआ. विक्रम संवत 1932 में आप तिलकायत पद पर आसीन हुए.

श्रीजी सेवा एवं नाथद्वारा के अभ्युदय में आपश्री का अग्रणी योगदान रहा. आपश्री का समय नाथद्वारा का स्वर्णयुग कहा जाता है. 
आपश्री के अथक प्रयासों से व्रज में गौवध बंद हुआ एवं कई गौशालाएँ खोली गयीं. आपश्री ने श्रीजी के विविध मनोरथ किये. सारंगी वाध्य कीर्तनों में बजाना शुरू हुआ. 
बारह मास के आभूषण, वस्त्र, श्रृंगार, कीर्तन  आदि के नियमों की प्रणालिका पुनः परिभाषित की गयी. 

श्रीजी के लिए सोने का बंगला, सोने का पलना एवं सोने का हिंडोलना बनवाया. जडाऊ साज, जडाऊ चौखटा, जड़ाव के मुकुट, कांच, चन्दन आदि के बंगले, दीवालगरी, पिछवाई एवं ऋतु अनुसार सुन्दर कलात्मक साज आदि सिद्ध कराये. 

वर्षपर्यंत श्रीजी के अभ्यंग, श्रृंगार एवं सामग्री निश्चित की. इस प्रकार आपने सेवा में प्रीतिपूर्वक प्रभु के सुख के विचार से भोग, राग एवं श्रृंगार की वृद्धि की. 
नाथद्वारा नगर के अभ्युदय में भी आपका विशेष योगदान रहा है. नाथद्वारा में बनास नदी के ऊपर पुल, हायर सेकेंडरी स्कूल, हॉस्पिटल, धर्मशालाएं, विभिन्न बाग़-बगीचे, औषधालय, गोवर्धन मंडान, श्री नवनीतप्रियाजी का बगीचा, बैठक का बगीचा आदि बनवाये.

आपने श्री जगन्नाथ पुरी में महाप्रभुजी की बैठक प्रकट कर सेवा व्यवस्था प्रारंभ की. विक्रम संवत 1990 में अश्विन शुक्ल द्वितीया के दिन आपने नित्यलीला में प्रवेश किया.

सभी वैष्णवों को नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री के उत्सव की अनेकानेक बधाईयाँ 

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

दिन भर सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. चारों समां (मंगला, राजभोग संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है. 
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं. मुड्ढा, पेटी, दीवालगिरी का साज केसरी आता है वहीँ तकिया लाल काम (work) वाले आते हैं.

आज श्रीजी को नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 

आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव, केसरी पेठा व छहभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं.

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll

साज – श्रीजी में आज सखीभाव से खड़ी अष्टसखी के भाव से व्रज की गोपीजनों के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी और कमल माला धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर टंकमां हीरा की टोपी व मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
दो हार पाटन वाले धराए जाते हैं.
 सफेद पुष्पों की एवं लाल गुलाब की थागवाली मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी, गोटी राग-रंग की व आरसी सोने की डांडी की आती है. श्रृंगार समय आरसी चार झाड की आती है.

Saturday, 21 August 2021

व्रज - श्रावण शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - श्रावण शुक्ल पूर्णिमा
Sunday, 22 August 2021

बहेन सुभद्रा राखी बांधत बल अरु श्री गोपाल के ।
कनकथार अक्षतभर कुंकुंम तिलक करत नंदलाल के।।१।।
आरती करत देत न्योछावर वारत मुक्ता मालके ।
आसकरण प्रभु मोहन नागर प्रेम पुंज व्रजलालके ।।२।।

सभी वैष्णवों को रक्षाबंधन एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी के प्राकट्योत्सव की बधाई

रक्षाबंधन, नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी का प्राकट्योत्सव

श्रीजी में पवित्रा की भांति ही रक्षा (राखी) भी शुभमुहूर्त से कभी प्रातः श्रृंगार दर्शन में और कभी उत्थापन दर्शन में धरायी जाती है. 
इस वर्ष पूर्णिमा कल 22 अगस्त को सायंकाल 5.31 तक होने से रक्षा (राखी) उत्थापन दर्शन में धरायी जायेंगी.
सभी वैष्णव अपने सेव्य ठाकुरजी को उत्थापन के पश्चात और सायंकाल  5.31 से पहिले रक्षा (राखी) धरा सकते हैं.

वैष्णव अपनी बहनो से राखी उत्थापन में श्रीजी को राखी धराने के उपरान्त अपने 
सेव्य ठाकुरजी को रक्षा (राखी) धराने के पश्चात बंधाते हैं.

विशेष – आज रक्षाबंधन का पर्व है. 
बहन अपने भाई की मंगलकामना हेतु राखी बांधती है इस भाव से बहन सुभद्रा राखी बांधती है, गर्गादिक ऋषि भी राखी बांधते हैं, माता यशोदा भी लालन की रक्षा हेतु राखी बांधती है.

इन सभी भावनाओं के कीर्तन अष्टसखाओं ने गाये हैं. यह पर्व व्रज में सर्वत्र मनाया जाता है.

आज श्री गुसांईजी के ज्येष्ठ पुत्र गिरधरजी के पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी का प्राकट्योत्सव भी है. 
आप का प्राकट्य विक्रम संवत १६३२ में आज के दिन हुआ था. 
आपने अपने जीवनकाल में श्रीजी के विविध मनोरथ किये थे. आपश्री वेदज्ञ, मन्त्रज्ञ, अत्यंत तेजस्वी एवं सरल स्वाभाव के थे.

एक बार आपश्री से छुपा कर श्रीजी के तत्कालीन अधिकारी ने प्रभु सेवा के तीन लाख रुपये एक वृक्ष के नीचे गाड़ दिए थे तब श्रीजी ने स्वयं आपश्री को यह बात बतायी और आपने तुरंत रुपये मंगाकर श्रीजी को अर्पण कर दिए थे.

आज से श्रीजी में जन्माष्टमी की बड़ी बधाई बैठती भी है जिससे पिछवाई, गादी, तकिया आदि सर्व साज लाल मखमल के आते हैं. जड़ाव स्वर्ण के पात्र, चौकी, पडघा, शैयाजी आदि आते हैं. 
आज से नवमी तक आगे के सर्वसाज पर श्वेत की जगह लाल रंग की मख़मल के साज आते हैं.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

दिनभर झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समां (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) में आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवला सभी सोने के आते हैं.
आज से नवमी तक आगे सफ़ेदी नहीं चढ़ती हैं एवं तकिया लाल मख़मल के आते हैं.
मंगला के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रीजी प्रभु को नियम से लाल मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सादी मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

उत्थापन दर्शन में 4.15 बजे के आसपास झालर,घण्टा बजाते हुए व शंखध्वनि के साथ श्रीजी को तिलक, अक्षत कर दोनों श्रीहस्त में एवं दोनों बाजूबंद के स्थान पर रक्षा (राखी) बांधी जाएगी. तदुपरांत भेंट की जाएगी और दर्शन उपरांत उत्सव भोग धरे जाएंगे.
श्रीजी को रक्षा (राखी) धराए जाने के पश्चात सभी स्वरूपों को रक्षा (राखी) धराई जाती हैं.

उत्सव भोग में विशेष रूप से गुलपापड़ी (गेहूं के आटे की मोहनथाल जैसी सामग्री), दूधघर में सिद्ध केशर-युक्त बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना और फल आदि अरोगाये जाते हैं.
अनोसर में श्रीजी के सनमुख अत्तरदान,
मिठाई का थाल, चोपड़ा,चार बीड़ा आरसी इत्यादि धरे जाते हैं.

आज के अलावा श्रीजी को गुलपापड़ी केवल घर के छप्पनभोग (माघशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा) के दिन ही आरोगायी जाती है.

आज नियम से श्रीजी में प्रभु श्री मदनमोहनजी कांच के हिंडोलने में झूलते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी के ऊपर सफेद और तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. पीठिका और पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.

वस्त्र - श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का रूपहरी पठानी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार –  प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता से  मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.नीचे पाँच पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.श्वेत पुष्पों की मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की आती हैं.

Friday, 20 August 2021

व्रज - श्रावण शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - श्रावण शुक्ल चतुर्दशी
 Saturday, 21 August 2021

प्रथम तिलकायत नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री विट्ठलेशरायजी महाराज (१६५७) का उत्सव

विशेष – श्री गुसांईजी के प्रपौत्र अर्थात उनके प्रथम पुत्र गिरधरजी के द्वितीय पुत्र दामोदरजी के पुत्र श्री विट्ठलेशरायजी (१६५७) (टिपारा वाले विट्ठलेशजी) का आज प्राकट्योत्सव है. 

आपका धराया टिपारा का अद्भुत श्रृंगार श्रीजी को सुहाता था एवं आपश्री श्रीजी के प्रिय थे अतः आप को ‘टिपारा वाले विट्ठलेशजी’ भी कहा जाता है. 

श्रीजी ने स्वयं आज्ञा कर गृह के मुखिया के रूप में तिलक कर आपको प्रथम तिलकायत के रूप में नियुक्त किया एवं उन्हें वर्ष के 360 दिनों में 60 दिवस के श्रृंगार करने की आज्ञा भी प्रदान की. 
ये वे श्रृंगार हैं जो वर्ष में सभी बड़े उत्सवों पर धराये जाते हैं और ‘घर के श्रृंगार’ कहे जाते हैं और इन पर तिलकायत महाराज का विशेष अधिकार होता है.

आप ने ही श्रीजी को दूधघर की विविध प्रकार सामग्रियां अरोगाने का क्रम प्रारंभ किया. 

तिलकायत के रूप में पदासीन होने के पश्चात आपने श्रीजी के कई मनोरथ किये, अपने चमत्कारों से तत्कालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर को भी प्रभावित किया एवं उनके पास से गोकुल एवं गोपालपुर (जतिपुरा) में जमीनें प्राप्त कर बड़ी-बड़ी गौशालाओं का निर्माण करवाया. 

आपके काल से ही श्रीजी में तिलकायत परम्परा का प्रारंभ हुआ जो कि आज भी जारी है. आपके नित्यलीला में प्रवेश के पश्चात आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री लालगिरिधर जी तिलकायत के रूप में पदासीन हुए.

सेवाक्रम - नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी का उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.

आज श्रीजी को नियम का पिले रंग का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर सुनहरी घेरा का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रावण शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन श्रृंगार समय मिश्री की गोल-डली का भोग अरोगाया जाता है.
 
गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.

कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (रविवार, 22 अगस्त 2021) को रक्षाबंधन हैं. श्री गुसांईजी के ज्येष्ठ पुत्र गिरधरजी के द्वितीय पुत्र और आज के उत्सव नायक के पितृचरण गौस्वामी दामोदरजी का भी कल प्राकट्योत्सव है. 

श्रीजी में पवित्रा की भांति ही रक्षा (राखी) भी शुभमुहूर्त से कभी प्रातः श्रृंगार दर्शन में और कभी उत्थापन दर्शन में धरायी जाती है. 
इस वर्ष पूर्णिमा कल 22 अगस्त को सायंकाल 5.31 तक होने से रक्षा (राखी) उत्थापन दर्शन में धरायी जायेंगी.
सभी वैष्णव अपने सेव्य ठाकुरजी को उत्थापन के पश्चात और सायंकाल  5.31 से पहिले रक्षा (राखी) धरा सकते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आंगन नंद के दधि कादौ ।
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रकटे जगमें जादौ ।१।।
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन माट संयुत ।
घर घरते सब गावत आवत भयो महरि के पुत्र ।।२।।
बाजत तूर करत कोलाहल वारि वारि दै दान ।
जीयो जशोदा पूत तिहारो यह घर सदा कल्यान ।।३।।
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पीत सुवास ।
मेहा आनंद पुंज सुमंगल यह व्रज सदा हुलास ।।४।।

साज – श्रीजी में आज पिले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. 
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. 
पीठिका व पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.

वस्त्र - श्रीजी को आज पिले रंग रंग का रूपहरी पठानी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज मध्य (घुटने तक) का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पिले रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली की मालाजी धराई जाती हैं. हास,त्रवल नहीं धराए जाते हैं.बग्घी धरायी जाती हैं.पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
 पट पिला एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.

Thursday, 19 August 2021

व्रज - श्रावण शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - श्रावण शुक्ल त्रयोदशी
Friday, 20 August 2021

किंकोडा तेरस, चतुरा नागा के श्रृंगार

आज किंकोड़ा तेरस है. आज के दिन व्रज में विराजित श्रीजी यवनों के उपद्रव का नाश कर पाड़े (भैंसे) के ऊपर बैठकर रामदासजी, कुम्भनदासजी आदि को साथ लेकर चतुरा नागा नाम के विरक्त योगी को दर्शन देने एवं उक्त पाड़े (भैंसे) का उद्धार करने टॉड का घना नाम के घने वन में पधारे थे. 

चतुरा नागा श्रीजी के दर्शन को लालायित थे परन्तु वे श्री गिरिराजजी पर पैर नहीं रखते थे जिससे श्रीजी के दर्शन से विरक्त थे. 
भक्तवत्सल प्रभु अत्यन्त दयालु हैं एवं अपने सभी भक्तों को मान देते हैं अतः वे स्वयं अपने भक्त को दर्शन देने पधारे. चतुरा नागा की अपार प्रसन्नता का कोई छोर नहीं था. 
वर्षा ऋतु थी सो चतुरा नागा तुरंत वन से किंकोडा के फल तोड़ लाये और उसका शाक सिद्ध किया. रामदासजी साथ में सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) सिद्ध कर के लाये थे सो श्रीजी को सीरा एवं किंकोडा का शाक भोग अरोगाया. 

तब कुम्भनदासजी ने यह पद गाया – 
“भावत है तोहि टॉडको घनो ।
कांटा लगे गोखरू टूटे फाट्यो है सब तन्यो ।।१।।
सिंह कहां लोकड़ा को डर यह कहा बानक बन्यो । 
‘कुम्भनदास’ तुम गोवर्धनधर वह कौन रांड ढेडनीको जन्यो ।।२।।

कुछ देर पश्चात समाचार आये कि यवन लश्कर फिर से बढ़ गया है जिससे तुरंत श्रीजी को पुनः मंदिर में पधराया गया. 

आज भी राजस्थान में भरतपुर के समीप टॉड का घना नमक स्थान पर श्रीजी की चरणचौकी एवं बैठकजी है जो कि अत्यंत रमणीय स्थान है.

आज श्रीजी को मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

उपरोक्त प्रसंग की भावना से ही आज के दिन श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में किंकोडा का शाक एवं सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) अरोगाया जाता है.

अद्भुत बात यह है कि आज भी प्रभु को उसी लकड़ी की चौकी पर यह भोग रखे जाते हैं जिस पर सैंकड़ों वर्ष पूर्व चतुरा नागा ने प्रभु को अपनी भाव भावित सामग्री अरोगायी थी.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज महा मंगल महराने l
पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घर घर बेरखबाने ll 1 ll
ग्वाल भरे कांवरि गोरस की वधु सिंगारत वाने l
गोपी ग्वाल परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ll 2 ll
नाम करन जब कियो गर्गमुनि नंद देत बहु दाने l
पावन जश गावति ‘कटहरिया’ जाही परमेश्वर माने ll 3 ll

साज – वर्षाऋतु में बादलों की घटा एवं बिजली की चमक के मध्य यमुनाजी के किनारे कुंज में एक ओर श्री ठाकुरजी एवं दूसरी ओर स्वामिनीजी को व्रजभक्त झूला झुला रहे हैं. प्रभु की पीठिका के आसपास सोने के हिंडोलने का सुन्दर भावात्मक चित्रांकन किया है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वर्ण हिंडोलना में झूल रहे हों, ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. 
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल एवं सफ़ेद रंग के लहरिया की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरीया के धराये जाते है.

श्रृंगार - प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. 
सर्वआभरण मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सलमा सितारा का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में मोती के कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं आती हैं.श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी जाती है. श्रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी ( एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी मीना की धराई जाती है.

Wednesday, 18 August 2021

व्रज - श्रावण शुक्ल द्वादशी

व्रज - श्रावण शुक्ल द्वादशी
Thursday, 19 August 2021

पवित्रा द्वादशी

विशेष – आज पवित्रा द्वादशी है. श्रावण शुक्ल एकादशी की मध्यरात्रि को स्वयं ठाकुरजी ने प्रकट होकर श्री महाप्रभुजी को दैवीजीवों को ब्रह्म-सम्बन्ध देने की आज्ञा दी. 
इस प्रकार श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन श्रीवल्लभ ने सब से प्रथम ब्रह्म-सम्बन्ध वैष्णव दामोदर दास हरसानी को दिया. तब से एकादशी का दिन सभी वैष्णवों में पुष्टिमार्ग की स्थापना दिवस-समर्पण दिवस के रूप में मनाया जाता है. 

श्री महाप्रभुजी को स्वयं श्रीजी ने ब्रह्म-सम्बन्ध देने की आज्ञा प्रदान की इस कारण सभी वैष्णवों को वल्लभ कुल के बालकों से ही ब्रह्म-सम्बन्ध लेना चाहिए, किसी अन्य साधु-संत आदि से नहीं लिया जाना चाहिए. 
वल्लभ कुल के बालक श्री महाप्रभुजी की ओर से ब्रह्म-सम्बन्ध देते हैं अतः पुष्टिमार्ग के गुरु श्री महाप्रभुजी हैं.

जिस प्रकार हिन्दू धर्म के अन्य सम्प्रदायों में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) को गुरु का पूजन किया जाता है उसी प्रकार पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में आज के दिन गुरु का पूजन किया जाता है.

सभी वैष्णव आज के दिन श्री ठाकुरजी को पवित्रा धराये पश्चात अपने ब्रह्म-सम्बन्ध देने वाले गुरु को पवित्रा, यथाशक्ति भेंट आदि धरें एवं दंडवत करें इसके पश्चात वैष्णवों को परस्पर प्रसादी मिश्री देकर ‘जय श्री कृष्ण’ कहें. 

यदि गुरु किसी अन्य स्थान पर हों अर्थात उनके साक्षात् चरणस्पर्श दंडवत संभव न हों तो उन्हें पवित्रा व भेंट किसी भी रीती (Post से, Courier से, किसी व्यक्ति के साथ) भेजें. भेंट भी भविष्य में साक्षात् होने पर उनके सम्मुख रखें.

यदि गुरु नित्यलीलास्थ हो गए हों तो उनके चित्र पर पवित्रा धराकर कर दंडवत करें, भेंट धरें और उपरांत उनके पुत्र को, उनके परिवार के किन्ही अन्य सदस्य को अथवा किसी अन्य गौस्वामी बालक जिनके संपर्क में हों उनको भेंट कर दें.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll

साज – आज श्रीजी में सफेद रंग की मलमल की धोरेवाली (थोड़े-थोड़े अंतर से रुपहली ज़री लगायी हुई) सुनहरी ज़री की हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में सात स्वरूप श्री महाप्रभुजी श्रीजी को पवित्रा धरा रहे हैं एवं श्री गुसाई जी मोरछल की सेवा कर रहे हैं ऐसा सुन्दर चित्रांकन किया गया है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. पीठिका के ऊपर व इसी प्रकार से पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज गहरे गुलाबी (पतंगी) मलमल का रुपहली किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के (चित्र में लाल) धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (मध्य से दो अंगुल ऊपर) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
पन्ना एवं सोने के आभरण धराये जाते हैं. एक कली की माला धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की पन्ना वाली चमकनी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में पन्ना के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थाग वाली दो मालजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (एक पन्ना व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट गुलाबी, गोटी छोटी सोने की आती है.
आरसी शृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती हैं.

Sunday, 15 August 2021

व्रज – श्रावण शुक्ल अष्टमी

व्रज – श्रावण शुक्ल अष्टमी
Monday, 16 August 2021

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज कृत सप्तस्वरूपोत्सव
(विस्तुत वर्णन अन्य पोस्ट में) (नवमी क्षय से आज)

सेवाक्रम - पर्वात्मक उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है. डो समय की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवला आदि सोने के आते हैं.

श्रीजी को नियम से केसरी रंग की गोल-काछनी (मोर-काछनी), श्रीमस्तक पर गुलाबी गौ-कर्ण एवं स्वर्ण का रत्नजड़ित घेरा धराया जाता है. यह वस्त्र और श्रृंगार वर्ष में केवल आज के दिन ही धराये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मूँग की दाल की मोहनथाल एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

विहरत सातो रूप धरे l
सदा प्रकट श्रीवल्लभनंदन द्विज कुल भक्ति वरे ll 1 ll
श्रीगिरिधर राजाधिराज व्रजराज उध्योत करे l
श्रीगोविन्द इंदु जग किरणन सींचन सुधा करे ll 2 ll
श्रीबालकृष्ण लोचन विशाल देख मन्मथ कोटि डरे l
गुण लावण्य दयाल करुणानिधि गोकुलनाथ भरे ll 3 ll
श्रीरघुपति यदुपति घनसांवल मुनिजन शरण परे l
‘छीतस्वामी’ गिरिधर श्रीविट्ठल तिहि भज अखिल तरे ll 4 ll

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग की गौस्वामी बालकों तथा गायों के सुन्दर चित्रांकन और रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें श्रीजी के दोनों ओर सभी सप्तस्वरूप विराजित हैं और पास में उनके आचार्यचरण सेवा में उपस्थित हैं ऐसा सुन्दर चित्रांकन है 
(Post में प्रदर्शित चित्र में केवल दो स्वरुप ही दृश्य हैं यद्यपि वास्तविक पिछवाई में सभी सात स्वरुप हैं). 
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल की सूथन, गोल-काछनी (मोर काछनी) तथा रास-पटका धराया जाता है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार –  प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता से  मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की जडाऊ टिपारे की टोपी के ऊपर लाल रंग के सुनहरी किनारी वाले गौकर्ण, स्वर्ण का रत्नजड़ित घेरा एवं बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.नीचे सात पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं. दो पाटन वाले हार धराये जाते हैं.
सफेद एवं पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का एवं गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती हैं.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती हैं. 

Saturday, 14 August 2021

व्रज – श्रावण शुक्ल सप्तमी

व्रज – श्रावण शुक्ल सप्तमी
Sunday, 15 August 2021

 बगीचा उत्सव (श्री नवनीतप्रियाजी)

विशेष – आज श्री नवनीतप्रियाजी में बगीचा उत्सव होगा. आज के दिन प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी श्रीजी मंदिर में स्थित श्री महाप्रभुजी की बैठक वाले बगीचे में विहार एवं झूलने को पधारते हैं. 
व्रज में नन्दगाँव के पास नंदरायजी का बगीचा है जहाँ नंदकुमार खेलने एवं झूलने के लिए पधारते थे इस भाव से आज बैठक के बगीचे को नंदरायजी का बगीचा मानकर श्री नवनीतप्रियाजी वहां झूलने पधारते हैं. 
श्री नवनीतप्रियाजी वर्ष में दो बार (आज के दिन व फाल्गुन शुक्ल अष्टमी) के दिन महाप्रभु की बैठक स्थित इस बगीचे में पधारते हैं.
आज द्वितीय गृह पिठाधीश्वर श्री कृष्णरायजी (1857) का प्राकट्योंत्सव
होने से श्रीजी को धराये जाने वाले आज के वस्त्र द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्रों के साथ श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु बूंदी के लड्डुओं की छाब भी वहीँ से आती है. 

नित्यलीलास्थ श्री कृष्णरायजी से जुड़ा एक प्रसंग मुझे स्मरण है जिसे मैं आपसे साझा करना चाहूँगा. 
निधि स्वरुप विराजित हैं तो वैसे भी घर का वैभव बढ़ ही जाता है परन्तु तब प्रभु श्री विट्ठलनाथजी की कृपा से द्वितीय गृह अत्यन्त वैभवपूर्ण स्वरुप में था और तत्समय श्रीजी में अत्यधिक ऋण हो गया. 
जब आपको यह ज्ञात हुआ तब आपने अपना अहोभाग्य मान कर प्रभु सुखार्थ अपना द्रव्य समर्पित किया और प्रधान पीठ को ऋणमुक्त कराया.

आप द्वारा की गयी इस अद्भुत सेवा के बदले में श्रीजी कृपा से आपको कार्तिक शुक्ल नवमी (अक्षय नवमी) की श्रीजी की की पूरे दिन की सेवा और श्रृंगार का अधिकार प्राप्त हुआ था. 
आज भी प्रभु श्री गोवर्धनधरण द्वितीय गृह के बालकों के हस्त से अक्षय नवमी के दिन की सेवा अंगीकार करते हैं.

आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 
प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता. 

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण और वन-विहार के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. 

आज श्रीजी में रास के भाव का पीताम्बर (रास-पटका) धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : गोड मल्हार)

माईरी घन मृदंग रसभेदसो बाजत नाचत चपला चंचल गति l
कोकिला अलापत पपैया उरपलेत मोर सुघर सूर साजत ll 1 ll
दादुर तालधार ध्वनि सुनियत रुनझुन रुनझुन नुपूर बाजत l
‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक कुंज महेल दोउ राजत ll 2 ll

साज – वर्षाऋतु में बादलों की घटा एवं बिजली की चमक के मध्य यमुनाजी के किनारे कुंज में एक ओर श्री ठाकुरजी एवं दूसरी ओर स्वामिनीजी को व्रजभक्त झूला झुला रहे हैं. प्रभु की पीठिका के आसपास सोने के हिंडोलने का सुन्दर भावात्मक चित्रांकन किया है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वर्ण हिंडोलना में झूल रहे हों, ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. 
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरीया के धराये जाते है.

श्रृंगार - प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. सर्वआभरण फ़ीरोज़ा के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सिलमा सितारा का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में फ़ीरोज़ा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी मीना की आती हैं.श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, 
 भाभीजी वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी मोर वाली धराई जाती हैं.

Friday, 13 August 2021

व्रज -श्रावण शुक्ल षष्ठी

व्रज -श्रावण शुक्ल षष्ठी
Saturday, 14 August 2021

श्रीजी में बगीचा उत्सव

विशेष – आज श्रीजी में बगीचा उत्सव होगा. 
पुष्टिमार्ग में बगीचा उत्सव वर्ष भर में दो बार श्रावण शुक्ल सप्तमी (आगामी तिथि क्षय से आज) एवं फाल्गुन शुक्ल एकादशी) विभिन्न भावों (बाल भाव से व मधुर भाव से) से मनाया जाता है. आज के बगीचे में मधुर भाव मुख्य है.

सेवाक्रम - पर्वात्मक उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवला आदि सोने के आते हैं.

आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 
प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता. 

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण और वन-विहार के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है. 

आज धनक (मोढडाभात) के लहरिया के  सुथन, काछनी व वन-विहार का भाव से  प्रभु को गाती का पटका धराया जायेगा.

आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोहर (इलायची, जलेबी) के लड्डू एवं दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है
व सखडी में मीठी सेव, केसर युक्त पेठा अरोगाया जाता हैं.

कल श्रावण शुक्ल सप्तमी (रविवार, 15 अगस्त 2021) को श्री नवनीतप्रियाजी महाप्रभुजी की बैठक में स्थित बगीचे में पधारेंगे. 
श्रीजी को भी मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. परन्तु कल और आज में यह अंतर होगा कि कल रास के भाव का रास-पटका प्रभु को धराया जायेगा. 
और भी कुछ विशेष है परन्तु उसके लिए कल की post का इंतज़ार करें. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

ऐरी यह नागर नंदलाल कुंवर मोरन संग नाचे l
कटि तटपट किंकिणी कलनूपुर रुन झुन करे नृत्य करत चपल चरण पात घात सांचे ll 1 ll
उदित मुदित सघन गगन घोरत घन दे दे भेद कोकिला कलगान करत पंचम स्वर वांचे l
‘छीतस्वामी’ गोवर्धननाथ साथ विरहत वर विलास वृंदावन प्रेमवास यांचे ll 2 ll

साज – वर्षा ऋतु में बादलों की घटा छायी हुई है. इस समय कुंज के द्वार पर नृत्य करते मयूरों के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल एवं पीले रंग के धनक (मोढडाभात) के लहरिया की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरीया के धराये जाते है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रमुखता, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सोने का रत्नजड़ित, नृत्यरत मयूरों की सज्जा वाला मुकुट एवं मुकुट पर माणक का सिरपेंच एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज नीचे पदक ऊपर हार माला धराए जाते हैं.
दो पाटन वाले हार धराए जाते हैं.
 श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.हास,त्रवल नहीं धराए जाते हैं.हीरा की बग्घी धरायी जाती हैं. 
आज सभी समा में  पुष्पों की माला एक एक ही धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी नाचते मोर की आती है.
आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Thursday, 12 August 2021

व्रज – श्रावण शुक्ल पंचमी

व्रज – श्रावण शुक्ल पंचमी
Friday, 13 August 2021

श्रीनाथजी की उर्ध्व भुजा प्राकट्य दिवस की ख़ूब ख़ूब बधाई 

नागपंचमी

विशेष – आज नागपंचमी है. भारत देश के विभिन्न हिस्सों में नागपंचमी कई अलग-अलग दिनों पर मनाई जाती है. देश के कुछ भागों में नाग-पंचमी श्रावण कृष्ण पंचमी को भी मनायी जाती है. 

व्रज में आज नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है. 

श्रीजी में आज का उत्सव श्री गिरिराजजी के भाव से मनाया जाता है. पूर्ण प्राकट्य से पूर्व प्रभु श्रीजी श्री गिरीराजजी की कन्दरा में विराजित थे. 
विक्रम संवत 1465 की श्रावण शुक्ल पंचमी के दिवस श्रीजी को दूध अरोगाने गये व्रजवासियों को श्रीजी की उर्ध्व भुजा के दर्शन हुए थे. 
तब से सभी व्रजवासी उनके दर्शन कर दही, दूध आदि भोग रख उनकी आराधना करने लगे. आगामी 70 वर्षों तक व्रजवासियों ने इसी प्रकार प्रभु की उर्ध्वभुजा का पूजन किया. 

इसके पश्चात विक्रम संवत 1535 की चैत्र कृष्ण एकादशी को प्रभु का मुखारविंद प्रकट हुआ. 
श्री महाप्रभुजी ने विक्रम संवत 1549 में प्रभु को श्री गिरिराजजी की कन्दरा से बाहर पधराया एवं प्रभु की सेवा का कार्य अपने हाथ में लिया. तब तक सर्व व्रजवासी ही प्रभु को दूध, दही एवं मक्खन आदि का भोग रखते थे.

श्रीजी में विशेष – आज का उत्सव श्री गिरिराजजी के भाव से मनाया जाता है. आज की सेवा हंसाजी की ओर से की जाती है. 

श्रीजी को नियम से कोयली (सोसनी या गहरे नीले) रंग का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर पाग के ऊपर नागफणी का कतरा धराया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की पाटिया के लड्डू एवं पाटिया (गेहूं की सेवई) की खीर आरोगायी जाती है. 
सेव की खीर आज के अतिरिक्त केवल कुंडवारा मनोरथ में अथवा अन्नकूट उत्सव पर आरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

देखो अद्भुत अवगति की गति, कैसो रूप धर्यो है हो l 
तीनलोक जाके उदर बसत है सो सूप कैं कोन पर्यो है हो ll 1 ll
जाकें नाल भये ब्रह्मादिक, सकल भोग व्रत साध्यो हो l 
ताको नाल छीनि ब्रजजुवती बोटि तगा सौं बांध्यो हो ll 2 ll
जिहिं मुख कौं समाधि सिव साधी आराधन ठहराने हो l
सोई मुख चूमति महरि जसोदा दूध लार लपटाने हो ll 3 ll
जिन श्रवननि गजकी बिपदा सुनी, गरुडासन तजी धावै हो l
तिन श्रवननि के निकट जसोदा हुलरावे अरु गावै हो ll 4 ll
जिन भुजबल प्रहलाद उबार्यो हिरनाकसिप उर फारे हो l
तेई भुज पकरि कहति व्रजनारी ठाड़े होहु लला रे हो ll 5 ll
विश्व-भरन-पोषन सब समरथ, माखन काज अरे है हो l
रूप विराट कोटि प्रति रोमनि, पलना मांझ परे हे हो ll 6 ll
सुरनर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधिन टारी हो l
सोई ‘सूर’ प्रकट या ब्रजमें गोकुल गोप बिहारी हो ll 7 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की एक ओर आन्योर ग्राम एवं दूसरी ओर जतीपुरा ग्राम, दोनों ग्रामों से व्रजवासी श्रीजी की उर्ध्व भुजा के दर्शन करने जा रहे हैं ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कोयली रंग की मलमल का सुनहरी पठानी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व-आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कोयली रंग की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तुर्री डाँख का जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
 श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थाग वाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीकंठ में कली की मालाजी  धरायी जाती हैं.
त्रवल नहीं धराए जाते हे बध्धी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट कोयली व गोटी चांदी की आती है.

अनोसर में श्रीमस्तक पर धरायी पाग के ऊपर की सुनहरी खिड़की बड़ी कर के धरायी जाती है.

Wednesday, 11 August 2021

व्रज - श्रावण शुक्ल चतुर्थी

व्रज - श्रावण शुक्ल चतुर्थी 
Thursday, 12 August 2021

 विशेष – आज श्रीजी को नियम का मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जाता है. मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार चंचल, चपल, पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

आज की सेवा श्री मन्मथमोदाजी के भाव से होती है अतः उपरोक्त श्रृंगार धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

आज सखी देख कमलदल नैन l
शीश टिपारो जरद सुनेरी बाजत मधुरे बैन ll 1 ll
कतरा दोय मध्य चंद्रिका काछ सुनेरी रैन l
दादुर मोर पपैया बोले मोर मन भयो चैन ll 2 ll
नाचत मोर श्याम के आगे चलत चाल गज गैन l
श्रीविट्ठल गिरिधर पिय निरखत लज्जित भयो मैन ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराज-धारण की लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में श्री कृष्ण एवं बलदेव जी मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार में हैं एवं ग्वाल-बाल व गायें संग खड़ी हैं. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज एक आगे का पटका लाल पिली चूंदड़ी का एवं मल्लकाछ तथा दूसरा कंदराजी का स्याम सफ़ेद चूंदड़ी का पटका तथा मल्लकाछ धराया जाता है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज श्रीकंठ का शृंगार छेड़ान (कमर तक) का एवं बाक़ी शृंगार भारी धराया जाता है. स्वर्ण के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग की एकदानी चूंदड़ी के टिपारा के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरे कतरा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटी नहीं धरायी जाती है. श्रीकंठ में कमल माला धरायी जाती है. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी चांदी की बाघ-बकरी की आती है.

Tuesday, 10 August 2021

व्रज - श्रावण शुक्ल तृतीया (ठकुरानी तीज)

व्रज - श्रावण शुक्ल तृतीया (ठकुरानी तीज)
Wednesday, 11 August 2021

सभी वैष्णवों को ठकुरानी तीज की बधाई

ठकुरानी तीज

विशेष – आज ठकुरानी तीज है. राजस्थान के राजपुताना राज-घरानों में इस दिन का विशेष महत्व है. इसे राजस्थान में छोटी तीज भी कहा जाता है.

पुष्टिमार्ग की यह विशेषता है कि लौकिक त्यौहारों में प्रभु को विनियोग करने से उनमें अलौकिकता प्रकट होती है. हमारे पुष्टि पुरुषोत्तम प्रभु श्रीनंदकुमार भी व्रज के ठाकुर हैं, राजकुमार हैं अतः व्रज में ठकुरानी तीज मनायी जाती है. 
इस सन्दर्भ में कई व्रजभक्तों ने गाया भी है ‘ठाकुर नंदकिशोर हमारे, ठकुराईन वृषभानलली’ पुष्टिमार्ग में ये उत्सव सर्वत्र भावात्मक और रसात्मक रूप में मनाया जाता है.

श्रीजी ने श्री महाप्रभुजी को विक्रम संवत 1549 की फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन झारखंड में आज्ञा के उपरांत आप श्रावण शुक्ल तृतीया  के दिन गोकुल के गोविन्द घाट पधारे जहाँ श्री यमुनाजी ने आपको दर्शन दिए. श्री महाप्रभुजी ने यमुनाष्टक कीं रचना कर श्री यमुनाजी की स्तुति की.

यह तीज श्री यमुनाजी और श्री राधारानी की है. व्रज और राजस्थान का यह लोकोत्सव है. युवा कन्याएं सज-संवर कर वन विहार करती हैं. झूला झूलती हैं, आनंद-प्रमोद करती हैं और व्रत करती हैं. नाथद्वारा में भी महिलाऐं लाल चूंदड़ी के वस्त्र पहन कर प्रभु के दर्शन करने जाती हैं.

पुष्टि सेवा प्रकार में व्रजांगनाएं श्री यमुनाजी और श्री राधिकाजी को अपनी स्वामिनी अथवा ठकुरानी मान कर आपके नैतृत्व में श्री ठाकुरजी के साथ व्रज-विहार का आनंद लेती हैं. फलफूल के हिंडोलना में श्री युगल स्वरुप को झूलाती हैं.

आज की सेवा चन्द्रावलीजी और शोभाजी की ओर की होती है. 

सेवाक्रम - पर्वात्मक उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवला आदि सोने के आते हैं.

मंगला दर्शन में लाल रंग का चौफूली चूंदड़ी का उपरना धराया जाता है.

मंगला दर्शन के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) आदि से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज से श्रीजी को चूंदड़ी के वस्त्र धराने आरम्भ होते हैं.

वस्त्रों में आज नियम का लाल रंग का चौफूली चूंदड़ी का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर पाग व मोर-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को चारोली (चिरोंजी) के लड्डू और दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

सारी मेरी भींजत है जु नई अब ही पीहर से पहने जु आयी पिता वृषभानु दई ।
सुन्दर श्याम जायेगो ये रंग बहु विध चित्र दई ।।१।।
अपनो पीताम्बर मोहे ओढ़ावो बरखा उदित भई ।
कुम्भनदास लाल गिरधरनवर मुदित उछंग लई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग का चौफूली चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है. 
मिलवा – हीरा, मोती, माणिक पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल चौफूली चूंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सादी मोरपंख की चन्द्रिका और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
नीचे सात पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.
श्वेत एवं पीले पुष्पों की सुन्दर थाग वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी जड़ाऊ की आती है.
आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Monday, 9 August 2021

व्रज - श्रावण शुक्ल द्वितीया

व्रज - श्रावण शुक्ल द्वितीया
Tuesday, 10 August 2021

फ़िरोज़ी रुपहली किनारी के धोरा के सुथन, फेंटा और पटका के शृंगार

आज प्रभु को फ़िरोज़ी वस्त्र रुपहली किनारी के धोरा के धराये जायेंगे. 

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से हो. 
इसी भाव से आज ठाकुर जी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में लगभग छह बार धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के दिन निश्चित नहीं हैं.

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोडी)

देख गजबाज़ आज वृजराज बिराजत गोपनके शीरताज ।
देस देस ते खटदरसन आवत मनवा छीत कूल पावत 
किरत अपरंपार ऊंचे चढ़े दान जहाज़ ।।१।।
सुरभि तिल पर्वत अर्ब खर्ब कंचन मनी दीने, सो सुत हित के काज ।
हरि नारायण श्यामदास के प्रभु को नाम कर्म करावन,
महेर मुदित मन बंधि है धर्म की पाज ।।२।।

साज - श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी की धोरेवाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है और चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल जड़ी होती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज फ़िरोज़ी रंग के धोरा का सुथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के होते हैं.

शृंगार - ठाकुरजी को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण गुलाबी मीना के छेड़ान के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी फेंटा का साज धराया जाता है जिसमें फ़िरोज़ी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, बीच की चंद्रिका, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी रंग का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Sunday, 8 August 2021

व्रज - श्रावण शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - श्रावण शुक्ल प्रतिपदा
Monday, 09 August 2021

हरे एवं सफ़ेद रंग के लहरिया के पिछोड़ा के शृंगार

हरे एवं सफ़ेद रंग के लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव के क़तरा  श्रृंगार

विशेष – आज की सेवा श्रीरंगा सखी की ओर से होती है एवं वस्त्र-श्रृंगार नियम का हरे-श्वेत लेहरिया का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर लहरियाँ की छज्जेदार पाग और जमाव (नागफणी) के कतरे का धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

गावो गावो मंगलचार वधावो नंदके l
आवो आँगन कलश साजिके दधिफूल नूतन डार ll 1 ll
उरसों उर मिलि नंदराय गोप सबै निहार l
मागध सुत बंदीजन मिलिके द्वार करत उच्चार ll 2 ll
पायो पूरन आसकरि सब मिलि देत असीस l
नंदरायको कुंवर लाडिलो जीओ कोटि बरीस ll 3 ll
तब व्रजराज आनंद मगन दीने बसन मंगाय l
ऐसी शोभा देखिके जन ‘सूरदास’ बलि जाय ll 4 ll

साज – श्रीजी में आज हरे एवं श्वेत रंग के लहरिया की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. 
चरणचौकी, पडघा, बंटा आदि जड़ाव स्वर्ण के होते हैं. चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा होता है. दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं. सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं. 

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे एवं श्वेत रंग के लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कमल माला धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर हरे एवं श्वेत लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, जमाव (नागफणी) का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (झीने लहरिया व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चांदी की छोटी आती है.

Saturday, 7 August 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण अमावस्या

व्रज - श्रावण कृष्ण अमावस्या 
Sunday, 08 August 2021

हरियाली अमावस्या

विशेष – आज हरियाली अमावस्या है. श्रीजी में आज सभी साज एवं वस्त्र, पिछवाई, खंडपाट, गादी-तकिया, ठाड़े वस्त्र, पाग, पिछोड़ा आदि सभी हरी मलमल के होते हैं. 
आभरण भी विशेष रूप से पन्ना का एवं मालाजी भी हरे रंग की होती है.

वस्त्र के रंग से आज के दर्शन शीतकाल की हरी घटा जैसे प्रतीत होते हैं परन्तु उस दिन साटन (Satin) के वस्त्र होते हैं और प्रभु को घेरदार वागा धराये जाते हैं जबकि आज सुनहरी किनारी से सुसज्जित मलमल के वस्त्र में पिछोड़ा धराया जाता है. 

श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में पिस्ता के टूक व बूरे की चाशनी से सिद्ध लड्डू एवं संध्या-आरती में शाकघर की पिस्ता की सामग्री आरोगायी जाती है. शाकघर में भी मनोरथियों द्वारा पिस्ता के सागर की सामग्री अरोगायी जाती हैं.

आज चौक में हरे पत्तों की बिछावट एवं मुख्य द्वारों पर हरे तोरणों की सजावट की जाती है. 
संध्या-आरती में हिंडोलना भी हरे पत्तों के भारी खम्भों से कलात्मक रूप से सुसज्जित होता है.
 श्री मदनमोहन जी हरे पत्तों के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

श्री नवनीतप्रियाजी में आज के दिन हांड़ी-उत्सव होता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

सखी हरियारो सावन आयो ।
हरे हरे मोर फिरत मोहनसंग वसन मन भायो ।।१।।
हरी हरी मुरली हरी संग राधे हरी भूमि सुखदाईं ।
हरे हरे वसन हरी द्रुमवेली हरी हरी पाग सुहाई ।।२।।
हरी हरी सारी सखी सब पहेरे चोली हरी रंग भीनी ।
रसिक प्रीतम मन हरित भयो हे तन मन धन सब दीनी ।।३।।

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर भी हरी बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी किनारी से सुसज्जित हरी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र भी हरे रंग के ही होते हैं.

श्रृंगार - प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हरी मलमल की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. हरे रंग के पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (पन्ना व हरे मीना के) धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी हरे मीना की आती है.

Friday, 6 August 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - श्रावण कृष्ण चतुर्दशी 
Saturday, 07 August 2021

पिले मलमल का पिछोड़ा एवं दुमाला के श्रृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पिले मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर दुमाला का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

चल सखी देखन नंद किशोर l
श्रीराधाजु संग लीये बिहरत रुचिर कुंज घन सोर ll 1 ll
उमगी घटा चहुँ दिशतें बरखत है घनघोर l
तैसी लहलहातसों दामन पवन नचत अति जोर ll 2 ll
पीत वसन वनमाल श्याम के सारी सुरंग तनगोर l
जुग जुग केलि करो ‘परमानंद’ नैन सिरावत मोर ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पिले रंग के दुमाला के ऊपर सिरपैंच, कलगा (भीमसेनी कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के  वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक माणक व एक हीरा के) धराये जाते हैं. 
पट पिला गोटी बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी सोने के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

Thursday, 5 August 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - श्रावण कृष्ण त्रयोदशी
Friday, 06 August 2021

आज अति शोभित है नंदलाल ।
ग्वालपगा शिर ऊपर सोहे ऊर वनमाल ।।१।।
ता ऊपर एक चंद्रिका ज़रकसी धोती ऊपरना लाल ।
आगे गाय ग्वाल सब लेकें मुरली शब्द रसाल ।।२।।

लाल(कसुमल)रंग के धोती-उपरना एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के अद्भुत शृंगार

विशेष – आज श्रीजी को लाल(कसुमल)रंग के धोती-उपरना एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग धराये जाते हैं. 
आज के वस्त्रों की विशेषता यह है कि ये वस्त्र श्रीजी के वस्त्र तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से सिद्ध हो कर आते हैं.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

व्रज पर नीकी आज घटा l
नेन्ही नेन्ही बुंद सुहावनी लागत चमकत वीज छटा ll 1 ll
गरजत गगन मृदंग बजावत नाचत मोर नटा l
तैसेई सुर गावत चातक पिक प्रगट्यो है मदन भटा ll 2 ll
सब मिलि भेट देत नंदलालहि बैठे ऊंची अटा l
‘कुंभनदास’ गिरिधरन लाल शिर कसुम्भी पीतपटा ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज श्री महाप्रभुजी, श्री गुसांईजी, अन्य सात बालक एवं हिंडोलने के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. इस पिछवाई में स्वर्ण हिंडोलने का सुन्दर चित्रांकन इस प्रकार किया गया है कि श्री महाप्रभुजी श्रीजी को हिंडोलना झुला रहें हो ऐसा आभास होता है. श्री गुसाईजी एवं अन्य सात बालक श्रीजी की सेवा में खड़े हैं. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल(कसुमल) रंग की मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल(कसुमल) रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी मीना की आती  हैं.

Wednesday, 4 August 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण द्वादशी

व्रज - श्रावण कृष्ण द्वादशी
Thursday, 05 August 2021

हो झुलत ललित कदंब तरे।
पियको पीत पट प्यारी को लहेरिया रमकत खरे खरे।।१।।
एक भुजा दांडी गहि लीनी दूजी भुजा अंस धरे।
लांबे झोटा देत है प्यारी पुरषोत्तम अंक भरे।।२।।

मेवाड़ के प्रसिद्ध भोपालशाही लेहरिया के वस्त्र एवं मुकुट और गोल-काछनी के अद्भुत शृंगार

🌸आज श्रीजी को नियम का मुकुट और गोल-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. आज धरायी जाने वाली काछनी को मोर-काछनी भी कहा जाता है. इसे मोर-काछनी इसलिए कहा जाता है क्योंकि आकार में यह खुले पंखों के साथ नृत्यरत मयूर (मोर) का आभास कराती है.

आज के अतिरिक्त मुकुट के साथ गोल-काछनी का श्रृंगार केवल शिवरात्रि के दिन धराया जाता है यद्यपि उस दिन काछनी का रंग अंगूरी (अंगूर जैसा हल्का हरा) होता है.

आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.

आज संध्या-आरती के दर्शन में श्रीजी में नियम का सोने के हिंडोलने का मनोरथ होता है.
श्रीजी के सम्मुख डोलतिबारी में श्री मदनमोहन जी सोने के हिंडोलने में झूलते हैं. श्री मदनमोहनजी के सभी वस्त्र एवं श्रृंगार श्रीजी को धराये आज के श्रृंगार जैसे ही होते हैं. श्री बालकृष्ण लालजी उनकी गोदी में विराजित होकर झूलते हैं

विक्रम संवत 2014 में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री ने आज के दिन मेवाड़ की महारानीजी के आग्रह पर उनके द्वारा जमा करायी गयी धनराशि से सोने के हिंडोलने का मनोरथ किया जो अब स्थायी रूप से प्रतिवर्ष इस दिन होता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

अरी इन मोरन की भांत देख नाचत गोपाला ।
मिलवत गति भेदनीके मोहन नटशाला ।।१।।
गरजत धन मंदमद दामिनी दरशावे ।
रमक झमक बुंद परे राग मल्हार गावे ।।२।।
चातक पिक सधन कुंज वारवार कूजे ।
वृंदावन कुसुम लता चरण कमल पूजे ।।३।।
सुरनर मुनि कामधेनु कौतुक सब आवे ।
वारफेर भक्ति उचित परमानंद पावे ।।४।।

साज – श्रीजी में आज नृत्य की मुद्रा में श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं मोरकुटी के ऊपर नृत्य करते मयूरों के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है.
श्रीजी को भी रास का श्रृंगार धराया जाता है जिससे वे दोनों भी प्रभु के साथ रास कर रहे हों ऐसा सुन्दर आभास होता है.
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सूथन, मोरकाछनी (गोल-काछनी) एवं रास पटका धराया जाता है. सभी वस्त्र पीले भोपालशाही लहरिया के और सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सिलमा सितारा का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज चोटीजी नहीं धरायी जाती है.
कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाती है.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
भाभीजी वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी मोर वाली आती है.

Tuesday, 3 August 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण एकादशी

व्रज - श्रावण कृष्ण एकादशी 
Wednesday, 04 August 2021

कामिका एकादशी

विशेष – आज कामिका एकादशी है. आज श्रीजी को नियम का दोहरा मल्लकाछ व टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. 
ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह बालभाव का श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी फल फूल के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

वृन्दावन कनकभूमि नृत्यत व्रज नृपतिकुंवर l
उघटत शब्द सुमुखी रसिक ग्रग्रतततत ता थेई थेई गति लेत सुघर ll 1 ll
लाल कांछ कटि किंकिणी पग नूपुर रुनझुनत बीच बीच मुरली धरत अधर l
‘गोविंद’ प्रभु के जु मुदित संगी सखा करत प्रशंसा प्रेमभर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराज-धारण की लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में श्री कृष्ण एवं बलदेव जी मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार में हैं एवं ग्वाल-बाल व गायें संग खड़ी हैं. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज एक आगे का पटका लाल एवं सफ़ेद लहरियाँ का एवं मल्लकाछ तथा दूसरा कंदराजी का हरा एवं सफ़ेद लहरियाँ का पटका तथा मल्लकाछ धराया जाता है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को श्री कंठ के शृंगार छेड़ान के धराए जाते हे बाक़ी श्रृंगार भारी धराया जाता है. 
हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग के दुमाला के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरे कतरा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धरायी जाती.
कमल माला धरायी जाती है.
श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक झीने लहरिया व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चांदी की बाघ-बकरी की आती है.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...