Monday, 28 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी
Sunday, 27 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण द्वादशी
Friday, 25 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण दशमी
Thursday, 24 February 2022
व्रज – फाल्गुन कृष्ण नवमी
Wednesday, 23 February 2022
व्रज – फाल्गुन कृष्ण अष्टमी
Tuesday, 22 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी
व्रज - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी
Wednesday, 23 February 2022
निकुंजनायक श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव
आज की पोस्ट बहुत लम्बी पर उत्सव के आनंद के रंग से सराबोर है अतः समय देकर पूरी पढ़ें
सभी वैष्णवों को निकुंजनायक श्रीजी व श्री लाड़लेलाल प्रभु के पाटोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
निकुंजनायक श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव
होली खेल के 40 दिनों में पाटोत्सव का अपना अलग ही महत्व है, जो प्रभु कृपा और सर्व-समर्पण की भावना से उत्पन्न हुआ है.
श्रीजी प्रभु आज ही के दिन, श्री गुसाईंजी के घर सतघरा पधारे थे। श्री गिरिधरजी ने श्रीजी की आज्ञा से आपश्री को अपने कंधों पर विराजित कर उन्हें अपने घर पधरा ले गए.
वहाँ श्रीजी ने श्रीगुसाँईजी के परिवार के सभी बालक, बेटीजी और बहूजी के साथ होली खेली.
तब श्री गिरिधरजी के परिवार की सभी महिलाओं ने अपने सभी आभरणों (आभूषणों) का प्रभु चरणों में समर्पण किया (आज भी सर्व-समर्पण का प्राचीन जडाव का चौखटा प्रभु जन्माष्टमी आदि कई विशिष्ट दिनों पर अंगीकार करते हैं).
इस समय जब श्री गिरिधरजी के बहूजी की नथ रह गयी, तब श्रीजी ने अपनी वेणुजी से संकेत किया और वह भी माँग ली.
इसे ही प्रभु कृपा कहते हैं.
विशेष – आज निकुंजनायक श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव है.
आज के दिन श्रीजी प्रभु व्रज से पधारने के उपरांत वर्तमान श्रीजी मंदिर के बाहर के चौक में स्थित खर्च-भण्डार में बिराजे थे.यहाँ पर प्रभु तीन बार (संवत 1623, 1728 व 1864) में बिराजे एवं कुछ वर्ष उपरांत वर्तमान मंदिर निर्माण के पूर्ण होने पर डोलोत्सव के अगले दिन द्वितीया पाट के दिन अपने वर्तमान पाट पर विराजे.
खर्च-भण्डार में जिस स्थान पर प्रभु विराजे उस स्थान पर श्रीजी की छवि स्थित है और उसकी सेवा प्रतिदिन श्रीजी के घी-घरिया करते हैं.
आज खर्च-भंडार में विराजित श्रीजी की छवि को सैंकड़ों लीटर केसर व मेवे युक्त दूध का भोग अरोगाया जाता है और शयन पश्चात सभी वैष्णवों एवं नगरवासियों को वितरित किया जाता है.
आज से सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे.
पुष्टिमार्ग में प्रत्येक ऋतु का आगमन व पूर्व ऋतु की विदाई प्रभु सुखार्थ धीरे-धीरे क्रमानुसार होती है.
प्रभुसेवा में आज से शीतकाल की विदाई आरंभ हो गयी है अतः जल रंगों (Water Colors) के चित्रांकन की पिछवाईयां धरायी जानी प्रारंभ हो जाती है.
आज से डोलोत्सव तक इस प्रकार की पिछवाईयां केवल श्रृंगार के दर्शनों में ही धरायी जाती हैं एवं ग्वाल में बड़ी (हटा) कर सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती हैं क्योंकि राजभोग में प्रभु को गुलाल खेलायी जाती है.
आज से चरणारविंद के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज से प्रभु को मोजाजी भी नहीं धराये जाते परन्तु यदि अधिक शीत हो तो आज का दिन छोड़कर प्रभु सुखार्थ शीत रहने तक राजभोग तक मोजाजी पुनः धराये जा सकते हैं.
आज से डोलोत्सव तक श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी में ख्याल (स्वांग) प्रारंभ होंगे. ख्याल बनने वाले बालक, बालिकाएं विविध देवों, गन्धर्वों एवं सखाओं के रूप धरकर ख्याल बनकर शयन के दर्शन में प्रभु के समक्ष नाचते हैं जिससे बालभाव में प्रभु आनंदित होते हैं.
कई वर्षों पूर्व जब प्रभु व्रज में थे तब वहां इस प्रकार के ख्याल (स्वांग) निकलते थे. श्रीजी का मन ऐसे ख्याल (स्वांग) देखने बाहर जाने का हुआ तब श्री गिरधरजी ने प्रभु के सुखार्थ सतघरा में ही ख्याल (स्वांग) बनाने की प्रथा प्रारंभ की जो कि आज भी जारी है.
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श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज निज मंदिर का चंदुआ बदला जाता हैं.
मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
सभी समय यमुनाजल की झारीजी भरी जाती है. चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
राजभोग में 6 बीड़ा की शिकोरी(स्वर्ण का जालीदार पात्र) आवे.
प्रभु को नियम के केसरी (अमरसी) डोरिया के रुपहली ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित घेरदार वागा, चोली एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली श्याम रंग की चोवा की चोली धरायी जाती है.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में खरमंडा, केसर-युक्त गेहूं के रवा (संजाब) की खीर, श्रीखंडवड़ी का डबरा, मंगोड़ा (मूंग की दाल के गोल दहीवड़ा) की छाछ व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है.
श्रृंगार दर्शन –
कीर्तन – (राग : देवगंधार)
आज माई मोहन खेलन होरी l
नवतन वेष काछी ठाड़े भये संग राधिकागोरी ll 1 ll
अपने भामते आये देखनको जुरि जुरि नवलकिशोरी l
चोवा चन्दन और कुंकुमा मुख मांडत ले रोरी ll 2 ll
छूटी लाज तब तन संभारत अति विचित्र बनी जोरी l
मच्यो खेल रंग भयो भारे या उपमाको कोरी ll 3 ll
देत असीस सकल व्रजवनिता अंग अंग सब भोरी l
‘परमानंद’ प्रभु प्यारीकी छबी पर गिरधर देत अकोरी ll 4 ll
साज – आज प्रभु को होली के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है जिसमें व्रजभक्त प्रभु को होली खिला रहे हैं और ढप वादन के संग होली के पदों का गान कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.राजभोग में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है.
वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी डोरिया के दोहरा रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली श्याम रंग की चोवा की चोली धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत चिकने लट्ठा के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की कीलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में फ़िरोज़ा के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है.
पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली एक मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती
Monday, 21 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण षष्ठी
Sunday, 20 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण पंचमी
Saturday, 19 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी
Thursday, 17 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण द्वितीया
Wednesday, 16 February 2022
व्रज - फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा
Tuesday, 15 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल पूर्णिमा
Monday, 14 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल चतुर्दशी
Sunday, 13 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल त्रयोदशी
Saturday, 12 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल द्वादशी
Friday, 11 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल एकादशी
Thursday, 10 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल दशमी
Wednesday, 9 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल नवमी
Tuesday, 8 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल अष्टमी(द्वितीय)
Monday, 7 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल अष्टमी(प्रथम)
Sunday, 6 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल सप्तमी
Saturday, 5 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल षष्ठी
Friday, 4 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल पंचमी
व्रज – माघ शुक्ल पंचमी
Saturday, 05 February 2022
नवल वसंत नवल वृंदावन खेलत नवल गोवर्धनधारी ।
हलधर नवल नवल ब्रजबालक नवल नवल बनी गोकुल नारी ।।१।।
नवल जमुनातट नवल विमलजल नौतन मंद सुगंध समीर ।
नवल कुसुम नव पल्लव साखा कुंजत नवल मधुप पिक कीर ।।२।।
नव मृगमद नव अरगजा वंदन नौतन अगर सुनवल अबीर ।
नवचंदन नव हरद कुंकुमा छिरकत नवल परस्पर नीर ।।३।।
नवलधेनु महुवरि बाजे, अनुपम भूषण नौतन चीर ।
नवलरूप नव कृष्णदास प्रभुको, नौतन जस गावत मुनि धीर ।।४।।
सभी वैष्णवजन को बसंतोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
बसंत-पंचमी
आज बसंत-पंचमी है. आज के दिन कामदेव का प्रादुर्भाव हुआ था अतः इसे मदन-पंचमी भी कहा जाता है.
शीत ऋतु लगभग पूर्ण हो चुकी है और बसंत का आगमन हो गया है अतः आज से प्रभु बसंत खेलते हैं.
आज से सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में शीतकालीन साज बड़ा (हटा) कर सम्पूर्ण सफ़ेद साज धरा जाता है.
आज से डोलोत्सव (40 दिन) तक ज़री के वस्त्र वर्जित होते हैं. आज से डोल तक खंडपाट, चौकी, पडघा आदि सभी साज चांदी के आते हैं.
आज से निज-मंदिर में प्रभु स्वरुप के सम्मुख धरी जाने वाली लाल रंग की रुईवाली पतली रजाई (तेह) नहीं बिछाई जाएगी जो कि शीतकाल में प्रतिदिन राजभोग सरे पश्चात उत्थापन तक प्रभु सुखार्थ चरण-चौकी से शैया मन्दिर में शैयाजी तक बिछाई जाती है.
आज से दिन के अनोसर में श्रीजी को सौभाग्य-सूंठ भी नहीं आरोगायी जाएगी. अब केवल रात्रि अनोसर में ही प्रभु को सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाएगी जो कि आगामी दिनों में शीत रहने तक अरोगायी जाएगी.
आज से प्रतिदिन छोगा छड़ी धरायी जाती है व आज से चालीस दिनों तक प्रभु को धरायी जाने वाली गुंजामाला दोहरी (Double) आती है.
माघ, फाल्गुन एवं चैत्र मास श्री चन्द्रावलीजी के सेवा मास हैं परन्तु आज से दस दिन की सेवा श्री यमुनाजी के भाव से होती है. बसंत खेल के दस दिन हैं जो कि सात्विक भक्तों के खेल के दिन हैं.
गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन इन चार वस्तुओं से प्रभु को खेल खिलाया जाता है. गुलाल ललिताजी के भाव से, अबीर श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, चोवा श्री यमुनाजी के भाव से और केसरयुक्त चन्दन कंचनवर्णी श्री राधिकाजी (श्री स्वामिनीजी) के भाव से आते हैं.
इस प्रकार श्रीजी आगामी दस दिन इन चार वस्तुओं से खेलते हैं. अनामिका उंगली से टिपकियां करके सूक्ष्म खेल होता है.
🌸आज से चालीस दिन तक गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन एवं केसर रंग से प्रभु व्रजभक्तों के साथ होली खेलते हैं. होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. प्रिया-प्रियतम परस्पर भी होली खेलते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं. ऐसी रसमय होली की आज शुरुआत होती है.
श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दिनभर सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दिन में सभी समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) थाली की आरती आती है.
गेंद, चौगान व दिवला सभी चांदी के आते हैं.
मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
नियम के श्वेत अड़तु के सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर श्याम खिड़की की श्वेत पाग के ऊपर सादी मोर-चंद्रिका धरायी जाती है.
आज से प्रतिदिन छोगा व श्रीहस्त में पुष्पों की छड़ी धरी जाती है.
आज से 10 दिन तक जैसे श्रृंगार हों उसी भाव के बसंत के पद गाये जाते हैं.
प्रत्येक पद बसंत राग में ही गाये जाते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : वसंत)
श्रीपंचमी परममंगल दिन, मदन महोच्छव आज l
वसंत बनाय चली व्रजसुंदरी ले पूजा को साज ll 1 ll
कनक कलश जलपुर पढ़त रतिकाममन्त्र रसमूल l
तापर धरी रसाल मंजुरी आवृत पीत दुकूल ll 2 ll
चोवा चंदन अगर कुंकुमा नव केसर घन सार l
धुपदीप नाना निरांजन विविध भांति उपहार ll 3 ll
बाजत ताल मृदंग मुरलिका बीना पटह उमंग l
गावत वसंत मधुर सुर उपजत तानतरंग ll 4 ll
छिरकत अति अनुराग मुदित गोपीजन मदनगुपाल l
मानों सुभग कनिकदली मधि शोभित तरुन तमाल ll 5 ll
यह विधि चली रति राज वधावन सकल घोष आनंद l
‘हरिजीवन’ प्रभु गोवर्धनधर जय जय गोकुल चंद ll 6 ll
साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत अड़तु का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का आता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
श्रृंगार – आज श्रीजी में मध्य का (छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के माणक, स्वर्ण एवं लाल मीना के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत पाग (श्याम खिड़की की) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पट्टीदार जड़ाऊ कटिपेंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, सोना के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. आज विशेष रूप से श्रीमस्तक पर सिरपैंच में आम के मोड़ धराये जाते हैं.
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की आती है.
Thursday, 3 February 2022
व्रज – माघ शुक्ल चतुर्थी
व्रज – माघ शुक्ल तृतीया
व्रज – माघ शुक्ल तृतीया Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...
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